लम्पी वायरस से पशुओं में बचाव के तरीके क्या हैं । Lumpy Virus Se Pashuon Me Bachav Ke Tarike Kya Hai
लम्पी वायरस से पशुओं में बचाव के तरीके क्या हैं । Lumpy Virus Se Pashuon Me Bachav Ke Tarike Kya Hai, यह एक संक्रामक और लाइलाज चर्मरोग है जो आज पुरे भारत में कहर बरपा रही है। इस रोग का कोई सटीक उपचार नहीं होने के कारण, यह बीमारी बहुत तेजी से फैलती है।
लम्पी वायरस के संक्रामक प्रभाव पशुपालकों में एक चिंता का विषय बना है। पशुपालकों द्वारा संक्रमित बछड़ों के उपचार कराने पर भी कोई आशातीत परिणाम दिखाई नहीं दे रही है। इससे पशुपालकों में भय बना हुआ है की हमारे पशु को कहीं कुछ नुकसान ना हो जाये।
कुछ पशुपालक इस बीमारी के से किसी भी तरह के निदान या छुटकारा पाने के लिए तरह-तरह के आयुर्वेदिक और देशी दवाइयों का सहरा लेना भी पड़ रहा है परन्तु उन्हें इस पर भी कोई मनचाहे परिणाम दिखाई नहीं दे रहा है।
इस विशेष बीमारी (लम्पी स्किन डिसीज) का अब तक कोई विशेष टीका या उपचार नहीं है। पशुचिकित्सकों द्वारा पशुओं में लक्षण के अनुरूप उपचार किया जा रहा है। पशुओं में इसका प्राथमिक लक्षण के रूप में पशु के शरीर में चेचक के समान गांठें, तेज बुखार, पैरों में सूजन, और नाक से स्त्राव बहने जैसी लक्षण दिखाई दे रहें हैं।
इस लम्पी वायरस के संक्रमण से पशुओं में तेज बुखार आने पर, पशु की सम्पूर्ण शारीरक क्षमताएं शिथिल हो जाती हैं और कुछ दिनों बाद में पशु के शरीर में चकते के निशान दिखाई देने लगते हैं।
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लम्पी वायरस का संक्रमण एक गाय से दूसरी गाय के संपर्क में आने से बहुत ज्यादा फ़ैल रही है। इसके अलावा यह वायरस हवा में भी बहुत सक्रीय होकर एक स्थान से दुसरे स्थान में पहुँच रही है।
लम्पी त्वचा रोग का संक्रमण के वाहक के रूप में मच्छर, मक्खी, जूं ,किलनी इत्यादि संक्रमित परजीवी के काटने पर भी पशु बहुत ज्यादा संक्रमित हो रहे हैं।
यह वायरस पशुओं को चरागाह, गड्ढे, नाली आदि के दूषित और संक्रमित पानी पिने से भी ज्यादातर पशु लम्पी रोग से प्रभावित हो रहे है। संक्रमित पशुओं में इसके तमाम लक्षणों के साथ उनकी मौत भी हो सकती है।
वर्तमान में यह बीमारी छत्तीसगढ़ के मुंगेली, कबीरधाम, बेमेतरा, दुर्ग, राजनादगांव और अन्य जिलों में भी इसके फैलने की ख़बर आ रही है। क्योंकि यह पशुओं में संक्रमण के बाद छोटे-छोटे गांठे दिखाई देने लगती है इसलिए इसे ‘गांठदार त्वचा रोग वायरस‘ (एलएसडीवी) भी कहा जाता है।
दुनिया में मंकीपॉक्स के बाद यह दुर्लभ संक्रमण पशु वैज्ञानिकों में चिंता का विषय बना हुआ है। इस वायरस को फ़ैलने से रोकने के लिए पशुओं को ‘गोट पॉक्स’ का टीका लगाया जा रहा है। वही इस रोग से बचाने के लिए पशुओं को एंटीबायोटिक, एंटीइम्फ्लामेंटरी और एंटीहिस्टामिनिक दवायें दी जाती है।
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बीमारी के रोकथाम एंव नियंत्रण के उपाय
अगर आपका पशु इस बीमारी से ग्रसित हो गया है तो इस बीमारी से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें। साथ ही पशुओं को मक्खी, चिचडी एंव मच्छर के काटने से बचाने की दिशा में काम करें। यही नहीं पशुशाला की साफ – सफाई दैनिक रूप से करें और डिसइन्फैक्शन का स्प्रे करते रहें। संक्रमित पशुओं को खाने के लिए संतुलित आहार तथा हरा चारा दें। अगर इस बीमारी से किसी की मौत हो जाती है तो मृत पशुओं के शव को गहरे गड्ढे में दबा दें।
लम्पी संक्रमण से बचने के पशुओं को दें यह औषधियां
लंपी संक्रमण से बचाने के लिए पशुओं को आंवला, अश्वगन्धा, गिलोय एंव मुलेठी में से किसी एक को 20 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिलाकर सुबह शाम लड्डू बनाकर खिलायें। तुलसी के पत्ते एक मुट्ठी , दालचीनी 05 ग्राम सोठ पाउडर 05 ग्राम , काली मिर्च 10 नग को गुड़ में मिलाकर सुबह-शाम खिलाएं। संक्रमण रोकने के लिए पशु बाड़े में गोबर के कण्डे में गूगल, कपूर, नीम के सूखे पत्ते , लोबान को डालकर सुबह शाम धुआँ करें। पशुओं के स्नान के लिए 25 लीटर पानी में एक मुट्ठी नीम की पत्ती का पेस्ट एंव 100 ग्राम फिटकरी मिलाकर प्रयोग करें. घोल के स्नान के बाद सादे पानी से नहलाए।
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प्रिय पशुप्रेमी और पशुपालक बंधुओं पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.
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