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मादा पशुओं के जननेन्द्रिय रोग : Genital Organs Disease of Female Animals

मादा पशुओं के जननेन्द्रिय रोग : Genital Organs Disease of Female Animals, मादा पशुओं में जननेन्द्रिय रोगों के संक्रमण से पशुपालक और बड़े बड़े डेयरी फार्म के मालिकों को बहुत ही आर्थिक नुकसान का सामना कर पड़ सकता है. क्योंकि जननेन्द्रिय रोगों के प्रभाव से पशु के समय पर गाभिन नहीं होना, रोग के निदान पर अधिक व्यय, पशु के बाँझपन तथा पशु के दूध उत्पादन पर भी असर पड़ सकता है. मादा पशुओं में यह बीमारी अंडाशय सिस्ट, साल्पिनजायटिस, बार-बार कृत्रिम गर्भाधान कराने पर भी पशु के बाँझपन जैसी समस्या के रूप में लक्षण दिखाई देता है. मादा पशुओं में उपर्युक्त जननेन्द्रिय रोग का पता चलने पर सही समय में यथा शीघ्र उपचार कराना अति आवश्यक होता है.

Genital Organs Disease of Female Animals
Genital Organs Disease of Female Animals

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मादा पशुओं के जननेन्द्रिय रोग

1 . अंडाशय सिस्ट (Ovarian Cyst) – यह गायों में होने वाला सामान्य रोग है. अन्य पशु तथा घोड़ियों में यह ग्राफियन फौलीकिल्स (Graffian Follicles) के फटने में असफल हो जाने पर वह सिस्ट सिस्ट का रूप हो जाता है. सिस्ट का आकार भिन्न-भिन्न होता है और एक से अधिक संख्या में भी हो सकता है.

लक्षण –

  • गायों और घोड़ियों में इस विकार के अंतर्गत रति क्रिया करने की उत्कृष्ट इच्छा हो सकती है.
  • पशु वास्तविक रूप से गर्मी या मद में नहीं आती पर गर्म होने के लक्षण अवश्य दिखाती है.
  • इसका कारण मादा पशु के ओभरी (Overy) में फोड़े (सिस्ट) बन जाने से बार बार इस्ट्रोजन हार्मोन्स सक्रीय हो जाता है जिससे मादा पशु में बार-बार गर्मी के लक्षण दिखाई देता है.

उपचार – अंडाशय सिस्ट रोग का निम्न प्रकार से चिकित्सा किया जा सकता है –

  • मादा पशु के गुदा द्वार (Rectum) में हाथ डालकर अंगुली से दबाकर सिस्ट को तोड़ दिया जाता है.
  • अथवा अधिक कड़ा होने पर ट्रोकार और कैनुला से तोड़ा जा सकता है.
  • अथवा लुगाल्स सोलुसन को गर्भाशय ग्रीवा में पेंट कर दिया जाता है. जिससे सिस्ट अपने आप टूट जाता है.

2. सल्पिनजायटिस (Salpingitis) – जब फैलोपियन नली में सुजन आ जाती है तब उसे सल्पिनजायटिस कहते है. यह गायों में अधिकतर होती है. यह तीव्र और जीर्ण दो प्रकार की होती है.

कारण –

  • गर्भाशय में किसी भी प्रकार के संक्रमण होने पर.
  • पायोजेनिक आर्गेनिज्म (पुय उत्पादक जीवाणुओं के द्वारा.
  • ट्यूबरकुलस जीवाणुओं से – इनसे ‘ट्यूबरकुलस सल्पिनजायटिस‘ हो जाती है.

लक्षण – इसके कोई प्रमुख लक्षण नहीं होते हैं. इसमें पशु (विशेषकर गायें) बाँझ हो जाती है.

उपचार –

  • इसकी एकमात्र चिकित्सा एंटीबायोटिक दवा है.
  • यदि मवाद या पीव बन जाये तब इसकी शल्य चिकित्सा ही दवा है.

3. बाँझपन (Sterility) – इस बीमारी का अन्य नाम बंध्यता, अनुर्वरता, विसंक्रमणता, इनफर्टिलिटी (Infertility) आदि नाम से जाना जाता है. इस बीमारी से मादा पशुओं में बच्चा पैदा नहीं होना बाँझपन कहलाता है. बच्चा पैदा नहीं होना नर और मादा दोनों के संयोग पर आधारित है. चुकि नर एवं मादा दोनों में प्रजननीय अंग होते हैं, जब इन अंगों में तथा इनके कार्यों में कोई बाधा या कोई परिवर्तन आ जाता है तब विधान में रूकावट में रूकावट आने से बच्चा पैदा नहीं होता है, जिससे पशु बाँझ कहलाने लगता है.

वास्तव में स्थायी रूप से नर एवं मादा में प्रजनन शक्ति का हास होना ही बाँझपन कहलाता है.

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प्रिय पशुप्रेमी और पशुपालक बंधुओं पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

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