चारा उत्पादन और चारा कैलेण्डर : Fodder Production and Fodder Calendar
चारा उत्पादन और चारा कैलेण्डर : Fodder Production and Fodder Calendar, पोषण पशुओं की उत्पादकता का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है. इसलिए किसी भी पशुपालन हस्तक्षेप को पशुओं के लिए पीने के पानी सहित पोषण के लिए योजना बनाने के साथ शुरू करना होगा. पर्याप्त पोषण अच्छा स्वास्थ्य, एक उचित प्रजनन चक्र और उत्पादकता (दूध और अन्य उत्पादों दोनों के लिए) सुनिश्चित करता है. इसलिए लागत प्रभावी पोषण प्रदान करना लाभप्रदता के लिए महत्वपूर्ण है. ग्राम पंचायतों में पशुओं के लिए चारे की खुराक सहित पशुओं के लिए पर्याप्त मात्रा में सूक्ष्म पोषण तत्वों को सुनिश्चित करने, चारे के प्रबंधन की योजना को शामिल किया जाना आवश्यक है.

चारा
कृषि अवशेष, निजी चरागाह की घास और खुली चराई पशुओं के चारे के मुख्य स्रोत हैं. इसके अलावा, सूखे के दौरान चारा खरीदा जाता है. चारा खरीदना बहुत महंगा पड़ता है. सूखे के दौरान नकदी के अभाव में अक्सर परिवारों के पास मवेशी को घर से बाहर निकालने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता. ऐसे आवारा पशु समुदाय और घरेलू दोनों के लिए नुकसान हैं. इसलिए चारे की उपलब्धता (सूखा दौरान सहित) के लिए उपयुक्त योजना बनाना ग्राम पंचायत की प्राथमिकता होनी चाहिए. हम देखेंगे कि यह कैसे किया जा सकता है.
साझा संपत्तियों (चारागाह) का प्रबंधन
सभी ग्रामीणों को पता है कि अगर मानसून के दौरान चरागाह को तीन से चार महीने के लिए बंद कर दिया जाए तो घास के उत्पादन में वृद्धि होगी. लेकिन पूरी चरागाह भूमि को बंद नहीं किया जा सकता इसलिए चरागाह विकास चरणों में किया जा सकता है व शेष को चराई के लिए खुला छोड़ा जा सकता है. बंद चरागाह से, काटो और ले जाओ प्रणाली के माध्यम से, प्रत्येक परिवार चरागाह में अपने सीमांकित क्षेत्र से घास काट सकता है.
चारा उत्पादक कृषि फसलें
चारा या तो एक चारा फसल के रूप में उगाया जा सकता है या इसे फसल अवशेष के रुप में प्राप्त किया जा सकता है. चारा उत्पादक कृषि फसलों की खेती भी अनाज उपजाने वाली फसलों की खेती की तरह आर्थिक रूप से लाभकारी हो सकती है . चारा उपजाने वाली फसलों को कम आदानों की आवश्यकता होती है और ये जोखिम और विफलताओं से कम ग्रस्त होती हैं. केवल अनाज की पैदावार पर विचार करने की बजाय अनाज और चारा दोनों की उपज के लिये कई प्रकार की फसलों (सिंचित और असिंचित दोनों स्थितियों में) की खेती की जा सकती है. इसलिए, अनाज की फसलों की वेराइटी (विविधता) का चयन करते समय किसान को अनाज की पैदावार के साथ-साथ अपनी चारा उपज का भी आकलन करना चाहिए.
सिंचित भूमि से चारा
किसान भूमि की उपलब्धता के आधार पर सिंचित जोत पर चारा देने वाली फसलों और केवल चारा फसलों की मिश्रित खेती कर सकते हैं. ल्यूसर्न (आरएल88) और बरसीम (वरदान, मेसकावी, जेबी-1, बीएल-1 व 10) कुछ अधिक उपज देने वाली चारा किस्में हैं जिन्हें पर्याप्त सिंचाई उपलब्ध होने पर बोया जा सकता है.
शुष्क भूमि क्षेत्रों से चारा
असिंचित परिस्थितियों में, केवल अनाज की पैदावार पर विचार करने के बदले चारे की उपज देने वाली फसलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
ज्वार (अमृता, मलदंडी -35, रुचिरा, एमपी चरी, प्रो- एग्रोचारी पुसाचिरी -9), मक्का (अफ्रीकन टाल, लंबा, मंजरी कम्पोजिट, विजय, गंगा सफेद, गंगा – 2 5), जई (केंट आरओ -19, जेएचओ – 822), हरिता, वेस्टर्न -11 एचएफओ -114, अल्जीरियाई) और बाजरे (जाएंट बाजरा, राजको बाजरा, बीएआईएफ बाजरा, बी.जे. -104, श्रद्धा) की चारा उत्पादक किस्मों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है.
नीचे दिया गया चारा कैलेंडर सूखी और सिंचित भूमि की चारा फसलों का ब्यौरा देता है.
चारा कैलेंडर
खेतों की मेड पर चारा उपज देने वाले पेड़ों की (जैसे सुबबूल या शहतूत) प्रजातियों को लगाया जा सकता है. पेड़ के पत्तों का हरे चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता हैं. हरी कलमों के टुकड़ों की छंटाई की जानी चाहिए, इसे फूल निकलने के चरण में काटा जाना चाहिए और अगर हरा चारा अधिक मात्रा में उपलब्ध है, तो इसे सिलेज में परिवर्तित किया जा सकता है (अध्याय में बाद में चर्चा की जाएगी).
चारा कैलेंडर
फसल | खेती | विविधता | कटाई | प्रति हेक्टेयर उत्पादन | |
मौसमी अनाज चारा | ज्वार | अक्टूवर | अमृता, मालदंडी -35 | 60 दिन | 35-40मीट्रिक टन |
जून-जुलाई | रुचिरा, एमपी चरी, प्रो-एग्रोचरीपुसाचिरी -9 | 60-70 दिन | 30 -40मीट्रिक टन | ||
फरवरी-मार्च | एसएसजि -59-3एम-35-1 | 65-70 दिन | 30-40मीट्रिक टन | ||
मक्का | अक्टूबर-नवम्बर | अफ्रीकन टाल | 60 दिन | 65-70मीट्रिक टन | |
जून-जुलाईमार्च-फरवरी | मिश्रित मंजरी, गंगा सफेद, विजय, गंगा-25 | 65 दिन | 40-50मीट्रिक टन | ||
जई | अक्टूबर-नवम्बर | केंट, आरओ-19, जेएचओ-822, हरिता, वेस्टर्न-11, एचएफओ -114, अल्जीरियाई | पहली कटाई 55 दिन पर अगली 25 दिन में | 45-50मीट्रिक टन | |
बाजरा | जून-जुलाई | जाएंट बाजरा, राजको बाजरा, बीएआईएफ बाजरा, बीजे-104, श्रद्धा | 65-70 दिन | 30-45मीट्रिक टन | |
फरवरी-मार्च | |||||
मकचरी | पूरे साल | टीएल-1, टीओ-सिंट | 65-70 दिन | 35-40मीट्रिक टन | |
फली चारा फसल | ल्यूसर्न | अक्टूबर-नवम्बर | आरएल-88, आनंद-2, सिरसा-9, एएल-3 | पहली कटाई 55 दिन पर और अगली 30 दिन में | 80-100मीट्रिक टन |
बरसीम | अक्टूबर-नवम्बर | वरदान, मेसकावी, जेबी-1, बीएल-1 एवं 10 | पहली कटाई 60 दिन में और फिर 30-35 दिन में | 70-90मीट्रिक टन | |
स्टाइलो | जून-जुलाई | एसटी-स्केबेरा,फुले क्रांति | साल में दो कटाई | 30मीट्रिक टन | |
मौसमी फली चारा | लोबिया | मार्च-जुलाई | यूपीसी-287/5286,ईसी-4216, सीओ-1,सीएस-88, सी- 14,श्वेता, एफाओएस-10 | 60-80 दिन | 30मीट्रिक टन |
बारहमासी चारा घास | नेपियर (हाथी घास) और संकर नेपियर | जून | यशवंत (आरबीएन-9) | अगस्त और उसके बाद | 150 मीट्रिक टन प्रति वर्ष |
जून-अगस्त फरवरी-मार्च | जयवंत (आरबीएन-13) | 65-70 दिन और फिर हर 6 में | 150 मीट्रिक टन प्रति वर्ष | ||
पूरे साल | डीएचएन-6, सिओ-4 | 70-75 दिन और फिर हर 7 में | 175 मीट्रिक टन प्रति वर्ष | ||
पैरा-घास | जून-जुलाई | —- | 75-90 दिन | 175 मीट्रिक टन | |
मारवेल | जून-जुलाई | मारवेल 7, 8, 93 या 40 | 90 दिन | 25-30मीट्रिक टन |

अजोला की खेती
अजोला पानी पर (मिट्टी के बिना) उगने वाला एक फर्न है, जो शैवाल (एल्गे) जैसा होता है. अजोला उथले जलाशयों में उगाया जता है. अनुकूल परिस्थितियों में फर्न बहुत तेजी से फैलता है. यह प्रोटीन, विटामिन और सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध है. अजोला को मिक्चर सप्लीमेंट/ पोषण मिक्चर के साथ मिलाया जा सकता है या पशुओं को सीधे दिया जा सकता है. इसे पचाना आसान है और यह मुर्गी, भेड़, बकरी, सुअर और खरगोश की खिलाया जा सकता है.
अजोला कैसे तैयार किया जा सकता है?
चरण 1: सबसे पहले क्षेत्र की मिट्टी से खरपतवार निकाल कर उसे समतल किया जाता है. जमीन पर दो मीटर गुणे दो मीटर के गड्डे या इसी आकार की ईटों की एक संरचना का निर्माण किया गया.
चरण 2: गड्डे या ईटों से बनी इस संरचना पर दो मीटर गुणे दो मीटर आकार की एक यूवी से स्थिर की गई सिलपाउलीन चादर को इस तरह फैलाया जाता है ताकि यह ईटों से बना आयत को भी ढक ले.
चरण 3: छानी हुई 10-15 किग्रा मिट्टी को सिलपाउलीन चादर पर समान रूप से फैलाया जाता है. 10 लीटर पानी में 2 किग्रा गोबर और 30 ग्राम सुपर फ़ॉस्फेट मिला कर बनाए गए घोल को चादर पर डाल दिया जाता है. जल स्तर को लगभग 10 सेमी तक बढ़ाने के लिए और पानी डाला जाता है.
चरण 4: अजोला क्यारी में मिट्टी और पानी को हल्के से हिलाने के बाद, लगभग 0.5-1 किलोग्राम शुद्ध मदर अजोला कल्चर्ड बीज सामग्री को पानी के ऊपर समान रूप से फैला दिया गया. अजोला पौधों को सीधा खड़ा करने के लिए रोपण के तुरन्त बाद अजोला पर ताजा पानी (एक कल्चर्ड माध्यम में या पर सू क्ष्मजीवों) या संक्रामक सामग्री के प्रत्यारोपण के लिए छिडका जाना चाहिए.
चरण 5: एक सप्ताह के समय में, अजोला पूरी सतह पर फ़ैल जाता है और एक मोटी चटाई की तरह विकसित होता है. अजोला के तेजी से बढ़ने और 500 ग्राम की दैनिक उपज बनाए रखने के लिए पाँच दिन में एक बार 20 ग्राम सुपर फ़ॉस्फेट और लगभग एक किलोग्राम गाय के गोबर का एक मिश्रण डाला जाना चाहिए. अजोला में खनिज पदार्थ को बढ़ाने के लिए साप्ताहिक अंतराल पर मैग्नीशियम, लोहा, तांबा और गंधक आदि से युक्त सूक्ष्म पोषक मिश्रण भी मिलाया जा सकता है.
चरण 6: क्यारी में नाइट्रोजन के जमाव को रोकने के लिए हर 10 दिन में एक बार 25 से 30 प्रतिशत पानी को ताजे पानी से बदलने की जरूरत होती है.
चरण 7: नाइट्रोजन के जमाव से बचने और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को रोकने के लिए, 30 दिनों में एक बार क्यारी की मिट्टी को लगभग पाँच किलो मिट्टी से बदला जाना चाहिए.
क्यारी को साफ़ किया जाना चाहिए. पानी और मिट्टी को बदलना चाहिए और हर छह महीने में एक बार नया अजोला प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए. यदि अजोला क्यारी कीट और रोगों से संक्रमित हो जाता है, तो नई क्यारी तैयार कर अजोला के एक शुद्ध कल्चर से रोपित करें.
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अजोला की कटाई कैसे करें?
- अजोला तेजी से बढ़ता है और 10-15 दिन में गड्ढा भर जाएगा. तब से प्रतिदिन 500-600 ग्राम अजोला काटा जा सकता है.
- 15 दिन के बाद से हर दिन तले में छेद वाली एक प्लास्टिक की छलनी या ट्रे की मदद से फसल की कटाई की जा सकती है.
- गोबर की गंध से छुटकारा पाने के लिए काटे हुए अजोला को ताजे पानी में धोया जाना चाहिए.
आहार
बाजार से आहार खरीदने की बजाय उपलब्ध पशु आहार सामग्री का उपयोग समृद्ध पोषाहार तैयार करने के लिये किया जा सकता है. यह प्रत्येक जानवर के लिए पर्याप्त घर का बना पोषाहार सुनिश्चित करेगा. चारा फसलें, सूखा चारा और सांद्र और स्तनपान कराने वाले मवेशी और भैंसों को त्वरित पूरक पोषाहारों की जरूरत होती है. चारे को समृद्ध करने के लिए सिलेज तैयार किया जा सकता है या चारे को प्रतिरक्षित (फोरटिफाय) किया जा सकता है. अब हम इन दोनों तरीकों पर चर्चा करेंगे.
सिलेज
सिलेज हरे चारा के संरक्षण करने की एक वैज्ञानिक पद्धति है. इसके पोषक मूल्य को बरकरार रखते हुए वायु रहित स्थितियों में हरे चारे के संरक्षण की प्रक्रिया को सिलेज कहा जाता है. गर्मियों में हरे चारे की कमी को दूर करने हेतु इस विधि का उपयोग किया जा सकता है. यह पर्याप्त प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिज की उपलब्धता सुनिश्चित करता है. सिलेज प्रोटीन (16.87 प्रतिशत) और कार्बोहाइड्रेट (6.96 प्रतिशत) से समृद्ध है. इसलिए, गर्मियों के दौरान पशुओं के लिए सिलेज से पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान किया जा सकता है. सिलेज बैगों (500 किग्रा) में और एक निर्मित की टंकी में 36 मीट्रिक टन तक सिलेज बनाया जा सकता है. इसका स्वाद पके हुए फलों जैसा होता है और जानवर इस स्वाद को पसंद करते है. कल्चर का प्रयोग करने पर 21 दिनों के भीतर सिलेज बनाया जा सकता है. इसे दो साल तक के लिए संरक्षित किया जा सकता है. मक्का, ज्वार, बाजरा, जई, चना, सोयाबीन, ल्यूसर्न, बरसीम और घास जैसी कई फसलों के हरे चारे से सिलेज बनाया जा सकता है.
निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है:
चरण 1: सुनिश्चित करें कि सिलेज टंकी/ गड्डे/बैग साफ़ हैं. चयनित चारा फसल को फूल लगने के चरण में काटें और फौरन 2 से 2.5 इंच के टुकड़ों में इसकी छंटाई करें.
चरण 2: तैयार कल्चर या शीरे का प्रयोग करें (एक मीट्रिक टन चारे के लिए 2 किग्रा खनिज मिश्रण, 10 किग्रा शीरा व एक किलो नमक).
चरण 3: चारे की आधे से एक फुट की परतों को एक-दूसरे के ऊपर रखा जाना चाहिए. प्रत्येक परत पर जैविक कल्चर रखें.
चरण 4: प्रत्येक परत को दबाएँ और सुनिश्चित करें कि उसमें हवा नहीं रहे. बिना कोई फासला रखे पॉलिथीन की चादर को ढक दें.
चरण 5: बड़े सफाई से पॉलिथीन की चादर को खोलें और ढकें तथा आवश्यकता के अनुसार सिलेज निकाल सकते है.
ग्राम पंचायत पशुपालन विभाग से सिलेज इकाई निर्माण के लिये आर्थिक सहयोग के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकता है.
चारे की सुरक्षा
थोड़े उपचार के साथ कृषि अवशेषों को प्रतिरक्षित (फोरटिफाय) कर इसे संतुलित राशन में परिवर्तित किया जा सकता है. हम देखेंगे कि चारे को कैसे सुरक्षित किया जा सकता है…
आवश्यक सामग्री
- 100 किग्रा अपशिष्ट चारा (गेहूँ की भूसी, बाजरे के अवशेष, गन्ना का ऊपरी भाग, चावल की भूसी, अरहर और चने की फसल के अवशेष और भूसे को अनुपात में मिलाएं).
- 100 किग्रा चारे के लिए – 2 किग्रा यूरिया, 1 किलो रवेदार नमक, 1 किलो खनिज मिश्रण और 40-50 लीटर पानी.
- एक छलनी, 15 लीटर क्षमता की एक बाल्टी, एक 50 लीटर का कंटेनर, 20×20 फीट की पॉलिथीन शीट और एक लकड़ी का मिक्सर.
प्रक्रिया
चरण 1: 100 किग्रा अपशिष्ट चारे को पॉलिथीन शीट पर 3-4 बराबर भागों में रखें.
चरण 2: 2 किग्रा यूरिया और 1 किलो नमक को 50 लीटर पानी में घोलें.
चरण 3: भूसी के पहले भाग को 6 इंच की मोटाई में जमीन के समानांतर फैलाएं. भूसी की इस परत को दबाएँ और इस पर 15 लीटर घोल का समान रूप से छिड़काव करें.
चरण 4: अब इस परत पर अपशिष्ट चारे के दूसरे हिस्से को डाल दें. इस परत पर 15 लीटर घोल और 1 किलो खनिज मिश्रण का समान रूप से छिड़काव करें और इसे अच्छी तरह से दबाएँ.
चरण 5: तीसरे और चौथे भाग के लिए यही प्रक्रिया दोहराएं. अच्छी तरह से मिश्रित करें .
चरण 6: यह सुनिश्चित करने के लिए कि इसमें हवा न रहे, प्लास्टिक शीट के सभी चार कोनों को दबाएँ और पॉलिथीन पर एक उचित वजन के साथ इसे सील करें.
चरण 7: 21 दिनों के बाद चारा उपभोग करने के लिए तैयार हो जाएगा.
उपरोक्त प्रक्रिया चारे में प्रोटीन मूल्य को बढाती है.
प्रतिरक्षित (फोरटिफाय) चारा खिलाते समय सावधानी….
घरेलू मिश्रण
क्र.सं. | करणीय (करें) | अकरणीय (न करें) |
1 | छोटी मात्रा उदाहरण के लिये 200 ग्राम से प्रारंभ करें | चार महीनों से कम उम्र के बछड़ों/मेमनों को न खिलाएं |
2 | धीरे-धीरे दो किलोग्राम तक बढ़ाएं | प्रतिरक्षण (फ़ोरटिफिकेशन) प्रक्रिया में सोयाबीन अवशेषों को शामिल न करें |
3 | खिलाने से पहले इस चारे को फैला दें ताकि यूरिया की तेज गंध दूर हो जाए |
पोषाहार की लागत को कम करने के लिए, घरों में घरेलू स्तर पर पोषण की तैयारी की जा सकती है. इस पोषण को इस प्रकार से तैयार किया जा सकता है……..
नमूना 1 (प्रतिशत) | नमूना 2 (प्रतिशत) | नमूना 3 (प्रतिशत) | ||||
क | दला हुआ अनाज (मक्का, बाजरा, गेहूँ, ज्वार) | 25 | दला मक्का | 30 | कपास के बीज की खली | 1`2 |
ख | भूसा (गेहूँ, ज्वार, बाजरा) | 15 | मूंगफली की खली | 20 | अरहर की चुन्नी | 30 |
ग | डली हुई दालें (उड़द, अरहर, चना, मूंग) | 12 | गेहूँ का चोकर | 25 | गेहूँ का चोकर | 25 |
घ | खली (मूंगफली, कपास के बीज, सोयाबीन, नारियल) | 25 | अरहर की चुन्नी | 22 | मक्का गुलताने | 10 |
ड. | तैलीय खली (सोयाबीन, सूर्यमुखी) | 20 | खनिज मिश्रण | 1.5 | गेहूँ का दलिया | 20 |
च | खनिज मिश्रण (उच्च गुणवत्ता का) | 1.5 | नमक | 1.5 | खनिज मिश्रण | 1.5 |
छ | नमक | 1.5 | नमक | 1.5 |
यह याद रखना महत्वपूर्ण है –
- चारा फसलों, सूखा चारा और सांद्र पशुओं के लिए खनिजों के स्रोत हैं.
- स्तनपान कराने वाली गायों/भैंसों को फास्फोरस और कैल्शियम जैसे खनिजों की आवश्यकता होती है जिसे पर्याप्त रूप से पूरा किया जाना चाहिए.
- अच्छी गुणवत्ता के 30-35 ग्राम खनिज मिश्रण की एक दैनिक पूरक खुराक दी जानी चाहिए.
- खनिजों की कमी देर से यौवन, कमजोर कामोत्तेजना, प्रजनन में दोहराव, गर्भपात, बांझपन, कमजोर प्रतिरक्षा, हड्डी की विकृति और दूध बुखार जैसी बीमारियों की आवृत्ति की ओर ले जाती है.
- अगर पशु को अधिक मात्रा में गन्ने का ऊपरी हिस्सा खिलाया जाता है तो गन्ने के ऊपरी हिस्से में अधिक मात्रा में ऑक्सेलेट सामग्री होने के कारण, यह कैल्शियम को बांधता है और परिणाम स्वरूप शरीर की कैल्शियम की आपूर्ति रोकता है और इस तरह कमजोर यौन स्राव तथा गर्भाशय मांसपेशियों में ढीलेपन सहित प्रजनन समस्याएं उत्पन्न करता है.
खनिज और विटामिन की कमी से…
दुग्ध उत्पादन में कमी
- वसा और एसएनएफ (ठोस वसा नही) सामग्री में कमी
- बीमारियों के खिलाफ प्रतिरक्षा की कमी
- प्रजनन दोहराया जाता है
- उपचार पर व्यय बढ़ जाता है
- रोगों में वृद्धि
पानी
पीने का पानी पोषण का हिस्सा है. पीने के पानी की अपर्याप्त मात्रा पशु के शरीर में सभी चयापचय गतिविधियों के निलबंन की ओर ले जाती है. वयस्क जानवरों के लिए 30-40 लीटर पानी की आवश्यकता होती है और दूध उत्पादन करने वाले डेयरी पशुओं के लिए यह आवश्यकता प्रति लीटर दूध पर पाँच लीटर के हिसाब से बढ़ जाती है. जुगाली करने वाले छोटे पशुओं को प्रति दिन औसत पाँच लीटर पानी की आवश्यकता होती है.
दुधिया से सीख तेजी से अपनाने के लिए व्यावहारिक प्रदर्शन
सुश्री आशा किरण और श्री किशन ने जानकारी साझा की और चारे की तैयारी का व्यावहारिक रूप से प्रदर्शन किया. इसके लिए ग्राम पंचायत ने कुछ फसल अवशेषों, पानी, बाल्टी, यूरिया, कुछ औजारों, पॉलिथीन शीट, दले हुए अनाज, मूंगफली की खली और कुछ डिब्बों की व्यवस्था की थी. बैठक में उपस्थित लोग पोषक तत्वों की कमी और पशुओं की उत्पादकता पर उनके प्रभाव के बारे में जानकार चकित थे. श्री किशन और सुश्री आशा किरण द्वारा साझा की गई विधियां बहुत आसान थीं और इनके लिए घरेलू स्तर पर उपलब्ध सस्ते संसाधनों की आवश्यकता थी. बैठक के बाद सभी निर्वाचित वार्ड सदस्यों ने सिलेज और घर पर बने चारे का उत्पादन आरंभ करने के लिए संकल्प लिया. दो सदस्यों ने अजोला की खेती करने का भी संकल्प लिया. उन्होंने अपने-अपने वार्डो में इन तकनीकों को साझा करने का वचन दिया.
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प्रिय पशुप्रेमी और पशुपालक बंधुओं पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.
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