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पहाड़ी क्षेत्रों में बकरीपालन से आजीविका : Livelihood from Goat Rearing in Hilly Areas

पहाड़ी क्षेत्रों में बकरीपालन से आजीविका : Livelihood from Goat Rearing in Hilly Areas, भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि और वनोपज के साथ-साथ बकरी पालन लोंगो के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन है. पहाड़ी क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों के लिए बकरीपालन का व्यवसाय की शुरुवात करने में बड़ी आसानी होती है. क्योकिं यहाँ पर विस्तृत जंगल होने के कारण बकरियों के लिए अनेक प्रकार के हरा चारा, पत्ते और विभिन्न प्रकार के पौधों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता पाई जाती है. बकरीपालन को कृषि और वनोपज के साथ-साथ किया जा सकता है.

Livelihood from Goat Rearing in Hilly Areas
Livelihood from Goat Rearing in Hilly Areas

पहाड़ी क्षेत्रों में बकरीपालन

पहाड़ी क्षेत्रों में बकरी पालन बहुतायत में देखने में मिलता है. पहाड़ो में आच्छादित पहाड़िया समतल वैली, विभिन्न प्रकार का घास झाड़ियाँ और वृक्ष बकरी पालन का समर्थन करते है. खास  तौर पर पहाड़ो में देखा गया है छोटे और मध्यम आकार की बकरिया पायी जाती है जो पहाड़ के लिए सबसे उपयुक्त है.

बकरी पालन पहाड़ो में एक अच्छा आजीविका का साधन है क्योकि इनमें पीढी अन्तराल छोटा होता है उनको अधिक दाना देने कि भी आवश्यकता नहीं होती है और पहाड़ो में देखा गया है और पहाड़ो में विभिन्न प्रकार की पोषक घास और झाड़िया उनकी मांस वृद्धि में काफी मदद करती है. पहाड़ो में ठंडा मौसम होने की वजह से मांस और मांस से बने अलग अलग तरह के व्यंजन उन लोगो के खाने का प्रमुख भोजन है. इस वजह से किसानो को स्थानीय बाजार मिल जाता है. साथ ही साथ  पहाड़ो में पर्यटन हेतु पर्यटक लोग भी आते है. पर्यटक लोग स्थानीय व्यंजनों के प्रति काफी रूचि दिखाते है जिससे मांस उत्पादक बकरी पालन को और अधिक बढावा मिलता है. पहाड़ी क्षेत्रों में और पशुओ का घनत्व कम होने से और एकांत सुदूर क्षेत्र होने से और पर्यावरण प्रदूषण कम होने की वजह से बकरियों में प्रायः कम बीमारियाँ पाई जाती है.

बकरियों स्थानीय आवास – पहाड़ी क्षेत्रों में  बकरियों को आदमी  के आवास  के पास ही रखते  हैं, दिन  में चराते समय एक  आदमी या औरत उनके साथ रहता हैं या इतना पास चराते हैं की हमेशा बकरी पालक की नजर में रहे हैं. पहाड़ी क्षेत्रो में विभिन्न प्रकार के बकरियों के घर देखने को मिलें हैं. वो छायादार होते हैं खुले में कोई नहीं रखता हैं. वो अपने घर के ही कुछ हिस्सों में बकरियों को रखते हैं या उनके लिए एक छोटा आवास बना देते हैं. ज्यादार समय वो लोग रोड के साथ लगे चरागाह में ही चराते  हैं या घाटी में चराते हैं. बारिश के समय में पेड़ की टहनियों को काट कर खिलाते हैं.

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बकरी में प्रमुख रोगों की रोग थाम

एंटेरोटॉक्सीमया – यह बकरी व भेड़ में पाया जाने वाला मुख्य जीवाणु जनित रोग है. इसके रोगाणु मृदा एवं पशु की ग्रास नली में अपनी प्राकृतिक अवस्था में पाये जाते हैं. इस बीमारी की चपेट में आए पशु की मृत्यु प्रायः चरते-चरते मौके पर ही अथवा 36 घन्टों के दौरान हो जाती है. इस बीमारी के प्रारम्भिक लक्षणः खाना-पीना छोड़ देना, चक्कर आना तथा खूनी दस्त करना हैं. पशु चारे में परिवर्तन या अत्यधिक मात्रा में  भोजन ग्रहण करना इस बीमारी को बढने में सहायता  प्रदान करते हैं. इस बीमारी के निम्न उपचार के उपरांत पशु एक सप्ताह में ठीक हो जाता है. पशु के प्रभावित होने पर लगभग आधे कप पानी में लाल दवा के 1 या 2 दाने घोलकर पिला दें. गर्भवती बकरी व भेड़ (गर्भधारण का अन्तिम महीना) तथा 3 महीने से ऊपर के बच्चों का टीका करण करके इस बीमारी से बचा जा सकता है.

निमोनिया – भेड़ एवं बकरियां शुष्क क्षेत्रों में रहना पसंद करते हैं और नमी व ठंड के प्रति संवेदनशील होते हैं. ठंड व नमी वाले स्थानों पर निमोनिया बीमारी से ग्रसित होकर ये पशु मर जाते हैं. यह रोग वर्षा से भीगे पशओु में मुख्यतः देखा जा सकता है. इस बीमारी के लक्षणों में कठिनाई से सांस लेना, खाँसी, मुंह व नाक से स्त्राव, खाना पसंद न करना आदि प्रमुख हैं. तारपीन के तेल की भाप देने से पशु का आराम मिलता है. पशुपालक को चाहिए कि वे इन पशुओं का नमी व ठंड से बचाएं.

चेचक – यह एक विषाणु जनित रोग है जिसमें  पशु के मुँह, नाक, थन पर तथा पिछली टागों के मध्य छाले बन जाते हैं. इससे पशु को बहुत खुजली होती है. यह छाले पकने के बाद झड़ जाते हैं तथा उनके निशान बन जाते हैं. लेकिन इस रोग से ग्रसित पशु की मृत्यु बहुत ही कम होती है. सही समय पर बकरियों में चेचक (Goat Pox) का टीकाकरण ही इसका एक सफल बचाव है.

बाह्य परजीवी – भेड़ों व बकरियों पर अधिक मात्रा में ऊन व बाल होने के कारण इनमें बाहय परजीवियों का आक्रमण अधिक संख्या में होता है. जो कि बरसात के मौसम में अत्यधिक हो जाता है. ये परजीवी पशु का रक्त चूसते हैं, खुजली करते हैं तथा कई प्रकार की बीमारियाँ फैलाते हैं. इसी वजह से पशु कमजोर हो जाता है, वृद्धि रूक जाती है तथा कभी-कभी पशु मर भी सकता है. इन परजीवियों के आक्रमण से बचाव के लिए पशुओं की डिपिंग (डेल्टामेथरीन/सायपरमेथरीन का घोल-1 मिली. प्रति ली. पानी के अनुपात में मिलाकर स्नान) अति आवश्यक है. इसी समय बाड़े के अन्दर भी कीटनाशक घोल का छिड़काव करना बहुत जरूरी है. पशु पालक पशु के शरीर पर कपूर, तम्बाकू व खेर का लेप लगाकर उसे बाहय परजीवियों से दूर रख सकते हैं.

अन्तःपरजीवी – यह परजीवी इन पशुओं में गम्भीर समस्या पैदा करते हैं. ये इनका रक्त चूसते हैं तथा खनिज लवण व विटामिन की कमी पैदा करते हैं. ऐसा होने से पशु कमजोर हो जाता है, वृद्धि रूक जाती है, गुहा पतली हो जाती है एवं उसमें से दस्त के साथ बदबू आती है. इन परजीवियों से बचाव के लिए पशुओं को समय-समय पर पशु चिकित्सक की देख-रेख में कृमिनाशक (एल्बेन्डाजोल/फेनबेन्डाजोल आदि) घोल देना चाहिए. लगभग 250 ग्राम आंक के फूलों को 500 मि.ली. पानी में उबालकर पिलाने से पेट के कीडे़ बाहर आ जाते हैं.

बकरी व भेड़ को बीमारियों से दूर रखने के उपाय

  • पशु पालक को स्वस्थ बकरी व भेड़ ही खरीदनी चाहिए तथा यह भी सुनिश्चित करें कि वहाँ पशु को निरंतर आवश्यक टीके लगते रहे है या नही.
  • अन्य फार्म से अपने फार्म पर लाये पशु को लगभग एक महीने तक उसको मुख्य समूह में न मिलाएं तथा उसको निगरानी में रखें.
  • फार्म पर पशुओं का मल-मूत्र जमा न होनें दें तथा उसका तुरंत निस्तारण करें.
  • फार्म के फर्श, खाने व पीने का स्थान व अन्य सामग्री की सफाई रोजाना करें तथा उचित जीवाणुनाशक घोल का प्रयोग नियमपूर्वक करें.
  • पशु के बीमार होने पर उसको तुरंत समूह से अलग करें एवम् उसका उपचार करवाएं.
  • पशुओं के लिए साफ-सुथरे चारे व पानी की व्यवस्था सुनिश्चित करें.
  • पशुओं का नमी व वर्षा से बचाव करें.
  • पशुओं का उचित समय पर निम्नलिखित सारणी अनुसार टीकाकरण अवश्य करवाएं.

कृमी नाशक दवाई – साल में 2-3 कृमिनाशक दवाईया खिलाना चाहिए जो उनकी शारीरिक वृद्धि में मदद् करता है.

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प्रिय पशुप्रेमी और पशुपालक बंधुओं पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

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