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पशु स्वास्थ्य और पशुजन्य रोग : Animal Health and Zoonotic Disease

पशु स्वास्थ्य और पशुजन्य रोग : Animal Health and Zoonotic Disease, पशुओं का स्वास्थ्य और उत्पादकता इस बात पर निर्भर है कि पशुओं की देखभाल कितनी अच्छी तरह से की जाती है. अगर किसी तरह से पशुओं की स्वच्छता और सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो, उत्पादकता में कमी होती है. बाड़ों का आवास से सटा होना या कभी-कभी छोटे पशुओं को लोगों के रहने की जगह में बाँधना हमारे गाँवों में एक आम बात है. इसके अलावा, कई बार पशु शेड में मलमूत्र और मूत्र के लिए पर्याप्त जल निकासी प्रदान नहीं की जाती है. गोबर घर के पास खुले ढेर के रूप में एकत्र किया जाता है. ये सभी गंदी स्थितियां केवल पशुओं के स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है.

Animal Health and Zoonotic Disease
Animal Health and Zoonotic Disease

स्वच्छता की स्थिति पैदा करने की आवश्यकता पर चर्चा की और कहा कि हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है…..

  1. गोबर का संग्रह और मूत्र के लिए उचित जल निकासी.
  2. पर्याप्त आवास प्रबंधन.
  3. खाल और शवों का उचित निपटान.
  4. आम/साझा तालाब या पशुओं के लिए पीने के पानी की सुविधा का रखरखाव.

अस्वच्छ स्थितियों से उत्पन्न विभिन्न रोगों से पशुओं की रक्षा के लिए उपरोक्त उपाय महत्वपूर्ण हैं. उचित और पर्याप्त आवास जानवर में तनाव को कम करता है और उत्पादकता में वृद्धि होती है. इसी तरह, पीने के पानी को स्वच्छ बनाए रखने से जानवरों के बीच रुग्णता को कम करने में मदद मिलती है.

कम्पोस्ट (कचरा-खाद)

ग्राम पंचायत स्तर के कृषि विभाग के पदाधिकारियों के सहयोग से कम्पोस्ट के संबंध में जानकारी का प्राप्त कि जा सकती है. इसी प्रकार ग्राम पंचायत कम्पोस्टिंग उद्योग को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम, राष्ट्रिय कृषि विकास योजना के अंर्तगत स्थापित कर प्रचार कर सकती है. ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र से उत्पन्न हो रहें पूरे कचरे को कम्पोस्ट कर खाद में परिवर्तित कर सकती है. जो खाद के उद्देश्यों को पूरा करता है. यह कचरा प्रबंधन की समस्यां के लिए एक समाधान प्रदान करता है और दूसरे, यह कृषि भूमि के लिए खाद प्रदान करता है. आमतौर पर, गोबर और अन्य कार्बनिक अपशिष्ट का उपचार करने पर यह जैविक खाद प्रदान करता है. खाद बनाने की दो प्रमुख तकनीकें हैं कृमि खाद और नारायण देवताव खाद (नाड़ेप).

जैव खाद

जैव खाद कीड़े, जीवाणु और कवक के उपयोग के माध्यम से जैविक सामग्री को तोड़ने की प्रक्रिया है. कृमि खाद का अंतिम उत्पाद कीड़ा-खाद या “कृमि कास्टिंग” नामक एक पदार्थ हैं.

लाभ

  • पौधों के विकास के लिए आवश्यक मूल्यवान पोषक तत्व (नाइट्रोजन (1-1.5 प्रतिशत), फास्फोरस (0.8 प्रतिशत), पोटेशियम (0.7 प्रतिशत), सूक्ष्म पोषक, एंजाइमों, पौध हार्मोन, और एंटीबायोटिक दवाएं शामिल हैं).
  • पौधों का तेजी से विकास को बढ़ावा देता है और फसल की पैदावार बढ़ जाती है.
  • मात्रा बढ़ जाती है और फल, सब्जियों और फूलों की गुणवत्ता में सुधार होता है.
  • मिट्टी के धारण सामग्री को बनाए रखता है.
  • आराम से उत्पादन और कम लागत खर्च होता है.
  • सेलिनाइजेशन और अम्लीकरण कम कर देता है.
  • मिट्टी का कटाव कम कर देता है.
  • कीटों के हमले कम कर देता है.

किसानों को लाभ

  • मिट्टी की उत्पादकता में वृद्धि.
  • कम सिंचाई के साथ उपज में वृद्धि.
  • कीटों के हमले की वजह से फसल नुकसान के जोखिम में कमी.
  • जहरीले अवशेषों के बिना फसल के उत्पादन से गुणवत्ता, बेहतर स्वाद, चमक बनी रहती है, और एक उच्च कीमत मिलती है.

नाड़ेप (नारायण देवताव खाद)

परंपरागत रूप से खाद का निर्माण ढेर/कचरे के गड्डे (उकिरन्दा) विधि से किया जता है. अगर हम नाड़ेप गड्ढे के लिए बदलाव करते है, तो यह खाद की गुणवत्ता के साथ-साथ सफाई के मुद्दों को बेहतर बनाने में मदद करता है. नाड़ेप खाद, खाद बनाने का आसान और सस्ता तरीका है. इसमें कम निवेश की आवश्यकता होती है और कम रखरखाव और संचालन लागत आती है.

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खाद के लिए कच्चा माल

  • प्लास्टिक, सिलिका और पत्थरों को छोड़कर कचरा, फसल अवशेष, खर-पतवार, जड़ का भाग, मूंगफली के छिलके, सड़े फल और घर का कचरा आदि लगभग 1400-1500 किलोग्राम.
  • गोबर, गोबर गैस का घोल 90-100 किलोग्राम, यदि उपलब्ध हो तो, उपयोग किया जा सकता है.
  • खेत से सूखी मिट्टी (1750 किलोग्राम).
  • सभी सामग्री के कुल वजन का 25 प्रतिशत अर्थात लगभग 1500-2000 लीटर पानी | छिड़काव के लिए पशुओं के मूत्र का इस्तेमाल किया जा सकता है.

नाड़ेप खाद के लिए गड्ढे की खुदाई का आकार क्या है?

सीमेंट से गड्ढे की ठोस नींव रखने के साथ 03 मीटर लंबाई गुणे 1.80-2 मीटर चौड़ाई और 0.90-1 मीटर ऊँचाई के साथ ईट की दीवार का निर्माण (गड्ढे का आकार 10 फुट x 6 x फुट x 3 फुट). दीवार का आकार 22.5 सेमी (9 इंच) है.

दीवार को समर्थन प्रदान करने के लिए दीवार को लोहे की जाली (जाली) से घेरा जा सकता है. ईटों का नीचे की दो परतें तैयार करने के बाद, तीसरी परत और उसके ऊपर की परतों का निर्माण इस तरह के किया जाना चाहिए कि हर दो ईटों के बीच है कि 17.5 सेमी (7 इंच) का फासला रहे.

पशुजन्य रोग

पशुजन्य रोग की रोकथाम का मुख्य उद्देश्य पशुओं और मनुष्यों को संक्रमित होने से रोकना है. पशुजन्य रोग ऐसे रोग है जो जानवर से मनुष्यों को हो सकतें है जैसे टीबी, रेबीज औत कुष्ठ रोग. इनमें से कुछ बीमारियाँ धातक भी हो सकतीं हैं. इसलिए पशु को स्वस्थ्य रखना व उसका समय पर उपचार कराना पशुजन्य रोगों से बचने का सबसे बेहतर तरीका है. स्वच्छता, सफाई, स्वास्थ्य देखभाल और समय पर टीकाकरण पशुजन्य रोगों की घटना की संभावना को कम कर देता है.

ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा एक प्रतिज्ञा ली जा सकती है कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि ग्राम पंचायत के प्रत्येक घर में स्वच्छता बनाए रखे और पशुओं के लिए पर्याप्त उपचार प्रदान करे. पशुजन्य रोगों के बारे में समुदाय की जागरूकता से मनुष्यों के इन संक्रमित होने की संभावना को रोका जा सकता है इसलिए, पशु पालन समिति को इन रोगों के लक्षणों के बारे में जागरूकता फैलाने का कार्य सौंपा जा सकता है.

मुंबई (पशुओं के रोग) अधिनियम, 1948

मुंबई अधिनियम, 1948 पशु के रोग, रोगों के उन्मूलन, रोकथाम और नियंत्रण से संबंधित है. यह अधिनियम, राज्य सरकार को रोगों के प्रकोप या प्रसार को रोकने के उद्देश्य से, संक्रमित पशुओं के आयात, निर्यात या बाजारों, मेलों, आदि में परिवहन और यातायात को निषेध या विनियमित करने का अधिकार देता है.

विभिन्न पशुजन्य रोग और मनुष्यों में उनके लक्षण

क्र.सं.रोग का नामपशु(ओं) से होने वाले संक्रमणमनुष्यों में लक्षण
1बिसहरिया (एनथ्रैक्स)मवेशी, भैंस, बकरियांखूनी दस्त, बुखार, गले में खराश
2सुखी खांसीकुत्ते, खरगोशबुखार, जोड़ों में दर्द, निमोनिया
3बेचैनी के साथ बुखार (ब्रुसिलोसिस)मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, सुअरबुखार, जोड़ों में दर्द, ऑरकाइटिस
4कोली सेप्टिसीमिया (हैजा)मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, सुअर, मुर्गी (कच्चे दूध या मांस के माध्यम से)गंभीर दस्त, मूत्र में रक्त, बुखार
5ग्लैंडर्सघोड़े/गधे/खच्चरत्वचा पर छाले और बलगम झिल्ली
6कुष्ठबंदरत्वचा पर धब्बे, पैरों क घिसना
7लेप्टोस्पायरोसिसकुत्ते, मवेशी, भैंस, चूहेपीलिया, मूत्र संक्रमण, दिमागी बुखार
8लिस्टिरिओसिसमवेशी, भैंस, मांस उत्पादन करने वाले पशु (दूध/मांस के माध्यम से)जाला, नेत्र रोग, दिमागी बुखार, गर्भपात
9टीबीसभी घरेलू जानवरों सेनिरंतर तेज बुखार, निमोनिया
10प्लेगचूहे, खरगोश, गिलहरी (पिस्सू के काटने की वजह से)तेज बुखार लसिका ग्रंथियों की सूजन
11खाज (सिटकोसिस)पिंजरे के पक्षीबुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, सूखी खाँसी, निमोनिया
12चूहा काटने का बुखार (रैट बाइट फीवर)चूहे, चूहे द्वारा काटे गए कुत्ते, खरगोशबुखार, मांसपेशियों और जोड़ों में गंभीर दर्द, सिर दर्द
13गोल कृमिसभी घरेलू जानवरत्वचा पर अत्यधिक खुजली गोल घाव
14लीशमनियासिसकुत्ते, बिल्ली, जंगली मांसाहारीचढ़ता-उतरता बुखार, यकृत/तिल्ली में संक्रमण, दस्त
15मलेरियासभी बंदर समूहों को (एनोफिलीज मच्छरों के माध्यम से)ठंड के साथ बुखार, उल्टी
16फीताकृमि अल्सरविशेष कर कुत्तेजिगर/फेफड़ों पर तरल पदार्थ भरा बड़ा सिस्ट
17गिनी कृमिघरेलू और जंगली मांसाहारीत्वचा पर अल्सर, जिसके माध्यम से कीड़े बाहर आते है, एलर्जी
18खाजखुजली ग्रस्त सभी घरेलू जानवरउंगलियों के बीच खुजली घाव
19चेचकमवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंटचेहरे पर फुंसी, हाथ और पैर में पपड़ी
20एन्सेफिलाइटिससुअर (मच्छरों के माध्यम से)बुखार, सिरदर्द, गले में खराश, कम-संवेदनशीलता, पक्षाघात
21बर्ड फ्लूघरेलू जंगली पक्षीफ्लू जैसे लक्षण, कई अंगों की विफलता के कारण मौत
22स्वाइन फ्लूसुअरफ्लू जैसे लक्षण, बुखार, शरीर दर्द
23क्यसनूर वन रोगचूहा, बंदरबुखार, अत्यधिक कमजोरी, दिमागी बुखार, मौत
24ज्लातंक/रैबीजघरेलू और जंगली कुत्तों और किसी भी पागल जानवर सेबुखार, मांसपेशियों में दर्द, स्वभाव में परिवर्तन, अतिसंवेदनशीलता, पक्षाघात, मौत

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