भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्राम पंचायत और पशुपालन समिति की भूमिका : Role of Gram Panchayat and Animal Husbandry Committee in Indian Rural Economy
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्राम पंचायत और पशुपालन समिति की भूमिका : Role of Gram Panchayat and Animal Husbandry Committee in Indian Rural Economy, पिछले अध्यायों में आपको पशु पालन से संबंधित जानकारी दी गई है. प्रत्येक ग्राम पंचायत में वैज्ञानिक पशु पालन को प्रोत्साहित करने के लिए ग्राम पंचायत ग्राम की पशु पालन समिति के सहयोग से निम्नलिखित गतिविधियाँ प्रारंभ कर सकते हैं.

ग्राम पंचायत की गतिविधियाँ
- आम चरागाह भूमि को फिर से जीवंत करने के लिए विकास, प्रबंधन और विनियामक उपाय.
- फसल अवशेषों की बिक्री को विनियमित करना, चारा बैंको की शुरुआत, बाहरी एजेंसियों के साथ समझौते से सूखे के दौरान चारे की व्यवस्था.
- निजी, राजस्व और वन भूमि में चारा प्रजाति के वृक्षों के रोपण को बढ़ावा देना.
- चारा फसलों के बारे में जागरूकता फैलाना.
- समय पर टीकाकरण और डीवार्मिग करना और पशुओं के स्वास्थ्य की पर्याप्त देखभाल के लिए सभी परिवारों की पहुंच सुनिश्चित करना.
- राज्य प्रजनन नीति के अनुसार (एक समयबबद्ध ढंग से) नस्ल सुधार को बढ़ावा देना.
- पशुजन्य रोगों के बारे में जागरूकता फैलाना.
- खाद के उपायों को बढ़ावा देना और सार्वजनिक स्थानों में उचित स्वच्छता और सफाई सुनिश्चित करना.
- पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल की जरूरत, प्रजनन, और बांझपन के कारणों के बारे में जागरूकता फैलाना.
- दुग्ध सहकारी समितियों के सहायता और सुनिश्चित करना कि ग्राम पंचायत से आपूर्ति किया गया दूध मिलावट से मुक्त है.
- घरेलू पोषण, चारे की फोर्टीफिकेशन विधि और अन्य उपायों को बढ़ावा देना.
- वैज्ञानिक बकरी पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन और सूअर पालन को बढ़ावा देना.
- पशुधन बीमा शुरू करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना.
- पशुपालन के लिए बैंक संपर्क को बढ़ावा देना.
- पशु बाजारों और मेलों की सुविधा.
पशु पालन समिति को उपरोक्त गतिविधियों की शुरुआत और एक ग्राम पंचायत पशुधन सुधार योजना (एलआईपी) विकसित करने का कार्य सौंपा जा सकता है. लोगों और पशुपालन विभाग के साथ चर्चो के आधार पर अगले चार साल के लिए पशुधन सुधार योजना में निम्न लक्ष्य सम्मलित किए जा सकते हैं……
- गायों और भैंसों का नस्ल सुधार.
- बकरियों का नस्ल सुधार.
- सभी पशुओं को बीमा कवर के अंतर्गत लाना.
- सभी पशुओं का 100 प्रतिशत टीकाकरण, डीवर्मिग और पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल.
- प्रत्येक घर में पर्याप्त कंपोस्टींग सुनिश्चित करना.
- सुनिश्चित करना किपोषण और खनिज पदार्थ की कमी के कारण कोई नुकसान न हो.
- डेयरी, मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन और सुअर पालन आजीविका गतिविधि प्रारंभ करने में रूचि रखने वाले सभी परिवारों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहयोग और विभागीय सहायता प्रदान कराना.
- डेयरी सहकारिता का सुदृढ़ीकरण और मिलावट के प्रति शून्य सहनशीलता.
- डेयरी सहकारी संघ के माध्यम से (बाड़े की स्वच्छता सहित) स्वच्छ दूध सुनिश्चित करना.
- विभिन्न विभागों के साथ अभिसरण .
- पैरा श्रमिकों के रूप में पशुपालन पर (महिलाओं सहित) मानव संसाधन का क्षमता निर्माण.
योजना एवं गतिविधियाँ
योजना को लागू करने के लिए निम्नलिखित गतिविधियाँ आरंभ की जा सकती है….
संवेदीकरण और जागरूकता
पशुओं के प्रबंधन में वैज्ञानिक पद्धतियों के बारे में जागरूकता और जानकारी को पैदा करने, विशेष रूप से टीकाकरण और पर्याप्त पशु स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने में ग्राम पंचायत की महत्वपूर्ण भूमिका है.
इसके लिए मवेशी/भेड़/बकरी/मुर्गी/सूअरों में महामारी, मौसन जिसमें बीमारी होती है, टीका और टीकाकरण कार्यक्रम की उपलब्धता इत्यादि के बारे में बताते हुए पोस्टर/चार्ट तैयार किए जा सकते हैं और उन्हें ग्राम पंचायत परिसर में लगाया जा सकता है. इन चार्ट को स्थानीय पशु पालन अधिकारियों की मदद से तैयार किया जा सकता है। पशुधन सुधार/पशु पालन समितिों स्वयं सहायता समूहों के साथ, समुदाय आधारित संगठनो (सीबीओ) और गैर-सरकारी संगठनो (एनजीओ) को भी जागरूकता उत्पन्न करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है .
पशुपालन विभाग के साथ समन्वयन में कार्य करना
किसी भी ग्राम पंचायत में पशु पालन आजीविकाओं पर पहल की सफलता इस पर निर्भर करती है कि ग्राम पंचायत पशु चिकित्सा विभाग के साथ कितनी अच्छी तरह समन्वय करता है. प्रत्येक ग्राम पंचायत पशु पालन विभाग की सेवाओं का उपयोग, योजनाओं तक पहुंच, जागरूकता उत्पन्न करने से लेकर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण इत्यादि तक प्रत्येक परिवार की पहुंच सुनिश्चित कर सकती है.
विभिन्न विभागों एवं संगठनों के साथ अभिसरण
ऊपर चर्चा की गई गतिविधियों के लिए ग्राम पंचायत को डेयरी सहकारी समितियों, कृषि विभाग और ब्लॉक एवं जिला पंचायतों सहित विभिन्न विभागों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी. ग्राम पंचायत को कृत्रिम गर्भाधान (एआई) की सुविधा के लिए सेवा प्रदाताओं से संपर्क स्थापित करने की भी आवश्यकता होगी. नाड़ेप गड्ढ़े कीड़ा खाद गड्ढ़े और बाड़ों के निर्माण की गतिविधियों को मनरेगा के अंतर्गत किया जा सकता है.
पशु पालन समिति का गठन और एक वार्षिक कार्य योजना का विकास
ग्राम पंचायत को स्वयं पशुपालन गतिविधियों के दैनिक कार्यान्वयन करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह ग्राम पंचायत की विभिन्न जिम्मेदारियों में से केवल एक है. इसके लिए ग्राम पंचायत को एक पशु पालन समिति के गठन, समिति द्वारा की गई गतिविधियों की एक कार्य योजना और समीक्षा एवं निगरानी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए .ग्राम पंचायत को यह देखना चाहिए कि समिति यह सुनिश्चित करती है…
- टीकाकरण और डीवर्मिग कैलेंडर का कार्यान्वयन.
- नस्ल सुधार योजना का कार्यान्वयन और पालन.
- दुग्ध सहकारी संघ के काम की समीक्षा.
- दुग्ध में हो रही मिलावट की जाँच.
- आवश्यक परिश्रम उपायों का कार्यान्वयन.
- पशु शेड में और आम जगहों पर स्वच्छता और सफाई सुनिश्चित करना.
- पशुजन्य रोगों की पहचान और उनके रोकथाम और नियंत्रण के लिए उपाय करना.
- आवारा पशुओं की समस्या का समाधान उपलब्ध कराना.
- चरागाह भूमि पर चराई और प्रबंधन के नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना.
- पूरे वर्ष और विशेष रूप से सूखे के दौरान चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना.
- नस्ल सुधार नीति के अनुसार बकरों, बैल और कृत्रिम गर्भाधान की व्यवस्था.
- आपदाओं के दौरान शवों को हटाने के लिए स्वयंसेवकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना.
- महिलाओं सहित पशु पालकों का प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण.
- जानवरों के लिए पीने के पानी के विभिन्न स्रोतों के संदूषण की रोकथाम.
- संचारी रोगों की सूचना देना और उपचार.
- पशुधन से जुड़े कोई भी अन्य कार्य/गतिविधियाँ.
वैज्ञानिक पशुपालन को प्रोत्साहित कर ग्राम पंचायत उनके क्षेत्र में परिवारों की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव ला सकती है.
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ग्राम सभा के सदस्य के रूप में आपकी भूमिका और जिम्मेदारियां
प्रत्येक ग्राम सभा सदस्य को वैज्ञानिक तौर पर पशु पालन को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी. प्रत्येक घर के सक्रिय समर्थन के बिना पशुपालन से आर्थिक बदलाव लाना संभव नहीं है.
बुनियादी सिद्धांत यह है कि पूरे ग्राम पंचायत को एक इकाई के रूप में कार्य करना है. चरागाह भूमि पर चराई, पशुओं का समय पर उपचार, टीकाकरण और स्वच्छता, मवेशियों का विपणन, डेयरी आदि से संबंधित मानदंडो को बनाए रखना तभी सुनिश्चित किया जा सकता है जब सभी परिवार इसमें अपनी सहभागिता देते हैं. जब हर कोई इन गतिविधियों में भाग लेता है तो ये आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो जाती है.
ग्राम सभा सदस्यों की जिम्मेदारियां
इसलिए ग्राम पंचायत के प्रयासों को सफल करने के लिए, हर ग्राम सभा सदस्य को…
- ग्राम पंचायत द्वारा आयोजित प्रत्येक ग्राम सभा की बैठक और अन्य बैठकों में भाग लेना.
- सामूहिक मानदंडो और निर्णय का पालन (यहाँ तक कि अगर खुली चराई पर रोक से त्याग करना पड़े).
- साझी संपत्ति पर अतिक्रमण न करें और दूसरों को अतिक्रमण न करने दें.
- साझी संपत्ति पर अतिक्रमण को रोकने और हटाने में ग्राम पंचायत की सहायता.
- खेत की मेड़, निजी चरागाह भूमि और कृषि जोत पर चारा प्रजाति के वृक्षों का रोपण करना.
- पशुओं के पीने के पानी के स्रोत को दूषित नहीं करने के लिए नियमों का पालन.
- जागरूकता उत्पन्न करने वाले कार्यक्रमों में भाग लेना.
- पर्याप्त जानकारी उपलब्ध कराने में ग्राम पंचायत और इसकी स्थायी समिति की सहायता.
- पशु बाड़े की पर्याप्त स्वच्छता और साफ़-सफाई सुनिश्चित करना.
- कार्यक्रम के अनुसार सभी पशुओं का टीकाकरण और डीवार्मिंग/ कृमिनाशक करने का कार्यक्रम चलाना.
- ग्राम पंचायत की योजना के अनुसार नस्ल सुधार कार्यक्रम में भाग लेना.
- पशुपालन और ग्राम पंचायत की स्थायी समिति को किसी भी संक्रामक रोगों के बारे में सूचित करना.
- पशुधन का समय पर उपचार करना.
- पशु शव का उचित निपटान सुनिश्चित करना.
- मिलावट सहित स्वच्छ दूध के सभी घटकों को सुनिश्चित करना.
- सभी पशुओं के लिए चारा, आहार और खनिज पदार्थ (मिनरल) के लिए पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करें.
पशुओं का बीमा कराना – ग्राम पंचायत के साथ सहयोग कर और उपरोक्त जिम्मेदारियों को सुनिश्चित करके प्रत्येक ग्राम सभा सदस्य लाभकारी पशुपालन को बढ़ावा देने में ग्राम पंचायत की सहायता कर सकती हैं.
नस्ल सुधार, प्रजनन और उत्पादकता
अनुत्पादक पशुओं की बड़ी संख्या की समस्या पशुपालन से लाभप्रदता प्रभावित करती है. हमारे देश में, पशुधन की उत्पादकता संभावित की तुलना में बहुत कम है. उत्पादकता में गिरावट की समस्या को उचित देखभाल, पोषण और उचित नस्ल सुधार के उपायों के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है. पशुओं में बांझपन, देर से यौवन, अनियमित कामोत्तेजना, मूक गर्मी, भ्रूण की जल्दी मौत, गर्भपात, गर्भाधान को दोहराना, प्रसवोत्तर कामोत्तेजना के कई जैव भौतिक कारक हो सकते है. इसके अलावा, जानवर पोषक तत्वों की कमी की वजह से बाँझ हो सकता है. जानवरों की कम उत्पादकता के, दोषपूर्ण प्रजनन अभ्यास, विभिन्न चरणों (बढ़ने, गर्भवती, दुहने, प्रसवोत्तर, शुष्क अवधि), में लापरवाही, उचित स्वास्थ्य दे खभाल की कमी (टीकाकरण में अपर्याप्त पोषण, स्वच्छ) और अनुचित प्रबंधन जैसे एक या एक से अधिक कारकों के परिणाम स्वरूप हो सकती है.
राज्य पशुधन नीति 2013
राष्ट्रीय पशुधन नीति, 2013 मवेशी और भैस की प्रजनन नीति के लिए निम्नलिखित उपायों पर केंद्रित है..
- उनके प्रसार, संरक्षण और आनुवंशिक उन्नयन के लिए पशुओं का चिन्हित स्वदेशी नस्लों के चयनात्मक प्रजनन. उनके परिभाषित प्रजनन क्षेत्रों में संकर प्रजनन की घुसपैठ से परहेज किया जाएगा.
- आदि चारा और पशु आहार तथा विपणन सुविधाओं की पर्याप्त सुविधा वाले चयनित क्षेत्रो में अवर्णित और कम उत्पादक मवेशियों का संबंधित कृषि जलवायु स्थितियों के लिए उपयुक्त उच्च उत्पादक विदेशी नस्लों के साथ संकर-प्रजनन प्रोत्साहित किया जाएगा.
- संसाधन की कमी वाले क्षेत्रों में अवर्णित और कम उत्पादक मवेशियों का परिभाषित स्वदेशी नस्लों के साथ उन्नयन और परिभाषित स्वदेशी नस्लों के प्रजनन को प्रोत्साहित किया जाएगा.
- भैसों की स्थापित देशी नस्लों का चयनात्मक प्रजनन.
- परिभाषित उच्च दूध देने वाली नस्लों के साथ प्रजनन के माध्यम से कम उत्पादन करने वाली भैंसों का उन्नयन.
- जहाँ उचित समझा जाए, गैर वर्णित भैंसों की आबादी का उन्नत स्वदेशी नस्लों के साथ संकरण किया जाएगा.
- वित्तीय, तकनीकी और संगठनात्मक सहायता उपलब्ध कराने के द्वारा उच्च आनुवंशिक क्षमता वाले प्रजनन नर पशुओं के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा.
राज्य नीति
प्रत्येक राज्य की पशुधन में सुधार के लिए नीति है. ग्राम पंचायत को राज्य की नीति प्राप्त करना चाहिए और इस पर चर्चा करने के लिए पशुपालन विभाग के किसी अधिकारी से मिलना चाहिए. हम पशुओं के विभिन्न प्रकारों के लिए महाराष्ट्र राज्य की नीति पर चर्चा करेंगे.
महाराष्ट्र राज्य की नीति, नस्ल सुधार द्वारा गायों की उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ देशी नस्लों और गुणवत्ता बैलों का संरक्षण सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करती है. दूध उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के इए, आनुवंशिक रूप से उन्नत जानवरों के अनुपात के मामले में गैर वर्णित आबादी के वर्तमान 37 प्रतिशत की (2009) के स्तर को 2017 के अंत तक 60 प्रतिशत पर, आगे 2025 तक 80 प्रतिशत करने का उद्देश्य है.
संकर नस्लों पर नियंत्रण
अनुत्पादक और गैर-वर्णित गायों और भैंसों की बड़ी संख्या एक प्रमुख समस्या है जिसका ग्राम पंचायतों को सामना करना पड़ता है. अंधाधुंध प्रजनन मवेशियों और भैंसों में कम उत्पादकता के मुख्य कारणों में से एक है. एक ओर, बहुत ही उत्पादक स्वदेशी नस्लें विलुप्त होने की समस्या का सामना कर रही हैं वही अन्य कई शुद्ध नस्ल के पशुओं को गलत तरीके से संकर किया गया है. इन सबकी वजह से औसत उत्पादकता में गिरावट आई है. इसलिए, हर ग्राम पंचायत निम्नलिखित सामान्य सिद्धांतों पर अपनी ग्राम पंचायत के लिए एक समयबद्ध प्रजनन योजना पर कार्य कर सकती है…
- वर्णित नस्लों वाली गायों और भैंसों के मामले में शुद्ध प्रजनन आवश्यक है. विदेशी गायों के लिए भी यही नियम लागू है. शुद्ध नस्ल की किसी भी गाय या भैंस का अन्य देशी या विदेशी नस्ल के साथ संकर प्रजनन नहीं कराना चाहिए.
- जिनका वर्णन प्राप्त न हो ऐसी सभी गायों में संकर प्रजनन का सुझाव दिया गया है. जहाँ सिंचित कृषि और हरी पैदावार की उपलब्धता का आश्वासन दिया जा सकता है, ऐसे क्षेत्रों में सभी अवर्णित गायों के लिए हॉल्स्टीन फ्रिसियाई (HF) के साथ संकर प्रजनन अपनाना चाहिए. जबकि, (पहाड़ी मार्ग सहित) हरे चारे की कमी और वर्षा सिंचित क्षेत्रों में सभी वर्णनातीत गायों के लिए जर्सी नस्ल के साथ संकर प्रजनन को अपनाना चाहिए.
- संकर गायों (विदेशी रक्त स्तर 50-75 फीसदी सीमा के भीतर बनाए रखा जा सकता है) का गर्भाधान संकर सांडों के वीर्य के साथ किया जा रहा है.
- भैंसों की स्थानीय वर्णित नस्लों का उपयोग कर वर्णनातीत भैंसों का उन्नयन.
- किसी भी जानवर को बिना जानवर के मालिक और चिकित्सक के उचित विवरण दर्ज करें बगैर प्रजनन नही किया जाना चाहिए.
कृत्रिम गर्भाधान (AI)
ग्रामीण स्थितियों के अंतर्गत पशुओं की कम उत्पादकता का मुख्य कारण कम आनुवंशिक क्षमता है. प्रजनन के प्रबंधन पर ध्यान देकर इस पर काबू पाना संभव है. यह कृत्रिम गर्भाधान (एआई) के माध्यम से संभव हो सकता है. इस तकनीक को हर किसान के दरवाजे पर उपलब्ध कराया जा सकता है.
कृत्रिम गर्भाधान (एआई) हमारे देश में विशेष रूप से उपयोगी है जहाँ गुणवत्ता युक्त नरों (पशुओं) की कमी नस्ल सुधार में मुख्य बाधा बनी हुई है. यह मादा पशुओं के प्रजनन मार्ग में अभिजात वर्ग के नर (पशुओं) के वीर्य को कृत्रिम रूप से प्रविष्ट कराने की तकनीक है.
डेयरी पशुओं के प्रजनन में कृत्रिम गर्भाधान तकनीक के कई फायदे हैं…..
- एआई के इस्तेमाल से (वीर्य को कई उपयोगों में प्रयोग करने के लिए विभाजित किया जा सकता है) एक ही बैल के बछड़ों की संख्या में वृद्धि करना संभव होता है.
- एआई संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने में मदद करता है.
- एआई आनुवंशिक सुधार की दर को बढाता है.
- एआई से विभिन्न आकार के पशुओं के संभोग की समस्या पर काबू पाया जा सकता है.
- एआई सेवा से पहले वीर्य के नमूने के चरित्र का निर्धारण करने का एक आसान तरीका प्रदान करता है.
- एआई से अच्छी गुणवत्ता के बैल की व्यवस्था की कठिनाई पर काबू पाया जा सकता है.
- बेहतर पशु सेवाओं को बढ़ाया जा सकता है.
- बैल के रखरखाव पर होने वाले खर्च को नहीं उठाना पड़ता.
राज्य प्रजनन नीति के बारे में जागरूकता और उसका अनुपालन
वांछित परिवर्तन लाने के लिए पशुधन रखवाले की प्रजनन के बारे में जागरूकता महत्वपूर्ण है. इस दिशा में, निम्नलिखित सुनिश्चित करने के लिए ग्राम पंचायत सदस्यों को सामूहिक रूप से काम करना होगा.
- मवेशी/भैस/भेड़/बकरी की भारतीय नस्लों को उसी नस्ल के विशिष्ट/बेहतर नर के साथ मादाओं के गर्भाधान से उन्नत किया जाना चाहिए.
- गैर-वर्णित पशुओं को बेहतर भारतीय नस्लों के नर या विदेशी नस्लों के द्वारा गर्भाधान करा कर नस्ल सुधार कराना चाहिए.
- प्रयोग की जाने वाली विदेशी नस्ल का जलवायु की परिस्थितियों और मालिक की आर्थिक क्षमता जैसे कारकों के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, होलस्टेइन को उन क्षेत्रों में प्रोत्साहित किया जा सकता है जहाँ सिंचाई की सुविधाएँ मौजूद हैं और मालिकों के पास वित्तीय ताकत है. जबकि जर्सी नस्ल वहाँ प्रोत्साहित किया जा सकता है जहाँ कठोर वातावरण में जहाँ उपलब्धता दुर्लभ है और मालिक की वित्तीय क्षमता सीमित हो.
राज्य प्रजनन नीति के आधार पर ग्राम पंचायत ग्राम की पशु पालन समिति से ग्राम पंचायत के पशुओं की नस्ल सुधार के लिए एक वार्षिक योजना विकसित करने के लिए कहेंगे. पंचायत के अध्यक्ष ने अन्य वार्ड सदस्यों के साथ ग्राम पंचायत अपने कार्यकाल के पूरा होने से पहले 60 प्रतिशत नस्ल सुधार सुनिश्चित करने का संकल्प लिया. पिछली बैठक में की गई चर्चा के अनुसार पोषण में सुधार के माध्यम से, बांझपन की समस्या को भी संबोधित किया जाएगा.
मवेशी/भैस/बकरी और भेड़ का प्रजनन कैलेंडर
प्रजनन पैमाना | गायें | भैंसे | बकरी | भेड़ | |||
देशी | विदेशी | संकर | देशी | विदेशी | |||
एक साथ पैदा हुए | 01 | 01 | 01 | 01 | 01 | 03.04 | 02 |
जन्म के समय वजन (किलो) | 20 | 28 | 24 | 32 | 22 | 1.5 | 1.5 |
पहली कामोत्तेजना के | 15 | 09 | 12 | 18 | 24 | 09 | 12 |
पहली कामोत्तेजना के | 250 | 250 | 250 | 275 | 275 | 20 | 20 |
प्रजनन के बीच अंतराल | 12 | 12 | 12 | 14 | 14 | 08 | 08 |
प्रजनन जीवनकाल | 16 | 18 | 18 | 15 | 13 | 12 | 12 |
प्रसवोत्तर कामोत्तेजना (दिन) | 60 | 60 | 60 | 90 | 90 | 30 | 30 |
प्रजनन का मौसम | पूरे कैलेंडर वर्ष | फरवरी-जुलाई | |||||
प्रजनन के अवधि | पूरे कैलेंडर वर्ष | अगस्त-सितंबर | जनवरी-जून | ||||
गर्भावस्था की अवधि (दिन) | 275 | 275 | 275 | 310 | 310 | 150 | 150 |
सफल प्रजनन में शामिल है..
- स्वस्थ बछड़े का जन्म के समय अधिकतम वजन
- सामान्य और आसान प्रसव
- प्रसवोत्तर चक्र की शीघ्र बहाली
- दूध उत्पादन का जल्दी बढना
- शून्य प्रसवोत्तर जटिलताएं और उपापचयी समस्याएं
- सकारात्मक प्रसवोत्तर ऊर्जा संतुलन
- प्रजनन के बाद शरीर के वजन का शीघ्र लाभ.
एक मिशन के रूप में नस्ल सुधार
नस्ल सुधार के उपायों के महत्व और जरूरत के बारे में सीखने के बाद, दुधिया ग्राम पंचायत ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले सभी पशुओं के 60 प्रतिशत के नस्ल सुधार का कार्य करने का संकल्प लिया. इसके लिए ग्राम पंचायत ने प्रत्येक प्रकार के पशुओं के लिए राज्य की नीति का पालन किया. ग्राम सभा ने मानदंड निर्धारित किए जिनका ग्राम पंचायत द्वारा पशुपालन विभाग के अभिसरण और समर्थन से ग्रामीणों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित किया गया.
पंचायत में पशुपालन की महत्वपूर्ण गतिविधियाँ
कृषि की तरह पशुपालन में भी विभिन्न सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवारों की एक बड़ी संख्या संलग्न है. ग्राम पंचायत में पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए, बुनियादी ढांचे को अच्छा समर्थन देने के प्रयास शुरू किए जाने चाहिए. इसके लिए एक उत्पादक और अच्छी तरह से प्रबंधित चरागाह, और पर्याप्त संदूषण मुक्त सार्वजनिक पीने के पानी की सुविधा और ऋण, पशुपालन विभाग, प्रशिक्षित संसाधन व्यक्तियों की सेवाओं और बाजार तक पहुंच शामिल है. इस दिशा में ग्राम पंचायत को एक सुनियोजित तरीके से कार्य आरंभ करने की जरूरत है. इन सभी गतिविधियों का क्रियान्वयन करते समय यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हम सामाजिक और समानता के मुद्दों को पर्याप्त रूप से संबोधित कर रहे हैं. यह समाज के सभी वर्गो और क्षेत्रों से परिवारों की भागीदारी की जरूरत है इसलिए इसमें समाज के सभी वर्गों और सभी परिवारों का भाग लेना आवश्यक है.
पशुपालन के लिए समग्र योजना
ग्राम पंचायतों को आरंभ की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों के लिए सभी हितधारकों के साथ योजना बनाने की जरूरत है. ग्राम पंचायत द्वारा लिए गए सामूहिक निर्णय और मानदंडों का पालन करते हुए चारा सुरक्षा, आनुवंशिक और नस्ल सुधार, टीकाकरण, डीवर्मिग और पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल की दिशा में प्रयास कर सबसे अच्छा परिणाम प्राप्त किया जा सकता है. समुदाय की प्रभावी सहभागिता सुनिश्चित की जानी जरूरी है.
चरागाह भूमि प्रबंधन
ग्राम पंचायतों में उपलब्ध चरागाह भूमि या साझा भूमि का पशुओं की चराई के लिए उपयोग किया जाता है. देश भर में इन आम संसाधनों पर अतिक्रमण देखा गया है. इसके अलावा, खुली चराई के लिए उपलब्ध आम भूमि को कम कर इस भूमि में से कुछ को फिर से वितरित किया गया है. ग्राम पंचायत चरागाह भूमि से अतिक्रमण हटाने और चरागाह भूमि के विकास की गतिविधियों को शुरू कर सकता है. अतिक्रमण हटाए जाने के दौरान, ग्राम पंचायत को प्रारंभिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए ऐसे किसी भी उपाय पर कार्रवाई को शुरू करने से पहले ग्राम सभा में चर्चा की जाना आवश्यक है.
रुकावटों को पार करते दुधिया ग्राम पंचायत के अनुभव
चरागाह भूमि के अतिक्रमण हटाने के प्रयासों का विरोध किया गया था. किसी ने भी विनियमित चराई नियम का पालन नहीं किया. ग्राम सभा को फिर से बुलाया गया था और पशुपालन में सुधार के लिए आवश्यक विभिन्न गतिविधियों को शुरू करने के लिए सर्वसम्मती से निर्णय लिया गया. ग्राम सभा के सदस्यों ने ग्राम पंचायत को अपने समर्थन और भागीदारी का आश्वासन दिया. यह भी निर्णय लिया गया कि प्रयास समावेशी होने चाहिए. इसी तरह यह भी निर्णय लिया गया की ग्राम पंचायत की इस पहल से सभी घरों विशेषकर महिलाओं की चिंताओं का समाधान व लाभ सुनिश्चित किया जाएगा.
ग्राम पंचायतें मनरेगा और वन विभाग के कार्यक्रमों के अंतर्गत सामाजिक वानिकी सहित वनीकरण गतिविधियों को शुरू कर सकती हैं. सभी हितधारकों को शामिल कर एक उचित चारा विकास और वितरण तंत्र विकसित किया जाना चाहिए.
जल निकायों का रखरखाव और कायाकल्प
पीने के पानी की उचित सुविधा के अभाव में जहाँ पशुओं को पीने का पानी उपलब्ध कराया जा सकता है पशु अक्सर दूषित स्त्रोतों से पानी पीते है जो आमतौर पर रुग्णता और फलस्वरूप उत्पादकता में नुकसान का कारण बनता है. ग्राम पंचायत मौजूदा जल निकायों के रखरखाव और कायाकल्प के साथ-साथ पीने के पानी (प्लेटफार्मों आदि) के नए स्त्रोतों के निर्माण के लिए कार्य कर सकती हैं. साथ ही, ग्राम पंचायत जल स्त्रोतों को दूषित होने से रोकने में ग्राम सभा के सदस्यों में कर्त्तव्यों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रयास आरंभ कर सकते हैं. खुले में शौच और जल निकायों के पास अपशिष्टों और मृत पशुओं के निपटान पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत कुछ उपाय आरंभ कर सकती है.
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प्रिय पशुप्रेमी और पशुपालक बंधुओं पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.
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किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर कृपया स्वयं सुधार लेंवें अथवा मुझे निचे दिए गये मेरे फेसबुक, टेलीग्राम अथवा व्हाट्स अप ग्रुप के लिंक के माध्यम से मुझे कमेन्ट सेक्शन मे जाकर कमेन्ट कर सकते है. ऐसे ही पशुधन, कृषि और अन्य खबरों की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर विजिट करते रहें. ताकि मै आप सब को पशुधन से जूडी बेहतर जानकारी देता रहूँ.