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गाय एवं भैसों में गर्मी या मद चक्र क्या है : What is the Heat Cycle in Cow and Buffaloes

गाय एवं भैसों में गर्मी या मद चक्र क्या है : What is the Heat Cycle in Cow and Buffaloes, गाय एवं भैसों में गर्मी या मद से आशय गाय, भैंस के प्रजनन तंत्र तथा गर्भाशय में, गर्भ धारण के उद्देश्य से ऋतुकाल चक्र का प्रारंभ होना होता है. जब पशु गर्मी या मद में आती है तो पशु के शरीर के प्रजनन अंगो में हलचल और परिवर्तन होने लगता है.

What is the Heat Cycle in Cow and Buffaloes
What is the Heat Cycle in Cow and Buffaloes

गाय एवं भैसों में गर्मी या मद चक्र क्या है : What is the Heat Cycle in Cow and Buffaloes, गाय एवं भैसों में गर्मी या मद से आशय गाय, भैंस के प्रजनन तंत्र तथा गर्भाशय में, गर्भ धारण के उद्देश्य से ऋतुकाल चक्र का प्रारंभ होना होता है. जब पशु गर्मी या मद में आती है तो पशु के शरीर के प्रजनन अंगो में हलचल और परिवर्तन होने लगता है. पशुओं में गर्मी या मद में आने का मतलब पशु के शरीर का तापमान का गर्म होना नहीं होता है, बल्कि इसका मतलब पशुओं में ऋतुकाल चक्र का प्रारंभ होना होता है. पशुपालक को दुधारू पशुओं में प्रजनन काल की सफलता के लिए मद चक्र का जानना बहुत आवश्यक होता है. गाय एवं भैसों में गर्मी के लक्षण लगभग पशु के 250 किलोग्राम वजन हो जाने के बाद दिखाई देतें है. गाय एवं भैसों में मद चक्र अच्छे नस्ल और स्वस्थ पशुओं में ब्याने के 1.5 से 2 माह बाद शुरू हो जाता है. परंतु कमजोर और देशी, अवर्णित पशुओं में मद चक्र के आने में समय लगता है. मद चक्र शरीर में संचालित कुछ खास नैसर्गिक हार्मोन्स के स्त्राव के कारण होता है.

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पशुओं में गर्मी या मदचक्र की पहचान कैसे करें – जब मादा पशु यौनारम्भ और लैंगिक परिपक्वता के दौरान अपने गर्भाशय के अन्दर गर्भ को पलने में सक्षम हो जाता है. तो पशु में गर्मी या मद के लक्षण दिखाई देतें है. पशुओं में गर्मी या मद की पहचान के कुछ मुख्य लक्षण निम्न है.

1 . गर्मी में आने वाले गाय या भैंस का उत्तेजित या बेचैन दिखाई देना.

2. खाना पीना कम कर देना और दूध उत्पादन कम हो जाना.

3. बार – बार रम्भाना और बार – बार पेशाब करना.

4. पूंछ को बार – बार ऊपर उठाना.

5. योनी से चिपचिपा स्त्राव बाहर आना या लटके हुए दिखाई देना.

6. योनी से निकलने वाली चिपचिपा स्त्राव/श्लेष्मा शुरुवात में पतला और बाद में गाढ़ा पारदर्शक दिखाई डेटा है. मध्य चरण के दौरान श्लेष्मा पारदर्शी और जमीन तक लटक जाना. यह लक्षण पशुओ में प्रमुख माना जाता है.

7. योनी की दोनों भगोष्टों में सुजन और चमकदार दिखाई देना.

8. दोनों भगोष्टों को खोलने पर योनी में लालिमा दिखाई देना.

9. गर्मी में आने वाले पशु स्वयं दुसरे पशु के ऊपर चढ़ना या सांड को अपने ऊपर चढ़ने देना, खड़े रहना.

10. गर्मी में आने पर सांड की तलाश में गाय -भैंस का इधर – उधर भागना.

Estrous  Cycle in Animals
Estrous Cycle in Animals

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गाय एवं भैसों में गर्मी या मद की प्रक्रिया – गाय एवं भैसों में गर्मी या मद प्रक्रिया को निम्नलिखित तरीके से समझा जा सकता है तथा गर्मी का पता लगाया जा सकता है.

ऋतुकाल चक्र – मादा पशुओं में यौनारम्भ के पश्चात् गर्भ निर्माण के उद्देश्य से अग्रपियुशिका ग्रंथि से प्रजनन हार्मोन्स निकलने लगता है. जिससे प्रजनन तंत्र के सभी अंगों में लयबद्ध क्रमिक लैंगिक बदलाव, एक निश्चित समय अन्तराल में होता है. इस निश्चित समय अन्तराल में शुरू होने की क्रिया को ही ऋतुकाल चक्र कहते है. अर्थात पशुओं में गर्भ निर्माण की प्रक्रिया एक निश्चित समय में होते रहती है. ऋतुकाल चक्र गाय एवं भैसों में 18 से 22 दिन का होता है. जब मादा पशु गाभिन नहीं हो पाती या गर्भ धारण नही कर पाती तो यह चक्र प्रत्येक 21 दिन के बाद बार-बार आने लगता है. पशु के गाभिन हो जाने के बाद ऋतुकाल चक्र बंद हो जाता है. ऋतुकाल चक्र को चार भागों में समझ सकते है. 1. ऋतुअग्रकाल, 2. ऋतुकाल, 3. ऋतु उपरान्त कल, 4. ऋतु विश्रान्तकाल.

1 . ऋतुअग्रकाल/प्रोस्ट्रास (Prostrus) – ऋतुकाल चक्र की शुरुवात इसी अवस्था से होती है. गाय एवं भैसों में इसकी अवधि 2 से 3 दिन की होती है. गर्भाशय में डिम्ब निर्माण के उद्देश्य से प्रजनन तंत्र के पूर्व तैयारियों का समय ऋतुअग्रकाल कहलाता है. इस अवस्था में पशु के गर्भाशय के अन्दर लैंगिक आन्तरिक बदलाव की शुरुवात हो जाति है. जैसे गर्भाशय मुख का विस्तृत होना, योनी एवं अन्य अंगों में खून का संचार बढ़ने लगता है.

2. ऋतुकाल (Estrus) – कृत्रिम गर्भाधान के लिये ऋतुकाल (Estrus) का समय उचित होता है. ऋतुकाल की समयावधि गायों में 24 घंटें का होता है और भैसों में 36 घंटे का होता है. गाय एवं भैंसों के ऋतुकाल को तीन चरणों में समझ सकते है. 1. प्रथम चरण, 2. द्वितीय चरण या मध्य चरण 3. तृतीय या अन्तिम चरण. इस अवस्था में पशुओं में मद के लक्षण दिखाई देने लगते है. गाय या भैस सांड के प्रति आकर्षित हो जाति है और प्राकृतिक समागम की इच्छा का समय सूचित करता है. कृत्रिम गर्भाधान के लिए मध्य चरण को उपयुक्त माना जाता है. क्योकि गाय में गर्मी के लक्षण की शुरुवात से 12 से 18 घंटें का समय मध्य चरण कहलाता है तथा भैसों में गर्मी के लक्षण की शुरुवात से 18 से 24 घंटे का समय मध्य चरण कहलाता है. अतः गाय एवं भैसों में मध्य चरण में गर्भाधान कराना चाहिए.

3. ऋतुउपरांत काल (Metastrus) – इस काल की अवधी 7 दिन तक होती है. इस अवस्था में योनी झुर्रीदार बन जाति है तथा गर्भाशय ग्रीवा का मुख धीरे -धीरे बंद हो जाता है. इस अवस्था में गर्भाशय के अन्दर भ्रूण आरोपण की तैयारी की जाति है और गर्भाशय के अन्दर गर्भाशय दुग्ध का स्त्राव होने लगता है. गर्भाशय के अन्दर गर्भाशय ग्रीवा के ग्रथियो की स्त्रावी सक्रियता घट जाति है.

4. ऋतुविश्रान्त काल (Diestrus) – यह ऋतुकाल चक्र की अंतिम अवस्था होती है जो 7 से 10 दिन तह रहती है. इस अवस्था में सभी जननांग अपनी पूर्ण अवस्था में आ जाते है और लैंगिक विश्राम लेते है. तथा गर्भाशय ग्रीवा बैंड हो जाति है. यदि पशु गर्भधारण नहीं कर पति है तो 7 से 10 दिन के पश्चात् ऋतुकाल चक्र की पुनरावृत्ति होती है.

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पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव – वैसे तो साल भर पशु गर्मी में आते रहते हैं लेकिन पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव भी देखने में आता है. भैंसों में ऋतुओं का प्रभाव गायों की अपेक्षा बहुत अधिक पाया जाता है. भैसों में गर्मी या मद के लक्षण ठण्ड के दिनों में अधिक दिखाई डेटा है. गायों विरुद्ध भैंसों में त्रैमास मई-जून-जुलाई प्रजनन के हिसाब से सबसे खराब रहता है. जिसमें केवल 11.11% भैंसें गर्मीं में देखी गयी है. जनकी त्रैमास अक्टूबर -नवम्बर-दिसम्बर सर्वोतम पाया गया जिसमें 44.13% भैंसों को मद में रिकार्ड किया गया. पशु प्रबन्धन में सुधार करके तथा पशुपालन में आधुनिक वैज्ञानिक त्रिकोण को अपना कर पशुओं के प्रजनन पर ऋतुओं के कुप्रभाव को जिससे पशु पालकों को बहुत हानि होती है, काफी हद तक कम किया जा सकता हैं.

What is the Heat Cycle in Cow and Buffaloes
What is the Heat Cycle in Cow and Buffaloes

पशुओं के मद काल का वर्गीकरण – सभी पशुओं में मदकाल की समयावधि एक सामान नहीं होती है. सभी पशुओं में अलग-अलग मदकाल देखा गाय है. पशुओं के मदकाल को तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है.

1 . एकमद कालीय पशु – इस प्रकार के पशुओं में वर्ष में सिर्फ एक बार मद या गर्मी के लक्षण दिखाई देते हैं. ऐसे पशुओं को एक मदकालीय पशु कहते है. इस वर्ग में कुत्ता, लोमड़ी, भेड़िया, भालू और अन्य जानवर शामिल है.

2. बहुमदकालीय पशु – इस प्रकार के पशुओं में वर्ष में अनेक मदकाल पये जाते हैं, इसलिए इन्हें बहुमद कालीय पशु कहते है. इस वर्ग में गाय, भेड़, बकरी, घोड़ी इत्यादि जानवर शामिल है.

3. मौसमी बहुमद कालीय पशु – इस प्रकार के पशुओं में केवल वर्ष के सिर्फ एक मौसम में अनेक मदकाल दिखाई देते है. ऐसे पशुओं को मौसमी बहुमद कालीय पशु कहते है. जैसे – भैंस इस वर्ग में शामिल है. क्योकि भैस में वर्ष में सिर्फ ठण्ड के दिनों में गर्मी या मद के लक्षण दिखाई देते है.

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असामान्य मद या ऋतुकाल – असामान्य मद या ऋतुकाल से तात्पर्य मादा पशुओं का पशु मद में होने पर भी पशुओं में मद के लक्षण दिखाई नहीं देते. कुछ पशुओं में गाभिन होने पर भी गर्मी या मद के लक्षण दिखाई देते है. तथा कुछ पशुओं में हार्मोन्स के स्त्राव की कमी के वजह से चुप्पिमद या सायलेंट हीट दिखाई देतें है. इस प्रकार के पशुओं में गर्मी या मद के लक्षण असामान्य ऋतुकाल या मद कहलाता है.

1 . चुप्पीमद या अप्रत्यक्ष ऋतुकाल (साइलेंट हीट) – गाय की अपेक्षा भैंस में इस प्रकार के ऋतुकाल की संभावनाएं ज्यादा होती है. इस प्रकार के ऋतुकाल में मद के लक्षण कमजोर होने से पशु प्रजनन की क्रिया से वंचित रह सकता है. ऐसी स्थिति में पशुपालक को पूरी तरह सतर्क रहना चाहिए. भैसवंशीय पशुपालक को विशेषकर अपने पशुओं को ध्यान देना चाहिए, क्योकि भैसों में मौशमी मद पाया जाता है. इस स्थिति में पशुपालक को अपने पशुओं के प्रति लगाव होना चाहिए और प्रतिदिन पशुओं के निरिक्षण करने से चुप्पीमद या सायलेंट हिट की पहचान किया जा सकता है. बड़े डेयरी फार्म वालों को चुप्पीमद की पहचान के लिये ट्रिजर बुल का इस्तेमाल करना चाहिए और मद में आयी मादा पशु की पहचान करके, पशु में कृत्रिम गर्भाधन कराना चाहिए.

2. बंदी डिम्ब – इस अवस्था में मद के लक्षण सामान्य होते है पर कभी G.F. नहीं टूटने से डिम्ब बंदी बन जाता है, तो उसे बंदी डिम्ब कहते है. बंदी डिम्ब का कारण ल्युटीनाईझींग हार्मोन्स की कमी अथवा समय पर स्त्रावण नहीं होना है. ल्युटीनाईझींग हार्मोन्स का कार्य G.F. में विस्फोट कराकर डिम्ब को मुक्त करना होता है.

3. गर्भिणी मद – गर्भिणी मद से आशय मादा पशु का गर्भ में होते हुए भी गर्मी या मद के लक्ष्ण दिखाई देना है. इस प्रकार की स्थिति गाभिन पशु में 7% तक मद के लक्षण दिखाई देतें है. पशुओं में ऐसी स्थिति हार्मोन्स की गड़बड़ी की वजह निर्मित होती है. ऐसी स्थिति में गर्भ परिक्षण करने के बाद ही मादा पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान करना शुनिश्चित करें. पशु के गाभिन होने पर गर्भाधान नही कराना चाहिए.

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मेरे प्रिय पशुपालक और पशुधन प्रेमियों उपर्युक्त लेख के द्वारा पशुधन से जुड़ी अहम् ख़बरें और महत्वपूर्ण भूमिकाओं दर्शाने की कोशिश किया गया है. इस लेख में पशुधन विकास विभाग और संबंधित पशुधन वेबसाइट पोर्टल के माध्यम से उचित आंकड़ो पर लेख लिखा गया है, परंतु किसी भी प्रकार की त्रुटियाँ होने की सम्भावनायें हो सकती है.

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