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मत्स्य उद्योग क्या है : What is fishery Industry

मत्स्य उद्योग क्या है : What is fishery Industry, मछली उद्योग एक ऐसा उद्योग है, जिसका आसानी से बांध में, तालाबों में, खेतों में और छोटे-छोटे कुओं में पालन किया जा सकता है. मत्स्य उद्योग की शुरुवात करके आसानी से पैसे कमाया जा सकता है और बेरोजगारी की समस्या को दूर किया जा सकता है. आज बढ़ती हुई आबादी और बाजार में मछली के मांग को देखते हुए मत्स्य पालन के क्षेत्र में बहुत बड़ा रोजगार का अवसर दिखाई देता है. इस उद्योग के अंतर्गत झींगा मछलीपालन, लोब्सटर मछलीपालन, केकड़ा उद्योग, मोलस्कन फिसरी, रोहू मछलीपालन, कतला मछलीपालन, मांगुर मछलीपालन इत्यादि मछलियों का पालन करके अच्छा खासा कमाई किया जा सकता है.

What is fishery Industry
What is fishery Industry

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मछली एक विकल्प के रूप में आहार

मछली एक ऐसा भोजन है जिसमें प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा(आयरन), पोटाश, गंधक, तांबा आदि पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. अर्थात इसमें वे सब पोषक तत्व उपस्थित रहते हैं जो आदमी को ताकतवर बनाने के लिये आवश्यक होता होता है. मछली में कलेजी के बाद सबसे अधिक विटामिन (सी) C पाया जाता है. इसमें अन्य मांसों की अपेक्षा रेशा कम होता है तथा चर्बी भी कम होती है. मछली शीघ्र पक जाती है और जल्दी हजम हो जाती है. अतः इसे ख़ास तौर पर मरीजों को देने की शिफारिश की जाती है. इसलिए आधुनिक समय में अधिकांश आदमी मछली खाना ज्यादा पसंद करते है. जिससे मछली की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.

मत्स्य उद्योग

झींगा मछली उद्योग – झींगा मछली को प्रोन मछली भी कहा जाता है. यह मछली मुख्यतः उथले पानी में पाया जाता है. इसमें केरल, मालावरघाट, पुलीकर झील, कोलैर, चिल्का झील, गंगा तथा ब्रम्हपुत्र नदियाँ इस मछली के लिये प्रसिद्ध हैं. मछली खाने में झींगा मछली का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. इसलिए आज के आधुनिक कहे जाने वाले समाज के लिये बड़े-बड़े होटलों में परोसे जाने वाली प्रिय एवं डैलिशियस डिश है एवं बड़े चाव से पसंद की जाती है.

लोब्सटर मछली उद्योग – यह एक मछली उद्योग के रूप में पिछले 30-35 वर्ष में विकसित हो रहा है. यह उद्योग भारत के पूर्वी पश्चिमी और दक्षिणी पश्चिमी घाटों पर मुख्य रूप से विकसित हो रहा है.

केकड़ा उद्योग – यह बम्बई में पुरे साल पकड़े जाते है खाने में इसका प्रयोग किया जाता है.

मोलस्कन फिसरी – मोलस्का समुदाय के कुछ जानवरों को खाने के काम में लाया जाता है. इसलिए इसे भी मत्स्य उद्योग के अंतर्गत गिना जाता है.

उपर्युक्त सभी उद्योग लगभग समुद्र (लवणीय) तक ही सिमित हैं तथा कुछ उद्योग आजकल अलवणीय जल (Fresh water) में भी संभव है. जैसे ‘प्रान फिसरी’ आज गंगा और ब्रम्हपुत्र नदियों का प्रमुख उद्योग है. साथ ही साथ खोज जारी है कि इस उद्योग का अधिक से अधिक विकास हो देश की खाद्य और आर्थिक समस्या का कोई समाधान निकल आये. कृषि के क्षेत्र में आज एक खेत से साल में कई फसल लेने का प्रयत्न किया जा रहा है. यही नहीं एक ही खेत में कई फसल लि जा रही है. इसी को देखते हुए मछली उद्योग ने भी इस क्षेत्र में प्रगति की है जो कि निम्नलिखित प्रकार के हैं-

कम्पोजिट कल्चर (Composite Culture) – उत्तर प्रदेश सरकार अन्य राज्यों की भांति तालाब, पोखर, झील, तथा किसानों के व्यक्तिगत तालाब, राज्य सरकार के अपने तैयार किये हुए फार्म आदि पर मत्स्य उद्योग को बढ़ावा दे रही है. इसके लिये किसानों को बीज राज्य सरकार के जिला मत्स्य अधिकारी से 40-60 रूपये प्रति हजार के डर से मिल जाता है. जो जगह-जगह नर्सरी पोंड की अवस्था में खुले हुए है. इसके लिये प्रति हेक्टेयर अधिक से अधिक पैदा लेने के लिये उन्नत किस्म की शीघ्र बढ़ने वाली मछलियों का उपयोग किया जाता है. बंगाल में कतला, रोहू और म्रिगल को साधारण 3:3:4 के अनुपात में पाला जाता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की मछलियों को एक साथ पालकर कई प्रकार के परीक्षण किये जाते हैं. जिनमें केवल मेजर कार्प, विदेशी कार्प तथा भारतीय एवं विदेशी कार्प के कई प्रकार जोड़े बनाकर अच्छी पैदावार ली गई है.

इन सभी मछलियों का खाना अलग-अलग रहता है. कुछ शिवार, शैवाल तथा कुछ छोटे-छोटे जानवर खाते हैं. तो कुछ मछलियाँ पेंदी में रहकर भोजन प्राप्त करती है. कुछ पानी के बीच में तैरकर तो कुछ किनारों से भोजन प्राप्त करती है.

  • इसमें सभी बिना एक दुसरे को नुकसान पहुचाये काफी बढ़ती रहती हैं.
  • अच्छी पैदावार मिलती है.
  • मेजर कार्प तथा विदेशी कार्प एक साथ पाली जा सकती है.
  • कुछ अन्य मछलियाँ जैसे – नोटोपटेरस, चितला आदि इनके साथ पली जा सकती है.

धान तथा मछलीपालन (Paddy cum fish Culture) – आजकल खेती में दो फसलीय पद्धति अपनाई जाती है. इसमें धान में खेत में मछलियाँ पाली जा रही हैं. चूँकि दोनों को पानी की बहुत अधिक आवश्यकता होती है और मछलियों के खाने के लिये छोटे-छोटे किट खेत में पैदा हो जाते हैं. अथवा धान के हरे पत्ते तथा पानी में गिरे पत्ते खा लेती हैं.इसमें धान और मछली दोनों की पारम्परिक वृद्धि होती है. मछलियों को एक खेत से दुसरे खेत में जानें से रोकने के लिये जाल लगा दिया जाता है. जिससे ढलान पर मछलियाँ रुकी हुई होती है और यही पर नको पकड़ लिया जाता है. परंतु आधुनिक समय में खेतों पर खरपतवार नाशक, कीटनाशक का अंधाधुंध प्रयोग होने के कारण धान तथा मछलीपालन एक साथ संभव नहीं है. अतः धान की फसल काटने के बाद जब खेत खाली हो जाये तो उस पर मत्स्य पालन करना संभव होगा.

मत्स्य पालक कब और क्या करें?

अप्रैल माह में – तालाब में बन्धों तथा पानी के निकास एवं प्रवेश के स्थानों की मरम्मत तथा उसमें जाली लगाने का प्रबंध करें.

मई माह में – मत्स्य अंगुलिका की प्राप्ति हेतु मत्स्य पालन विभाग एजेन्सी कार्यालय में मूल्य सहित मांग पत्र प्रस्तुत करें.

जून माह में – जलीय सिवार तथा अवांछनीय मछलियों को पूर्णतया तालाब से निकलवा दें.

जुलाई माह में – तालाब में चुने का उपयोग 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करें.

अगस्त माह में – गोबर की खाद का उपयोग प्रथम क़िस्त क्व रूप में 1-2 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें. इसके 15 दिन बाद N.P.K. प्रथम क़िस्त के रूप में 47 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. अगस्त माह में ही 15-25 मी.मी. नाप की मत्स्य अंगुलिकाओं का संचय 10,000 प्रति हेक्टेयर की दर से डालें.

सितम्बर माह में – इस माह में पुनः अगस्त माह में डाले गए खादों का प्रयोग करें. साथ ही प्राकृतिक भोजन के अलावा कृत्रिम भोजन के रूप में बारीक़ पीसी हुई मूंगफली, तिल, सरसों या नारियल की खली तथा चावल का कण या गेहूं का कण बराबर मात्रा में मिलाकर दें.

नवम्बर से हर तीसरे माह में – मत्स्य अंगुलिका की बढोतरी देखने के लिये तालाब में जाल चलाया जाये.

जून 15 से जुलाई 15 तक – तालाब से विक्रय योग्य मछली अवश्य निकालकर आमदनी प्राप्त कर लेवें.

आवश्यक निर्देश एवं सुझाव

  • यदि तालाब का पानी हरा हो जाये तो – खाद एवं उर्वरक देना बंद कर दें. जब तक कि पानी का हरा रंग दूर न हो जाये.
  • तालाब का पानी जब भी कम होने लगे – तालाब को तुरंत ट्यूबवेल अथवा नहर के पानी से भरवा देना चाहिए.
  • यदि अचानक तालाब में कोई परिवर्तन होता दिखाई दे ‘अथवा’ मछलियाँ मरने लगे – ऐसी स्थिति दिखाई देने पर तत्काल मत्स्य पालन एजेन्सी को सूचना देना चाहिए.
  • तालाब में भोजन उपयुक्त मात्रा में जानने के लिये – तालाब का 50 लीटर पानी एक महीन जाल में छान कर एक शीशे की ट्यूब में इकठ्ठा करके देखें. यदि उसमें प्लैकटन की मात्रा 1 सी.सी. हो तो यह समझना चाहिए की तालाब में भोजन उपयुक्त मात्रा में है.

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