कृषि और पशुपालनपशु चिकित्सा आयुर्वेदपालतू जानवरों की देखभालभारत खबररोज खबर

कार्बोलिक एसिड और बोरिक एसिड का उपयोग : Uses of Carbolic Acid and Boric Acid

कार्बोलिक एसिड और बोरिक एसिड का उपयोग : Uses of Carbolic Acid and Boric Acid, पशुपालक एवं पशुप्रेमी बंधुओं के लिये पशु चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाली साधारण औषधियों का ज्ञान होना बहुत ही आवश्यक आवश्यक होता है. क्योंकि पशु चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाली छोटे-छोटे साधारण औषधियां जैसे बोरिक एसिड, कार्बोलिक एसिड, मैग्नीशियम सल्फेट, नौसादर, नीला थोथा, पीसी खड़िया आदि औषधियों के उपयोग और प्रयोग की जानकारी होने से पशुओं के साधारण बीमारी की रोकथाम किया जा सकता है तथा औषधियों में होने वाले अधिक आर्थिक व्यय से बचा जा सकता है.

Uses of Carbolic Acid and Boric Acid
Uses of Carbolic Acid and Boric Acid

महत्वपूर्ण लिंक :- बरसात के मौसम पशुओं का देखभाल कैसे करें?

महत्वपूर्ण लिंक :- मवेशियों में गांठदार त्वचा रोग का कहर.

महत्वपूर्ण लिंक :- लम्पी बीमारी का विस्तारपूर्वक वर्णन.

महत्वपूर्ण लिंक :- राज्य डेयरी उद्यमिता विकास योजना क्या है?

पशु चिकित्सा में प्रयुक्त साधारण औषधियां

1 . बोरिक एसिड (Boric Acid) – यह एक रंगहीन पदार्थ है जो सफ़ेद रवेदार पाउडर के रूप में मिलता है जो चखने पर अम्लीय (एसिडिक-Acidic) और कड़वा (Bitter) होता है. यह 20 भाग ठंडे पानी, 3 भाग उबलते पानी, 4 भाग ग्लिसरीन अथवा 30 भाग (90%) एल्कोहल में घुलनशील है.

औषधीय क्रिया – यह एक नॉन-इरीटेन्ट एंटीसेफ्टिक, शोष(Desiccant), परिरक्षक (Preservative) एंटीजायमोटिक औषधि है.

उपयोग – बोरिक एसिड का प्रयोग कई कामों में आता है.

A) डस्टिंग पाउडर के रूप में – घावों को सुखाने के लिये पाउडर को निम्न रूप से तैयार किया जा सकता है-

आइडोफार्म1 भाग
बोरिक एसिड2 भाग
जिंक आक्साइड2 भाग
Uses of Carbolic Acid and Boric Acid

B) घोल के रूप में – घावों को ढोने के लिये –

बोरिक एसिड14.20 घ.से.मी. (c.c.)
सेलिसिलिक एसिड3.55 घ.से.सी.(c.c.)
डिस्टिल्ड वाटर1136.0 घ.से.सी.(c.c.)
Uses of Carbolic Acid and Boric Acid

C) मलहम के रूप में – फटे हुए थन, छाजन और घावों पर लगाने के लिये बोरिक एसिड मलहम के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसका प्रयोग होठ और जीभ के छालों पर भी होता है.

बोरिक एसिड50 ग्राम
वेसेलिन100 ग्राम
Uses of Carbolic Acid and Boric Acid

D) पेन्ट्स के रूप में – बोरिक एसिड 25 ग्राम, ग्लिसरीन 25 ग्राम होठ और जीभ के छालों पर इसका प्रयोग किया जाता है.

2. कार्बोलिक एसिड (Carbolic Acid)/फिनोल (Phenol) – यह एक रंगहीन रवेदार पदार्थ है, जिसके रवे सुई के आकार के होते हैं. हवा में खुले रहने पर वायु से नमी ग्रहण कर लेते हैं और इसमें एक अजीब तरह की गंध आती है. यह स्वाद में मीठा और तिक्त होता है.

  • कार्बोलिक एसिड का एक भाग तीन भाग पानी में घुलनशील है. इसके अतिरिक्त यह एल्कोहल, ईथर, क्लोरोफार्म एवं ग्लिसरीन में पूर्ण रूप से घुलनशील है. इसके अतिरिक्त यह एल्कोहल, ईथर, क्लोरोफार्म एवं ग्लिसरीन में पूर्ण रूप से घुलनशील है.

इसकी क्रिया –

  • उपरी प्रयोग में कार्बोलिक एसिड, कास्टिक, डिसइन्फेक्टेड, एंटीसेप्टिक डियोडोरेंट, पैरासिटीसाइड और लोकल एनेस्थेटिक है.
  • भीतरी प्रयोग में यह गैस्ट्रिक सैडटिव, इंटेस्टैनल एंटीसेफ्टिक और एंटीजायमोटिक है.

औषधियाँ जो कार्बोलिक एसिड से तैयार होती है –

1 . द्रव फिनाइल – 800 भाग फिनोल में 200 भाग डिस्टिल्ड वाटर मिलाने से एक रंगहीन द्रव तैयार हो जाता है जो रखे रहने पर हल्के गुलाबी रंग का हो जाता है.

  • प्रयोग करने से पूर्व इसमें थोड़ी सी ग्लिसरीन मिलाकर और फिर पानी डालकर पतला कर लेते हैं. ऐसा करने से इसका Irritation गुण नष्ट हो जाता है.

इसकी औषधीय मात्रा –

  • घोड़ा (Horse) – 1 c.c. से लेकर 1.75 c.c. तक
  • कैटल (गाय/भैंस) – 1.75 c.c. से लेकर 3.55 c.c. तक
  • कुत्ता (Dog) – 0.06 से लेकर 0.12 c.c. तक

2. फिनोलयुक्त ग्लिसरीन – 480 भाग ग्लिसरीन में 170 भाग फिनोल मिलाकर तैयार किया जाता है.

3. फिनोलयुक्त तेल – 5 भाग फिनोल में 95 भाग मूंगफली और अलसी का तेल मिलाकर तैयार किया जाता है.

उपयोग –

  • इसका 5 प्रतिशत घोल घावों के धोने में प्रयुक्त होता है.
  • इसका 2 प्रतिशत घोल शरीर के जूं, खाज एवं पिस्सुओं को दूर करने में प्रयुक्त होता है.
  • कुत्तों द्वारा कटे घाव, अथवा सांप द्वारा काटे गए स्थान को जलाने के लिये शुद्ध फिनोल प्रयोग किया जाता है.

इन्हें भी पढ़ें : प्रतिदिन पशुओं को आहार देने का मूल नियम क्या है?

इन्हें भी पढ़ें : एशिया और भारत का सबसे बड़ा पशुमेला कहाँ लगता है?

इन्हें भी पढ़ें : छ.ग. का सबसे बड़ा और पुराना पशु बाजार कौन सा है?

इन्हें भी पढ़ें : संदेशवाहक पक्षी कबूतर की मजेदार तथ्य के बारे में जानें.

प्रिय पशुप्रेमी और पशुपालक बंधुओं पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

Most Used Key :- गाय के गोबर से ‘टाइल्स’ बनाने का बिजनेस कैसे शुरू करें?

पशुओ के पोषण आहार में खनिज लवण का महत्व क्या है?

किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर कृपया स्वयं सुधार लेंवें अथवा मुझे निचे दिए गये मेरे फेसबुक, टेलीग्राम अथवा व्हाट्स अप ग्रुप के लिंक के माध्यम से मुझे कमेन्ट सेक्शन मे जाकर कमेन्ट कर सकते है. ऐसे ही पशुधन, कृषि और अन्य खबरों की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर विजिट करते रहें. ताकि मै आप सब को पशुधन से जूडी बेहतर जानकारी देता रहूँ.

-: My Social Groups :-

पशुधन खबरपशुधन रोग
इन्हें भी पढ़ें :- गाय, भैंस की उम्र जानने का आसान तरीका क्या है?
इन्हें भी पढ़ें :- बटेर पालन बिजनेस कैसे शुरू करें? जापानी बटेर पालन से कैसे लाखों कमायें?
इन्हें भी पढ़ें :- कड़कनाथ मुर्गीपालन करके लाखों कैसे कमायें?
इन्हें भी पढ़ें :- मछलीपालन व्यवसाय की सम्पूर्ण जानकारी.
इन्हें भी पढ़ें :- गोधन न्याय योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है?
इन्हें भी पढ़ें :- नेपियर घास बाड़ी या बंजर जमीन पर कैसे उगायें?
इन्हें भी पढ़ें :- बरसीम चारे की खेती कैसे करें? बरसीम चारा खिलाकर पशुओं का उत्पादन कैसे बढ़ायें?
इन्हें भी देखें :- दूध दोहन की वैज्ञानिक विधि क्या है? दूध की दोहन करते समय कौन सी सावधानी बरतें?
इन्हें भी पढ़े :- मिल्किंग मशीन क्या है? इससे स्वच्छ दूध कैसे निकाला जाता है.
इन्हें भी पढ़े :- पशुओं के आहार में पोषक तत्वों का पाचन कैसे होता है?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में अच्छे उत्पादन के लिये आहार में क्या-क्या खिलाएं?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में रासायनिक विधि से गर्भ परीक्षण कैसे करें?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुशेड निर्माण करने की वैज्ञानिक विधि
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में पतले दस्त का घरेलु उपचार.
इन्हें भी पढ़ें :- दुधारू पशुओं में किटोसिस बीमारी और उसके लक्षण
इन्हें भी पढ़ें :- बकरीपालन और बकरियों में होने वाले मुख्य रोग.
इन्हें भी पढ़ें :- नवजात बछड़ों कोलायबैसीलोसिस रोग क्या है?
इन्हें भी पढ़ें :- मुर्गियों को रोंगों से कैसे करें बचाव?
इन्हें भी पढ़ें :- गाय, भैंस के जेर या आंवर फंसने पर कैसे करें उपचार?
इन्हें भी पढ़ें :- गाय और भैंसों में रिपीट ब्रीडिंग का उपचार.
इन्हें भी पढ़ें :- जुगाली करने वाले पशुओं के पेट में होंनें वाली बीमारी.
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में फ़ूड प्वायजन या विषाक्तता का उपचार कैसे करें?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में गर्भाशय शोथ या बीमारी के कारण.
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं को आरोग्य रखने के नियम.