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मवेशी बाजार बलौदाबाजार का इतिहास क्या है : What is the History of Cattle Market Balodabazar

मवेशी बाजार बलौदाबाजार का इतिहास क्या है : What is the History of Cattle Market Balodabazar, भारत के अलग-अलग राज्यों और स्थानों में मवेशी बाजार या पशु मेले का आयोजन किया जाता है. इन मवेशी बाजार या पशु मेला में पशुपालन करने वाले लोगों द्वारा गाय, भैस, बैल, भेड़, बकरी और कई उन्नत नस्ल के पशुओं की खरीददारी और बिक्री करने का मौका मिलता है. ऐसे ही मवेशी बाजार के साथ छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदाबाजार जिला का इतिहास जुड़ा हुआ है.

मवेशी बाजार बलौदाबाजार में अंग्रेजों के शासन काल के समय गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य राज्य के पशुपालक भी मवेशी बेचने और खरीददारी करने के लिये आते थे. उस समय बलौदाबाजार के मवेशी बाजार में गुजरात से आने वाले बलारी नस्ल के बैल का बहुत मांग हुआ करता था. बलौदाबाजार की मवेशी बाजार में बहुत ही संख्या में पशुपालक अपने पशुओं के बिक्री के लिये आते थे जिसके कारण बाजार में मानो पैर रखने की भी जगह नहीं होता था. इसलिए बलौदा बाजार की मवेशी बाजार आसपास के राज्यों के साथ-साथ पुरे देश में प्रसिद्ध हुआ करता था.

मवेशी बाजार बलौदाबाजार का वर्तमान परिदृश्य

उल्लेखनीय है कि बलौदाबाजार शहर को नाम देने वाला मवेशी बाजार बढ़ती आबादी, अव्यवस्था और सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण के चलते अपने पूर्ववत स्थिति के बिल्कुल विपरीत हो चूका है. आज मवेशी बलौदाबाजार खुद गुमनाम और बेजार हो चूका है. यहाँ की गन्दगी, अतिक्रमण यहाँ की दुर्दशा को बयां करती है. प्रतिवर्ष नगर पालिका बलौदाबाजार को लाखों की आय देने वाला मवेशी बाजार की हालत और दुर्दशा से बाजार के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडरा रहे है. वही बाजार की खाली जमीन पर अवैध कब्जाधारियों द्वारा आये दिन विवाद का कारण बनता जा रहा है और बाजार का स्वरुप भी छोटा होता जा रहा है. विचारणीय बिंदु यह है कि जिस बाजार के चलते शहर का नामकरण हुआ, जिस बाजार में अन्य राज्यों के आने पशुपालकों द्वारा गुमनाम और छोटे शहर को पहचान दिलाई, जिस बाजार के कारण शहर का व्यापार गुलजार हुआ करता था, वही बाजार उपेक्षाओं और ध्यानाकर्षण में कमी के कारण आज गुमनामी की कगार पर है.

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एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला कहाँ लगता है?

भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि के साथ-साथ किसानों का पशुपालन में भी बहुत बड़ा योगदान होता है. कृषि और पशुपालन का कार्य एक-दुसरे के समान्तर चलता है और दोनों एक-दुसरे से जुड़े हुए होते हैं. भारत के किसान कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी आसानी से कर लेते हैं इसी वजह से पशुपालक किसान की आमदनी बढानें में पशुपालन का बहुत बड़ा योगदान होता है. वैसे तो भारत के विभिन्न राज्यों के विभिन्न स्थानों पर पशु मेला या मवेशी बाजार का आयोजन किया जाता है. लेकिन हम आज आपको भारत के सबसे बड़े मवेशी बाजार या पशु मेला के बारे में जानकारी देने जा रहें है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एशिया का सबसे बड़ा पशु बाजार या मेंला भारत में ही लगता है. यह पशु मेला भारत के कौन से राज्य और कौन से स्थान पर लगता है इसकी पूरी जानकारी आपको मिलेगी.

सबसे बड़ा पशु मेला – एशिया और भारत का सबसे बड़ा पशु मेला बिहार राज्य के सारण और वैशाली जिले के सीमा पर गंगा और गण्डक नदी के संगम स्थल पर लगने वाला विश्व प्रसिद्ध मेला सोनपुर गाँव में सोनपुर मेला के नाम से विदेशी शैलानियों के लिये विशेष आकर्षण का केंद्र होता है. यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होकर अगले एक महीने तक चलने वाला विश्व भर में एशिया के सबसे बड़ा पशु मेला के तौर पर जाना जाता है. बिहार के क्षेत्रीय लोग इसे हरिपुर क्षेत्र मेला या छत्तर मेला के नाम से भी जानते है. सोनपुर मेला भारत के साथ-साथ एशिया का भी सबसे बड़ा पशु मेला होता है. इस मेले में देशभर के लोगों के साथ-साथ पडोसी देश के भी लोग पशु की खरीददारी और बिक्री के लिये आते हैं.

सोनपुर मेला का पौराणिक आख्यान क्या है?

सोनपुर जगह से जुड़ी पौराणिक कथा था इस मेले के साथ पौराणिक आख्यान जुड़ा हुआ है. इस जगह से ऐसी मान्यता है कि भगवान के दो भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रुप में धरती पर अवतार लिये. बिहार के कोणहारा घाट पर जब गज पानी पिने आया तो ग्राह (मगरमच्छ) ने उसे मुंह में पकड़ लिया. गज(हाथी) ने ग्राह(मगरमच्छ) से छुटकारा पाने के लिये लगातार लड़ता रहा. पानी में रहने के बाद भी ग्राह ने गज को पानी के अंदर खींच पाने में असमर्थ रहा. गज और ग्राह का यह युद्ध इतना रोमांचकारी हो गया था कि समस्त देवता इस युद्ध को देखने के लिये यहाँ पर एकत्रित हो गये. इस युध्द में गज कमजोर पड़ने लगा और उसने भगवान विष्णु से जान बचाने के लिये प्रार्थना किया. फिर बाद में कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के युद्ध को रोका. गज और ग्राह में कौन विजयी हुआ यह रहस्य आज तक ज्ञात नहीं हुआ. कौन हारा के चलते ही उस स्थान का नाम कोणहारा घाट नाम पड़ा. उसी स्थान पर भगवान हरि (विष्णु) और हर (शिव) का मंदिर है. इसलिए उस क्षेत्र को हरिहर क्षेत्र भी कहा जाता है. कुछ लोंगों का कहना है कि हरिहरनाथ मंदिर का निर्माण भगवान राम ने सीतास्वयंबर के लिये जाते समय स्वयं अपने हाथों से किया था. इस मंदिर की मरम्मत राजा मानसिह ने करवाया था. मुगलकाल में राजा रामनारायण ने इस मंदिर को एक व्यापक रूप दिया. एक महीने तक चलने वाला सोनपुर पशु मेला का आकर्षण, पशुओं की खरीद फ़रोस्त देखते ही बनता है. सोनपुर मेले की एक और विशेषता यह है की यहाँ के मेले में हाथी, घोड़ा और गाय की व्यापक बिक्री भी होता है. सोनपुर पशु मेला भारत का एकमात्र ऐसा पशु मेला है जहाँ पर पशुओं की बिक्री अत्यधिक संख्या में होती है.

छत्तीसगढ़ का सबसे पुराना और बड़ा पशु बाजार कौन है?

छत्तीसगढ़ का सबसे पुराना पशु बाजार रतनपुर बिलासपुर में लगता है तथा सबसे बड़ा पशु बाजार भैंसाथान रायपुर में लगता है. वर्तमान में रतनपुर छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले का एक नगर पंचायत है. यह नगर कलचुरी और मराठा काल के समय छत्तीसगढ़ की राजधानी हुआ करती थी. रतनपुर की इतिहास के बारे में बात करें तो रतनपुर की स्थापना राजा रत्नदेव प्रथम ने किया था. रतनपुर राज्य और रायपुर राज्य क्रमशः शिवनाथ नदी के उत्तर और दक्षिण में स्थित थे. प्रत्येक राज्य में 18-18 गढ़ हुआ करता था. रत्नदेव कमलराज के पुत्र और कलिंगराज के पोते थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ क्षेत्र पर विजय प्राप्त किया था. इसलिए रत्नदेव को कलचुरी शाखा का वास्तविक संस्थापक माना जाता है. 11वी ई. में रतनपुर को छत्तीसगढ़ की राजधानी बना दी गई. वर्ष 1045 ई. में राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक गाँव पर शिकार के लिये गए थे. जहाँ रात्रि विश्राम उन्होंने एक वट वृक्ष के नीचे किया. अर्द्ध रात्रि को जब राजा कि आंखे खुली तो उन्होंने वट वृक्ष के निचे एक अलौकिक प्रकाश देखा. यह देखकर चमत्कृत हो गये और वहां देखा की महामाया देवी की सभा लगी हुई है. इसे देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे. सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया तथा 1050 ई. में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित किया गया.

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