पशुओं के जोन्स रोग क्या है : What is Jones Disease in Animals
पशुओं के जोन्स रोग क्या मनुष्यों में भी फैलता है : What is Jones Disease in Animals – पशुओं के जोन्स रोग, क्षय (T.B.) रोग की भांति भयानक छुतदर रोग है. यह बीमारी जुगाली करने वाले भेड़, बकरियों, गौवंशीय और भैंसवंशीय पशुओं में माइकोबैक्टीरियम पैराट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु से होने वाला दीर्घकालिक रोग है. यह एक जुनौटिक रोग है जो भारत के लगभग सभी राज्यों में पाया जाता है. यह जीवाणु मनुष्य में क्रानस बीमारी से संबंधित पाया जाता है. इस जुनौटिक रोग का छूत मनुष्यों में भी लगती है.
प्रभावित पशुधन – यह रोग खासकर जुगाली करने वाले पशुओं में जैसे भेड़, बकरी, गौवंशीय और भैंसवंशीय पशुओं में अधिक प्रमाण में पाया गया है. पशुपालकों को इस रोग से अधिक आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है. माइकोबैक्टीरियम पैराट्यूबरक्लोसिस जीवाणु नवजात बच्चो या बछड़ों में, वयस्क पशु जैसे भेड़, बकरियों में 1 साल के बाद तथा गाय, भैंस में 2 से 3 साल के बाद ही रोग के लक्षण दिखाई देता है.
जीवाणु का संक्रमण या छूत लगने का ढंग – जोन्स रोग का जीवाणु नवजात बछड़ों या बच्चों में संक्रमित दूध, चारा या पानी के माध्यम से संक्रमित करता है. किन्तु काफ़ी लम्बे समय अन्तराल के बाद वयस्क पशुओं भेड़, बकरी में 1 साल बाद तथा गाय भैंस में 2 से 3 साल के बाद ही रोग का पता चल पाता है. यह एक शरीर को गलाने वाला रोग है अतः पशु में रोग का संक्रमण कब होता है, इसका पता ही नहीं चल पाता है. जीवाणु का संक्रमण एवं संचरण एक प्रजाति के पशु से दुसरे प्रजाति के पशु में हो सकता है. बाहरी वातावरण में जीवाणु 9 माह से 12 माह तक जीवित रह सकता है. बड़े-बड़े गौशाला और डेयरी फार्मों में जोन्स रोग के जीवाणु माइकोबैक्टीरियम पैराट्यूबरक्लोसिस का एक बार संक्रमण फैलने के बाद बीमारी से मुक्ति पाना बहुत ही मुश्किल होता जाता है.
माइकोबैक्टीरियम पैराट्यूबरक्लोसिस जीवाणु के छूत लगने का तरीका
1 . दूषित खाद्य – रोगी पशु के मलमूत्र से जीवाणु बाहर निकलते है जिससे चारा, खाद्य, पानी दूषित होकर रोग के जीवाणु पशु के शरीर में प्रवेश कर जाता है.
2. अनुचित प्रबंधन – जोन्स रोग के जीवाणु दूषित प्रबंधन, तनाव, कुपोषण, कम जगह में ज्यादा पशु को बांधना या रखना, पशुओं के पेट में कृमि की समस्या या संख्या का ज्यादा होना आदि कारण से यह रोग जल्दी लग जाता है.
3. जन्मजात – छोटे बछड़ों में जीवाणु का संक्रमण गर्भ में विकास होते समय ही रोगी माता के द्वारा बछड़ों में गर्भ के अन्दर से ही संक्रमित हो जाता है.
4. दूषित वीर्य – माइकोबैक्टीरियम पैराट्यूबरक्लोसिस जीवाणु से यदि नर सांड संक्रमित होता है तो इस संक्रमित सांड से गर्भित मादा पशु और गर्भ में पल रहा भ्रूण भी जोन्स रोग से संक्रमित हो सकता है.
5. दूध के द्वारा – जोन्स रोग से संक्रमित या रोगी मादा दुधारू पशु के दूध पिने से बछड़ों या बच्चो में भी यह बीमारी होने की संभावना होती है.
जोन्स रोग के लक्षण
यह जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम पैराट्यूबरक्लोसिस) विशेषकर छोटी आंत की अन्तः त्वचा पर आक्रमण करते है, जिसकी वजह से प्रभावित पशु की अन्तः त्वचा सूज जाती है एवं मोटी हो जाती है. उस पर फाईब्रिन (Fibrosis) जमा हो जाता है. जिसके कारण छोटी आंत के अन्तः त्वचा का भाग जेब्रा क्रासिंग (Zebra Crossing) जैसा दिखने लगता है. पशुओं को पानी जैसे पतले, बहुत बदबूदार, तेज दस्त आने लगता है और इसमें गैस के बुलबुले दिखाई पड़ता है. जोन्स रोग से प्रभावित पशुओं में लम्बे समय तक लगातार दस्त चलते रहता है. कभी-कभी दस्त बैंड होकर कुछ दिन बाद पुनः शुरू होने लगता है और उपचार को भी उचित परिणाम नहीं मिलता है. पशु लगातार दस्त की वजह से निर्बल एवं क्षीण हो जाता है जिससे शरीर का भार भी घट जाता है. पशुओं के जबड़े के निचे एवं गलकंबल में सुजन दिखाई देती है. पशुओं में धीरे-धीरे भार का घट जाना, दुर्बलता, मांसपेशियों में क्षरण और अतिसार की वजह से अंततः पशु जीर्ण होकर मृत्यु को गले लगा लेती है.
रोकथाम और बचाव
1 . जोन्स रोग से प्रभावित पशुओं में लक्षण के आधार पर रोग के होने का पता लगाकर, केवल स्वस्थ पशु को ही रखना चाहिए.
2. रोग से प्रभावित पशु के मल का आलेप बनाकर रोग ले जीवाणु का पता लगाया जा सकता है.
3. पशुओं के बाड़े में चुने का छिड़काव भारी मात्रा में करके रोग के जीवाणु को नष्ट किया जा सकता है.
4. पशुओं को दूषित चारागाह पर चरने के लिये नहीं छोड़ना चाहिए.
5. पशुओं को नियमित जोनिन टेस्ट करवाना चाहिए.
6. नए ख़रीदे पशुओं को भी जोनिन टेस्ट करवाकर ही स्वस्थ पशु को अपने निजी जानवरों के साथ मिलाना चाहिए.
उपचार
1 . जोन्स रोग का उपचार अप्रभावी होने के कारण पर्याप्त प्रतिसाध नहीं मिल पाता है. प्रत्येक रोग से ग्रसित पशु की शीघ्र पहचान करके रोगी पशु को अलग रखना चाहिए.
2. रोग से ग्रसित पशुओं को अलग कर दे या फ़ौरन गोसदन भेज देना चाहिए.
3. नए पशुओं को झुण्ड में शामिल करने से पहले पशु विशेषग्य से पशुओं का जोनिन टेस्ट या एलईसा परिक्षण करवा लेना चाहिए.
4. गौशालाओं एवं बाड़ों की सफाई रासायनिक औषधि जैसे सोडियम आर्थोफिनाइल फिनेट 1 अनुपात 200 से करने से जोन्स रोग के जीवाणु को नष्ट करने में मदद मिलती है.
इन्हें भी पढ़ें : एशिया और भारत का सबसे बड़ा पशुमेला तथा छ.ग. का सबसे बड़ा और पुराना पशुबाजार कहाँ लगता है?
इन्हें भी पढ़ें : कबूतर को संदेशवाहक पक्षी क्यों कहा जाता है? जाने इसके मजेदार तथ्य के बारे में.
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में फ़ूड प्वायजन या विषाक्तता का उपचार कैसे करें?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में गर्भाशय शोथ या बीमारी के कारण.
प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.
Most Used Key :- गाय के गोबर से ‘टाइल्स’ बनाने का बिजनेस कैसे शुरू करें?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओ के पोषण आहार में खनिज लवण का महत्व क्या है?
किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर कृपया स्वयं सुधार लेंवें अथवा मुझे निचे दिए गये मेरे फेसबुक, टेलीग्राम अथवा व्हाट्स अप ग्रुप के लिंक के माध्यम से मुझे कमेन्ट सेक्शन मे जाकर कमेन्ट कर सकते है. ऐसे ही पशुधन, कृषि और अन्य खबरों की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर विजिट करते रहें. ताकि मै आप सब को पशुधन से जूडी बेहतर जानकारी देता रहूँ.