मस्सा और रसूलियों का निदान : Diagnosis of Warts and Tumours
मस्सा और रसूलियों का निदान : Diagnosis of Warts and Tumours, यह एक प्रकार की वेनाइन ट्यूमर है जो त्वचा के ऊपर मस्से या गुठलियों के रूप में होता है. यह धीरे-धीरे बढ़ते हैं और बाद में पकते है. यह पपोवा वायरस के कारण होता है जो त्वचा में घुंसकर Cutaneous Warts घोड़े और पशुओं में मस्सा उत्पन्न करता है.

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मस्सा के लक्षण –
- मस्सा से गौवंशीय सभी आयु के पशु प्रभावित हो सकते हैं, परंतु बछड़ों और बछियों तथा युवा पशुओं में अक्सर यह देखा जा सकता है.
- बछड़ों में मस्सा सिर, गर्दन और कंधे के आसपास होता है. किन्तु यह शरीर के अन्य भाग जैसे (थन, सांडों के प्रिप्युस, वल्वा, वेजाइना) में भी पाये जाते हैं.
- आकार में यह छोटी मटर से बड़ी सुपारी के आकार जैसे हो सकते है और कई एक गुच्छों में भी गोभी के फुल के आकार जैसे भी बन जाते हैं.
- प्रायः मुंह, आंख, कान, गर्दन और कन्धों पर इनकी उपस्थिति मिलती है.
- गायों में यह थन और चुचियों पर विशेष रूप से मौजूद दिखाई पड़ते हैं , छोटे, पतले और लम्बे हो सकते हैं.
निदान –
- प्रारंभिक अवस्था में ग्लेसियस एसिटिक एसिड या आयोडीन के लगाने से लाभ होता है.
- मस्सा को कट दिया जाता है और कटे हुए भाग पर आयोडीन लगा दी जाती है ताकि यह पुनर्जीवित न हो.
- यदि शरीर पर मस्सा एक-दो हों तो उन्हें घोड़े के बाल या नायलोन के धागे से बांध देना चाहिए, जिससे मस्सा धीरे-धीरे कट जाता है.
- मस्सा के कटने के बाद उस स्थान पर कोई एंटीसेप्टिक मलहम जैसे – नियोस्पोरिन-एच या सोफ्रामायासिन या मायबेसिन ऑइंटमेंट लगा दिया जाता है.
- यदि मस्से अधिक या गुच्छे के रूप में हों तो एन्थियोमलिन इंजेक्शन 20 ml की मात्रा में मांस (IM) में दो बार दें. 6-8 इंजेक्शन देने से मस्से अपने आप गिरने लगते हैं. यदि इतना करने पर भी कोई मस्सा नहीं गिरे तो वह हाथ लगाते ही गिर जाता है.
- मिल्क आयोडीन इंजेक्शन बड़े पशुओं में 5-10 ml तथा छोटे पशुओं में 5ml सप्ताह में एक दो बार मांस में दो तीन इंजेक्शन लगाने से मस्से दोबारा नहीं होते हैं. सायोलान इंजेक्शन मस्सा के लिये बहुत ही उपयुक्त है. इसमें एंटीबायोटिक जैसे टेरामायासिन का उपयोग भी लाभकारी होता है.
रसूलियाँ (Tumours)
नयी कोशिकाओं के अनियंत्रित असामान्य वृद्धियों का नाम ही रसूलियाँ या अर्बुद माना जाता है. इनका निर्माण भी सामान्य उत्तकों से होता है पर बनावट और आचरण दोनों ही समान्य से भिन्न होते हैं. यह स्वतंत्र रूप से स्वतः बढ़ते हैं तथा इनकी आकृति में काफी अंतर होता है. यह कड़े, मुलायम एक या अनेक होते हैं. यह विशेष कर जबड़ों के उपरी भाग, गर्दन के निचले भाग, पेट, कानों के आसपास जड़ के पास अधिक निकलते हैं.
रसुलियों के प्रकार – कभी-कभी कोशिकाएं कुछ कारणों से अनियंत्रित होकर नई कोशिकाओं के रूप में तीव्रता से बढ़ने लगती है, रसुलियाँ कहलाती है. यह 2 प्रकार के होते हैं – 1. स्पष्ट या सूक्ष्म या सरल (बेनाइन Benign या Simple), 2. दुर्दम या असाध्य (मैलिग्नेंट – Malignant).
1 . स्पष्ट या सूक्ष्म या सरल रसुलियाँ – यह सरल और धीमी गति से बढ़ने वाली होती है. इनके चारों ओर एक झिल्ली या भित्ती होती है. इनकी कोशिकाएं एक ही स्थान पर सीमित रहती है. साथ ही इनकी वृद्धि अनियंत्रित नहीं होती है तथा चिकित्सा के बाद पुनः उत्पन्न नहीं होती हैं.
2. दुर्दम या असाध्य रसुलियाँ – यह रसुलियाँ संयुक्त रचना की होती हैं और इनकी वृद्धि तीव्र गति से होती हैं. इनकी कोशिकाओं की वृद्धि अनियंत्रित रूप से होती हैं क्योंकि इनके चारों ओर कोई झिल्ली या भित्ति नहीं होती है. ये कोशिकाए अपने उत्पत्ति स्थान से निकल कर रक्त के साथ मिलकर, शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचकर नई गांठें बनाती है. यह एक स्थान से दुसरे स्तःन पर बढ़ते हैं, इसे मेटास्टेसिस कहते हैं.
कारण – इनके उत्पत्ति के अनेक कारण हैं जैसे -1. विषाणु (Virus), 2. परजीवी (Parasites), 3. रासायनिक पदार्थ (Chemicals), 4. उत्तेजना या संताप, 5. हार्मोन्स (Hormones) आदि.
लक्षण – इनके लक्षण निम्न प्रकार के होते हैं –
- शरीर के किसी भी अंग में गांठ/गिल्टी/गुठली या सूजन के रूप में होते हैं.
- इसको दबाने में स्थानीय उत्तकों को कष्ट होता है.
- मैलिग्नेंट ट्यूमर्स में दर्द एवं कष्ट होता है.
- उपचार से इनकी पुनः वृद्धि होती है.
उपचार – इन रसूलियों का ऑपरेशन के अलावा और कोई उपयुक्त चिकित्सा नहीं है. रसूली को जड़ से काटकर समस्त दूषित पदार्थ, पुय, रक्त आदि निकल दें एवं गर्म पानी से दागते हुए जड़ तक एक रूप कर दें. तत्पश्चात घाव को स्वच्छ और विसंक्रमित करके एंटीसेप्टिक ड्रेसिंग करके पट्टी कर दें. साथ ही एम्पिसिलिन 1-2 ग्राम का इंजेक्शन मांस में लगा दें अथवा एम्पिसिलिन+क्लाक्सासिलीन का सम्मिलित योग मांसपेशी में दें. स्टिक्लीन या टेरामायासिन अथवा वैसाडीन का इंजेक्शन एक दिन के अंतर पर लगाना चाहिए तथा कोट्रीमाक्सजोल (Oriprime Bolus) 1-2 टिकिया रोज खिलाएं.
ऑपरेशन के बाद निम्न औषधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है –
1 . कैम्पिसिलीन वेट (Campicillin vet) – बड़े पशुओं को 1-2 ग्राम एवं छोटे पशुओं को 500-1000 मिली ग्राम का इंजेक्शन मांस में लगाये.
2. प्रिमिसिन (Primicin) – बड़े पशुओं को 2-4मिलीग्राम प्रति किलो शारीरिक भार पर तथा छोटे पशुओं को 1-2 मिलीग्राम प्रति किलो शारीरक भार अनुसार देवें. कुत्तों को 4 मिलीग्राम प्रति किलो शारीरिक भार पर I/M 4-7 दिन तक देवें.
3. टिलोक्स (Tilox) क्रीम – ऑपरेशन के बाद ड्रेसिंग के रूप में.
4. बायोट्रिम (Biotrim) – गाय, भैंस को 13-15 ml प्रति 400 किलो शारीरिक भार पर, घोड़े को 9-10 ml प्रति 300 किलो भार पर, भेड़ को 1-2 ml तथा कुत्ते को 0.5-1 ml मांस में लगायें.
5. प्रोकेन पेनिसिलिन-जी इंजेक्शन गहरे मांस में दिया जा सकता है.
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