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डेयरी भैंस पालन और उसका प्रबंधन : Dairy Buffalo Rearing and its Management

डेयरी भैंस पालन और उसका प्रबंधन : Dairy Buffalo Rearing and its Management, मवेशीयों में गाय और भैंसों को दूध के लिए पाला जाता है. इन दोनों पशुओं की उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए उच्च प्रारंभिक निवेश के रूप में अच्छी तरह से उचित देखभाल और रखरखाव की आवश्यकताहोती है. इसलिए, डेयरी पशुओं के दैनिक के प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं के बारे में परिवारों में जागरूकता के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत द्वारा विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है. इस अध्याय में पशुओं के चयन के बारे में जानकारी प्रदान की गई है और मवेशी और भैंस की लिए प्रबंधन और पोषक तत्वों की आवश्यकता के संबंध में बताया गया है.

Dairy Buffalo Rearing and its Management
Dairy Buffalo Rearing and its Management

डेयरी पशुओं का चयन

खरीदने के समय डेयरी पशु के चयन में दुग्ध उत्पादन का आकलन करना और प्रजनन विशेषताओं के बारे में जानना दो महत्वपूर्ण कारक हैं. पशु खरीदने से पहले, इनके बारे में पता लगाए…

  • नस्ल चरित्र और दूध उत्पादन क्षमता.
  • जानवर का पूरा इतिहास (वंशावली).
  • क्या पशु युवा है, अधिमानत: दूसरे स्तनपान पर.

इसके अलावा निम्नलिखित भी करें

  • गाय/भैंस को खरीदने से पहले दूहा जाना चाहिए. दूध उत्पादन का पता लगाने के लिए डेयरी पशु को दो से तीन बार (लगातार) दूहा जाना चाहिए.
  • दूधारु गाय/भैंस को पहली बार थन खाली करने तक दूहा जाना चाहिए. बाद में इसे कम से कम तीन बार दूहा जाना चाहिए. पशु की कीमत 24 घंटों के दौरान औसत दुग्ध उत्पादन के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए.
  • चुनाव अधिमानत: प्रसव के एक महीने के बाद (पहले या दूसरे स्तनपान के दौरान) किया जाना चाहिए.

अन्य सकारात्मक लक्षण

एक गाय, अनुकूल लोगों के प्रति विनम्र, और देख-भाल करने तथा दूध दूहनेवालों के परिवर्तन को स्वीकार करने वाली होनी चाहिए:

  • आकर्षक शारीरिक संरचना और सभी भागों के सामंजस्यपूर्ण सम्मिश्रण, प्रभावशाली शैली और संचरण.
  • जानवर का शरीर एक पत्ती के आकार का होना चाहिए.
  • इसकी आँखें उज्ज्वल, गर्दन दुबली और त्वचा चमकदार होनी चाहिए.
  • इसकी पूंछ सीधी, पतली, मजबूत और रोएंदार होनी चाहिए.
  • थन पेट में से अच्छी तरह से जुड़े होने चाहिए.
  • थन की त्वचा का रक्त वाहिकाओं से एक अच्छा संपर्क होना चाहिए.
  • थन अच्छी तरह से बराबर स्थापन और छोटे चूची के साथ शरीर से लगा होना चाहिए.
  • थन बनावट में कोमल रेशमी हो और बोरी जैसी आकृति का हो.
  • थन के सभी चार भागों को अच्छी तरह से स्थापित चूची के साथ सीमांकित होना चाहिए.
  • गाय के पैर मजबूत हो.
  • विस्तृत, अच्छी तरह से उभरी  पसलियों के साथ एक गहरे, लंबे शरीर वाली गाय को एक बड़ी शारीरिक क्षमता वाली कहा जता है.
  • सीधे पुठ्ठो या पीछे के पुठ्ठो वाली गायों की उपेक्षा की जा सकती है (सीधे पुठ्ठे या पीछे के पुठ्ठे जानवर की एक विकृति है जो भार शन नहीं कर सकते और समान रूप से आदर्श प्रजनन या स्तनपान कराने के लिए इनकी सिफारिश नहीं की जाती है).
  • एक संकीर्ण साइन वाली गाय सामान्य रूप से अच्छा दूध नहीं देती है.

पशु की जाँच

  • अगर गर्भवती पशु को खरीदा जा रहा है, तो एक पशु चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था की जाँच की जानी चाहिए.
  • प्रजनन की स्थिति और नैदानिक टिप्पणियाँ आवश्यक है.
  • पशु खरीदने से पहले टीबी, जेडी और ब्रुसिला की जाँच की जानी चाहिए.
  • टीकाकरण और स्वच्छता रिकॉर्ड को सत्यापित किया जाना चाहिए.

दुधारू पशुओं के पोषण की आवश्यकता

(क) 400 किग्रा वजन और 12 लीटर दूध देने वाली गाय को खिलाया जाना चाहिए..

  • सूखा चारा 7 किलोग्राम
  • हरा चारा (एकबीजपत्री) – 10-12 किलोग्राम या हरा चारा (द्विबीजपत्री) – 15-18 किग्रा
  • मोटा चारा – 1500 ग्राम
  • सांद्र (प्रति लीटर दूध के लिए 300-350 ग्राम) – 3.6 किग्रा

(ख) 500 किलोग्राम वजन और 10 लीटर दूध वाली भैंस (7: वसा)

  • सूखा चारा – 10 किग्रा
  • हरा चारा (एकबजपत्री) – 15-18 किग्रा या हरा चारा (द्विबीजपत्री) – 20-22 किग्रा
  • मोटा राशन – 1500 ग्राम
  • सांद्र (प्रति लीटर दूध के लिए 300-350 ग्राम) – 3 किग्रा

इसके अलावा, गर्भवती गायों/भैंसों को गर्भावस्था के 7, 8 और 9 माह के दौरान क्रमश: 0.5 किलो, एक किलो और 1.5 किग्रा सांद्र मिश्रित भोजन दिया जाना चाहिए. कोई भी सांद्र चारा स्वादिष्ट होना चाहिए और इसमें 70 से 75 प्रतिशत पाचक पोषक तत्वों और 16 से 20 प्रतिशत प्रोटीन शामिल करना चाहिए.

पशु बाड़ा

एक पशु बाड़े का निर्माण करते समय निम्नलिखित बातों का पालन किया जाना चाहिए…

  • बाड़ा एक ऊँचे स्थान पर होना चाहिए.
  • पशु को खड़े होने और चारों ओर घूमने के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए.
  • छत की ऊँचाई 12-14 फुट होना चाहिए. इससे गर्म हवा के कुशलता से फैलाव की सुविधा होगी और गर्म दिनों में जानवरों के लिए सुविधा मिलेगी.
  • दीवारों की ऊँचाई 5-6 फीट होनी चाहिए और पक्की और दीवार की ईटों पर सीमेंट का प्लास्टर होना चाहिए. दीवारों के कोनों को गोल किया जाना चाहिए.
  • बाड़े का फार्श दरारों और गढढ़ों से रहित होना चाहिए और फिसलन नहीं होनी चाहिए.
  • फर्श में पीछे की ओर एक क्रमिक ढलान होनी चाहिए.
  • वहाँ एक पर्याप्त जल निकासी प्रणाली (तश्तरी के आकार की नाली) होनी चाहिए ताकि पानी, मूत्र और गोबर आसानी से बह जाए.
  • अधिक जली ईटों या सीमेंट कंक्रीट का फर्श भी एक अच्छा विकल्प है.
  • तश्तरी के आकार की नाली 9-10 इंच चौड़ी होनी चाहिए और इसमें पर्याप्त ढलान होनी चाहिए.
  • चरनी (खिलाने का स्थान) ऊँचाई में 3-3.5 फीट होनी चाहिए. सामने की दीवार की ऊँचाई 20-25 इंच होनी चाहिए और चरनी की गहराई 10-12 इंच होना चाहिए. आवश्यक आकार की सीमेंट की आधी खुली पाइपें भी इस उद्देश्य को पूरा कर सकती हैं. चरनी के सभी कोनों को गोल किया जाना चाहिए.
  • जानवरों की संख्या अधिक होने पर पानी पीने के लिए एक अलग पानी के गढढे की आवश्यकता होगी.
  • पानी का गढ्ढा पक्का होना चाहिए, और इसका आकार प्रति दिन प्रति पशु 125-150 लीटर पानी समायोजित करने लायक होना चाहिए.
  • पानी का ठंडा और धूल और गंदगी से सुरक्षित होना सुनिश्चत करने के लिए इसे एक ढंके क्षेत्र में होना चाहिए.
  • यदि संभव हो, सर्दियों में पशुओं के लिए गुनगुना पानी उपलब्ध कराएं.
  • उपयोग करने से पहले भीतरी दीवारों की भट्टी के चूने (चुनें) से सफेदी की जानी चाहिए.
  • अगर वहा एक या दो जानवर हों तो बड़ी बाल्टी में पानी उपलब्ध कराया जा सकता है.
  • खाद का गड्ढा बाड़े से 100 फीट से अधिक दूरी पर होना चाहिए.
  • पेड़ बाड़ों के सभी किनारों पर नीम (जाडिरेक्ता इंडिका) जैसे पेड़ लगाए जा सकते है.
  • खराब मौसम से पशु की रक्षा के लिए बाड़े को पर्दे/बोरे से ढका जाना चाहिए.
  • यदि संभव हों, जानवरों को अपने आयु समूहों के अनुसार रखा जाना चाहिए.
  • दूध भंडारण/संग्रह का स्थान बाड़े से अलग जगह पर होना चाहिए.

निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर इस बात की पुष्टि करना संभव है कि गौशाला में पशु आराम से हैं…

  • हर जानवर प्रति दिन 16-18 घंटे आराम से बैठने में सक्षम होना चाहिए.
  • हर जानवर को कम से कम 12-14 घंटे जुगाली करनी चाहिए.
  • अपेक्षित तारीख पर जानवर द्वारा कामोत्तेजना का प्रदर्शन.
  • मल और मूत्र की गुणवत्ता सामान्य होनी चाहिए.
  • बाड़े को कीड़े, परजीवी और मक्खियों से मुक्त किया जाना चाहिए.
  • दूसरों के द्वारा साझा बाड़े में कोई बीमार पशु नहीं होना चाहिए.
  • पहले ही प्रयास में सफल गर्भाधान (यह गर्भाधान की लागत, प्रजनन अवधि को कम करता है इसलिए उत्पादन की वृद्धि में मदद करता है).
  • एक अच्छा बाड़ा जानवर पर तनाव कम कर देता है. इसलिए बाड़े की स्थितियां सीधे उत्पादकता से संबंधित हैं.

गर्भवती पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल

  • पहले बछड़ों को दिन-रात विशेष देखभाल की जरूरत होती है. प्रसव के नजदीक आने पर, गर्भवती पशु को झुंड से अलग किया जाना चाहिए और एक शांत जगह पर रखा जाना चाहिए.
  • गर्भवती पशु को गर्भावस्था के अंतिम दो महीनों के दौरान 1 से 1.5 किग्रा अतिरिक्त सांद्र मिश्रण प्राप्त करना चाहिए.
  • गर्भवती पशु को कुत्तो का पीछा करने, छोटी पहाड़ियों पर चढ़ने जैसे तनावों से दूर रखा जाना चाहिए.
  • डीवर्मिग/कृमिनाशक करना और टीकाकरण जारी रखना चाहिए.
  • आस-पास के इलाकों में गर्भपात की घटनाएं देखी जाती हैं तो संक्रमण से सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत है.
  • कैल्शियम और फास्फोरस के साथ दृढ़ खनिज मिश्रण प्रदान किया जाना चाहिए.
  • गर्भवती पशु स्तनपान में हिया तो इसे कम से कम अगले प्रसव के दो महीने पहले सूखा किया जाना चाहिए. यह पहले एक समय दूहने, भोजन और चारा का कोटा अस्थायी रूप से कम करने और एक दिन के अंतराल पर दुहने के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है. जब पशु पूरी तरह से सुख जाए, तब अगले स्तनपान के दौरान थन संक्रमण को रोकने के प्रत्येक चूची में एक एंटीबायोटिक मलहम लगाना चाहिए.

नवजात के रोगों का नियंत्रण और उपचार

यह आवश्यक है कि नवजात का पर्याप्त रूप से और समय पर इलाज किया जाए | नीचे दी गई तालिका में नवजात के कुछ प्रमुख रोगों के और रोकथाम की जानकारी दी गई है:

नवजात की बीमारी(गर्भनाल का संक्रमण)पके हुए फोड़े को खोला जाना चाहिए और गड्ढे को दो से तीन दिन के लिए आयोडीन के फाहे से भरा जा सकता है.अगर नवजात का ठीक से इलाज नहीं किया जाता है तो संक्रमण सदा बना रहता है और जोड़ों के दर्द, निमोनिया और कमजोरी में समाप्त होता है.
सफेद या रक्त मिश्रित दस्त (बछड़े की आँतों में कुछ बैक्टीरिया और प्रोटोजोआ का प्रवेश)नवजात को कोलोस्ट्रम खिलाना सुनिश्चित करें. मृत्यु से बचने के लिए पशु चिकित्सा उपचार सुनिश्चित करें.पशु चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराए जाने तक दूध में जायफल का एक फल (मिरिस्टिका फ्रेग्रेंस) इलेक्टयुरी दस्त नियंत्रित करने के लिए उपयोगी है
निमोनियाछोटे बछड़ों को किसी नम या ठंडे स्थानों में न रखे.उचित और समय पर चिकित्सा उपचार के साथ प्रभावी रूप से निमोनिया का इलाज किया जा सकता है.गंभीर दस्त, निमोनिया या कमजोरी नवजात में निर्जलीकरण पैदा कर सकता है.
निर्जलीकरण (आँखों में सूखापन, त्वचा में लोच का न होना, खड़े वालों के साथ शरीर के रोओ का कड़ा होना निर्जलीकरण के सामान्य लक्षण हैं)पशु चिकित्सक के मार्गदर्शन में नसों में खारे तरल पदार्थ को प्रशासित किया जा सकता है. हर दो घंटे पर घर में बना घोल दिया जा सकता है (चीनी-50 ग्राम, सोडियम बाइकार्बोनेट -5 ग्राम, आम नमक -10 ग्राम, पानी-1 लीटर)
कृमि प्रकोपअसंक्रमित चारा प्रदान करें. कृमि नाश – एक माह की आयु में पहली खुराक, बाद में छह महीने तक महीने में एक खुराक, और बाद के वर्षो के दौरान एक वर्ष में दो बार.
बढ़ती उम्र के दौरान स्वास्थ्य समस्याएंउनकी बढ़ती उम्र में बछड़ों के लिए पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करना. स्वच्छता और टीकाकरण सुनिश्चित करना.
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प्रजनन

जानवरों के प्रजनन के लिए, दो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं. ये पशुओं में बांझपन और कामोत्तेजना की पहचान करते हैं.

बांझपन

यदि प्रबंधन, पोषण, स्वास्थ्य और पर्यावर्णीय कारक अनुकूल हैं तो पशु नियमित रूप से पुन: प्रजनन कर सकते हैं. उचित रखरखाव की कमी और उच्च तनाव, प्रजनन की संभावना को कम कर देता है यानि पशु जन्म नहीं दे सकते. इस हालत को बांझपन कहा जाता है. गर्भधारण करने की सेवाओं को तीन या अधिक बार दोहराना गायों/भैसों की विफलता है. जब तक कि पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल का हस्तक्षेप नहीं किया जाता है, बांझपन की अवधि, कई दिनों से महीनों तक जारी रह सकती है.

कामोत्तेजना प्रबंधन

इष्टतम प्रजनन के लिए पशु चिकित्सा सलाह के अंतर्गत कामोत्तेजना प्रबंधन का कार्य शुरू किया जा सकता है. इन तकनीकों का मानकीकरण किया गया है और इन्हें किसानों के दरवाजे पर उपलब्ध कराया जा सकता हैं. विभिन्न तकनीकें हैं….

  • कामोत्तेजना प्रवर्तन – हार्मोनल प्रोटोकोल की मदद से किसी भी पूर्व निर्धारित दिन पर कामोत्तेजना को प्रवर्तित किया जा सकता है. पूर्व नियोजित समय पर प्रेरित कामोत्तेजना का प्रदर्शन करने वाले पशु का समय पर कृत्रिम गर्भाधान कराया जा सकता है.
  • कामोत्तेजना का तुल्यकालन – पशुओं के एक चक्रीय या गैर चक्रीय समूह को किसी भी पूर्व निर्धारित दिन पर कामोत्तेजित किया जा सकता है और इस तकनीक को कामोत्तेजना तुल्यकालन कहा जाता है. यह तकनीक एक ही दिन पर बड़े पैमाने पर गर्भाधान की योजना बनाने में मदद करती है.
  • नियंत्रित प्रजनन – नियंत्रित प्रजनन सफल गर्भावस्था के लिए अन्डोत्सर्ग पर नियंत्रण सुनिश्चित करता है.
  • समय पर गर्भाधान – एक समय पर कई मवेशी में गर्भाधान किया जा सकता है.

क्या आप जानते है

  • पुटीय अंडाशय (यह ऐसी स्थिति है जिसमें गाय या भैंस अंडाशय की झूठी कामोत्तेजना दर्शाते हैं जो गर्भावस्था की ओर नहीं ले जा सकती हैं).
  • कामोत्तेजना न होना (यह ऐसी स्थिति हिया जिसमें पशु कामोत्तेजना प्रदर्शित नहीं करता है).
  • अंत: गर्भाशय की जीर्णता (गर्भाशय का संक्रमण जो गर्भावस्था को रोकता है) से होने वाले प्रजनन विकार है.
  • कामोत्तेजना न होना (गर्मी का प्रदर्शन न करना) एक प्रमुख प्रजनन विकार है.
  • कामोत्तेजना चक्र के पूर्ण अभाव से जानवरों में यौन वैराग्य की अवधि दिखाई देती है.

निदान और प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दों के इलाज के लिए पशु चिकित्सक से तुरन्त संपर्क किया जाना चाहिए. चिकित्सा उपचार, साथ-साथ पर्याप्त प्रबंधन और पोषण की देखभाल आवश्यक है.

पशु में कामोत्तेजना का पता लगाना

कामोत्तेजना का पता लगाना डेयरी पशुओं को गर्भाधान का अवसर प्रदान करने के लिए आवश्यक है और पता लगाने की जिम्मेदारी पशु मालिक की है. दुधारू पशु बहुत कम घंटो के लिए कामोत्तेजना का प्रदर्शन करते है इसलिए मालिक द्वारा कामोत्तेजना का सही पता लगाना उचित समय पर गर्भाधान की व्यवस्था के लिए उपयोगी है. इसमें विफलता पशु से एक लम्बा प्रजनन अंतराल और कम आर्थिक लाभ का कारण बनता है. गायों और भैसों से क्रमश: प्रसव के 60 और 90 दिनों के बाद पहली बार कामोत्तेजना का प्रदर्शन करने की उम्मीद की जाती है ताकि 90 और 120 दिन में गर्भावस्था को फिर से स्थापित किया जा सके.

पशुओं में कामोत्तेजना के आम लक्षण इस प्रकार हैं…..

लक्षणपहला चरणदूसरा चरणतीसरा चरण
स्रावपानी जैसा और कम मात्रा मेंचिपचिपा और मात्रा बढ़ जाती हैगाढ़ा चिपचिपा और मात्रा कम हो जाती है
यौन व्यवहारसामने से चढनानर की तरह चढनाग्रहणशील और चढ़ाने के लिए खड़ी होती है
समूह व्यवहारअलग और बेचैनझुंड में शामिल लेकिन बेचैनशांत और स्थिर
स्वरोच्चरणनिरंतर, आवाज में लंबा चढ़ावआवाज में अंतराल, कम चढ़ावकभी-कभी आवाज में उतार
मूत्र विसर्जननिरंतरअंतराल के साथआवृति में कमी
योनि टमिफिकेशननमूदार/प्रत्यक्षस्पष्टकम होता है
प्रवेशपूरी तरह लापरवाहपूरी तरह लापरवाहबस फैलता है
टेल कैरिजसंचलन (घूमना-फिरना)संचलन (घूमना-फिरना)बगल में हो जाता है
अन्यचेतावनीनर की ओर आकर्षितजननांग दिखाई देता है
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पशु में कामोत्तेजना और गर्भाधान के लिए उचित समय अवधि इस प्रकार है

पशुधन की नस्लकामोत्तेजना का प्रकारअवधिएआई का समय
गैर-विशिष्ट गाय और भैंसेंकमजोर/मूक अप्रत्यक्ष12 से 18 घंटेपता लगने के 6 घंटे के भीतर या सूचना मिलने पर तुरन्त
देशी गाय और भैंसेंमध्यम और मध्यवर्ती18 से 24 घंटेएएम-पीएम नियम- कामोत्तेजना के पहले लक्षण के दिखाई देने के 12 घंटे बाद
संकर गायेंसाफ़ और प्रत्यक्ष स्पष्ट30 से 36 घंटेकामोत्तेजना के पहले लक्षण के दिखाई देने के 36 घंटे के अंदर
विदेशी गायेंबहुत साफ़, प्रत्यक्ष और स्पष्ट36 से 48 घंटेकामोत्तेजना के पहले लक्षण के दिखाई देने के 36 घंटे के अंदर
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डेयरी पशुओं में कामोत्तेजना का पता लगाने की कई तकनीकें और व्यवस्थाएं हैं. सर्तक निरीक्षण के साथ सुबह और शाम के समय के दौरान दैनिक आधार पर प्रत्येक जानवर का एक दृश्य अवलोकन कामोत्तेजना का पता लगाने का एक सफल तरीका है.

डेयरी –स्वच्छ दूध

स्वच्छ दूध ऐसा दूध है जिसमें कोई अवांछनीय रंग न दिखाई दे, गंदगी से मुक्त हो और बैक्टीरिया की कम मात्रा होती है. स्वच्छ दूध में प्रति मिलीलीटर लैक्टिक एसिड 0.15 प्रतिशत और बैक्टीरिया गिनती 100000 (1 लाख) से कम होनी चाहिए. स्वच्छ दूध सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित आवश्यक है….

  • पर्याप्त स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सहित साफ़ और स्वच्छ स्थिति बनाए रखना
  • स्वस्थ पशु
  • दूध दुहनेवाले की व्यक्तिगत स्वच्छता
  • स्वच्छता और थन की सफाई
  • स्वच्छ स्टेनलेस स्टील के दूध के बर्तन

स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किए जाने वाले अन्य वांछनीय बिंदु

  • दूध दुहनेवाले को अक्सर बदला नहीं जाना चाहिए.
  • दुधारू जानवरों को खिलाने और प्रबंधन की दिनचर्या को बदला नहीं जाना चाहिए.
  • दूध दुहने और दूध को संभालने में स्वच्छ ब्यवहार का पालन किया जाना.
  • 15 लीटर से अधिक दूध देने वाली सभी गायों/भैंसों को छह घंटे के अंतर पर एक दिन में तीन बार दूहा जाना चाहिए.|
  • सर्दियों में चूची पर मक्खन, घी, विसंक्रमित मलाई इत्यादि जैसी कुछ स्नेहक लगाया जाना चाहिए.
  • समय-समय पर दूध दूहने से पहले सीएमटी अभिकर्मक का उपयोग कर कैलिफोर्निया स्तन परीक्षण (सीएमटी) किया जा सकता है.
  • हर 15 दिन पर दूध का प्रयोगशाला परीक्षण किया जाना चाहिए.
  • दूध पार्लर और भंडारण कमरा अलग और पशु बाड़े से दूर होना चाहिए.

दूध में मिलावट

दूध में मिलावट सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है. दूध सामग्री में मिलावट रोकने के लिए संग्रह, स्थानों पर वसा और एसएनएफ (ठोस पर वसा नहीं) का परीक्षण किया जाना चाहिए. यहाँ तक कि कुछ डेयरी समाज भी प्रत्येक दूध देने वाले के लिए अलग-अलग नमूना परीक्षण नहीं करते, केवल एक सामूहिक नमूना लिया जता है और उसका परीक्षण किया जाता है. कुछ लोगों के मिलावट करने से गाँव की छवि खराब होती है. पानी, नमक, चीनी, माल्टोज, स्टार्च, न्युट्रालाइजर, सोडा और यूरिया का उपयोग कर मिलावट की जा सकती है. एक मिलावट किट की मदद से दूध में मिलावट का पता लगाने के लिए परीक्षण किया जा सकता है.

क्षमता बढ़ाने में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका

प्रशिक्षण सत्र के दौरान, सुश्री लक्ष्मीबाई, एक ग्रामीण और कामधेनु समूह के सदस्य ने गाय की खरीदारी के दौरान अपने समूह के सदस्यों के अनुभव को साझा किया. उन्होंने कहा कि वे बैंक ऋण का उपयोग कर डेयरी गतिविधि की शुरुआत कर रहे है. उन्होंने इस कार्य को आर्थिक रूप से अधिक लाभप्रद बनाने के लिए वैज्ञानिक पशुपालन के बारे में और अधिक जानने की इच्छा व्यक्त की. समूह के सदस्यों का मानना था कि यह महिलाओं के सशक्तिकरण का एक साधन है. सुश्री लक्ष्मीबाई ने कहा कि चूँकि ग्राम पंचायत ने पशुपालन पर बैठक का आयोजन किया गया है, इसलिए उसने अपने स्वयं सहायता समूह के सभी सदस्यों को बैठकों में भाग लेने के लिए तैयार किया है, उन्होंने समूह की बैठकों में उनकी सीखों पर चर्चा की.

इन विचारों पर सोचा गया और बाद में सहायता समूह की बैठकों के दौरान इस पर चर्चा की गई और इस पर तुरन्त अमल भी किया गया था. पशुओं के स्वास्थ्य में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था. पशुओं के उपचार की लागत को कम करने और उत्पादकता में वृद्धि हुई थी. उसके अनुरोध पर, ग्राम पंचायत ने उनके स्वयं सहायता समूह को अपने गाँव में एक सहकारी डेयरी आरंभ करने के लिए अनुमति दे दी है. इस प्रकार दुधिया में दूध क्रांति की शुरुआत हुई.

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