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बकरी पालन और उनका टीकाकरण : Goat Rearing and their Vaccination

बकरी पालन और उनका टीकाकरण : Goat Rearing and their Vaccination, गरीबों की गाय कही जाने वाली बकरियों और भेड़ों का पालन गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करता है. भूमिहीन और सीमांत परिवारों के लिए बकरियों की देखभाल आसान है इसलिए ऐसे परिवार गायों की बजाय बकरियों को पालना पसंद करते है. बकरी पालन में प्रारंभिक निवेश भी कम लगता है. कुछ परिवारों द्वारा निम्नलिखित कारणों से डेयरी पशुओं की तुलना में बकरियों को ज्यादा तरजीह दी जाती है….

Goat Rearing and their Vaccination
Goat Rearing and their Vaccination

बकरी पालन के कारण

  • कम पूंजी की आवश्यकता होती है.
  • रखरखाव पर कम लागत आती है.
  • महिलाओं, वृद्ध व्यक्तियों और यहाँ तक कि बच्चों के द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है.
  • अधिक लचीला.
  • फसल के अवशेष पर अच्छी तरह से बढ़ सकते हैं (हरे चारे की आवश्यकता नहीं होती है).
  • आसानी से बेचा जा सकता है.
  • निवेश के लिए कम जोखिम.

पशुपालन/पशुधन सुधार समिति बकरी पालन के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूकता का निर्माण करने के लिए उपाय शुरू कर सकती हैं. इससे उन्हें घाटा कम करने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी. अब हम देखते हैं कि बकरी पालन को और अधिक लाभदायक कैसे बनाया जा सकता है.

प्रजनन के लिए बकरे का चुनाव

बकरी पालन को और अधिक लाभदायक बनाने का एक महत्वपूर्ण पहलू है प्रजनन के लिए उचित बकरे का चयन. प्रजनन के लिये बकरे का चयन करते समय, निम्नलिखित को सुनिश्चित करना जरूरी है…

  • बकरा जुड़वां या तीन (तिडवा) बच्चों में से एक होना चाहिए.
  • बकरा उचित वजन का स्वस्थ और सक्रिय होना चाहिए.
  • 25 से 30 बकरियों के बीच एक बकरा होना चाहिए.
  • बकरे को पूरे दिन और रात बकरियों के साथ नहीं रखा जाना चाहिए.
  • प्रजनन के बकरे को हर 2 से 3 वर्ष पर बदल देना चाहिए.
  • प्रजनन के लिए एक अस्वस्थ बकरे का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
  • बकरे को खनिज मिश्रण और खनिजों के साथ-साथ न्यूनतम 450-500 ग्राम अच्छी गुणवत्ता का सांद्र खिलाया जाना चाहिए.
  • अगर जुड़वां या तीन बच्चों का प्रतिशत कम होता है तो प्रजनन के लिये उपयोग हो रहे बकरे को बदला जाना चाहिए.

बकरियों का चयन

Balanced Diet for Goat
Balanced Diet for Goat

बकरियों का चयन भी समान रूप से महत्वपूर्ण है. चयन करता को निम्नलिखित बातों पर विचार करने की आवश्यकता है….

  • केवल उन बकरियों का चयन करना चाहिए जो अधिक दूध देती हों, नियमित प्रजनन करती हों और जिनमें जुड़वां/तीन मेमनों को जन्म देने की क्षमता हो.
  • बकरियों का चेहरा पतला होना चाहिए, आँखें, स्वच्छ और चमकदार, कान और सींग नस्ल के अनुसार होने चाहिए.
  • गर्दन पर कम वसा होनी चाहिए. गर्दन पर वसा वाली बकरियों को अच्छा दूध देने वाली नहीं माना जाता है. कंधे अच्छी तरह से जुड़े हुए हों और पीठ सीधी होनी चाहिए.
  • चौड़ी छाती उचित रक्त परिसंचरण और दूध उत्पादन का प्रतीक है.
  • सामने के पैर कंधे के साथ सीधी रेखा में होने चाहिए और ऊँचाई समान होनी चाहिए. खुरों का विकास बराबर होना चाहिए.
  • पेट सीने से श्रोणि तक चौड़ा होना चाहिए. श्रोणि छाती के स्तर से एक स्तर ऊँची होनी चाहिए.
  • त्वचा का रंग उज्ज्वल औ नस्ल के समान सच्चा होना चाहिए. त्वचा लोचदार और लचीली होनी चाहिए.
  • थन मुलायम और बिना बाल के होने चाहिए. बराबर आकार और मध्यम लंबाई के तथा चूची के साथ पिछले पैरों के बीच में अच्छी तरह से लटके होने चाहिए.
  • अगर बकरी पालन मांस के उत्पादन के लिए है, तो चयनित नरो/मादाओं को औसत की तुलना में भारी वजन का होना चाहिए.
  • जुड़वां/तीन मेमनों को जन्म देने वाली बकरियों का चुन कर और ध्यान से प्रजनन किया जाना चाहिए.

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संतुलित आहार

संतुलित आहार के माध्यम से बकरियों की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है. इन पर विचार करना महत्वपूर्ण है…

  • हरे और सांद्र के साथ मिश्रित काट कर सुखाया गया चारा/घास संतुलित आहार प्रदान करता है.
  • वयस्क बकरियों को प्रति दिन 4 से 6 किग्रा हरे और 1 किलो सूखे चारे की जरूरत होती है.
  • सभी आवश्यक खनिजों और तत्वों के साथ सांद्र मिश्रण प्रति दिन 200-250 ग्राम की दर से दिया जाना चाहिए. गर्भवती बकरियों और प्रजनन बकरों को प्रति दिन 200 ग्राम की एक अतिरिक्त मात्रा दी जानी चाहिए.
  • भ्रूण के बेहतर विकास के लिए गर्भवती बकरियों को डाईकौट (द्विबीजपत्री) हरा चारा दिया जाना चाहिए.
  • छोटे मेमनों को प्रति दिन 50 से 100 ग्राम तक सांद्र देना चाहिए जिसे चार महीनों के बाद 200 ग्राम तक बढ़ाया जाना चाहिए.
  • कमी की अवधि के दौरान बबूल के पत्ते और फली बकरियों के लिए चारे का अच्छा स्रोत हैं.

बकरियों के स्वास्थ्य की देखभाल

बकरी अन्य जानवरों से अधिक रोग प्रतिरोधी हैं. समय से और आवधिक टीकाकरण और डीवर्मिग/कृमिनाशक करना उन्हें संक्रामक रोगों और कृमि संक्रमण से बचाता है.

मेमनों में मृत्यु की रोकथाम

मेमनों की मृत्यु दर बकरियों में एक प्रमुख समस्या है. अधिकांश मौतें जन्म के पहले महीने में होती हैं. सर्दी और बरसात के मौसम में मृत्यु दर अधिक रहती है. गर्भावस्था के दौरान बकरियों के लिए अनुचित पोषण, कमजोर मेमनों का जन्म, देरी से कोलोस्ट्रम पिलाना, संक्रमित और मैले परिसर और विषम मौसम (गर्मी, बारिश या ठंड) में बाहर निकालना मेमनों की मृत्यु के कारण हैं…

  • उन्नत गर्भावस्था में बकरियों को (उन्हें हर समय चारा उपलब्ध होना चाहिए) उस को हर समय सूखा चारा और हरी पत्तियाँ, 200-300 ग्राम सांद्र मिश्रण और काफी मात्रा में पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध होना चाहिए. उन्हें दूसरी बकरियों से अलग, एक स्वच्छ वातावरण में रखा जाना चाहिए.
  • बाड़े और आहार संक्रमित हो सकते हैं, इसलिए दूषित चारा और मौजूद मिट्टी प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए. मिट्टी में चूना मिलाया जाना चाहिए. बाड़े में नादों और चरनियों को साफ़ किया जाना चाहिए. दीवारों पर सफेदी की जानी चाहिए.
  • मेमने को जन्म देने के तुरन्त बाद, बकरियों के पिछले भाग को पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से साफ़ किया जाना चाहिए.
  • नवजात मेमने को सूखे कपड़े से साफ़ किया जाना चाहिए. गर्भनाल को काटना चाहिए और आयोडीन टिंचर का उपयोग किया जाना चाहिए.
  • मेमने को उसके जन्म के बाद 10-15 मिनट के भीतर कोलोस्ट्रम चूसने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यह तुरन्त प्रतिरक्षा निर्माण करने में मदद करता है.
  • बच्चा 2-3 दिनों के अपनी माँ के साथ रखा जा सकता है और उसके बाद मेमनों के खांचे में रखा जा सकता है. अगले तीन महीनों के लिए मेमने को एक दिन में 2 से 3 बार दूध पिलाने की अनुमति दी जानी चाहिए.
  • मेमने का बिस्तर गर्म होना चाहिए. इसे सूखी घास से ढका जा सकता है.
  • तीव्र नमी और ठंड से रक्षा की जानी चाहिए क्योंकि मेमने जीवन के पहले दो या तीन सप्ताह के दौरान निमोनिया और आंत्रशोथ के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं.
  • तीन सप्ताह के भीतर मेमनों में रूमेण (पेट के उस हिस्से में जहाँ आधा पचा खाना संग्रहित किया जाता है) का विकास शुरू होता है और अगले तीन महीनों के भीतर पूरा हो जाता है. इसलिए उम्र के तीन सप्ताह बाद हरा चारा प्रदान किया जाये.
  • मेमनों को जन्म के 15वें दिन से छोटी मात्रा में मिश्रित सांद्र (लगभग 50 ग्राम) दिया जाना चाहिए. मात्रा में धीरे-धीरे वृद्धि की जानी चाहिए और 4 महीने के बाद यह खनिज मिश्रण के साथ 250 ग्राम होना चाहिए.
  • मेमनों को तीसरे महीने में इंट्रोटंक्सीमिया टीका और चार माह की उम्र में पेटिस डेस पेस्टिस रुमिनांटा (पीपीआर) का टीका लगाया जाना चाहिए.
  • मेमने कम उम्र से कृमि संक्रमण के लिए अति-संवेदनशील होते हैं. डीवर्मिग की पहली खुराक एक महीने की उम्र में दी जाती है और उसके बाद हर दो महीने में उन्हें बेचने तक इसे दोहराया जाना चाहिए.

उपरोक्त बिन्दुओं के अनुसार पालन करने पर 10 महीने के भीतर मेमने 25 से 30 किग्रा का वजन पा लेते हैं और बिक्री के योग्य हो जाते हैं .

बकरियों के लिए सिफारिश की गई टीकाकरण अनुसूची इस प्रकार है..

क्र.सं.रोगखुराकमाहदूसरी खुराकटिप्पणी
1एच.एस.2.5 मिली एस/सीमई-जूनछ: महीने बाद
2बी.क्यू2.5 मिली एस/ सीजुलाई1 वर्ष बाद
3बिसहरिया (एंथ्रेक्स)0.5 मिली एस/सी1 वर्ष बाद
4इनटेरोटॉक्सेमिया2.5 मिली 14 दिन के बाद 2.5 मिली एस/सीमई1 वर्ष बादहर साल दिया जाना चाहिए
5प्लीयरोनिमोनिया2 मिली एस/सीजनवर1 वर्ष बाद
6बकरी का चेचक (गोट पॉक्स)0.5 मिली एस/ सी कान के पीछेअप्रैल1 वर्ष बादस्थानिक क्षेत्र में लगातार तीन साल के लिए दिया जा सकता है
7पी.पी.आर1 मिली एस /सी3 वर्ष बादपहली डोस 4 माह की उम्र में दी जाती है

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