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कोलायबैसीलोसिस रोग से बछड़ों को कैसे बचायें : How to Save Calves from Colibacillosis Disease

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कोलायबैसीलोसिस रोग से बछड़ों को कैसे बचायें : How to Save Calves from Colibacillosis Disease, यह रोग पशुओं के नवजात बछड़ों, सूअर के बच्चों तथा बकरियों में होता है. कोलायबैसीलोसिस रोग इश्चिरिसिआ कोलाय या ई-कोलाय (Escherichia Coli) नामक जीवाणु से नवजात बछड़ों में फैलने वाला रोग है. नवजात बछड़ों को यह रोग 12 घंटे से 14 दिन के उम्र में होता हुआ अधिकतर देखा गया है. इसलिए पशुपालक को इस उम्र के नवजात बछड़ों की ज्यादा देखभाल करने की जरुरत होती है.

How to Save Calves from Colibacillosis Disease
How to Save Calves from Colibacillosis Disease

कोलायबैसीलोसिस रोग का छूत लगने का ढंग

यह रोग नवजात बछड़ों में दूषित चारा-पानी, खाद्य आदि से होता है. इस रोग के जीवाणु गर्भपात हुआ बछड़ा, योनी से निकलने वाले स्त्राव तथा गर्भाशय में रहते हैं या मौजूद होते है. यदि इनका संपर्क चारा, खाद्य या पानी से से होते हुए बछड़ों में संक्रमण फ़ैल जाता है. यदि किसी गाय को थनैला हुआ है तो उस गाय के दूध पिने वाले बछड़ों में यह जीवाणु फैलता है. ऐसे बछड़े जिनको माँ का प्याउस या चिक या प्रतिपिंड/क्लोरोस्ट्राम (Clorostrom) नहीं पिलाया जाता या नहीं पी पाते है जिससे नवजात बछड़ों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. ऐसे में यह रोग इन बछड़ों में अधिक होने की सम्भावना अधिक होती है.

कोलायबैसीलोसिस रोग के लक्षण

1 . रोग के संक्रमण से नवजात बछड़ों का तापमान कम हो जाता है.

2. बछड़ा दूध पीना छोड़ देता है.

3. मांसपेशियों में खिंचाव रहता है.

4. नवजात बछड़े की ऑंखें अन्दर चली जाति है.

5. बछड़ा सिकुड़कर बैठ जाता है.

6. त्वचा खुरदरी हो जाती है.

7. बहुत ज्यादा दस्त होने लगता है. दस्त सफ़ेद मटमैले रंग का होता है.

8. दस्त या गोबर में बदबू आती है.

9. गोबर गाढ़ा, काफ़ी कलर अथवा पीले रंग का होता है तथा खून मिला हुआ होता है.

10. नवजात बछड़े का दस्त के कारण गुदाद्वार या आजू-बाजु सना हुआ होता है.

11. बछड़े का उचित उपचार नहीं होने पर शरीर में पानी की कमी हो जाति है तथा अंततः बछड़े की मृत्यु भी हो जाति है.

12. पशु को न्यूमोनिया हो जाने पर पशु की बचने की सम्भावना कम हो जाति है.

13. रोग की अतितीव्र अवस्था दस्त होकर पशु एकदम ढीला पड़ जाता है और मृत्यु हो जाति है.

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कोलायबैसीलोसिस रोग के रोकथाम के उपाय

1 . नवजात बछड़ों में रोग का संदेह होने पर पशु को तुरंत अलग कर देना चाहिए तथा उसकी अलग से देखभाल करना चाहिए.

2. पशुओं का प्रबंधन वैज्ञानिक तरीके से करने से बछड़ों का मृत्यु दर का प्रमाण बहुत मात्रा में घट जाता है.

3. बीमारी से मरे हुए पशु का प्रबंधन उचित तरीके से करना चाहिए. जैसे – गहरे गड्ढे में गाड़ना या जला देना और बिछावन को अच्छी तरीके से नष्ट करना.

4. इस रोग के टिके भी लगते हैं जिसे मई-जून महीने में लगाया जाता है. इसे वर्षा ऋतु से पहले लगाने से इस रोग से सुरक्षा संभव है.

कोलायबैसीलोसिस रोग का उपचार

1 . बछड़े को माता की प्याउस या चिक कम मात्रा में पिलाना चाहिए. बछड़ा अधिक मात्रा में चिक या प्याउस पिता है तो कोलायबैसीलोसिस रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है.

2. रोग से ग्रसित बछड़े को दस्त रोकने की गोली जैसे – सल्फाडिमीडीन, Ciplox-TZ और इंजेक्शन देनी चाहिए.

3. पेट में कृमि की आशंका होने पर कृमिनाशक सिरप शरीरिक भार के अनुसार देनी चाहिए.

4. अत्यधिक दस्त होने पर पशु के शरीर में पानी की कमी हो जाति है तो पशु को बाटल भी लगाया जा सकता है.

5. दस्त में खून आने पर खून रोकने के लिये भी इंजेक्शन देना आवश्यक होता है.

6 पशु के पेट में दर्द होने पर दर्दनाशक दवा भी आवश्यक है.

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