बकरीपालनकृषि और पशुपालनपशु कल्याणपशु चिकित्सा आयुर्वेदपशुधन की योजनायेंपालतू जानवरों की देखभालभारत खबरविश्व खबर

ग्रामीण पशुपालन में पशु सखियों की भूमिका : Role of Animal Companions in Rural Animal Husbandry

ग्रामीण पशुपालन में पशु सखियों की भूमिका : Role of Animal Companions in Rural Animal Husbandry, क्या कभी आपने सोचा है कि एक ग्रामीण महिला पशु चिकित्सक की भांति, पशु चिकित्सक सहायक रूप में पशुओं के लिए दवाइयाँ, आहार व आवश्यक पोषण उपलब्ध करवाने में अहम भूमिका निभा सकती है. यही नहीं उनके लिए आवश्यक सुविधाएं जुटाने व अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करते हुए घर की कुल आमदनी में भी सहायक की भूमिका निभा सकती है. जी हां, यह सच है, झारखंड राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा प्रखंड अंतर्गत बाकदह गांव में श्रीमती हेमंती बेरा एक ऐसी ही महिला है जो कि पशुओं के लिए मसीहा बनकर आई है जो बीमार पशुओं का उपचार करने के लिए न तो दिन देखती है और न रात.

Role of Animal Companions in Rural Animal Husbandry
Role of Animal Companions in Rural Animal Husbandry

यह संभव हो सका है स्थानीय स्वयं सहायता समूह “झारखंड सरकार की आजीविका पशु सखी मिशन“ की वजह से जिसने ग्रामीण रोजगार मिशन के तहत उन महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जो वाकई में पीड़ित पशुओं की सहायता व देखभाल करना चाहती हैं. इससे न सिर्फ महिलाओं को विभिन्न जानकारियां प्राप्त होंगी बल्कि वे एक लघु उद्यमी की तरह कार्य कर आमदनी भी कर सकेंगी. छः दिनों के प्रशिक्षण के दौरान वे इतनी सशक्त हो जाती हैं कि इस मिशन को भलीभांति समझते हुए कष्ट में पड़े हुए जानवरों की एक मित्र की भांति देखभाल करती हैं. यही कारण है कि ऐसी महिलाओं को पशु सखी नाम दिया गया है. ग्रामीण क्षे़त्रों में ऐसी कई महिलाएं पशु सखी के रूप में उभरी हैं जिन्होंने कई पीड़ित पशुओं के प्राणों की रक्षा की है. इन पशु सखियों को अधिकांश दवाइयों के नाम व उपचार का तरीका ज्ञात है, जिससे छोटी-मोटी बीमारियों में ये पीड़ित पशुओं का उपचार आसानी से कर सकती हैं. ये पशु सखी न सिर्फ पीड़ित पशुओं की देखभाल करती हैं बल्कि इस काम में पशुओं को आवश्यक दवाइयाँ, पशु आहार व आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के साथ ही लघु उद्यमी के रूप में भी उभरी हैं. इससे उनकी आमदनी में भी इजाफा हुआ है जिसके चलते एक पशु सखी महीने में लगभग 5-7 हजार रूपए अर्जित करती है.

झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ महिलाएं हैं. भेड़, बकरी और मुर्गियों जैसे छोटे पशु इन महिलाओं की आर्थिक लड़ाई के साथी हैं. आदिवासी बाहुल्य जंगलों और पहाड़ियों की धरती झारखंड के लगभग हर घर में मुर्गियां और बकरियां पाली जाती हैं. लेकिन इन्हीं पशुओं में होने वाली बीमारियां उन्हें सबसे बड़ा झटका देती थीं, देखते ही देखते पूरे गांव की बकरियां-मुर्गियां मर जाया करती थीं…लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हालात बदल गए हैं, यूं समझिए कि अब बकरियां और मुर्गियां इनके लिए एटीएम हैं, यानि एनीटाइम मनी.. और इसका पूरा श्रेय जाता है यहाँ की पशु सखियों को. पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर पटमदा ब्लॉक के इन्दाटाड़ा गाँव में रहने वाली भादूरानी महतो (35 वर्ष) अपने गाँव की पशु सखी की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, “अब हमें कोई चिंता नहीं रहती. बकरी को जरा सा कुछ हुआ इनको बुला लेते हैं. जब गाँव में ही डॉक्टर हो तो फिर किस बात की चिंता.” वो आगे बताती हैं, “पहले तो हमारे यहाँ बकरी मरने के डर से लोग ज्यादा बकरी नहीं पालते थे लेकिन अब बीमार होने से पहले ही इसका इलाज ये कर देती हैं.” इन्दाटाड़ा गाँव में ज्यादातर घरों में पांच से दस बकरियां सबके पास होंगी और इनकी इलाज करने के लिए यहाँ की पशु सखी पुष्पा रानी हमेशा तैयार रहती हैं.

झारखंड पहाड़ी और जंगली क्षेत्र होने की वजह से यहाँ 70 फीसदी से ज्यादा लोग बकरी पालन करते हैं लेकिन बकरियों की सही देखरेख न होने की वजह से यहाँ 35 फीसदी बकरियां बीमारी की वजह से मर जाती थीं. बकरी और मुर्गियों की मृत्यु दर झारखंड में बहुत बड़ी समस्या बन गई थी. जंगली-पहाड़ी इलाके में छोटे पशुओं के इलाज के लिए पशु चिकित्सक पहुंच नहीं पा रहे थे, ऐसे में झारखंड स्टेट लाईवलीवुड प्रमोशन सोसाइटी ने स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को पशु चिकित्सा का प्रशिक्षण देकर उन्हें इलाज का जिम्मा सौंपा. राज्य में करीब 5,000 पशु सखियाँ 58,000 से ज्यादा पशुपालकों की बकरियों की देखरेख का जिम्मा उठा रही हैं. ब्लॉक स्तरीय ट्रेनिंग के बाद ये महिलाएं बकरियों में पीपीआर, खुरपका, मुंहपका जैसी बीमारियों का इलाज करती हैं. साथ ही उन्हें अच्छे पोषण, रखरखाव बेहतर पशुपालन की सलाह देती हैं.

पशु सखियों को होने वाले लाभ

झारखंड में बकरी और मुर्गी पालन जैसे कार्यों की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं पर हैं. सुखद तस्वीर ये है कि बकरी पालन में मुनाफा और पशु सखी जैसी परियोजनाओं से जुड़कर ग्रामीण महिलाएं न सिर्फ आर्थिक बल्कि सामाजिक रुप से भी सशक्त हो रही हैं. एक पशु सखी महीने के 5000-7000 रुपए गाँव में रहकर आसानी से कमा लेती है. अगर ये पशु सखी राज्य में रहकर दूसरी पशु सखियों को प्रशिक्षित करती हैं तो इन्हें दिन का 500 रुपए मिलता है अगर ये राज्य से बाहर जाती हैं तो इन्हें 15 दिन का 20000-22000 रुपए मिलते हैं.

ग्रामीण महिलाओं के लिए सशक्तीकरण की मिसाल बन रहे झारखंड की पशु सखी योजना को अब देश के कई राज्यों में लागू किया जा रहा है. बिहार जैसे राज्य में पशु सखी की ट्रेनिंग का जिम्मा भी झारखंड की इन पशु सखियों को मिला हैं. अपने हुनर और मेहनत के बदौलत इन महिलाओं को डॉक्टर दीदी कहा जाता है. अब इनके काम की पहचान इनके नाम से हो रही है. चूल्हा-चौका करने वाली महिलाओं के हाथ में सुई-सीरिंज आने से इनकी गरीबी का मर्ज भी अब खत्म हो रहा है. ग्रामीण अर्थव्वस्था में महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाली इन महिलाओं को सरकार भी पूरा साथ और सम्मान दे रही है. झारखंड स्थापना दिवस पर सम्मानित हुईं पशु सखी बलमदीना तिर्की इसका उदाहरण हैं. पांचवी पास बलमदीना को झारखंड सरकार ने उनके सराहनीय कार्यों के लिए न केवल सम्मानित किया बल्कि एक लाख रुपए का चेक भी दिया.

पशु सखियों के इलाज से बकरियों की मृत्यु दर 30 फीसदी घटी आज झारखंड में 5,000 पशु सखियाँ बकरियों और मुर्गियों का इलाज कर इनकी मृत्यु दर कम कर रही हैं. इनके आने से जो मृत्यु दर पहले 35 फीसदी होती थी वो घटकर केवल पांच फीसदी बची है. जो पशुपालक पहले पांच सात बकरियां पालते थे अब वही 15-20 बकरियां पालते हैं. गाँव-गाँव पशु सखी होने से ग्रामीणों को एक सहूलियत ये भी है कि अगर इनके पास पैसे नहीं भी हैं तो भी ये पशु सखियाँ इलाज कर देती हैं और जब इनके पास जब पैसे हो जाते हैं तो ये पैसे दे देते हैं. पशु सखी कलावती बताती हैं, “बकरियों की इलाज के लिए गाँव में डॉ नहीं आते थे. बकरी को लादकर कई किलोमीटर अस्पताल ले जाना पशु पालकों के लिए मुश्किल था जिसकी वजह से इनकी समय से इलाज नहीं हो पाती थी और ये मर जाती थीं लेकिन जबसे हम लोगों को ट्रेनिंग मिल गयी है तबसे गाँव में ही इनकी इलाज हो जाती है. ” वो आगे बताती हैं, “पीपीआर जैसी गम्भीर बीमारी में भी हम बकरी को मरने से बचा लेते हैं पिछली साल हमने एक पशु पलक की बकरी बचाई थी.” कलावती के गाँव में रहने वाली सुलजी देवी (55 वर्ष) खुश होकर कहती हैं, “अब बकरी पालने के लिए सोचना नहीं पड़ता. जब बकरी बीमार होती है कलावती को बुला लेते हैं.”
पांच से 10 रुपए में ये पशु सखियाँ करती हैं इलाज पशु सखी, सखी मंडल से जुड़ी वो महिलाएं होती हैं जो गांव में ही रहती हैं. उसी गांव की होने के चलते वो पशुपालकों की न सिर्फ समस्याएं आसानी से समझती हैं बल्कि जरुरत पड़ने पर तुरंत इलाज के लिए भी पहुंच जाती हैं. जिस बकरी के इलाज के लिए पहले शहर से आने वाले डॉक्टर 200 रुपए लेते थे अब वही इलाज पशु सखी 5 से 10 रुपए में कर देती हैं. पिछले तीन-चार वर्षों में पशु सखियों की बदौलत न सिर्फ झारखंड के लाखों परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरी है बल्कि ग्रामीण महिलाओं को आजीविका का जरिया भी मिला है. अबतक सखी मंडल से 19 लाख से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं जुड़ चुकी हैं. जिनमें से करीब 5,000 महिलाएं पशु सखी बनकर पशुपालकों की मदद कर रही हैं.

महत्वपूर्ण लिंक :- बरसात के मौसम पशुओं का देखभाल कैसे करें?

महत्वपूर्ण लिंक :- मवेशियों में गांठदार त्वचा रोग का कहर.

महत्वपूर्ण लिंक :- लम्पी बीमारी का विस्तारपूर्वक वर्णन.

महत्वपूर्ण लिंक :- राज्य डेयरी उद्यमिता विकास योजना क्या है?

महत्वपूर्ण लिंक – पशुओं द्वारा दी जाने वाली संकेत को कैसे समझे?

पुरुषों से ज्यादा कमाती हैं यहाँ की महिलाएं यहाँ की महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मेहनती और जुझारू होती हैं. क्योंकि घर का खर्चा इनके कंधों पर रहता है. शुरुआती दौर में तो इनके पति यहाँ वहां जाने में रोक टोक करते हैं लेकिन जब उन्हें लगता है कि वो उनसे ज्यादा कमा रही है और अगर नहीं जाने दिया तो घर का खर्चा कैसे चलेगा ये सोचकर बड़ा में वो सपोर्ट करने लगते हैं। पशु सखी बलमदीना तिर्की बताती हैं, “महीने में जितना कमाते हैं उसी कमिया से आज हम अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूल में पढ़ा रहे हैं. महीने का पांच सात हजार कमा लेते हैं जब सीआरपी ड्राइव में जाते हैं तब 15 में सात हजार मिल जाता है. अगर दूसरे राज्य में ट्रेनिंग देने जाते हैं तो 15 दिन का बीस बाईस हजार मिल जाता है।” पशु सखी शारिदा बेगम खुश होकर कहती हैं, “अब पति के आगे पैसों के लिए हाथ नहीं फैलाना पड़ता. अब उन्हें जब जरूरत पड़ती है तो वो हमसे मांगते हैं. अपनी कमाई की बात ही कुछ और है.”

झारखंड में 58,000 से ज्यादा पशु पालक करते हैं बकरी पालन राज्य में 58,000 से ज्यादा पशु पालक बकरी पालन कर रहे हैं. यहाँ ब्लैक बंगाल नस्ल पायी जाती है. ये पशु सखियाँ बकरियों के इलाज से लेकर उनके आहार तक की पूरी जानकारी पशुपालकों को घर-घर जाकर देती हैं जिससे बकरियों का खानपान बेहतर रहे और पशुपालकों को इसका अच्छा दाम मिल सके. राज्य स्तरीय पशु सलाहकार लक्ष्मीकांत स्वर्णकार ने बताया, “छोटे पशुओं के इलाज के लिए सुदूर और दुर्गम इलाकों में डॉ नहीं पहुंच पाते थे इसलिए हमने गाँव में ही पशु सखी के रूप में एक ऐसा कैडर तैयार किया जो गाँव में रहकर छोटे पशुओं की इलाज कर सके.” वो आगे बताते हैं, “एक पशु सखी 100-150 परिवारों की 200-300 बकरियां और 500-700 मुर्गियों को बीमारी से पहले टीकाकरण और कृमिनाशक देती है. ये पशु सखी हर पशु पालक का चारा, दाना और पानी स्टैंड बनवाती हैं. इसके आलावा महीने में दिया जाना वाला आहार भी तैयार करवाती हैं.”

झारखंड में पशु-उत्पादकता की निम्न दर

झारखंड में पशुधन से जुड़ा ज्यादातर उत्पादन कार्य भूमिहीन और हाशिए पर आने वाले किसान करते हैं, जिनमें महिलाओं को योगदान 70 प्रतिशत से अधिक है. पिछले एक दशक में, देश भर में मांस और अंडों की कीमतों में 70-100 प्रतिशत का उछाल आया है. लेकिन झारखंड जैसे निम्न आय वाले राज्य में पशुपालन में लगे हुए किसान इस मौके का फ़ायदा उठाने में असमर्थ थे. उनके पास जानवरों की देखभाल से जुड़ी जानकारियां अपर्याप्त थीं, और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और प्रजनन से जुड़ी सहायता सुविधाओं तक पहुंच बेहद सीमित थी. राज्य में पशु चिकित्सकों और पशुधन का अनुपात देश में सबसे कम था और उसके साथ ही साथ सीमित संसाधनों और सुविधाओं से जुड़ी समस्याएं भी थीं. इसका नतीजा ये हुआ कि पशुओं की मृत्यु दर बहुत ज्यादा थी. बकरियों के लिए ये दर 30 प्रतिशत से अधिक, सुअरों और मुर्गियों के लिए लगभग 80 प्रतिशत थी. इसके कारण अंडे और मांस का उत्पादन भी बहुत कम था. परिणामस्वरूप, किसानों की आमदनी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जहां उनकी आय 800 रुपए प्रति माह जितने निम्न स्तर पर थी.

 किसानों की पशुपालन में मदद

कृषक समुदाय की महिलाएं आमतौर पर अपने घरों के पिछवाड़े में पशुओं की देखभाल और उनके प्रजनन से जुड़े काम करती हैं. इसलिए, स्थानीय औरतों को “पशु सखि” के रूप में प्रशिक्षित करने से जुड़ी योजना पशु-उत्पादन, व्यापार और किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में सबसे ज्यादा उपयुक्त लगा. जोहार परियोजना के तहत, समुदाय के पशु स्वास्थ्य-सेवा कर्मियों  को मुर्गी, बत्तख, बकरी और सुअर जैसे जानवरों की देखभाल के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण के बाद, पशु सखी न केवल जानवरों की देखभाल को लेकर सलाह देने का काम करती हैं, बल्कि वे किसानों को व्यावसायिक पशुपालन से जुड़े आर्थिक लाभों के बारे में भी समझाती हैं. वे उनकी उत्पादकों और व्यापारियों से संपर्क जोड़ने में भी सहायता करती हैं, ताकि उनकी बाज़ार तक पहुंच आसान हो सके और वे आसानी से अपने उत्पादों की बिक्री कर सकें. परियोजना के तहत अब तक 1000 से अधिक पशु सखियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है औ उनमें से 70 फीसदी प्रशिक्षित महिलाओं को एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) द्वारा प्रमाणित किया गया है, जिससे ये सुनिश्चित होता है कि वे उच्च क़िस्म की सेवा सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम हैं.

पशु सखियां समय-समय पर किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन भी करती हैं. चितामी गांव की मंजू पिछले दो सालों से मुर्गी पालन कर रही हैं. अपने गांव की एक पशु सखी से तीन दिनों तक प्रशिक्षण लेने के बाद, मंजू अब अपने मुर्गी पालन केंद्र को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर पा रही हैं. वह कहती हैं, “मुर्गियों के लिए सही आहार क्या है, या बीमारी फैलने पर क्या करना चाहिए, इसके बारे में हमें पहले कोई जानकारी नहीं थी. अब मैं छोटे छोटे काम खुद ही कर सकती हूं, और ज़रूरत पड़ने पर किसी आकस्मिक सहायता के लिए फ़ोन करके पशु सखी को बुला सकती हूं.”

पशु सखियां पेशेवर तरीके से अपनी सेवाएं और सलाहें देकर एक उद्यमी के तौर पर भी अपनी आमदनी बढ़ा रही हैं. रांची जिले के खांबिता गांव में रहने वाली 30 वर्षीय हसीबा खातून किसानों को मुर्गियां बेचती हैं. मुर्गी प्रजनन की मदद से उनके पास 3000-4000 मुर्गियों का स्टॉक है, जिसके बदले उन्होंने लगभग एक लाख रुपए का मुनाफा कमाया है. उन्होंने पशुधन प्रबंधन में 45 दिनों का अतिरिक्त प्रशिक्षण भी लिया है, और स्वयं एक वरिष्ठ प्रशिक्षक हैं. एक प्रमुख प्रशिक्षक के तौर पर उन्हें अक्सर राज्य के अन्य जिलों के दौरे पर जाना पड़ता है. वह कहती हैं, “मैं खुशकिस्मत हूं कि इस दौरान मेरे पति ने, पहले पशु सखी और बाद में एक मास्टर ट्रेनर के रूप में, मेरा साथ दिया है. मेरे प्रशिक्षण ने मुझे अपनी आय को तेजी से बढ़ाने में मदद की है.”

 झारखंड में जोहार परियोजना में एएससीआई द्वारा प्रमाणित ऐसे 29 मास्टर ट्रेनर मौजूद हैं।विश्व बैंक द्वारा समर्थित जोहार परियोजना से लगभग 57,000 किसानों को लाभ मिला है,  जिनमें से 90 प्रतिशत महिलाएं हैं. यूके के ऑक्सफ़ोर्ड समूह ने कार्यक्रम की निगरानी और मूल्यांकन से जुड़े अपने स्वतंत्र अध्ययन में पाया कि किसान अपने घरों के छोटे से पिछवाड़े पशु-उत्पादन के काम से प्रति माह 45,000 रुपए से ज्यादा कमा रहे हैं. यह जोहार परियोजना के शुरू होने से पहले की उनकी औसत कमाई से 55 से 125 गुना ज्यादा है।हाल ही में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान ने जोहार परियोजना के तहत पशु सखी मॉडल को कृषक सेवा प्रदाता से जुड़े 8 सबसे बेहतरीन वैश्विक अभ्यासों में से एक घोषित किया है.

 पशु-सखियाँ होंगी ए-हेल्प के रूप में प्रशिक्षित

ए-हेल्प-संयोजक कड़ी – ए-हेल्प अपने क्षेत्र की विस्तार कार्यकर्ता होंगी. वह पशुपालकों के सम्पर्क में रहेगी और पशुपालन विभाग एवं पशुपालकों के बीच संयोजक कड़ी होगी, जिन्हें लगातार अपने कार्य के लिये प्रशिक्षण दिया जायेगा. योजना से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूह की महिला सदस्य को विभिन्न योजनाओं में भारत सरकार द्वारा निर्धारित मानदेय प्राप्त करने का अवसर मिलेगा. वह अपने आस-पास के क्षेत्रों में पशुपालकों को शासन की सभी योजनाओं की जानकारी उपलब्ध करायेगी. सामान्यतः: एक गाँव में एक ए-हेल्प होगी. ए-हेल्प, पशु चिकित्सकों को स्थानीय विभागीय कार्यों में सहयोग करने के साथ अपने क्षेत्र के पशुपालकों के सम्पर्क में रहेगी. वह क्षेत्र के समस्त पशुधन और कुक्कुट संख्या का रिकॉर्ड ब्लॉक स्तर के पशु चिकित्सकों के साथ साझा करेगी. इससे पशुपालन गतिविधियों का क्रियान्वयन आसान हो जायेगा और दुग्ध उत्पादन आदि पर सीधा असर पड़ेगा. ए-हेल्प पशुपालकों को कान की टेगिंग के लिये चिन्हित कर अवगत करायेगी और टेगिंग का डाटा इनाफ पोर्टल पर दर्ज कराना सुनिश्चित करेगी. वे अपने क्षेत्र के पशुपालकों को पशुओं के रख-रखाव, टीकाकरण, विभिन्न विभागीय योजनाओं के लाभ के बारे में बतायेंगी. ए-हेल्प पशुपालकों को पशुधन बीमा करवाने और लाभ दिलाने में भी मदद करेगी. इन्हें संतुलित राशन बनाना भी सिखाया जायेगा. वे चारा उत्पादन के लिये भी प्रोत्साहित करेंगी. सभी ए-हेल्प को फर्स्ट-एड किट भी दी जायेगी.

ए-हेल्प की महत्वपूर्ण भूमिका – ए-हेल्प की भूमिका राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम में एफएमडी एवं ब्रुसेला टीकाकरण, पीपीआर उन्मूलन, क्लॉसिक स्वाइन फीवर नियंत्रण और राष्ट्रीय गोकुल मिशन में कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम में महत्वपूर्ण होगी. इसी प्रकार डेयरी गतिविधियों का प्रसार एवं क्रियान्वयन, गौ-भैंस वंशीय पशुओं को कान में टैग लगाना, किसान उत्पादक संगठनों को पशुपालन में उद्यमिता विकास के लिये प्रोत्साहित करने, विभिन्न विभागीय योजनाओं के क्रियान्वयन में सहयोग और निचले स्तर तक पशुपालकों को जानकारी उपलब्ध कराने में ए-हेल्प की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी.

इन्हें भी पढ़ें : प्रतिदिन पशुओं को आहार देने का मूल नियम क्या है?

इन्हें भी पढ़ें : एशिया और भारत का सबसे बड़ा पशुमेला कहाँ लगता है?

इन्हें भी पढ़ें : छ.ग. का सबसे बड़ा और पुराना पशु बाजार कौन सा है?

इन्हें भी पढ़ें : संदेशवाहक पक्षी कबूतर की मजेदार तथ्य के बारे में जानें.

प्रिय पशुप्रेमी और पशुपालक बंधुओं पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

Most Used Key :- गाय के गोबर से ‘टाइल्स’ बनाने का बिजनेस कैसे शुरू करें?

पशुओ के पोषण आहार में खनिज लवण का महत्व क्या है?

किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर कृपया स्वयं सुधार लेंवें अथवा मुझे निचे दिए गये मेरे फेसबुक, टेलीग्राम अथवा व्हाट्स अप ग्रुप के लिंक के माध्यम से मुझे कमेन्ट सेक्शन मे जाकर कमेन्ट कर सकते है. ऐसे ही पशुधन, कृषि और अन्य खबरों की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर विजिट करते रहें. ताकि मै आप सब को पशुधन से जूडी बेहतर जानकारी देता रहूँ.

-: My Social Groups :-

पशुधन खबरपशुधन रोग
इन्हें भी पढ़ें :- गाय, भैंस की उम्र जानने का आसान तरीका क्या है?
इन्हें भी पढ़ें :- बटेर पालन बिजनेस कैसे शुरू करें? जापानी बटेर पालन से कैसे लाखों कमायें?
इन्हें भी पढ़ें :- कड़कनाथ मुर्गीपालन करके लाखों कैसे कमायें?
इन्हें भी पढ़ें :- मछलीपालन व्यवसाय की सम्पूर्ण जानकारी.
इन्हें भी पढ़ें :- गोधन न्याय योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है?
इन्हें भी पढ़ें :- नेपियर घास बाड़ी या बंजर जमीन पर कैसे उगायें?
इन्हें भी पढ़ें :- बरसीम चारे की खेती कैसे करें? बरसीम चारा खिलाकर पशुओं का उत्पादन कैसे बढ़ायें?
इन्हें भी देखें :- दूध दोहन की वैज्ञानिक विधि क्या है? दूध की दोहन करते समय कौन सी सावधानी बरतें?
इन्हें भी पढ़े :- मिल्किंग मशीन क्या है? इससे स्वच्छ दूध कैसे निकाला जाता है.
इन्हें भी पढ़े :- पशुओं के आहार में पोषक तत्वों का पाचन कैसे होता है?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में अच्छे उत्पादन के लिये आहार में क्या-क्या खिलाएं?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में रासायनिक विधि से गर्भ परीक्षण कैसे करें?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुशेड निर्माण करने की वैज्ञानिक विधि
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में पतले दस्त का घरेलु उपचार.
इन्हें भी पढ़ें :- दुधारू पशुओं में किटोसिस बीमारी और उसके लक्षण
इन्हें भी पढ़ें :- बकरीपालन और बकरियों में होने वाले मुख्य रोग.
इन्हें भी पढ़ें :- नवजात बछड़ों कोलायबैसीलोसिस रोग क्या है?
इन्हें भी पढ़ें :- मुर्गियों को रोंगों से कैसे करें बचाव?
इन्हें भी पढ़ें :- गाय, भैंस के जेर या आंवर फंसने पर कैसे करें उपचार?
इन्हें भी पढ़ें :- गाय और भैंसों में रिपीट ब्रीडिंग का उपचार.
इन्हें भी पढ़ें :- जुगाली करने वाले पशुओं के पेट में होंनें वाली बीमारी.
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में फ़ूड प्वायजन या विषाक्तता का उपचार कैसे करें?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में गर्भाशय शोथ या बीमारी के कारण.
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं को आरोग्य रखने के नियम.