भारत में वर्टिकल फार्मिंग का भविष्य : Future of Vertical Farming in India
भारत में वर्टिकल फार्मिंग का भविष्य : Future of Vertical Farming in India, विश्व की जनसंख्या लगातार तेजी से बढ़ रही है. वर्तमान समय में बहुत बड़ी तादात में लोग कृषि कार्य को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहें है. लोगों का कृषि की ओर रुझान कम होने या कृषि कार्य को छोड़ने के बहुत से कारण है. जैसे कृषि योग्य भूमि में कमी, समय पर वर्षा नहीं होना, कृषि पर अत्यधिक व्यय, उत्पादन में कमी, अत्यधिक उर्वरक कि आवश्यकता इत्यादि कारणों से कृषि कार्य पर लोगों कि रूचि नहीं दिखाई देता है.
वर्टिकल फार्मिंग या खड़ी खेती क्या है?
खड़ी खेती (Vertical Farming) सामान्य रूप से खुली जगह तथा इमारतों व अपार्टमेंट की दीवारों का उपयोग कर छोटी – मोटी फसल को उगाने में किया जाता है. यह एक तरह की मल्टी लेवल पद्धति है. इस तरह की खेती में एक कमरे में बहु-सतही ढांचा खड़ा किया जाता है. इस ढाँचे के निचले हिस्से में पानी से भरा टैंक होता है. टैंक की ऊपरी सतह में पौधों के छोटे-छोटे गमले रखे जाते है. पम्प का उपयोग कर पोषक तत्व युक्त पानी को धीरे – धीरे इन पौधों तक पहुंचाया जाता है. इससे पौधों में तेजी से वृद्धि होती है. प्रकाश उत्पन्न करने के लिए LED बल्बों का इस्तेमाल किया जाता है.
इस तरह की खेती में मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है, तथा उगाई गई फसल खेतो के मुकाबले अधिक पौष्टिक व ताजी होती है. यदि आप इस तकनीक का इस्तेमाल खुली जगह में करते है, तो आपको तापमान नियंत्रण करना होगा. इसमें ऐरोपोनिक, एक्वापोनिक और हाइड्रोपोनिक जैसे माध्यमों का उपयोग किया जाता है. इस तरह की खेती का एक लाभ यह भी है की इसमें बहुत ही कम पानी का इस्तेमाल होता है इसमें लगभग 95% पानी की बचत होती है. शहर में बने घर की छतो, बालकनी, और बहुमंजिला इमारतों के कुछ हिस्सों में उगाई गई फसल भी वर्टिकल कृषि का ही एक रूप है.
भारत में वर्टिकल खेती का चलन
भारत में खड़ी खेती (Vertical Farming) का चलन अभी कम है किन्तु कुछ विश्वविद्यालयो में अभी इस तकनीक पर शोध हो रहे है. मुख्य रूप से इस वर्टिकल कृषि को मेट्रो सिटी बंगलौर, हैदराबाद, दिल्ली और कुछ अन्य शहरो में किया जा रहा है. शुरुआती तौर पर इसे उद्यमियों ने शौक में चालू किया किन्तु बाद में इसे व्यावसायिक उधम का रूप दे दिया गया. इन शहरो के उद्यमी हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स जैसी तकनीक का इस्तेमाल कर करते है. खड़ी खेती करने में तकनीकी ज्ञान का होना बहुत जरूरी है. अमेरिका, चीन, सिंगापुर और मलेशिया तथा कई ऐसे देश भी है, जहां यह फार्मिंग पहले से हो रही है.
वर्टीकल खेत की बनावट
वर्टीकल फार्मिंग (खड़ी खेती) में पौधों को बहु सतही ढांचों में उगाया जाता है. यह तकनीक प्रायः नियंत्रित वातावरण में होता है जिसमे पौधों को किसी आधार में लगा के पम्प की सहायता से पानी दिया जाता है. पौधों के बढ़ाने के लिए इसमें पोषक तत्वों को भी मिलाया जाता है. एल इ डी (LED) बल्ब की सहायता से इसमें प्रकाश उत्पन्न किया जाता है. वर्टीकल फार्मिंग में मुख्यतः तीन प्रणालियाँ सम्मिलित है यानि हायड्रोपोनिक्स, ऐरोपोनिक्स एवं अक्वापोनिक्स. हायड्रोपोनिक्स अर्थात जल कृषि में पौधों की जड़ें पानी तथा पोषक तत्वों के घोल में में डूबी रहती है. यह पानी की कम लागत में ही सब्जियों के बहुत अधिक पैदावार के लिए प्रचलित है.
ऐरोपोनिक्स तकनीक में किसी भी माध्यम की जरुरत नहीं होती. इसमें पौधों की जड़ो को किसी सहारे के साथ बांधा जाता है. जिसमे पोषक तत्वों का छिड़काव किया जाता है. यह खेती बहुत कम से कम जगह में भी हो सकती है. अब तक, एरोपोनिक्स सबसे टिकाऊ कम-मिट्टी में उगने वाली तकनीक है, क्योंकि यह पारंपरिक हाइड्रोपोनिक सिस्टम की तुलना में 90% कम पानी का उपयोग कुशलता पूर्वक करता है.
तीसरी प्रणाली अर्थात एक्वापोनिक्स एक बायोसिस्टम विधि है जिसमे मछली पालन एवं जल कृषि के मिश्रण से सब्जी, फल व औषधि का उत्पादन होता है. इस प्रणाली में एक ही पारिस्थिकी तंत्र में मछलियाँ और पौधे साथ में वृद्धि करते है. मछलियों का मल पौधों को जैविक खाद उपलब्ध करता है और साथ ही साथ पौधे मछलियों के लिए जल को फिल्टर व शुद्ध करने का काम करती है.
भारत में वर्टिकल फार्मिंग कि संभावनाएं
भारत में 70% लोग कृषि पर आधारित है. जिसमे वो सभी तरह की खेती करते है. इनमें फल, फूल, अनाज, सब्जियां इत्यादि सम्मिलित है. भारत में वर्टीकल फार्मिंग का चलन अभी अभी ही शुरू हुआ है जिसमे भारतीय कृषि अनुसन्धान केंद्र या और दूसरी कृषि संस्थानों द्वारा इसका प्रयोग खेती में किया जा रहा है. जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आये है. नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई जैसे शहरों में मिट्टी- रहित व कीटनाशक- रहित खेती कर वर्टीकल फार्मिंग का अच्छा परिणाम मिला है. वर्टीकल फार्मिंग की मदद से पंजाब में आलू व बेंगन तथा टमाटर की खेती में सफलता मिली है.
भारत में धीरे-धीरे इस तकनीक को लोगो तक पहुचाया जा रहा है ताकि लोग कृषि की नयी तकनीक सीख अच्छा उत्पादन कर सकें. भारत में अधिक से अधिक संख्या में वर्टिकल फार्मिंग स्टार्ट-अप शुरू हो रहे हैं. आईडीया फार्मस (Idea farms), ग्रीनपीएस (Greenopiais), यु-फार्म (U-Farm), अर्बन किसान (Urban Kisaan) जैसे कई वर्टिकल फार्मिंग स्टार्ट अप उच्च गुणवत्ता वाले फलो एव सब्जियों को ऊगा कर बड़े शहरों में आपूर्ति करते है.
वर्टिकल फार्मिंग के फायदे
- यह एक बहुत ही उच्च उत्पादक खेती है प्रति इकाई क्षेत्र से लगभग 70-80 प्रतिशत अधिक फसल उत्पाद आता है. इसके अलावा, वर्ष में 3-4 बार फसल चक्र के साथ, पारंपरिक खेती की तुलना में काफी मुनाफा होता है.
- वर्टीकल फार्मिंग के माध्यम से कम जमीन में अधिक फसल का उत्पादन कर सकते है.
- वर्टीकल फार्मिंग में नियंत्रित वातावरण का उपयोग किया जाता है जिसके कारण मौसम का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होता और फसल भी ख़राब नहीं होती.
- वर्टीकल फार्मिंग में कम पानी में खेती हो जाती है.
- कीटनाशक दवाओं व रसायनिक खादों क बिना फसल होती है.
- वर्टीकल फार्मिंग में जंहा खपत हो उसी के पास उगाया जा सकता है. जिससे लम्बी दुरी में परिवहन का खर्चा बच जाता है.
- यह शहरी क्षेत्रों की हरियाली को बढ़ावा देगा और बढ़ते तापमान को कम करने में मदद करेगा.
वर्टिकल फार्मिंग के नुकसान
- वर्टीकल फार्मिंग प्रणाली की स्थापना के लिए प्रारंभिक उच्च लागत ही प्रमुख समस्या है.
- बढ़ते हुए पौधे पूरी तरह से कृत्रिम रोशनी व नियंत्रित वातावरण में निर्भर होते है जिससे ऊर्जा की लागत भी अधिक होती है.
- एलईडी लाइटिंग सिस्टम गर्मी का उत्सर्जन करते हैं हालांकि छोटी मात्रा भी तापमान बनाए रखने में समस्या पैदा करती है, विशेष रूप से गर्मी के महीनों में और एयर कंडीशनिंग सिस्टम में अधिक भार हो सकता है जो फिर से उच्च ऊर्जा लागत को उकसाएगा.
- यदि देखभाल न की जाए तो वर्टीकल फार्मिंग में उपयोग किए जाने वाले अतिरिक्त पोषक तत्व शहरों के मुख्य जल प्रणाली को हस्तक्षेप और दूषित कर सकते हैं.
- कुशल एवं प्रशिक्षित कर्मी की आवश्यकता होगी.
- खेती भवनों के चारों ओर कचरे के ढेर, पौधे के अवशेष आदि को ठीक से निपटाने की जरूरत है.
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वर्टीकल फार्मिंग या खड़ी खेती का उदाहारण
मशरूम की खड़ी खेती (Mushroom Vertical Farming)
वर्टिकल खेती में अधिकतर उद्यमी लेटिस, ब्रोकली, औषधीय व् सुगन्धित जड़ी – बूटियों, फल तथा सजावटी पौधे , टमाटर, बैगन , मझोली आकार की फसलें और स्ट्राबेरी जैसे फलो को उगाया जाता है. वर्टिकल खेती का सबसे अच्छा उदाहरण अलमारियों में ट्रे में लगाए गए मशरूम की खेती है. उच्च तकनीकी खेती का एक अन्य उदाहरण टिश्यू कल्चर की खेती है. इसमें सिंथेटिक बीजो को टेस्ट ट्यूब प्रक्रिया द्वारा उगाया जाता है. यह सभी उत्पाद कीट ,कीटनाशक और बीमारी रहित होते है. अच्छी गुणवत्ता के चलते इनके मूल्य भी अधिक होते है.
वर्टीकल फार्मिंग या खड़ी खेती की उत्पत्ति (Vertical Farming Origin)
वर्टीकल फार्मिंग या खड़ी खेती की अवधारणा पहली बार वर्ष 1999 में डिक्सन डेस्पोमियर (Dixon Despomier) द्वारा शुरू की गई थी. जो कोलंबिया विश्वविद्यालय (Columbia University) में सार्वजनिक और पर्यावरण स्वास्थ्य (Public and Environmental Health) के प्रोफेसर थे. न्यूयॉर्क गगनचुंबी इमारतों की छतों पर भोजन उगाया जा सकता है या नहीं, इस पर अपने छात्रों को चुनौती देते हुए एक अवधारणा बनाई गई. जिसमें हाइड्रोपोनिक्स और कृत्रिम प्रकाश द्वारा उगाए गए 30 मंजिला लंबवत खेत लगभग 50,000 लोगों को खिला सकते थे.
हालांकि प्रोफेसर नें फार्म का निर्माण नहीं किया गया था, इस विचार ने आगे बढ़कर कई डिजाइनों को प्रेरित किया. नतीजतन दुनिया भर की सरकारें और डेवलपर्स खड़ी खेती पर ध्यान देने लगे और इसे अबू धाबी, न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स, बैंगलोर, दुबई, बीजिंग आदि शहरों में लागू किया जाने लगा. वर्ष 2014 और नवंबर 2020 के बीच इसमें लगभग 1.8 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया था.
वर्टीकल फार्मिंग या खड़ी खेती के प्रकार (Vertical Farming Types)
- इमारतों में लंबवत खेत (Vertical Farm in Buildings)
परित्यक्त इमारतों (Abandoned Buildings) को वर्टीकल फार्मिंग के लिए पुनर्निर्मित किया जाता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि ऐसी इमारतों का अक्सर उपयोग किया जाए. आवश्यकताओं के आधार पर ऊर्ध्वाधर खेतों के निर्माण के लिए नए भवनों का भी उपयोग किया जाता है.
- शिपिंग-कंटेनर वर्टिकल फार्म(Shipping-container Vertical Farm)
पुराने या पुनर्नवीनीकरण शिपिंग कंटेनर एलईडी प्रकाश व्यवस्था, वर्टीकल खेतों, जलवायु नियंत्रण और निगरानी सेंसर से लैस हैं. इस प्रकार के खेत जगह बचा सकते हैं और इस प्रक्रिया में अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं.
- भूमिगत लंबवत फार्म (Underground Vertical Farm)
इसे ‘डीप फार्म’ के रूप में भी जाना जाता है. इस प्रकार के वर्टीकल फार्म भूमिगत सुरंगों, परित्यक्त खदान शाफ्ट या किसी भी भूमिगत वातावरण में बनाए जाते हैं. निरंतर तापमान और आर्द्रता का मतलब है, कि उन्हें गर्म करने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है और पानी की आपूर्ति के लिए भूमिगत जल स्रोत का उपयोग किया जा सकता है. ऐसे खेत पारंपरिक खेत की तुलना में 7 से 9 गुना अधिक भोजन का उत्पादन भी कर सकते हैं.
वर्टीकल या खड़ी खेती की तकनीक (Vertical Farming Techniques)
हीड्रोपोनिक्स तकनीक (Hydroponics)
हाइड्रोपोनिक्स मिट्टी की भागीदारी के बिना पौधों को उगाने की विधि है. यहां पौधों की जड़ें मैग्नीशियम, नाइट्रोजन, पोटेशियम कैल्शियम आदि में डूबी हुई हैं. ये समाधान जड़ों का समर्थन करते हैं, उच्च उपज की संभावना में सुधार करते हैं और पानी पर निर्भरता कम करते हैं. अध्ययनों से पता चला है कि परंपरागत खेतों की तुलना में 13 गुना कम पानी की कीमत पर 11 गुना उपज हुई है. इस प्रकार खड़ी खेती में हाइड्रोपोनिक्स सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली विधि है.
एक्वापोनिक्स तकनीक (Aquaponics Techniques)
यह थोड़ा उन्नत तरीका है कि हाइड्रोपोनिक्स, एक्वापोनिक्स प्रकृति के समान एक बंद लूप सिस्टम में जलीय जीवों के साथ पौधों के उत्पादन को एकीकृत करता है.
एरोपोनिक्स तकनीक (Aeroponics Techniques)
जैसा कि नाम से पता चलता है, एरोपोनिक्स ठोस या तरल जैसे माध्यमों का उपयोग नहीं करता है बल्कि पौधों को विकसित करने के लिए हवा का उपयोग करता है. हवा में एक तरल घोल का उपयोग किया जाता है जहां पौधे स्थित होते हैं. जिसके माध्यम से पौधे पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं. यह सबसे उपयुक्त तरीका है क्योंकि इसमें न तो पानी की आवश्यकता होती है और न ही मिट्टी की और न ही किसी बढ़ते माध्यम की आवश्यकता होती है.
वर्टीकल फार्मिंग या खड़ी खेती कैसे काम करती है (How Vertical Farming Works)
- प्रकाश :- खड़ी खेती या वर्टीकल फार्मिंग में फसलों की खेती एक टावर की तरह खड़ी परतों में की जाती है. कमरे में सही प्रकाश स्तर बनाए रखने के लिए प्राकृतिक और कृत्रिम रोशनी का एक आदर्श संयोजन उपयोग किया जाता है. रोटेटिंग बेड जैसी तकनीकों का उपयोग प्रकाश दक्षता में सुधार के लिए किया जाता है. यह अवशोषित सूर्य के प्रकाश की मात्रा को बढ़ाता है, इसलिए प्रकाश संश्लेषण को बहुत कुशल बनाता है.
- ग्रोइंग मीडियम:- वर्टिकल फार्मिंग में मिट्टी की जगह एरोपोनिक, एक्वापोनिक या हाइड्रोपोनिक ग्रोइंग मीडियम का इस्तेमाल किया जाता है. पीट काई या नारियल की भूसी और इसी तरह के गैर-मिट्टी के माध्यम खड़ी खेती में बहुत आम हैं. पौधों को मिट्टी रहित धुंध में उगाया जाता है, जिसे आंतरिक सूक्ष्म जेट से छिड़का जाता है. चूंकि खेतों में जड़ें खुली होती हैं और अधिक ऑक्सीजन के संपर्क में आती हैं, इसलिए पौधे/फसल तेज दर से बढ़ने में सक्षम होंगे.
- एक कपड़ा माध्यम:- अंत में कपड़े के माध्यम का उपयोग बीज बोने, अंकुरण (जब बीज अंकुरित होते हैं), पौधों को उगाने और कटाई के लिए किया जाता है.
खड़ी खेती के नुकसान (Vertical Farming Disadvantages)
- आर्थिक व्यवहार्यता (Economic Viability):- इस प्रकार का खेत आधुनिक इंजीनियरिंग और वास्तुकला के साथ-साथ विभिन्न तकनीकों के अनुप्रयोग पर बहुत अधिक निर्भर करता है. महंगी इमारतों में वर्टिकल फार्म बनाने से कुल निवेश और परिचालन लागत में इजाफा होता है.
- परागण में बाधा (Pollination Barrier):- खड़ी खेती कीटों की उपस्थिति के बिना नियंत्रित वातावरण में होती है. जैसे, परागण प्रक्रिया को मैन्युअल रूप से करने की आवश्यकता होती है, जो श्रम गहन और महंगा होगा.
- अधिक श्रम लागत (Higher Labor Cost):- वर्टीकल खेती में शहरी केंद्रों में उनकी एकाग्रता के कारण श्रम लागत और भी अधिक हो सकती है, जहां मजदूरी अधिक होती है. साथ ही अधिक कुशल श्रम की आवश्यकता होती है. हालांकि खड़े खेतों में स्वचालन से कम श्रमिकों की आवश्यकता हो सकती है. ऊर्ध्वाधर खेतों में मैन्युअल परागण अधिक श्रम-गहन कार्यों में से एक बन सकता है.
- ग्रामीण क्षेत्र में व्यवधान (Disruption in Rural Areas):- खड़ी खेती की एक और चुनौती और नुकसान में ग्रामीण क्षेत्र को बाधित करने की क्षमता शामिल है, विशेष रूप से वह समुदाय जिनकी अर्थव्यवस्थाएं कृषि पर निर्भर हैं. वर्टिकल फार्म पारंपरिक खेती की नौकरियों को अप्रचलित कर सकते हैं. जिन किसानों के पास खड़ी खेती करने की क्षमता नहीं है, उन्हें बेरोजगार छोड़ दिया जाएगा. कृषि पर निर्भर समुदायों को निश्चित रूप से नुकसान होगा.
वर्ष 2050 तक दुनिया की लगभग 80% आबादी के शहरी क्षेत्रों में रहने की संभावना है, और बढ़ती आबादी से भोजन की मांग में वृद्धि होगी. ऐसे में वर्टीकल फार्मिंग का उपयोग कर शायद इस प्रकार की चुनौतियों की तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
भारत में वर्टीकल फार्मिंग
हालांकि हम वर्टीकल फार्मिंग से यह उम्मीद नहीं कर सकते की यह खेती के सामान्य तरीकों को ख़तम कर देगी. लेकिन अगर हम अपने कल की खाने के जरूरतों को देखें तोह वर्टीकल फार्मिंग की हमें बहुत जरुरत है. अच्छी बात यह है की वर्टीकल फार्मिंग अब बस एक कहानी बन कर नहीं रह गयी है, यह असल में हमारे देश में अपनायी जाने लगी है. वेस्ट बंगाल और पंजाब में वर्टीकल फार्मिंग की टेक्नीकियों का इस्तेमाल करा जा चूका है. वेस्ट बंगाल के बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्याला ने सफल तरीके से टमाटर और बैगन उगाये है और पंजाब ने आलू.
वर्टीकल फार्मिंग ना ही अप्रयुक्त जगहों के लिए कार्यक्षम तरीका है बल्कि रोज़गार और इनकम उत्पन्न करने में भी सक्षम है. इसके अलावा यह पर्यावरण के अनुकूल, आर्थिक रूप से समझदार, स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील, और प्रौद्योगिकी आधारित है. अगर हम वर्टीकल फार्मिंग और सम्पूर्ण कृषि विकास की बात करते है तोह टेक्नोलॉजी का इसमें बहुत बड़ा हाथ होता है. बहुत सी जानी मानी संस्थाएं अब अग्रि-टेक सलूशन की तरफ बढ़ रही है.
निष्कर्ष और भविष्य की गुंजाइश
वर्टिकल फार्मिंग निश्चित रूप से भारतीय खेती में महत्वपूर्ण समस्याओं का हल है, जैसे कि खेत की उपज की आपूर्ति या निरीक्षण, कीटनाशकों के अति प्रयोग, उर्वरकों का अति प्रयोग, कमजोर मिट्टी और यहां तक कि बेरोजगारी. लेकिन भारतीय कृषक समुदाय द्वारा इस खेती को स्वीकार करने जैसी चुनौतियाँ हैं.
तथापि कृषि संस्थानों में वैज्ञानिक वर्टीकल फार्मिंग को ज्यादा से ज्यादा प्रभावी और कुशल लागत बनाने में प्रयास कर रहे है. साथ ही साथ बहुत सारे वर्टीकल फार्मिंग स्टार्ट-अप भारत के कोने-कोने में भारतीय किसानों को जागरूक, तकनीक की जानकारी तथा स्थापित करने में मदद कर रहे है. यदि सभी प्रयास सफल रहे तो वर्टिकल फ़ार्म सिर्फ 2050 तक सब्ज़ी उत्पादन के लिए आदर्श बन सकते हैं.
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