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भेड़ बकरियों के कटी पक्षाघात रोग : Lumber Paralysis Disease of Goats

भेड़ बकरियों के कटी पक्षाघात रोग : Lumber Paralysis Disease of Goats, यह भेड़-बकरियों, पशुओं और घोड़ो के कटी अर्थात कमर की पक्षाघात (लकवा) कि बीमारी है. यह रोग जानवरों में अचानक होता है और पशु का कमर लकवा ग्रस्त हो जाता है जिससे जानवर को कमर में ताकत लगाकर उठने में असमर्थता उत्पन्न हो जाती है. पशु के कमर में लकवा हो जाने से पशु इधर-उधर हल चल नहीं कर पाता है. इसका सीधा प्रभाव पशु के खान-पान, उत्पादन, दिनचर्या आदि पर पड़ता है. अंततः पशु धीरे धीरे कमजोर हो जाता है. इस रोग के कारण पशुपालक को बहुत अधिक आर्थिक क्षति पहुँचता है.

Lumber Paralysis Disease of Goats
Lumber Paralysis Disease of Goats

रोग के कारण

रोग का प्रमुख कारण सूत (धागा) जैसा कृमि होता है जो सेटारिया जाती का होता है. इस कृमि कि लम्बाई 5-10 सेमी होता है. वैज्ञानिको का मत है कि फाईलेरिडे पैरासाइट्स कुल के वंश सेटारिया कि जाति सेटारिया डिजीटाटा पशुओं, भेड़-बकरियों तथा घोड़ों में सेटारिया इक्वाइना केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालते हैं. जिससे एकाएक रोग की उत्पत्ति होती है.

कटी पक्षाघात के अन्य कारण

  • पशुओं में कैल्शियम और मैग्नीशियम की कमी.
  • पशुओं में ट्रेस एलीमेन्ट्स एवं विटामिन B1 की कमी.
  • हीमोरेजिक इनसेफेलोमाईलाईटिस.
  • सेरिब्रोस्पाइनल नेमाटोडीएसिस.
  • सेटारिया नामक कृमि.

रोग के लक्षण

  • यह रोग अचानक हो जाता है.
  • पशु प्रायः लेता हुआ मिलता है.
  • सारे प्रयास के बावजूद पशु उठने में असमर्थ रहता है.
  • पशु उठने का भरपूर प्रयास करता है परन्तु उठ नहीं पाता है.
  • पशु के पिछले भाग का पैरालिसिस या पक्षाघात हो जाता है.
  • इस बीमारी से अधिकांशतः पिछला भाग या पैर प्रभावित होता है परन्तु कभी-कभी अगला पैर (चारो पैर) लकवा ग्रस्त हो जाता है.
  • पक्षाघात रोग से प्रभावित पशु का प्रायः टेम्प्रेचर सामान्य रहता है.

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कटी पक्षाघात के लक्षण का सारांश

  • पशुओं में रोग के लक्षण एकाएक दिखाई देता है.
  • पशु लेता हुआ उठने में असमर्थ.
  • उठने कि कोशिश करता है पर कमर से उठ नहीं पाता है.
  • पिछले भाग का लकवा और कभी-कभी अगला पैर भी.
  • शरीर का तापमान सामान्य.
  • भेड़-बकरियों में रोग अक्टूबर से दिसंबर तक दिखाई देते हैं.

भेड़-बकरियों में यह रोग अधिकतर अक्टूबर से दिसम्बर माह में होता है

चिकित्सा – इस बीमारी कि ऐसी कोई उपयुक्त नहीं है जो प्रभावित अंग को ठीक कर सके. is बीमारी में केवल एन्थिलमेंटिक का ही प्रयोग प्रशस्त माना गया है. डाई-इथाइल कार्बामाजिन, कैसीराइड का उपयोग भेड़, बकरियों, घोड़ो तथा पशुओं में विशेष रूप से उपयुक्त माना जाता है. इस रोग से फाइलेरिया नाशक औषधियों (एंटीफाइलेरियल ड्रग्स) से अच्छा लाभ मिलता है.

सहायक चिकित्सा के रूप में विटामिन B1, B12, B6 का उपयोग सुचीवेध द्वारा किया जा सकता है. हमने कुछ केसेस में उपरोक्त चिकित्सा के साथ-साथ एसीटीलार्सन जो कि आर्सेनिक कि प्रीपेरेशन है. सुचीवेध के रूप में कई दिन देने से लाभ मिलता है.

चिकित्सा पेटेन्ट औषधियों द्वारा –

1 . कैरीसाइड (Caricide) – 100 मी.ग्रा. प्रति किलो शारीरक भार पर एक खुराक में दें. इसकी एक टिकिया 400 किलो ग्राम कि आती है. यह इथाइल कार्बामेजीन साईंट्रेट का पेटेन्ट योग है. भेड़ – बकरियों के लिए एक खुराक में इसकी 4-5 गोलियां दी जाती है. भेड़ बकरियों में कैरीसाइड देने के पूर्व तूतिया का 5% घोल 10 मि.ली. अवश्य पिला लेना चाहिए, जिससे Oesphagial Groove बंद हो जाये.

2. बेनोसाइड फोर्ट या हेटराजॉन (Benocide forte or hertazan) – बड़े पशुओं को 5-10 गोली तथा छोटे पशुओं को 1-2 गोली हर सप्ताह दें. हेटराजॉन और कैरीसाइड रासायनिक तरीके से दोनों एक हैं.

बीमारी की रोकथाम – जहाँ पर बीमारी होती हो वहां पर पशुओं के बचाव हेतु डाई-इथाइल कार्बामेजिन (कैरीसाइड) 10 मि.ग्रा. प्रति किलो भार पर रोजाना 10 दिन तक मुख द्वारा देनी चाहिए अथवा अक्टूबर से दिसंबर माह में 40 किलोग्राम प्रति शारीरक भार पर पहली खुराक दी जाती है. तथा दूसरी खुराक 22-55 दिनों के बाद दी जाती है.

अनुभूत चिकित्सा व्यवस्था –

  • कापर सल्फ़ लोशन 5% 10 ml पहले.
  • तत्पश्चात टेबलेट कैरीसाइड अथवा हेटराजॉन अथवा बेनोसाइड फोर्ट 8-10 गोली नित्य दस दिन तक, छोटे पशुओं को 4-5 गोली देवें.
  • इंजेक्शन एसीटीलार्सन बड़े पशु को 10ml , भेड़ बकरी एवं छोटे पशु को 4 ml S/C या I/M एक दिन छोड़कर अथवा नित्य दस दिन तक.
  • इंजेक्शन ट्राई रेडिसोल एच 1000 mg 5 ml मांस में ठीक होने तक देवें.
  • रीढ़ के 5वे-6वे वर्टिब्रा पर रेड आयोडाईड ऑफ़ मरकरी कि मालिश करनी चाहिए.

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प्रिय पशुप्रेमी और पशुपालक बंधुओं पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

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