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पशुओं में गर्भधारण एवं गर्भ परीक्षण : Pregnancy and Pregnancy Test in Animals

पशुओं में गर्भधारण एवं गर्भ परीक्षण : Pregnancy and Pregnancy Test in Animals, गाय एवं भैंसों में यौनारम्भ प्रारंभ होने पर गाय, भैंस में गर्मी या मद के लक्षण दिखाई देने लगता है. गाय और भैंस में बार-बार मद या गर्मी के लक्षण दिखाई देने पर उनके जननेन्द्रिय में वीर्य सेंचन की आवश्यकता होती है. जब गाय, भैंस गर्मी में आती है तो उसे सांड से न मिलाया जाये अथवा उसमें कृत्रिम गर्भाधान कराके पशु को गाभिन नहीं कराया जाता है तो गाय, भैंस में समागम की क्रिया पूर्ण नहीं होने पर पशु 8 से लेकर 30 घंटों की अवधि के बाद शान्त हो जाती है. जिससे पशु में लगभग 21 दिन बाद पुनः गर्मी या मद के लक्षण दिखाई देने लगती है.

Pregnancy and Pregnancy Test in Animals
Pregnancy and Pregnancy Test in Animals

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गाय और भैंस को गर्भित कराने का सही समय

जब गाय या भैंस गर्मी में आती है तो ऋतुकाल के मध्य या समाप्ति पर ही पशु को गर्भित कराना चाहिए. गायों में ऋतुकाल का मध्य समय और समाप्ति काल 12 से 18 घंटे (गर्म होने के प्रारंभ समय से) के मध्य होता है. यह गाय को गर्भित कराने का उचित समय होता है. तथा भैंस में ऋतुकाल का मध्य समय 18 से 24 घंटे (गर्म होने के प्रारंभ समय से) के मध्य होता है. यह भैंस को गर्भित कराने का उचित समय होता है.

गाय और भैंस को गर्भित कराने की विधियाँ

  • योनी में हाथ डालकर (Hand in Vagina Method)
  • योनी स्पेक्युलम द्वारा (Vagina Spaculum Method)
  • गुदा योनी विधि (Recto-Vagina Method)

1 . योनी में हाथ डालकर या योनी हस्त विधि – यह विधि बड़े पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान के लिये किसी समय में प्रयोग में आती थी, पर अब इसका चलन निकृष्ट होने के कारण बिल्कुल बंद हो गया है.

2. योनी स्पेक्युलम विधि – इस विधि के द्वारा वेजाइनल स्पेक्युलम को लिक्विड पैराफिन अथवा किसी अन्य चिकने पदार्थ से चिकना करके एक सहारे से योनी में प्रवेष करते है और सीधा कर लेते हैं. उसके बाद पेंच की सहायता से इसके मुख को चौड़ा करते है. अब टार्च या हेड लाईट की सहायता से गर्भाशय ग्रीवा या गर्भाशय का मुख ज्ञात किया जाता है और वीर्य वाहक नली को इस यन्त्र के बीच से होकर निकालते है. अब पिचकारी से इसके माध्यम से वीर्य को अन्दर भेज दिया जाता है. इसके बाद इस यन्त्र को धीरे-धीरे बैंड करते हुए बाहर निकाल लेते है.

इस विधि के गुण/दोष

  • यह विधि बड़े पशुओं के लिये विशेष और उपयुक्त होता है.
  • यह पहली विधि की अपेक्षा कुछ अच्छी है. क्योंकि इस विधि में वीर्य उस स्थान पर आँख से देखकर पहुँचाया जा सकता है. जिससे पशु में गर्भाधान से गर्भधारण की सम्भावना शत प्रतिशत रहती है.
  • इस विधि में यदि यन्त्र की सफाई ठीक ढंग से नहीं होती है तो उस पशु के जननेंद्रिय रोग दुसरे पशु को लगने की संभावना रहती है.
  • इस यन्त्र को पहले पानी से साफ कर लेना चाहिए और फिर रुई से सुखाकर 65% एल्कोहल द्वारा पोंछना चाहिए, तत्पश्चात पुनः एब्जोरवेंट काटन (विशुद्ध रुई) से सुखा लेना चाहिए.
  • आजकल इसका भी उपयोग प्रायः बैंड सा हो गया है, क्योंकि इसमें वेजाइना के अन्दर यन्त्र से चोट आदि लगने तथा जननेन्द्रिय रोगों की सम्भावना अधिक रहती है.
  • इस यन्त्र का उपयोग अब भी जननेन्द्रिय विकृतियों की निरीक्षण स्टेरीलिटी केसिस आदि में टेम्पोनिंग आदि में विधिवत होता है.

गुदा योनी विधि – गाय,भैंस को गर्भित कराने का यह ढंग सबसे उत्तम, नया और अधिक प्रचलित है. इस विधि के अंतर्गत दोनों हाथों को साबुन से अच्छी प्रकार से धोकर, बाएं हाथ को साबुन के झाग अथवा लिक्विड पैराफिन से चिकना करके चरों अंगुलियाँ एक साथ एवं अंगूठा उनके बीच में रखकर, मादा के मलाशय में धीरे-धीरे प्रविष्ट करते हैं. हाथ पर रबर (लेटेक्स) के दस्ताने पहनना अधिक अच्छा रहता है. अब मलाशय का सारा गोबर निकालकर हाथ को अन्दर व नीचे की ओर बढ़ाकर, अँगुलियों से टटोलकर, गर्भाशय ग्रीवा को हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे की सहायता से इस प्रकार पकड़ते हैं कि मध्यमा गर्भाशय ग्रीवा की बायीं ओर, अंगूठा दायीं ओर तथा तर्जनी गर्भाशय श्रृंगों के बीच में रहे. अब दाहिने हाथ से जीवाणु रहित वीर्य सेंचन नलिका (AI गन) को धीरे-धीरे अन्दर प्रविष्ट करते हैं. अब यह नली अन्दर पहुंचकर गर्भाशय ग्रीवा के मुख से टकराती है, तो धीरे से बाएं हाथ में पकडे हुए गर्भाशय ग्रीवा को इधर-उधर, ऊपर-नीचे, थोड़ा सा हटाकर, नली का सिरा इसके मुख में प्रवेश करके लगभग 2-2.5 सेंटीमीटर तक अन्दर फोल्ड को पार करते हुए ले जाते हैं. अब वीर्य वाहक नली (AI गन) को गर्भाशय ग्रीवा का फोल्ड पकड़ लेती है और अब AI गन को दाहिने हाथ से छोड़ देने पर भी बाहर नहीं निकलती है और अटकी हुई सी जान पड़ती है. यदि इस समय बाएं हाथ में पकड़ी हुई गर्भाशय को थोड़ा हिलाया जाये, तो उसमें फंसी हुई वीर्य वाहक नली (AI गन) भी उसी के अनुसार चलती हुई ज्ञात होती है. यही वीर्य का सेंचन करने का उचित समय होता है. अतः छोटी सीरिंज और स्वच्छ जीवाणु रहित सीरिंज(पिचकारी) या (AI गन) में सीमेन स्ट्रा लेकर वीर्य वाहक नली के पिस्टन को दबाकर वीर्य का सेंचन कर देते हैं. ऐसा करने के बाद AI गन के पिस्टन को 3-4 बार खली पम्प कर देते हैं, जिससे सम्पूर्ण वीर्य का गर्भाशय ग्रीवा में सेंचन हो जाता है. अब दाहिने हाथ से धीरे-धीरे वीर्य वाहक नली (AI गन) को बाहर खींचकर बायाँ हाथ भी मलाशय से बाहर निकल लेते हैं.

नोट – उपरोक्त बताया गया तीनों विधियों में से अंतिम विधि ( गुदा योनी विधि) वैज्ञानिक और विश्वसनीय है. यही विधि सर्वश्रेष्ठ है तथा आजकल प्रायः सभी कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रों, उपकेन्द्रों पर यही विधि प्रयुक्त हो रही है.

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