भेड़ बकरियों में टोक्सोप्लाज्मोसिस एक जुनोटिक रोग : Toxoplasmosis Zoonotic Disease in Sheep
भेड़ बकरियों में टोक्सोप्लाज्मोसिस एक जुनोटिक रोग : Toxoplasmosis Zoonotic Disease in Sheep, पशुपालन भारतीय कृषक का महत्वपूर्ण आय स्रोत हैं. कम लागत व कम संसाधनों में ज्यादा आय उपलब्ध करने के कारण भेड़ व बकरी पालन के प्रति पशुपालको का रुझान बढ़ रहा हैं. परन्तु भेड़ व बकरी में होने वाले रोग न केवल पशु की उत्पादकता को कम करता है बल्कि पशुपालक के आय को भी कम करता हैं साथ ही इस प्रकार के कई जुनोटिक रोग पशुपालको को भी संक्रमित कर सकता है. इसलिए पशुपालको को इन रोगो के लक्षणों का ज्ञान होना अतिआवशयक हैं ताकि वे समय रहते चिकित्सीय सलाह ले सके.

आज हम ऐसा ही एक रोग हैं टोक्सोप्लाज्मोसिस के बारे में जानकारी देंगे जो कि ना सिर्फ भेड़-बकरीयों अपितु मनुष्यों को भी प्रभावित करता हैं. भेड़ और बकरियों में यह रोग गर्भपात का सबसे प्रमुख कारण बनता हैं. जबकि मनुष्यों में इसके प्रमुख लक्षण मस्तिष्क शोथ, तंत्रिका तंत्र विकार व गर्भपात हैं.
रोग के कारण
टोक्सोपजमोसिस एक संक्रामक रोग हैं जो कि ‘‘टॉक्सोप्लाज्मा गोन्डाई‘‘ नामक प्रोटोजोआ द्वारा होता हैं. यह परजीवी प्राकृतिक रूप से बिल्लियों में पाया जाता है. यह परजीवी बिल्लियों की आंत्र-कोशिकाओं में गुणन करता हैं और ऊसिस्ट के रूप में मल में विसर्जित होते हैं. यह ऊसिस्ट वातावरण में जा कर पशुओं के चारे व पानी को संक्रमित कर देते है. इस संक्रमित चारे व पानी को ग्रहण कर पशुओं में यह रोग हो जाता है. संक्रमित भेड़ बकरियों में गर्भपात हो जाता हैं या मृत शिशु का जन्म होता है. ऐसे संक्रमित पशुओं की गर्भ-नाल, गर्भ-स्त्राव, नासिका-स्त्राव और मल द्वारा इस रोग का अन्य पशुओं और मनुष्यों में संचरण होता हैं. यह परजीवी मृदा में या मृत पशु के शव में लम्बे समय तक जीवित रहता हैं और रोग को फैलाने की क्षमता रखता हैं. कोई भी पशु या मनुष्य उपर्युक्त गर्भ-नाल, गर्भ-स्त्राव, नासिका-स्त्राव और मल के संपर्क में आ जाने पर टोक्सोपजमोसिस जुनोटिक रोग से संक्रमित हो सकता है. ऐसे में उपर्युक्त मल, मूत्र, स्त्राव और अन्य कोई साफ सफाई करते वक्त विशेष सावधानियां रखनी चाहिए. पशुओं और मनुष्यों में संक्रमण के लक्षण दिखाई देने पर चिकित्सीय परामर्श लेना अति आवश्यक होता है.
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रोग के लक्षण
भेड़ और बकरियों में इस रोग का प्रमुख लक्षण गर्भपात, मृत शिशु का जन्म या शिशु की जन्मोपरांत मृत्यु हैं. इस रोग में गर्भपात समान्यतः ब्यांत के तीन- चार हफ्ते पहले हो जाता है. कई बार संक्रमित भेड़ों में ज्वर, साँस लेने में तकलीफ व निमोनिआ भी पाया जाता है. वयस्क बकरियों में गर्भपात के अलावा इस रोग में अन्य कोई लक्षण नहीं दिखाई देता.
मनुष्यों में टोक्सोप्लाज्मोसिस रोग के लक्षण
मनुष्यों में यह रोग टॉक्सोप्लाज्मा गोन्डाई परजीवी के ऊसिस्ट नामक संक्रामक अवस्था से होता है. यह ऊसिस्ट या तो संक्रमित पशु के मल में या गर्भपात की शिकार भेड़ व बकरी के मृत भूर्ण, गर्भ-नाल या गर्भ स्त्राव के संपर्क में आने से होता है. संक्रमित पशु के कच्चे या अधपके मांस से या दूध से भी संक्रमण हो सकता है. यह रोग संक्रमित गर्भवती महिलाओं में उनके शिशुओं में भी हो जाता है. ऐसे शिशुओं की या तो गर्भ में ही मृत्यु हो जाती हैं या जन्मोपरांत मृत्यु होती है. यदि संक्रमित शिशु जीवित जन्म लेता हैं तो उसमे बुखार, तिल्ली का बढ़ना, यकृत का बढ़ना, और तंत्रिका तंत्र विकार पाए जाते है. वयस्कों में इस रोग के लक्षण इस प्रकार हैं- ज्वर, शरीर में दर्द, लसिका ग्रंथियों में सूजन, आँखों में कोरिओरेटिनिटिस, मस्तिष्क शोथ व तंत्रिका तंत्र विकार आदि.

निदान
गर्भपात के पश्चात अपरा या भ्रूण उत्तको के प्रयोगशाला निरिक्षण द्वारा रोग की पहचान की जा सकती है. सीरम आधारित जांचें जैसे एलिसा, एग्लूटिनेशन टेस्ट और सी.फ.टी. द्वारा इस रोग का निश्चित निदान किया जाता है.
चिकित्सा
इस रोग की चिकित्सा के लिए सल्फा समूह की औषधियां जैसे सल्फाडाइजीन, सल्फामेथाजिन का प्रयोग किया जाता है. कई बार सल्फा औषधियों को पाईरामेथामिन के साथ भी किया जाता है.
रोकथाम
भेड़ और बकरियों में इस रोग की रोकथाम के लिए कोई टीका उलब्ध नहीं है. इस रोग से बचने के लिए कुछ विशेष बातें इस प्रकार हैं-
1 . गर्भपात से प्रभावित भेड़ बकरियों का परित्याग करना आवशयक है.
2. गर्भपात के पश्चात मृत भूर्ण, अन्य ऊतक व संक्रमित स्त्राव व उसके संपर्क में आने वाली मृदा को जलाएं या सुरक्षित रूप से दफनाए.
3. उस जगह को निस्संक्रामक जैसे लाइसोल आदि द्वारा साफ करें.
4. गर्भवती महिलाऐं ऐसे पशुओं के संपर्क में ना आएं.
5. संक्रमित द्रव्यों के साथ काम करते हुए हाथ में दस्ताने अवश्य पहने.
6. मांस को अच्छी तरह पकाकर व दूध को 70 डिग्री तक गरम कर या उबाल कर ही प्रयोग में लाएं.
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