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एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षियों का बसेरा : Asian Open Bill Strock Birds Home in Gariyaband

एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षियों का बसेरा : Asian Open Bill Strock Birds Home in Gariyaband, छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में एक ऐसा गाँव है, जहाँ हजारों की संख्या में एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षियों का झुण्ड मानसून का पैगाम लेकर पहुँचता है. गाँव के लोग उन्हें अपना परिवार का हिस्सा मानते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि ये पक्षीयों का झुण्ड मानसून का सन्देश अपने साथ लेकर आते हैं.

Asian Open Bill Strock Birds Home in Gariyaband
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आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले से एक खुबसुरत तस्वीर सामने आई है. गरियाबंद, फिंगेश्वर के लचकेरा गाँव में मानसून का पैगाम लेकर लाखों की संख्या में एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षियां कई देशों को पार करके प्रतिवर्ष पहुँच जाते है. प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी हजारों की संख्या में एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षी पहुँच चुके हैं. लचकेरा गाँव के चारों तरफ प्रत्येक पेड़ पर एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षियों का बसेरा है. आसमान में उड़ते परिंदे सन्देश दे रहे हैं कि अब मानसून आ गया है. बस कुछ ही दिनों में अच्छी बारिश होने की सम्भावना है.

साइबेरियन पक्षी ग्राम लचकेरा में मानसून लगने से पहले पहुँच जाते जाते हैं. इनके गाँव में पहुँचते ही ग्रामीण समझ जाते हैं कि मानसून ने दस्तक दे दी है. ग्रामीणों का कहना है कि मानसून आने तक यहाँ लाखों की तादात में ये पक्षी पीपल, आम, कहुआ, इमली इत्यादि पेड़ों में अपना बसेरा या डेरा डाल देते हैं. गाँव के चारों तरफ आपको पक्षी ही पक्षी नजर आयेंगे. यह पक्षी लोगों के घरों से लगे पेड़ों पर अपना घर बनाना पसंद करते है. इन पक्षियों को ग्रामीणों से कोई खतरा महसूस नहीं होता है.

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इन पक्षियों को ग्रामीण अपने परिवार का सदस्य मानते हैं. ग्रामीणों ने इन पक्षियों की सुरक्षा के लिए गाँव में नियम कानून बनाये है. इनके नियमानुसार यदि कोई इन्हें नुकसान पहुंचाता है to 10 हजार रूपये का आर्थिक दण्ड या जुर्माना देना पड़ेगा. वही इन पक्षियों का शिकार करते या नुकसान पहुंचाते देखकर बताने वाले को 1 हजार का इनाम दिया जायेगा. हालाकि शिकार पर प्रतिबंध के बाद कई दशकों से अर्थदंड की नौबत नहीं आई है.

गाँव के सरपंच उदय राम निषाद ने बताया कि जहाँ एक ओर उन्हें नुकसान पहुँचाने पर अर्थदण्ड रखे हैं वही इन पक्षियों को किसी भी तरह के रेडिएशन से नुकसान न पहुंचे इसके लिए ग्रामीण गाँव में मोबाइल टावर तक लगाने नहीं देते. ग्रामीण बताते हैं कि यह पक्षी ख़ास तौर पर गाँव में प्रजनन के लिए आते हैं. घोसला बनाने के बाद करीब 1 से 2 महीने के भीतर ये अंडे देते हैं.

इन पक्षियों के आते ही ग्रामीण मानसून का दस्तक मानते हैं और खेती किसानी का कार्य शुरू कर देते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि यह पक्षी कृषि कार्य में काफी फ़ायदा पहुंचाते है. ये पक्षी खेत में कीड़ों को खा जाते हैं जिससे फसलों में बीमारी और कीड़े नहीं लगते हैं. इनके बिट से भी फसलों के लिए काफी फायदा होता है, जो की कृषि के लिए सर्वोत्तम खाद का काम करता है.

लचकेरा गाँव और आसपास गाँव का क्षेत्र इन विदेशी पक्षियों के लिए अनुकूल है, जो कि खास तौर पर प्रजनन के लिए यहाँ आते है. इन्हें इस क्षेत्र में खाने के लिए काफ़ी मात्रा में भोजन भी मिल जाता है. एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षियों का खास आहार मछली, घोंघा, केकड़ा और कीट है, जो कि इस सीजन में इन्हें पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है. ये प्रवासी पक्षी दीवाली के समय वापस अपने देश के लिए उड़ जाते हैं. बताया जाता है कि यह पक्षी बांग्लादेश, कम्बोडिया, चीन, भारत, लाओस, मलेशिया, म्यामार, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम में पाये जाते हैं.

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भारत में वन्यजीवों की रक्षा के उपाय

पर्यावरण और वन मंत्रालय ने देश में वन्य जीवन को बचाने और संरक्षण के लिए कई उपाय किए हैं. ये उपाय निम्नानुसार हैं……

  1. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के प्रावधानों के तहत वन्यजीवों के शिकार के खिलाफ कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है जिसमें उनके शोषण और वाणिज्यिक शोषण शामिल हैं. सुरक्षा और खतरे की स्थिति के अनुसार जंगली जानवरों को कानून के विभिन्न कार्यक्रमों में रखा गया है. मोरों को कानून के अनुसूची 1 में रखा जाता है जो उन्हें कानून के तहत उच्चतम संरक्षण देता है.
  2. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 अपने प्रावधानों के उल्लंघन से संबंधित अपराधों के लिए दंड के प्रावधान प्रदान करता है. जंगली जानवरों के खिलाफ अपराध करने के लिए इस्तेमाल किए गए किसी उपकरण, वाहन या हथियार को जब्त करने हेतु एक प्रावधान इस कानून में भी है.
  3. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के प्रावधानों के तहत संरक्षित क्षेत्र तैयार किए गए हैं जिनमें देश भर में राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों, महत्वपूर्ण वन्यजीवों के आवास शामिल हैं ताकि वन्यजीव और उनके निवास सुरक्षित हो सकें.
  4. वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो को वन्यजीव, जंगली जानवरों और उनके उत्पादों के अवैध व्यापार के नियंत्रण के लिए गठित किया गया है.
  5. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत वन्य जीवन के खिलाफ अपराध करने वाले लोगों को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया है.
  6. राज्य / केंद्र शासित सरकारों से अनुरोध किया गया है कि वे संरक्षित क्षेत्रों में और आसपास के इलाकों में गश्ती बढ़ाएं.
  7. अधिकारियों द्वारा राज्य के जंगल और वन्यजीव विभागों पर बारीकी से निगरानी की जा रही है.

आज जिस तरह से मानवीय दोष के कारण पर्यावरण ख़राब हो रहा है उसके लिए जंगलों को सख्ती से बचाने और बनाए रखने की बहुत बड़ी जरूरत है. केवल ऐसा करने से हम सभी जीवों के भविष्य को बचा सकते हैं.

दुनियाभर के वैज्ञानिक, सभी समझदार लोग, पर्यावरण विशेषज्ञ, आदि वन संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं. सरकारों ने जंगली प्रजातियों की रक्षा के लिए अभयारण्य और भंडार भी बनाए हैं जहां घास उखाड़ना भी प्रतिबंधित है.
जंगल संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण काम संभवतः ‘वृक्षारोपण’ सप्ताह देखकर किया नहीं जा सकता. इसके लिए वास्तव में महत्वपूर्ण योजनाओं की तर्ज पर काम करने की आवश्यकता है. यह भी एक या दो सप्ताह या महीनों के लिए नहीं बल्कि सालों के लिए. यह एक बच्चे को सिर्फ जन्म देने जैसा ही नहीं बल्कि बच्चे की परवरिश और देखभाल के लिए उचित व्यवस्था करना, न केवल दो से चार साल तक, जब तक वह परिपक्वता प्राप्त न कर ले. तभी तो पृथ्वी का जीवन उसके पर्यावरण और हरियाली की सुरक्षा संभव हो सकती है.

प्रकृति हमारे लिए सभी आवश्यक संसाधन प्रदान करती है. वैश्विक जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को देखना समय की आवश्यकता है. ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए हमें भोजन, पानी और वायु की अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए केवल प्रकृति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए. इस संदर्भ में पर्यावरण सुधार के लिए वनों की कटाई को नियंत्रित करना बहुत आवश्यक है.

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