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जहरीले पौधे के सेवन से पशुओं का बचाव कैसे करें : Pashu Swasthya Aur Jahrila Paudha Se Bachav

जहरीले पौधे के सेवन से पशुओं का बचाव कैसे करें : Pashu Swasthya Aur Jahrila Paudha Se Bachav, प्रायः ग्रामीण और वनांचल क्षेत्रों में देखा जाता है कि पशुओं को खुले चरागाह में चरने के लिए छोड़ दिया जाता है. ऐसे में पशुओं द्वारा आमतौर पर गर्मियों के दिनों में चारे की कमी से पशु कुछ जहरीले या विषाक्त चारे का सेवन कर लेते हैं. जिसका पशु स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है.

Pashu Swasthya Aur Jahrila Paudha Se Bachav
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पौधों की विषाक्तता में योगदान देने वाले कारक भुखमरी, आकस्मिक भोजन और जानवरों की ब्राउज़िंग आदतें हैं. भुखमरी सबसे आम कारण है. अधिकांश वुडलैंड या दलदली भूमि वाले चरागाहों में जहरीले पौधों की कई प्रजातियाँ होती हैं. इन्हें आमतौर पर तभी खाया जाता है जब जानवरों के पास खाने के लिए कुछ और नहीं होता है.

जानवर चरते समय गलती से कुछ पौधे खा लेते हैं. इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण वॉटर हेमलॉक है. यह पौधा गीले क्षेत्रों में उगता है, जो शुरुआती वसंत में सबसे पहले हरा हो जाता है. ताजी युवा घास खाने के लिए उत्सुक जानवर गलती से इस पौधे के शीर्ष को काट सकते हैं जिसके घातक परिणाम हो सकते हैं. एक अन्य प्रकार की आकस्मिक विषाक्तता तब होती है जब गेहूं में बड़ी मात्रा में कॉकल मौजूद होता है, जिसे अनाज के रूप में खिलाया जाता है.

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सूखे मैदान या उत्कृष्ट चरागाह में अच्छा चारा खाने वाले कुछ जानवर एक ही नियमित आहार से ऊब जाते हैं. वे बाड़ के किनारे उगने वाले बेस्वाद खरपतवार या सजावटी पौधे खा सकते हैं. बकरियां और मवेशी थोड़े से “ब्राउज़” के साथ सर्वोत्तम प्रकार के आहार में बदलाव करना पसंद करते हैं. पशुओं द्वारा कई सजावटी या जंगली झाड़ियों का सेवन किया जा सकता है, इसलिए नहीं कि वे स्वादिष्ट हैं, बल्कि इसलिए कि जानवर अपने आहार में बदलाव चाहते हैं.

विषाक्तता की गंभीरता खाए गए पदार्थ की मात्रा, पौधे खाने वाले जानवरों की प्रजाति, पौधे का हिस्सा और खाए गए पौधे की स्थिति, जमीन की नमी का स्तर, पदार्थ खाने से पहले जानवर का सामान्य स्वास्थ्य, उम्र और जानवर का आकार से संबंधित है. इसलिए कुछ पशुधन कुछ खराब पौधों को खा सकते हैं और उल्लिखित कई स्थितियों के तहत, चोट या विषाक्तता के लक्षण दिखाने में विफल रहते हैं. इससे पशुओं की असामान्य समय में मृत्यु भी हो सकती है.

जहरीले पौधे

जहरीले पौधे देश के सभी स्थानों में ब्यापक रूप से पाए जाते है. इनमें एल्कालाईड, ग्लुकोसाइड, प्रोटीन युक्त यौगिको, रेजिन, सैपोनिन, टेनिन, टोक्सालबुमिन आदि जैसे पदार्थो के उत्पादन के कारण ये पौधे जहरीले होते जाते है. सामान्यतः पौधे छाल, जड़ें, लेटेक्स, पत्ते एवं बीज जहरीले होते है. कुछ मामलों में पुरे पौधे ही जहरीले हो सकते हैं. भारत मे पाए जाने वाले कुछ सामान्य निम्नलिखित पौधे जो जहरीले होते हैं और मवेशियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं इनमें पार्थेनियम, मदार, धतुरा, अरण्डी, गुमडीला आदि है.

ज्वार से सायनाइड विषाक्तता

ज्वार के फसल में 30-40 दिनों की अवस्था या 50 सेमी. से कम ऊंचाई वाले ज्वार में साइनोजेनिक ग्लैकोसाइड (धुरिन) होता है. इनमें जुगाली करने वाले पशुओं जैसे – मवेशी और भेड़ तथा मोनोगैस्ट्रिक पशु जैसे घोड़े और सूअर की तुलना में प्रुसिक एसिड विषाक्त के प्रति अति संवेदनशील होते है. मवेशियों की तुलना में भेदे अधिक प्रतिरोधी होते हैं, क्योंकि उनके सामने के पेट में विभिन्न एंजाइम सिस्टम होते है. भूखे पशुओं को अधिक खतरा होता है क्योंकि वे भूख की वजह से कम समय में अधिक विषाक्त भोजन का सेवन कर लेते हैं.

सायनाइड पैदा करने की क्षमता फसल के किसी भी चरण में मौजूद हो सकता है. लेकिन बढ़ते पौधे, मुरझाये व सूखे और ओलो से होने वाले नुकसान तथा टिड्डे और कैटपिलर से प्रभावित चारा अधिक घातक होता है.

पशुओं और भेड़ों के लिए सायनाइड का सुरक्षित स्तर क्या है?

विभिन्न किस्म के पौधों में सायनाइड संचयन का स्तर में ब्यापक अंतर होता है. अनाज ज्वार, मीठी ज्वार और देर से फूलने वाली किस्मो में अन्य किस्मों की तुलना में सायनाइड का स्तर बहुत अधिक होता है. सोरघम अल्मम और जोन्सन ग्रास (सोरघम हैलपेंस) सबसे ख़तरनाक है जबकि सिल्क सोरघम सबसे सुरक्षित प्रजतिओं में से एक है.

पशुओं में सायनाइड विषाक्तता के लक्षण

  • सायनाइड विषाक्तता से प्रभावित पशु का श्वास तेजी से चलना.
  • मुंह से झाग निकलना.
  • पशु के श्लेष्मा झिल्ली गहरे लाल रंग का होना.
  • मवेशियों में कमजोरी या पेट में मरोड़ होना.
  • पशुओं का चौका देने वाली चाल चलना.
  • पशु के पेट में ऐंठन और दर्द होना.
  • पशु का बेहोशी के हालत का दिखाई देना.
  • कभी -कभी पशु का मौत भी हो जाना.

ज्वार से सायनाइड विषाक्त का उपचार

  • प्राथमिक उपचार के तौर पर सोडियम नाइट्रेट और सोडियम सल्फेट के कुछ मिश्रण का अन्तः शिरा उपचार निम्नलिखित मिश्रण के साथ देवें. मवेशियों के लिए विसंक्रमित पानी के 200 ml में 15 ग्राम सोडियम सल्फेट और 5 ग्राम सोडियम नाइट्रेट. छोटे जुगाली करने वाले पशु जैसे भेड़ के लिए विसंक्रमित पानी के 50 ml में 3 ग्राम सोडियम सल्फेट और 1 ग्राम सोडियम नाइट्रेट.
  • कोबाल्ट युक दवा सामग्री के साथ इंजेक्शन या मुंह से दी जाने वाली अनुपूरक दवा/आहार विषाक्तता को कम करने में सहायक होगी, क्योंकि कोबाल्ट का सायनाइड के साथ विरोधी प्रभाव होता है.
  • श्वसन उत्तेजक के साथ गैर सहायक उपचार की आवश्यकता होती है.
  • कृत्रिम श्वसन (निकेथामाइड/कोरमिन) 0.5-1.0 ग्राम/किलोग्राम खुराक की दर से देवें.

आक्जलेट पैदा करने वाले पौधे – ताजे गन्ने के ऊपरी हिस्से, पैरा (धान का भूसा) भूसा आदि फंगस (कवक) द्वारा खराब हो गया हो, शकरकंद आदि.

लक्षण – भूख न लगना, कमजोरी, मूत्र में रक्त का आना, लार बहना, मूत्र कम बनना, दूध का उत्पादन घट जाना. बहुत ज्यादा दिन हो जाने पर लकवा जैसे स्थिति भी हो जाती है.

सावधानी – तुरन्त ऐसा चारा बंद कर दें. जल में या चारे में चूने का पानी या डायकैल्शियम फास्फेट दें. पानी अधिक से अधिक पिलाये.  

सेलेनियम तत्व वाले पौधे – कुछ पौधे जैसे चना, गेहूँ, मक्का में यह तत्व मिल जाता है यदि वे जिस भूमि पर उत्पन्न हो रहे है उसमें इस तत्व की मात्रा अधिक होती है. इसमें प्रमुख लक्षण बाल झडऩा, पूँछ के बाल झड़ जाना, खुर का बढ़ जाना और इतना बढ़ जाता है की वह ऊपर की ओर मुड़ जाता है और फिर खुर की ऊपरी सतह निकल जाती है. जानवर लंगड़ाता है.

सावधानी – ऐसी जमीन पर उत्पन्न वनस्पति को चारे के रूप में प्रयोग न करें.

नाइट्रेट की अधिकता वाले पौधे – ऐसे पौधे जिनमें नाइट्रेट की मात्रा अधिक रहती है उनको खा लेने पर इसकी विषाक्तता होती है. सोलेनम, सौरघम, ब्रेसिका, ऐमरेनथस प्रजातियाँ आदि के पौधों में नाइट्रेट अधिकता में रहता है. नाइट्रेट उवर्रक के डालने पर भी वनस्पति में अधिक नाइट्रेट होता है जो कि विषाक्तता कर सकता है.

लक्षण – श्वसन संबंधी तकलीफ.

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अन्य जहरीले पौधे

(अ) बेशर्म/बेशरम – इसकी विषाक्तता भेड़, बकरी में अधिकतर देखने को मिलती है. इसमें श्वसन में तकलीफ होना, यकृत विषाक्तता कमर के हिस्से में लकवा इत्यादि लक्षण पाये जाते हैं.

(ब) कनेर – यह सफेद/गुलाबी/पीले रंग के फूल वाला पेड़ होता है. इसकी विषाक्तता का प्रभाव त्वरित होता है. यह सभी जाति के प्राणियों को प्रभावित करती है.

लक्षण – आहार नलिका की सूजन, उल्टी होना, जुगाली बंद हो जाना, पेट फूल जाना, मांस पेशीय संकुचन, चक्कर आना, बेहोशी और मृत्यु हो जाना.

(स) धतूरा – धतूरा सेवन से सभी जाति के पशु प्रभावित होते हैं. केवल खरगोश को इसका असर नहीं होता.

लक्षण – हल्की पर तेज नब्ज, मुँह का सूखना, असंतुलित होना, आँख की पुतली का फैल जाना, जुगाली बंद हो जाना, चक्कर आना और मृत्यु हो जाना. इसमें पशु की मृत्यु हृदय गति रूक जाने से होती है.

(द) अरंडी – इसकी विषाक्तता सभी जाति के पशुओं में होती है.

लक्षण – दस्त लगना, दस्त में आव आना, लार बहना, लडख़ड़ाना, असंतुलित होना.

उपरोक्त मुख्य वनस्पति जो पशुओं में विषाक्तता का कारण बनती है इसके अलावा बरसीम जो कि सीमा से अधिक खाने पर गैस बनाती है और पेट फूट जाने पर सांस रूक जाती है और पशु की मृत्यु तक हो जाती है.

चारागाहों से ये विषाक्त वनस्पति उखाड़ दें अथवा पशुओं को स्वंय चारा काट कर खिलायें ताकि इन खतरनाक जहरीली वनस्पति से बचा जा सके. यदि लक्षण आ ही जाते है तो तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से इलाज करवायें.

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