भैंस के पूँछ से पैदा हुआ कटड़ा कटड़ी के क्लोन : Clone of katda katdi Born from the Tail of Buffalo
भैंस के पूँछ से पैदा हुआ कटड़ा कटड़ी के क्लोन : Clone of katda katdi Born from the Tail of Buffalo, करनाल में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) के वैज्ञानिकों ने क्लोनिग के क्षेत्र में नई सफलता हासिल की है. उन्होंने पहली बार भैंस के पूंछ के दो टुकड़ों से क्लोन calf पैदा हुए है. वैज्ञानिकों का कहना है कि क्लोनिंग में उत्तम नस्ल के मुर्राह भैंस का प्रयोग किया जाता है. जिसकी जेनेटिक क्षमता ज्यादा दूध देने की होती है. ऐसे में सामान्य भैंस के मुकाबले क्लोन पशु के सीमेन से पैदा होने वाली भैसों में दूध उत्पादन 14 से 16 किलोग्राम प्रतिदिन होगा. हरियाणा के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान NDRI के वैज्ञानिकों द्वारा 2009 से अब तक 11Calf पैदा किया जा चूका है, जिसमें 7 मेल और 4 फिमेल Calf शामिल है. वैज्ञानिकों का दावा है कि क्लोन से पैदा किये मुर्राह भैस भविष्य में दोगुना दूध देगी जिससे पशुपालक की आमदनी में बढ़ोतरी होगी.

भारत के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) ने यह जानकारी दी. संस्थान ने कहा कि उसने विश्व में पहली बार भैंस का क्लोन विकसित किया है. हरियाणा में करनाल स्थित इस संस्थान में तैयार क्लोन कटरा है. संस्थान ने कहा कि इसे बनाने में डॉली (भेड़) के मुकाबले बेहतर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. भारतीय वैज्ञानिकों ने एक बार फिर दुनिया में अपना लोहा मनवाया है. उन्होंने पहली बार भैंस का क्लोन विकसित करने में सफलता हासिल की है. यही नहीं, इस क्लोन में डाली के क्लोन से भी बेहतर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.
करनाल स्थित एनडीआरआई के पशु प्रौद्योगिकी केंद्र के वैज्ञानिक ने एक बयान में कहा कि हैंडगाईडेड क्लोनिंग तकनीक उस पारंपरिक क्लोनिंग तकनीक का बेहतर परिवर्तित रूप है जिसका उपयोग डॉली की क्लोनिंग के लिए किया गया था. भैंस क्लोन का जन्म छह फरवरी को एनडीआरआई परिसर में हुआ. बयान में कहा गया कि नई तकनीक में उपकरण समय और कौशल की जरूरत कम है.
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पशुओं में क्लोन क्लोनिंग तकनीक क्या है?
क्लोन एक ऐसी जैविक रचना है जो एकमात्र जनक (माता अथवा पिता) से अलैंगिक विधि द्वारा उत्पन्न होता है. उत्पादित ‘क्लोन‘ अपने जनक से शारीरिक और आनुवंशिक रूप से पूर्णत: समरूप होता है. यानी क्लोन के DNA का हर एक भाग मूल प्रति के बिलकुल समान होता है. इस प्रकार किसी भी जीव का प्रतिरूप बनाना ही क्लोनिंग कहलाता है. क्या आप जानते हैं कि क्लोनिंग द्वारा किसी कोशिका, कोई अन्य जीवित हिस्सा या एक संपूर्ण जीव के शुद्ध प्रतिरूप का निर्माण होता है.
शरीर कोशिका नामक बहुत छोटे जीवों से बना है. ये कोशिकाएं अपना सामान्य काम करती हैं जो डीएनए उन्हें करने के लिए कहता है. DNA को de-oxy-ribo-nucleic acid कहा जाता है जो सभी जीव जन्तुओं में अनुवांशिक कोड है. एक बच्चे को यह अनुवांशिक कोड आधा पिता से और आधा मां से मिलता है. एक बच्चा एकल कोशिका से बनता है यानी अंडा कोशिका से जिसमें पिता और मां दोनों का DNA होता है. यह कोशिका पूर्ण रूप से बच्चे को बनने के लिए लाखों में विभाजित होती है. इस प्रक्रिया को विभेदीकरण (differentiation) कहते है. प्रत्येक सेल मूल सेल की एक कॉपी होता है और उसमें समान आनुवांशिक कोड होता है.
क्या भैंस का क्लोन Calf पूरी तरह स्वस्थ है?
वैज्ञानिकों ने भैंस के पूंछ के दो टुकड़ों से क्लोन calf पैदा किये है. वे सभी Calf पूर्ण स्वस्थ है. ये दोनों क्लोन उच्च दूध देने वाली भैंस का क्लोन है. जिसकी पैदावार या उत्पादन अपने पांचवें स्तनपान में 6000 किलोग्राम दर्ज की गई है. NDRI के डॉ. मनोज कुमार और डॉ कुमारी रिंका का कहना था कि एक क्लोन भैंस में 1 वर्ष में 10 Calf या बछड़ा पैदा किया जा सकता है. जो की दूध की क्षेत्र में एक नई क्रांति लायेगी.
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भैंस के पूँछ कटड़ा-कटड़ी क्लोन कैसे पैदा किया गया?
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) करनाल के डॉ एमएस चौहान बताया कि क्लोन तकनीक से एक बच्चा 26 जनवरी को पैदा हुआ इसलिए उसका नाम गणतंत्र रखा गया है. दूसरी क्लोन कटड़ी का नाम कर्णिका है जो कर्ण नगरी के नाम पर रखा गया है. इनमें एक भैस के पूंछ से लिये गये क्लोन से पैदा हुआ है और दुसरे का जन्म मेल भैसे के सेल या कोशिका से पैदा किया गया है. डॉ चौहान का कहना है कि क्लोनिंग तकनीक में उत्तम नस्ल के मुर्राह भैंस का प्रयोग किया जाता है. जिसकी जेनेटिक क्षमता ज्यादा दूध देने की होती है. ऐसे में सामान्य भैसों के मुकाबले क्लोन पशु के सीमेन से पैदा होने वाली भैसों में दूध उत्पादन 14 से 16 किलोग्राम प्रतिदिन होता है. जबकि सामान्य भैसों में प्रतिदिन दूध उत्पादन क्षमता 6 से 8 किलोग्राम होता है.
कटड़ा-कटड़ी से दूध उत्पादन होगा दोगुना
NDRI के वैज्ञानिकों का कहना है कि क्लोन तकनीक से तैयार कुए कटड़ा और कटड़ी पूरी तरह से स्वस्थ हैं और उनका व्यवहार भी अन्य पशुओं के समान सामान्य है. डॉ चौहान का कहना है कि क्लोन तकनीक से अब तक 11 बच्चे पैदा किया जा चूका है, इनका व्यवहार सामान्य है और इनका परिवार धीरे धीरे बड़ा होता जा रहा है. भविष्य में क्लोन तकनीक से तैयार हुए भैसों में दूध उत्पादन को दोगुना किया जा सकता है. यह तकनीक पूरी तरह से भारत की है. टीम में शामिल पशु को वैज्ञानिक डॉ नरेश ने कहा कि NDRI में किये गये परिक्षण निश्चित रूप से प्रौद्योगिकी को किसानों के दरवाजे तक पहुँचने में मदद करेंगे, ताकि किसानों की उत्पादकता को दोगुना बढ़ाया जा सके.
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