जेर या आंवर को कैसे निकालें : How to Remove Placenta or Anwar
जेर या आंवर को कैसे निकालें : How to Remove Placenta or Anwar, प्रायः देखा गया है की गाय एवं भैसों के ब्याने या जनने के बाद जेर या आंवर 8 से 12 घंटे के बाद बाहर निकल जाती है. परंतु ब्याने के कई घंटों बाद भी जेर या आंवर बाहर नहीं निकलता है. जिससे गर्भाशय के अन्दर कई प्रकार के विकार या रोग उत्पन्न होने की सम्भावनाये होती है.
जेर या आंवर को कैसे निकालें : How to Remove Placenta or Anwar, प्रायः देखा गया है की गाय एवं भैसों के ब्याने या जनने के बाद जेर या आंवर 8 से 12 घंटे के बाद बाहर निकल जाती है. परंतु ब्याने के कई घंटों बाद भी जेर या आंवर बाहर नहीं निकलता है. जिससे गर्भाशय के अन्दर कई प्रकार के विकार या रोग उत्पन्न होने की सम्भावनाये होती है. इससे पशुओं के गर्भाशय और दूध के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पढ़ सकता है. अतः पशुपालक गाय भैस के ब्याने के बाद यदि जेर या आंवर 8 से 12 घंटे के बीच नहीं गिरे तो जेर को बाहर निकलवाएँ.
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जेर या आंवर नहीं गिरने का लक्षण –
1 . पशुओं में ब्याने के कई घंटों बाद भी जेर या आंवर का बाहर लटका हुआ दिखाई देना.
2. यदि जेर बाहर से दिखाई नहीं दे तो गर्भाशय के अन्दर हाथ डालकर महसूस किया जा सकता है.
3. पशुओं का बार-बार पेट पर पैर मारना और बेचैन होना, दर्द महसूस कारण.
4. बुखार हिना तथा दूध का उत्पादन गिर जाना.
5. गर्भाशय द्वारा योनी मार्ग से दुर्गन्ध आना.
6. अधिक समय हो जाने पर योनी मार्ग से मवाद या छिछ्ड़े आना.
7. पशु का बार बार उठाना तथा बैठना.
8. पशु का सुस्त होना तथा बेसुध होना.
9. पशु के खान-पान पर रूचि न होना.
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जेर या आंवर रुकने के कारण –
1 . समय से पहले गर्भ में भ्रूण का मृत्यु होने से गर्भपात हो जाना.
2. संक्रामक रोग जैसे – ब्रुसोलेसिस, कम्पैलोबैक्टीरियोसिस और अन्य बिमारियों के वजह से यह रोग हो सकता है.
3. पोषक तत्वों का असंतुलन जैसे – कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम और अन्य पोषक तत्वों की कमी के कारण गर्भ का विकास नहीं हो पाता जिससे गर्भपात और शारीरिक कमजोरी जैसे समस्या उत्पन्न होती है.
4. पशुओं का समय से पहले प्रशव पीड़ा उत्पन्न होना औए बछड़े को जन्म देना.
5. कष्ट प्रशव या डीसटोकिया जैसी समस्याओं में बछड़ों के जन्म लेने में समस्या के कारण जेर बाहर नहीं आता है.
6. हार्मोन्स की कमी के वजह से जेर की झिल्लियाँ गर्भाशय को छोडनें के बजाय गर्भाशय में चिपकी रह जाति है.
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प्राथमिक उपचार –
1. जेर रुकने की अवस्था में, बच्चेदानी में हाथ डालकर देख लेना चाहिए, यदि जेर आसानी से निकल जाए तभी उसे निकालना चाहिये, अत्यधिक बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे गर्भाशय की गांठों के उखड़ने एवं गर्भाशय में जख्म होने की संभावना रहती है जो आगे चलकर कई विकार उत्पन्न कर सकती है, एवं गर्भधारण में समस्या उत्पन्न कर सकती है.
2. बांस की पत्ती, धान की भूसी या मूंग एवं दलिया आदि का मिश्रण देना चाहिए.
3. आयुर्वेदिक औषधियों जैसे युटेरोटोन, यूट्रासेफ, या युटेरोटोनेक्स, 200 मिली दिन में तीन बार एवं जेर निकलने के बाद100 मिली प्रतिदिन मुंह द्वारा देना चाहिए जिससे गर्भाशय की सफाई हो सके.
4. यदि जेर का कुछ भाग बाहर निकला हुआ है तो उसमें कोई वजन वस्तु जैसे ईंट, लकड़ी आदि बांधने से भी कई बार जेर बाहर निकल आती है.
5. जेर के बाहर निकल जाने पर गर्भाशय की सफाई करना अत्यधिक आवश्यक होता है. इसके लिए लाल दवा (पोटेशियम परमैंगनेट) का 1:1000 घोल, स्वच्छ पानी में बनाकर बच्चेदानी की सफाई किसी योग्य या पेशेवर पशु चिकित्सक से करानी चाहिए.
6. जेर रुकने वाले पशुओं में दूध की मात्रा कम हो जाती है अतः खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फोरस आदि उचित मात्रा में पशु को देना चाहिए.
7. अक्सर यह देखा गया है जेर रुके पशु को गर्भाशय शोथ या गर्भाशय में सूजन आ जाती है. जिसका उचित उपचार किसी योग्य पशु चिकित्सक से करवाना चाहिए .
8. जेर या आंवर बाहर नहीं निकलने की स्थिति में पेशेवर चिकित्सक या नजदीकी पशु चिकित्सालय में जाकर पशु चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए.
9. ब्याने से 1-2 माह पूर्व दाना मिश्रण के साथ लगभग 150-250 ग्राम सरसों का तेल रोजाना देना चाहिए. यह जेर के सही समय पर निकलने में सहायता प्रदान करता है.
10. ब्याने के तुंरत बाद पशु को 0.5-1 किलो गुड़ व गेहूँ का दलिया देना चाहिए इससे जेर के निकलने में मदद मिलती है.
11. ये पाया गया है की गर्भावस्था के आखरी महीने में अगर पशु को सेलेनियम और विटामिन E दिया जाए हल्का व्यायाम कराया जाए तो जेर बिलकुल सही समय पर निकल जाता है.
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धारणाएं –
1 . अधिकांश पशुपालकों में यह धारणा है कि बिना जेर निकले पशु का दूध न निकाला जाए और नहीं बच्चे को पिलाया जाए. जबकि यह धारणा सर्वथा अनुचित एवं अनर्थकारी है. अत: पशुपालकों को, यह सलाह दी जाती है कि उन्हें पशु के ब्याने के आधे घंटे के भीतर बच्चे को दूध पिलाना चाहिए और पशु का आधा दूध निकाल लेना चाहिए.
2. बच्चे को दूध पिलाने एवं दूध निकालने के कारण पशु की पिट्यूटरी ग्रंथि से ऑक्सीटॉसिन हार्मोन स्रावित होता है जोकि गर्भाशय में संकुचन पैदा करता है और जेर आसानी से बाहर निकल जाती है.
2. अधिक दूध देने वाले पशुओं में यदि पूरा दूध निकाल लिया जाएगा तो उसमें हाइपोकैल्सीमिया/ मिल्क फीवर नामक बीमारी होने की संभावना प्रबल होती है.
3. पशु के प्रथम दूध या खीस/पेवसी/ कोलोस्ट्रम में इम्यूनोग्लोबुलिंस के रूप में रोग प्रतिरोधक तत्व होते हैं जो बच्चे की आंतों द्वारा मात्र 24 घंटे तक ही अवशोषित हो सकते हैं. अतः पशुपालकों को बच्चे को शीघ्र अति शीघ्र मां का पहला दूध पिलाना चाहिए जिससे बच्चे को पूरे जीवन भर रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त हो सके और मादा पशु का जेर, समय से निकल सके.
2. कोलोस्ट्रम दस्तावर होता है अतः बच्चे का पेट भी साफ हो जाता है. मेरा यह व्यक्तिगत अनुभव है यदि पशुपालक इस सलाह को अपनाता है तो 90% जेर रुकने की समस्या नहीं होगी.
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चिकित्सीय प्रबन्धन –
- जेर के अटक जाने के चिकित्सक प्रबन्धन में बुनियादी लक्ष्य यही रहता है की मादा के जनांग जल्द से जल्द अपनी सामने स्थिति में वापस आ जाए.
- अटके हुए जेर को योनि मार्ग में हाथ डालकर धीरे-धीरे खींचकर निकालने का तरीका कई सालों से प्रयोग किया जाता रहा है लेकिन कई शोधों से ये ज्ञात हुआ है की इससे गर्भाशय की नाजुक परत को बेहद नुकशान पहुंचता है. कई बार गर्भाशय में सुजन एवं संक्रमण हो जाता है.
- सबसे बेहतर उपाय यही है कि योनि के रास्ते बायाँ हाथ डालकर मासन्कुर एवं दलों को छुड़ाया जाए तथा दाएं हाथ से जेर का जितना हिस्सा आसानी से निकलता है उसे धीमे –धीमे निकाला जाए।अगर पूरी तरह जेर नहीं निकल पा रहा है तो खींचतान नहीं करना चाहिए.
- जेर को हाथ से निकलने के सन्दर्भ में ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए की अगर पशु का जेर अटका है तो ओर 12 घंटे के बाद ही हाथ डालकर निकाला जाना चाहिए. कई बार पशुपालकर घबराहट में 4-5 घंटे के बाद ही जेर से खींचतान करने लगते हैं.ये एक बहुत बड़ी गलती होती है क्योंकि उस समय प्लेसेंटोम अपरिपक्व होते हिं, इस खींचतान से ढेर सारा खून निकल सकता है, गर्भाशय शोध हो सकता है और पशु हमेशा के लिए बाँझ भी हो सकता है.
- जेर को निकलने के बाद ३-5 दिन तक गर्भाशय श्रींग में 2-4 घंटी-बायोटिक के बोलस रख दना चाहिए जैसे नाइटोफुराजोन एवं यूरिया के बोलस अथवा सिप्रौफ्लोक्ससिन या टैट्रासाईंक्लीन के बोलस इत्यादि.
- संकरण को रोकने के लिए 3-5 दिन तक अंतपोर्शीय मार्ग से स्ट्रेपटोपेनीसिसलिन या टैट्रासाईंक्लीन एंटी बायोटिक लगाना चाहिए.
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प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर हमेशा विजिट करते रहें.
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