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जिला स्तरीय पशु चिकित्सा शिविर आंछी कवर्धा : Jila Stariya Pashu Chikitsa Shivir Anchhi Kawardha

जिला स्तरीय पशु चिकित्सा शिविर आंछी कवर्धा : Jila Stariya Pashu Chikitsa Shivir Anchhi Kawardha, पशुधन विकास विभाग, जिला कबीरधाम द्वारा दिनांक 22 मार्च 2025 को ग्राम – आंछी, विकास खंड – कवर्धा, जिला – कबीरधाम, छत्तीसगढ़ में जिला स्तरीय निःशुल्क पशुचिकित्सा सह जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया.

Jila Stariya Pashu Chikitsa Shivir Anchhi Kawardha
Jila Stariya Pashu Chikitsa Shivir Anchhi Kawardha

पशुधन विकास विभाग, जिला कबीरधाम द्वारा पशुपालकों को जागरूक करने के लिए समय-समय पर कबीरधाम जिले के विभिन्न ग्रामों में निःशुल्क पशु चिकित्सा शिविर, पशु मेला सह प्रदर्शनी, टीकाकरण, बधियाकरण इत्यादि जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से पशुपालकों को लाभान्वित किया जाता है. जिससे पशुपालकों में पशुधन के प्रति लगाव और जागरूकता बना रहता है.

उक्त विषयान्तर्गत छतीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले अंतर्गत आने वाले ग्राम – आंछी (बानो), विकास खण्ड – कवर्धा में दिनांक 22 मार्च 2025 को प्रातः 9 बजे से पशुधन विकास विभाग द्वारा निःशुल्क पशु चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया. जिसमें जिला स्तरीय पशु चिकित्सा शिविर ग्राम आंछी में पशुपालकों द्वारा अपने बीमार पशु, कमजोर जानवर, बधियाकरण, बाँझपन, गर्भाधान निदान, किलनी जूं इत्यादि की समस्या बताया गया. जिसका शिविर में उपस्थित पशुचिकित्सा विभाग कबीरधाम, विकास खंड -कवर्धा के पशुचिकित्सा सहायक शल्यज्ञ, सहायक पशुचिकित्सा क्षेत्राधिकारी, परिचारक, ड्रेसर, प्रायवेट कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता सहित अन्य कर्मचारियों के सहयोग से पशुपालको के समस्या का समाधान और उपचार किया गया.

Jila Stariy Pashu Chikitsa Shivir
Jila Stariy Pashu Chikitsa Shivir

इस पशुचिकित्सा शिविर में समस्त पशुपालकों को पशुचिकित्सा विभाग द्वारा संचालित व्यक्तिमूलक योजनाएँ – अनुदान पर बैकयार्ड कुक्कुट वितरण योजना, अनुदान पर सुकर-त्रयी वितरण योजना, अनुदान पर बकरा वितरण योजना, शत-प्रतिशत अनुदान पर सांड वितरण योजना,उन्नत मादा वत्स पालन योजना, राज्य डेयरी उद्यमिता विकास योजना के साथ-साथ वैकल्पिक पैरा यूरिया उपचार की भी जानकारी दी गई.

पशुधन के लिए पोषक तत्वों से जुड़ी अन्य जानकारी

बरसीम घास

बरसीम एक जल्दी बढ़ने वाली और अधिक गुणवत्ता वाली पशुओं के चारे की फसल है. इसके फूल पीले-सफेद रंग के होते हैं. बरसीम अकेले या अन्य मसाले वाली फसलों के साथ उगाई जाती है. इसे अच्छी गुणवत्ता वाला आचार बनाने के लिए रायी घास या जई के साथ भी मिलाया जा सकता है.

उपयुक्त मिट्टी

यह दरमियानी से भारी जमीनों में उगने वाली फसल है परंतु हल्की दोमट जमीनों में इसे लगातार पानी देना पड़ता है. यह मिट्टी की उपजाऊ शक्ति, भौतिक और रासायनिक क्रिया को सुधारती है.

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

BL 1 – यह जल्दी उगने वाली दरमियानी किस्म है. इसका बूटा बढ़िया  होता है, जो मई के अंतिम सप्ताह तक भी हरा चारा देता है. इसका हरा चारा 380 क्विंटल प्रति एकड़ होता है.

BL 10 (1983) – यह लंबे समय वाली किस्म है और मध्य जून तक हरा चारा देती है. इसका बीज छोटा होता है. यह तना गलन को सहने योग्य किस्म है. इसमें पोषण की उच्च मात्रा और स्वैच्छिक अंतर्ग्रहण की गुणवत्ता होती है. यह प्रति एकड़ लगभग 410 क्विंटल हरा चारा देती है. जून के अंतिम सप्ताह तक इसके बीज की फसल पक जाती है.

BL 42 (2003) – यह तेजी से बढ़ने वाली किस्म है जो प्रति इकाई क्षेत्र के हिसाब से अच्छा जमाव होता है. यह तना गलन रोग के लिए प्रतिरोधी है. इसमें पोषण की उच्च मात्रा मौजूद होती है. यह किस्म जून के पहले सप्ताह तक लगभग 440 क्विंटल प्रति एकड़ हरा चारा देती है और उच्च बीज उत्पादन मिलता है.

BL 43 (2017) – यह एक लंबी और तेजी से बढ़ने वाली किस्म है जिसमें अधिक संख्या में टिलर होते हैं. इसके हरे चारे की जून के पहले सप्ताह तक औसतन पैदावार 390 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और उच्च बीज उपज पैदा करती है.

BL 44 (2021) – यह किस्म तेजी से बढ़ने वाली और इसमें ज़्यादा मात्रा में टिलर होते हैं. यह तना सड़न रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है. यह विशेष रूप से विट्रो में शुष्क पदार्थ पाचनशक्ति के संदर्भ में बहुत बढ़िया पोषण गुणवत्ता रखता है. यह किस्म का प्रति एकड़ 395 क्विंटल हरा चारा होता है और जून के पहले सप्ताह तक हरे चारे की आपूर्ति करती है.

Mescavi – यह किस्म मिस्र से आई है और इसके बाद एचएयू, हिसार में इसका चयन किया गया है. भारत के सभी बरसीम उगाने वाले क्षेत्रों विशेषकर पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में यह खेती के लिए अनुकूल है. इसके पौधे झाड़ीदार होते हैं और अधिक जमाव के साथ 45-75 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक सीधे बढ़ते हैं.

Bundel Berseem – 2 (JHB-146) (1997) – यह एक स्वदेशी किस्म है इसका नंबर 25776 है. इसका पौधा सीधा, सफेद फूलों वाला और 55-60 सेंटीमीटर ऊँचा होता है. इससे 360-400 क्विंटल प्रति एकड़ हरे चारे की उपज मिलती है. यह जड़ सड़न, तना सड़न और अन्य प्रमुख कीटों के लिए भी प्रतिरोधी है.

Bundel Berseem 3 (JHTB-96-4) (2000) – यह टेट्राप्लोइड किस्म है। इस किस्म में पौधा सीधा, 50 सें.मी. लंबा, तेज़ी से बढ़ना, उच्च पुनर्जनन क्षमता वाला और हरे से गहरे हरे पत्ते वाला होता है. इसके हरे चारे की उपज 240 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. यह किस्म तना सड़न और जड़ सड़न रोगों के लिए मध्यम प्रतिरोधी और पत्तों के धब्बा रोग के प्रति प्रतिरोधक है.

Wardan (S-99-1) (1981) – यह किस्म सूचि की संख्या नंबर 526 से चयन की गयी है. इसके पौधे की ऊंचाई 45-70 सेंटीमीटर और हरे से गहरे हरे रंग के तने के साथ वार्षिक होती है. पत्तियां अंडाकार और आकार में काफी बड़ी होती हैं. इससे औसतन 250-280 क्विंटल प्रति एकड़ हरा चारा मिलता है. यह किस्म खेत की परिस्थितियों में बैक्टीरियल विल्ट और अन्य रोगों को सहने योग्य है.

अन्य राज्यों की किस्में 

BL 22 – यह किस्म पी ए यू, लुधियाणा की तरफ से बनाई गई है और यह शुष्क और पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाती है. 

HFB 600 – यह किसम सी सी एस, हिसार की तरफ से तैयार की गई है और यह उपजाऊ क्षेत्रों में उगाई जाती है.

BL 180 – यह किस्म पी ए यू, लुधियाणा की तरफ से बनाई गई है और यह उपजाऊ क्षेत्रों में उगाई जाती है.

ज़मीन की तैयारी

बिजाई के लिए ज़मीन समतल होनी चाहिए. फसल के विकास के लिए ज़मीन में पानी ज्यादा देर खड़ा नहीं रहने देना चाहिए. प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरना चाहिए.

बिजाई

बिजाई का समय 

सितंबर के आखिरी हफ्ते से लेकर अक्तूबर का पहला हफ्ता बिजाई के लिए सही समय है.

बीज का छिड़काव

छींटे पद्धति द्वारा बरसीम बिजाई की जाती है.

बीज की गहराई

यह मौसम के हालातों पर निर्भर करती है. बीज की गहराई 4-5 सैं.मी. होनी चाहिए. इसकी बिजाई शाम के समय करनी चाहिए.

बीज

बीज की मात्रा

बीज नदीन रहित होने चाहिए. बीजने से पहले बीजों को पानी में भिगो देना चाहिए और जो बीज पानी के ऊपर तैरने लग जाये उन्हें निकाल दें. बीज की मात्रा 8-10 किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए. अच्छी गुणवत्ता के चारे के लिए बरसीम के बीजों के साथ सरसों के 750 ग्राम बीज में मिलायें.

बीज का उपचार

बिजाई से पहले बीज का उपचार राइज़ोबियम से कर लेना चाहिए. बिजाई से पहले राइज़ोबियम के एक पैकेट में 10 प्रतिशत गुड़ मिलाकर घोल तैयार कर लेना चाहिए. फिर इस घोल को बीज के ऊपर छिड़क देना चाहिए और बाद में बीज को छांव में सुखा देना चाहिए.

खाद

खादें (किलो प्रति एकड़)

UREASSPMURIATE OF POTASHZINC
22185##

तत्व (किलो प्रति एकड़)

NITROGENPHOSPHORUSPOTASH
1030#

बिजाई के समय नाइट्रोजन, फासफोरस 10:30 किलोग्राम (यूरिया 22 किलोग्राम और सुपरफास्फेट 185 किलोग्राम) प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

खरपतवार नियंत्रण

बुई बरसीम का खतरनाक नदीन है. इसकी रोकथाम के लिए फलूक्लोरालिन 400 मि.ली. को प्रति 200 ली. पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें.

सिंचाई

पहला पानी हल्की ज़मीनों में 3-5 दिनों में और भारी जमीनों में 6-8 दिनों के बाद लगाएं. सर्दियों में 10-15 दिनों के फासले पर और गर्मियों में 8-10 दिनों के फासले पर पानी लगाएं.

हानिकारक कीट और रोकथाम

घास का टिड्डा – यह कीट पत्तों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह ज्यादातर मई जून के महीने में हमला करता है. इस की रोकथाम के लिए 500 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 80-100 ली. पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें. छिड़काव के बाद 7 दिनों तक पशुओं के लिए प्रयोग ना करें.

चने के सूण्डी – यह फसल के दानों को खाती है. इसकी रोकथाम के लिए, फसल को टमाटर, चने और पिछेती गेहूं के नजदीक ना बोयें. इसकी रोकथाम के लिए क्लोरैनट्रानीलिप्रोल 18.5 एस सी 50 मि.ली. या स्पिनोसैड 48 एस सी 60 मि.ली. को 80-100 पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

बीमारियां और रोकथाम

तने का गलना – यह मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारी है. इसके कारण ज़मीनी स्तर के नज़दीक का तना गल जाता है. मिट्टी के नजदीक सफेद रंग की फंगस विकसित होती देखी जा सकती है. प्रभावित पौधों को निकालें और नष्ट कर दें. कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें.

फसल की कटाई

फसल बीजों के 50 दिनों के बाद कटाई के योग्य हो जाती है. सर्दियों में 40 दिनों के फासले और बसंत में 30 दिनों के फासले पर कटाई करें. पशुओं के लिए आचार बनाने के इसे 20 प्रतिशत मक्की में मिलाकर तैयार किया जाता है.

Jila Stariya Pashu Chikitsa Shivir 3
Jila Stariya Pashu Chikitsa Shivir 3

जिला स्तरीय निःशुल्क पशुचिकित्सा सह जागरूकता शिविर आंछी में पशुपालकों को किलनी, पेशवा, घाव, भूख बढ़ाने, कमजोर जानवर को ताकत के लिए निःशुल्क दवाई, गोली, मरहम इत्यादि वितरण किया गया.

वही इस जिला स्तरीय पशुचिकित्सा शिविर को सफल बनाने में पशुचिकित्सा विभाग कबीरधाम जिले के पशु चिकित्सक, सहायक पशुचिकित्सा क्षेत्राधिकारी, ड्रेसर, परिचारक एवं प्रायवेट कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ताओं का भी विशेष सहयोग रहा.

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