पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की विधि : Method of Artificial Insemination in Animals
पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की विधि : Method of Artificial Insemination in Animals, पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान ऐसी प्रक्रिया है जिसमें नर सांड के हिमीकृत संचित वीर्य को कृत्रिम विधि द्वारा, मद या गर्मी में आने वाली मादा पशु के गर्भाशय में छोड़ा जाता है. इस प्रक्रिया को पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान कहा जाता है.

पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की विधि : Method of Artificial Insemination in Animals, पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान ऐसी प्रक्रिया है जिसमें नर सांड के हिमीकृत संचित वीर्य को कृत्रिम विधि द्वारा, मद या गर्मी में आने वाली मादा पशु के गर्भाशय में छोड़ा जाता है. इस प्रक्रिया को पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान कहा जाता है. पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया को विभिन्न चरणों के द्वारा पूर्ण किया जाता है. कृत्रिम गर्भाधान हेतु स्वस्थ और उत्तम नस्ल के सांड के वीर्य को निकालकर हिमीकृत किया जाता है. हिमीकृत वीर्य को सुरक्षित तरीके से मद या गर्मी में आने वाली मादा पशु के जननांग गर्भाशय में स्थापित किया जाता है.
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कृत्रिम गर्भाधान का उद्देश्य – पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान का प्रमुख उद्देश्य देशी या अवर्णित पशुओं (विशेषकर – गाय, भैस, भेड़, बकरी और अन्य पशु) में गर्भाधान करके शीघ्रता से पशु नस्ल सुधार करना है. नस्ल सुधार होने से पशुपालक के पास अच्छे नस्ल के दुधारू पशु उपलब्ध होंगे. जिससे पशुपालक के दूध उत्पादन में वृद्धि होगी. फलस्वरूप पशुपालकों की आमदनी बढ़ेगी और पशुपालक किसानों का ध्यान पशुपालन की ओर आकर्षित होगा. पशुपालक देशी, विदेशी, अवर्णित और अन्य सभी पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान करा सकते है.
गाय और भैसों में गर्मी या मद के लक्षण (Heat Symptoms in Animals) – गाय एवं भैसों में गर्मी या मद से आशय गाय, भैंस के प्रजनन तंत्र तथा गर्भाशय में, गर्भ धारण के उद्देश्य से ऋतुकाल चक्र का प्रारंभ होना होता है. जब पशु गर्मी या मद में आती है तो पशु के शरीर के प्रजनन अंगो में हलचल और परिवर्तन होने लगता है. पशुओं के गर्मी या मद की सही पहचान नीचे दिए गए पशु के बाहरी लक्षण के आधार पर किया जा सकता है.
1 . गर्मी में आने वाले गाय या भैंस का उत्तेजित या बेचैन दिखाई देना.
2. खाना पीना कम कर देना और दूध उत्पादन कम हो जाना.
3. बार – बार रम्भाना और बार – बार पेशाब करना.
4. पूंछ को बार – बार ऊपर उठाना.
5. योनी से चिपचिपा स्त्राव बाहर आना या लटके हुए दिखाई देना.
6. योनी से निकलने वाली चिपचिपा स्त्राव का मध्य चरण के दौरान पारदर्शी और जमीन तक लटक जाना.
7. योनी की दोनों भगोष्टों में सुजन और चमकदार दिखाई देना.
8. दोनों भगोष्टों को खोलने पर योनी में लालिमा दिखाई देना.
9. गर्मी में आने वाले पशु स्वयं दुसरे पशु के ऊपर चढ़ना या सांड को अपने ऊपर चढ़ने देना, खड़े रहना.
10. गर्मी में आने पर सांड की तलाश में गाय -भैंस का इधर – उधर भागना.

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कृत्रिम गर्भाधान कब कराये – पशुपालक को कृत्रिम गर्भाधान के लिये सही समय का पहचान करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. पशुओं में गर्भाधान का सही समय की पहचान नहीं कर पाने से पशु गर्भधारण नही कर पता और पशुओं में बार – बार ऋतुकाल चक्र की पुनरावृत्ति होती है. फलस्वरूप गाय, भैस गर्भधारण होने से बार-बार चुक जाता है. जिससे पशुपालक को पशुओं के दूध उत्पादन, रिपीट ब्रीडिंग, पोषण और प्रबंधन जैसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसलिए पशुपालक को कृत्रिम गर्भाधान का सही समय का ज्ञान होना अति आवश्यक है. नीचे कृत्रिम गर्भाधान का उचित समय और लैंगिक परिपक्वता सम्बन्धी विवरण दिया गया है.
1 . यौनारम्भ – कृत्रिम गर्भाधान के लिये मादा पशुओं में यौनारम्भ का होना आवश्यक है. यौनारम्भ से आशय मादा पशु में जब पहली बार मद या गर्मी के लक्षण दिखाई देते है, तो उसे यौनारम्भ कहते है. अर्थात पशुपालक मादा पशुओं में इसकी पहचान करके ही कृत्रिम गर्भाधान कराएँ.
2. लैंगिक परिपक्वता – पशुओं की लैंगिक परिपक्वता से आशय मादा पशु में यौनारम्भ के बाद जब वह अपने गर्भाशय के अन्दर गर्भ को पालने में सक्षम हो जाता है, तो उसे लैंगिक परिपक्वता कहते है.
3. ऋतुकाल चक्र – मादा पशुओं में यौनारम्भ के पश्चात् गर्भ निर्माण के उद्देश्य से अग्रपियुशिका ग्रंथि से प्रजनन हार्मोन्स निकलने लगता है. जिससे प्रजनन तंत्र के सभी अंगों में लयबद्ध क्रमिक लैंगिक बदलाव, एक निश्चित समय अन्तराल में होता है. इस निश्चित समय अन्तराल में शुरू होने की क्रिया को ही ऋतुकाल चक्र कहते है. अर्थात पशुओं में गर्भ निर्माण की प्रक्रिया एक निश्चित समय में होते रहती है. ऋतुकाल चक्र गाय एवं भैसों में 18 से 22 दिन का होता है. जब मादा पशु गाभिन नहीं हो पाती या गर्भ धारण नही कर पाती तो यह चक्र प्रत्येक 21 दिन के बाद बार-बार आने लगता है. पशु के गाभिन हो जाने के बाद ऋतुकाल चक्र बंद हो जाता है. ऋतुकाल चक्र को चार भागों में समझ सकते है. 1. अग्र ऋतुकाल, 2. ऋतुकाल, 3. ऋतु उपरान्त कल, 4. ऋतु विश्रान्तकाल.
ऋतुकाल – कृत्रिम गर्भाधान के लिये ऋतुकाल (Estrus) का समय उचित होता है. ऋतुकाल की समयावधि गायों में 24 घंटें का होता है और भैसों में 36 घंटे का होता है. गाय एवं भैंसों के ऋतुकाल को तीन चरणों में समझ सकते है. 1. प्रथम चरण, 2. द्वितीय चरण या मध्य चरण 3. तृतीय या अन्तिम चरण.
द्वितीय या मध्य चरण – गाय एवं भैसों में कृत्रिम गर्भाधान के लिये ऋतुकाल की मध्यचरण को उपयुक्त माना जाता है. अर्थात गाय और भैसों में कृत्रिम गर्भाधान मध्य चरण में कराने से ही गर्भ धारण कर पाती है. मध्य चरण का समय पशु के गर्मी या मद में आने के प्रारंभिक समय से गायों में 12 से 18 घंटे और भैसों में 18 से 24 घंटे का समय होता है. अत: सभी पशुपालक गाय एवं भैसों में कृत्रिम गर्भाधान ऋतुकाल की मध्य चरण में करायें.
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कृत्रिम गर्भाधान से लाभ या फायदे – पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान कराने से पशुपालक या पशु मालिक को प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में बहुत लाभ होता है. कृत्रिम गर्भाधान के कुछ मुख्य फायदे निम्नलिखित है.
1 . कृत्रिम गर्भाधान के लिये पशुपालक अपने क्षेत्र से दूर या विदेशों में उपलब्ध उत्तम नस्ल के सांड के हिमीकृत वीर्य को अपने गाय एवं भैसों में गर्भाधान कराके लाभ उठा सकते है.
2. कृत्रिम गर्भाधान से उत्तम नस्ल के सांड की नस्ल को अधिक समय तक जीवित या सुरक्षित रखा जा सकता है.
3. प्राकृतिक गर्भाधान में एक सांड के वीर्य से 1 वर्ष में केवल 60-70 पशुओं को गर्भित किया जा सकता है, जबकि कृत्रिम गर्भाधान के द्वारा एक सांड के वीर्य से एक वर्ष में हजारों गाय, भैंस या पशुओं को गर्भित किया जा सकता है.
4. कृत्रिम गर्भाधान से पशुपालकों को धन एवं श्रम की बचत होती है. क्योकि पशुओं के गर्भाधान के लिए सांड की आवश्यकता नही पड़ती.
5. कृत्रिम गर्भाधान से देशी, अवर्णित गाय, भैसों में अच्छे नस्ल का बछड़ा पैदा किया जा सकता है.
6. कृत्रिम गर्भाधान से गाय, भैसों के प्रजनन से संबंधित रिकार्ड रखने में आसानी होती है.
7. इस विधि के द्वारा वृद्ध, असहाय और लंगड़े पशुओं में गर्भाधान करके वत्स उत्पादन किया जा सकता है.
8. पशुपालक को उत्तम नस्ल के जानवर खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योकि इसे देशी, अवर्णित पशुओं से पैदा किया जा सकता है.
9. कृत्रिम गर्भाधान से प्राकृतिक गर्भाधान/समागम के दौरान सांड के भारी वजन से पशुओं में होने वाली दुर्घटना को रोका जा सकता है.
10. इस विधि द्वारा नर पशुओं से मादा पशुओं में फैलने वाली संक्रामक बीमारी जैसे – ब्रुसोलेसिस, विब्रियोसिस, ट्रायकोमोनियासिस, लेप्टोस्पायरोसिस, संक्रामक रोग, अनुवान्सिक रोग आदि को फैलने से रोका जा सकता है.

गाय और भैसों में गर्मी या मद में आने का सही समय – पशुओं में यौनारम्भ और लैंगिक परिपक्वता के पश्चात् मादा पशुओं के सम्पूर्ण प्रजनन अंगों में आतंरिक बदलाव होने लगती है. योनि और अन्य अंगों में खून का संचार बढ़ने लगता है. गर्भाशय ग्रीवा से श्लेष्मा तैयार करने वाली ग्रंथियां अपना कार्य प्रारंभ कर देती है. प्रायः गाय एवं भैसों में गर्मी के लक्षण शाम की अपेक्षा सुबह के घंटों में शुरू होता देखा गया है. अर्थात गाय और भैसों में 60% से 70% पशु प्रातः काल के समय गर्मी में आते हुए देखा गया है. चूँकि गायों में गर्मी या मद का समय 24 घंटे का होता है, परंतु गायों में कृत्रिम गर्भाधान का सही समय 12 से 18 घंटे के मध्य अर्थात ऋतुकाल अवस्था की मध्य चरण में करवाना चाहिये. ठीक इसी प्रकार भैसों में गर्मी या मद का समय 36 घंटे का होता है, परंतु भैसों में कृत्रिम गर्भाधान का सही समय 18 से 24 घंटे के मध्य अर्थात यह अवस्था ऋतुकाल की मध्य अवस्था होती है. इसलिए भैसों में कृत्रिम गर्भाधान का उपयुक्त समय 18 से 24 घंटे का मध्य अर्थात दुसरे दिन गर्भाधान करवाना चाहिए. मध्य चरण में कृत्रिम गर्भाधान कराने से गाय और भैसों के गर्भधारण करने की 90% गारंटी होती है. अतः पशुपालक पशुओं के गर्मी में आने की सही समय की पहचान करें और कृत्रिम गर्भाधान कराएँ.
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कृत्रिम गर्भाधान की सावधानियां –
1 . पशुपालक कृत्रिम गर्भाधान कराते समय गाय, भैंसों की अच्छी तरह से गर्मी की पहचान करके ही गर्भाधान कराएँ.
2. कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता या पशुचिकित्सक गर्भाधान के पूर्व पशु में गर्मी या मद की जाँच करके ही गर्भाधान सुनिश्चित करें.
3. यदि पशुपालक द्वारा पशु की पूर्व में गर्मी में आने की सुचना मिले या सांड के साथ जाने की जानकारी मिले तो कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता या पशुचिकित्सक उस पशु का गर्भ परिक्षण कने के बाद ही गर्भाधान करें.
4. कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता या पशुचिकित्सक कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक सम्पादित करें. प्रक्रिया में लापरवाही पशु के गर्भधारण को प्रभावित कर सकता है.
5. हिमीकृत वीर्य को थाविंग करते समय कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता या पशुचिकित्सक थर्मामीटर का प्रयोग करके पानी की तापमान की जाँच करें, न की अपने हाथों से पानी का तापमान चेक करके.
6. कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता या पशुचिकित्सक गाय भैसों में गर्भाधान करते समय गोबर निकालने के लिये हांथों में हैण्ड ग्लब्स का प्रयोग करना सुनिश्चित करें.
7. थाविंग करने के पश्चात् वीर्य को कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता या पशुचिकित्सक गन की सहायता से गर्भाशय द्वार के अन्दर छोड़े. AI गन को गर्भाशय हार्न/गर्भाशय श्रृंग तक नहीं ले जाएँ, क्योकि इससे गर्भाशय श्रृंग में चोट लगने की संभावना बढ़ जाति है. या पशु गर्भधारण करने में असमर्थ हो जाता है.
8. गर्भाधान होने के बाद पशुपालक कोशिश करें की पशु 1 घंटे तक नहीं बैठे. पशु के बैठ जाने से बच्चेदानी से वीर्य का बाहर आने की सम्भावनाये बढ़ जारी है, जिससे पशु के रिपीट होने की चांस होते है.
9. पशुपालक कोशिश करें की कृत्रिम गर्भाधान के पश्चात् मादा पशु को खुला न करें और नही किसी अन्य सांड के पास जाने दे. इसे दो – तीन दिन तक घर में बांध कर रखने से बेहतर परिणाम मिल सकता है.
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