खरगोश पालन की प्रमुख जानकारियाँ । Khargosh Palan Karne Ka Khas Tarika
खरगोश पालन की प्रमुख जानकारियाँ । Khargosh Palan Karne Ka Khas Tarika, प्रायः देखा जाता है कि लोग आसानी से अपने घरों में खरगोश का पालन करते है। खरगोश पालन का मुख्य उद्देश्य मांस उत्पादन, चमड़ा, ऊन, मनोरंजन तथा प्रयोगशाला में प्रयोग हेतु पाला जाता है।

खरगोश की प्रमुख प्रजातियाँ
दुनिया में पालतू खरगोश बहुत सारी प्रजातियाँ है। इनकी सभी प्रजातियाँ रंग, आकार, वजन तथा इनके बाल एक दुसरे से भिन्न होते हैं.
- ऊन के लिए – अंगोरा – यह रंग में मुख्यतः सफेद होता है। रेशम जैसा अति उत्तम कोटि का ऊन इनसे मिलता है। इनका वजन 2.5 से 3.5 किलो तक होता है। इनसे सालाना 250 ग्राम से 1 किलो तक ऊन प्राप्त होता है। ऊन की कटाई साल में 3-4 बार की जाती है।
- मांस तथा फर (रोयाँ सहित खाल) के लिए – ग्रे जाँयन्ट (जर्मनी), सोवियत चींचीला तथा न्यूजीलैंड वाइट प्रमुख है। 3.5 किलो वजन के खरगोश से लगभग 2 किलो मांस प्राप्त होता है, साथ ही रोयाँ सहित चमड़ा से दस्ताना, टोपी, बच्चे और महिलाओं के लिए कोट आदि बनाया जाता है।
- प्रयोगशाला के लिए – मुख्यत: न्यूजीलैंड वाइट नस्ल का खरगोश इस काम के लिए पाला जाता है।
- मनोरंजन के लिए – (क) हवाना (ख) फ्लोरिडा (ग) इंगलिश स्पॉट इत्यादि।
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खरगोश में प्रजनन के लिए नर मादा का चयन
प्रजनन के लिए नस्ल के अनुरूप स्वास्थ्य, ताकत, प्रजनन क्षमता आदि के मद्देनजर अति उत्तम प्रकार का खरगोश प्रजनन हेतु चुनना चाहिए। इन्हें सरकारी प्रक्षेत्र या अनुभवी तथा निबंधित फ़ार्म से खरीदना चाहिए। पाँच मादा के लिए एक नर होना चाहिए। यह ख्याल रखना चाहिए कि नर भिन्न-भिन्न स्त्रोत का होना चाहिए ताकि दूसरी पीढ़ी में आपस सम्बन्धी प्रजनन न हो जायें।
प्रजनन
छोटे नस्ल के जानवर 5 से 6 माह, मध्यम नस्ल के 6-7 एवं बड़े नस्ल के जानवर 8-10 माह में प्रजनन योग्य हो जाते हैं। मादा, नर के पास पहुंचने पर ही गर्म होती है, अन्यथा नहीं। मादा को नर के पिंजड़ा में ले जाना चाहिए, क्योंकि मादा अपने पिंजड़े में दूसरे खरगोश को पसंद नहीं करती। साथ ही, मार-काट करने लगती है।
गर्भधारण काल
खरगोश का गर्भावस्था 30 से 32 दिन का होता है। बच्चा पैदा होने के 3-4 दिन पूर्व “बच्चा बक्सा” मादा के पिंजड़े में डाल देना चाहिए। बच्चा देने के 1-2 दिन पूर्व मादा अपने देह का रोयाँ नोचकर घोंसला बनाती है। मादा दिन में एक ही बार बच्चों को दूध पिलाती है। साधारणत: मादा में 8 छेमी होती है। पर्याप्त दूध मिलने पर बच्चा 3-3.5 सप्ताह के अंदर बक्सा से बाहर आ जाता हैं और अपने से खान-पान शुरू करने लगता हैं। बच्चे 6 से 7 सप्ताह में ही माँ से अलग किये जा सकते हैं और मादा से साल में 5 बार बच्चा लिया जा सकता है।
खरगोश के लिए खाना
खरगोश मुख्यत: शाकाहारी है। यह साधारणत: दाना, घास एवं रसोईघर का बचा हुआ सामान खाता है। एक वयस्क खरोगश दिन में 100 से 120 ग्राम दाना खाता है। इसे हरी घास, खराब फल, बचा हुआ दूध, खाने योग्य खरपतवार आदि दिया जाता है।
रख-रखाव
मुख्यत: इन्हें पिंजड़े में रखा जाता है। पिंजड़ा 18” x 24” x 12” का होता है। इन्हें 2 तल में रखा जाता है। इनका पिंजड़ा स्थानीय उपलब्ध सामानों से भी बनाया जा सकता है तथा बाहर दीवार पर जमीन से 2-2.5 फीट ऊँचाई पर कांटी/खीला से या पेड़ के नीचे लटका दिया जा सकता है। इन्हें घने पेड़ की छाया में आसानी से पाला जा सकता है।
खरगोश को होने वाले प्रमुख रोग
आँख आना, छींकना, गर्दन टेढ़ी होना, पिछले पैर में घाव होना, गर्म और ठंडा लगना। इन रोगों का इलाज साधारण दवा से आसानी से किया जा सकता है।
उपचार
इनमें रोगों का प्रकोप बहुत ही कम होता है। यदि कुछ सही कदम या नियम का पालन किया जाये तो रोग नहीं के बराबर होता है।
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दाना मिश्रण | तापमान एवं आर्द्रता | |
अवयव | भाग | |
मकई चूर्ण | 30.00 | तापमान- 18-22C |
चोकर | 53.00 | आर्द्रता – 15 – 70% सर्वोत्तम है। |
खली (चिनियाबादाम) | 10.00 | यदि तापमान – 30C ऊपर होता है तो |
मछली | 5.00 | प्रजनन पर इसका खराब असर पड़ता है। |
मिनरल मिश्रण | 1.50 | यदि 40C से ऊपर होता है तो नर में |
नमक | 0.50 | प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है। |
100.00 |
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