मछली पालन और प्रमुख प्रजातियाँ : Fisheries and Major Species
मछली पालन और प्रमुख प्रजातियाँ : Fisheries and Major Species, संसार में मछली की जितनी पैदावार होती है उसमें से भारत में लगभग दो तिहाई भाग मछली प्रतिवर्ष उत्पादन किया जाता है. भारत में मछली की पैदावार खाद्य सुरक्षा और आर्थिक रूप में मदद करने में बहुत ही सहायक होती है. भारत में मछली उत्तर प्रदेश में प्रचुर मात्रा में मिलती है. मुख्यतः मछलियाँ समुद्र के पानी या पृथ्वी पर बहती नदियों, झीलों, तालाबों आदि में पायी जाती है.

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मछली एक वह कशेरुकीय जंतु है जो कि सदैव पानी में जीवित रहते है, जिनमें श्वसन के लिये गिल तथा चलने या तैरने के लिये पंख पायें जाते हैं. मछलियों आकार में तर्कुरूपी होती हैं तथा शरीर शल्क से ढका रहता है या केवल चर्म वाली होती हैं. सिर में आगे की ओर मुख होता है जिसमें ऊपरी तथा निचली जबड़ा विकसित होता है. इसी के बाद घ्राण केंद्र तथा आंख पायी जाती है. मछली के पीछे की ओर पंख के रूप में पूंछ विकसित पायी जाती है.
मछलियों के मिलने वाली कुछ प्रमुख प्रजातियाँ
रोहू मछली (Lebeo-Rohita) – यह भारत के मैदानों की मेजर कार्प मछली है. यह मछली आकार में तेजी से बढ़ती है, साथ ही खाने में अति स्वादिष्ट होती है. इस मछली का आकार लम्बा गोलाई लिये हुए वक्ष ऊपर तथा नीचे झुका हुआ होता है. इसके शरीर का रंग नीला या बादामी होता है. इसका थुबड़ा बाहर की तरफ उठा हुआ होता है, ऊपर का होंठ बड़ा होता है. इसका मुंह अन्दर की तरफ होता है, मुंह के दोनों तरफ़ एक जोड़ा स्पर्श प्रवर्ध होता है. जीवित मछली के शल्क का रंग बीच में हल्की नारंगी जैसा या लाल एवं किनारों पर गहरा तथा चमक लिये होता है.

पंख के ऊपर लाल, काली या भूरी धारियाँ होती है. सिर लगभग 4-5 इंच का होता है तथा आंख के भाग में एक गड्ढा होता है. होंठ मोटे और झुर्रीदार होते हैं. वक्ष गोलाकार चर्म शल्कों से ढका रहता है.शल्क का खुला आखरी भाग एक दुसरे के ऊपर छतों की खपरैल की तरह ढका रहता है.
कतला (Catla) – यह मछली सम्पूर्ण भारत में पायी जाति है. यह पानी में काफी तेजी से बढ़ती है, इसका शरीर मजबूत तथा पेट के पास काफी गहरा होता है. इसका मुह चौड़ा होता है एवं निचले होंठ के ऊपर पतली खाल लटकी होने के कारण होंठ दुहरा लगता है. इस मछली का रंग भूरा होता है. यह मछली में सर्वाधिक पैदा की जाने वाली मछली है. इसकी लम्बाई 1.8 मीटर तथा वजन 13.6 से 22.7 किलोग्राम तक होता है. यह लम्बाई में 56-61 सेमी. तक बढ़ती है. तभी इसको पकड़कर विक्रय किया जाता है. इस समय इसका स्वाद काफी अच्छा होता है. इस मछली को भाकुर के नाम से भी जाना जाता है.

मिग्रला (Migrala) – इसे नैम मछली के नाम से भी जाना जाता है. उत्तर प्रदेश में कतला और रोहू के बाद इस मछली को खाने के लिए पसंद की जाने वाली मछली है. इसका मुंह चौड़ा तथा होंठ पतले होते हैं. इसका आहार रोहू जैसा होता है. इस मछली की ऊपर की तरफ का रंग गहरा भूरा तथा काला होता है. यह खुले तालाबों में 38-41 सेमी. तक बढ़ती है. यह मछली बहते पानी में अंडे देती है. यह मछली तालाब की पैंदी पर पाई जाति है. यह वस्तुतः शाकाहारी मछली मणि जाति है. इसका होंठ का अगला हिस्सा बालू तथा कीचड़ में से छोटे पदार्थों को निकालने के लिये विकसित होता है.

लांची (Lanchi) – इस मछली को ‘पटनी’ और ‘बरारी’ के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत के सभी तालाब, झील एवं नदियों में मिलती है. इसे अलवणीय जल की शार्क भी कहते हैं. यह बाढ़ के बाद रुके हुए पानी में भी मिलती है. इस मछली का मुंह चौड़ा, शरीर दोनो ओर से चिपका तथा उपरी भाग एक सीधी रेखा की तरह होता है. इसकी लम्बाई 183 सेमी. तक की पायी जाति है. वैसे सामान्य रूप से 61-91 सेमी. लम्बी होती है. इसके दांत उपर्युक्त मछलियों के विपरीत काफ़ी तेज होते हैं क्योंकि यह मांसाहारी मछली होते हैं. इसलिए इसे पकड़ते समय भी दांतों का ध्यान रखना होता है. इस मछली को खाने में बहुत पसंद किया जाता है, क्योंकि इसका मांस कंकाल से आसनी से अलग हो जाता है. यह अन्य मछलियों के भांति शल्की मछली नहीं है.

सिंघारा (Mystus Seenghala) – भारत की सभी नदियों में पायी जाने वाली यह एक प्रमुख मछली है. शरीर का रंग ऊपर बादामी तथा दोनों तरफ चमकीला भूरा होता है. इसका आकार लगभग 6 फुट तक बढ़ता है. मुंह के पास दो जोड़े लम्बे प्रवर्ध निकलते है जो बिल्ली की तरह लगते हैं. इसलिए इस मछली को कैट फिश भी कहा जाता है. यह नदियों और तालाबों में अप्रैल और जुलाई के मध्य अंडे देती है. खाने में स्वादिष्ट होने के कारण इसकी मांग अधिक होता है.

कैट फिश (Cat Fish) – इस मछली का मुंह बिल्ली की भांति लगता है क्योकि इन मछलियों के मुंह पर बिल्ली की तरह लम्बे तथा छोटे 4 जोड़े वाल बाहर की तरफ निकले रहते है. इसका शरीर लम्बा होता है तथा ऊपर से चपटा होता है. इसके शरीर पर शल्क नहीं होते है. इस मछली के दोनों तरफ किनारों पर मजबूत हड्डी की प्लेट पायी जाति है.

क्लेरियस ( Clarias Batrachus) – उत्तर प्रदेश में इस मछली को मंगरी या मंगुर कहते है. यह अधिकतर मैदानी इलाकों में नदियों तथा तालाबों आदि में मिलती है. यह तालाब के कीचड़ में विशेष रूप से मिलती है. यह मछली बाहर भी रह सकती है. इसका शरीर लम्बा होता है तथा सिर दोनों तरफ से चिपका हुआ होता है. पृष्ठ पक्ष शरीर के दो तिहाई भाग में फैला रहता है जबकि आधे शरीर पर पाया जाता है. जिसके प्रारंभ में छोटे-छोटे कांटेदार Pelvicfin पाये जाते हैं. यह मछली 46 सेमी. तक लम्बी होती है शरीर का रंग बादामी या काला होता है.

बगेरियस (Bagarius) – इस मछली को बुंच और गूंच के नाम से भी जाना जाता है. यह एशियाई देशों में दूर-दूर तक पायी जाती है. इसका सिर काफी चौड़ा होता है एवं फैला होता है. दोनों कंधे उठे हुए होते हैं और धीरे-धीरे पूंछ की तरफ शरीर पतला होता जाता है. इसके पूछ दो भागों में बंटा रहता है. शरीर का रंग पीला या गुलाबी हरा होता है. शरीर के ऊपर तथा नीचे की तरफ़ बादामी काले या गहरे नीले चकते तथा धारियाँ मिलती है. सभी पंखों के आधार पर कलर रंग की धारियाँ मिलती है. सामान्य रूप से यह मछली आकार में छोटी होती है. इनके शरीर की लम्बाई लगभग दो मीटर तक होती हैं.

सिंघी (Singgi) – इसे हेटरोप्न्युट्स के नाम से भी जाना जाता है. इसका शरीर लम्बा और चपटा होता है तथा मुंह पर 4 जोड़े लम्बे बाल पये जाते हैं. इसका एनल फिन लम्बा होता है तथा रंग भूरा तथा काला होता है. यह मछली मांसाहारी होती है तथा पानी के बीच में या पेंदी पर पाई जाती है. इसकी लम्बाई लगभग 30 सेमी. होती है. यह मछली खाने के लिये काफ़ी प्रयोग में लायी जाती है.

मांगुर (Clarias Batrachus) – इस मछली के शरीर पर शल्क नहीं होते हैं. इसका रंग लाल भूरा अथवा काला होता है. सिर पर आठ संवेदी मुखान्कुर होते हैं. ऑंखें छोटी होती हैं तथा पृष्ठ और अधर लम्बे तथा रेशेदार होते हैं. इस मछली की विशेष बात यह है कि यह काफी समय तक बिना पानी के बाहर जीवित रह सकती है. यह बहुत प्रसिद्ध मछली है, इसे लोग खाने में बहुत प्रयोग में लाते हैं. इस मछली का मुख्य आहार छोटे-छोटे कीड़े, झींगा तथा कुछ क्रिस्टेशिया है.

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