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पशुधन आहार में खनिज लवण का महत्व : Importance of Mineral Salts in Livestock Diet

पशुधन आहार में खनिज लवण का महत्व : Importance of Mineral Salts in Livestock Diet, पशुधन और पशुपालन के लिये संतुलित आहार मुख्य आधार स्तम्भ है. संतुलित आहार में पशुओं के शारीरिक अवस्था और उत्पादनशीलता के अनुसार विभिन्न आवश्यक पोषक तत्व जैसे – कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण एवं विटामिन उचित मात्रा एवं अनुपात में मौजूद होते हैं. इन सभी पोषक तत्वों में खनिज लवण सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व है.

पशुओं के शरीर में 3-5 प्रतिशत खनिज पदार्थ पाये जाते हैं जो हड्डियों को मजबूत करने, तंतुओं का विकास करने में, मेटाबोलिज्म को विघटित करने, पाचन शक्ति बढ़ाने, खून बनाने, दूध उत्पादन, प्रजनन एवं स्वास्थ्य के लिये आवश्यक होता है. पशुओं के शरीर में सामान्यतः सभी खनिज तत्व पाये जाते हैं. अभी तक पशुओं के आहार में 22 खनिज लवणों (पोषक तत्व) की महत्व की जानकारी प्राप्त हुई है. इनमें कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, सल्फ़र, सोडियम, पोटेशियम, क्लोरिन, आयरन, तांबा, जिंक, मैगनीज, कोबाल्ट जैसे खनिज लवण पशुओं के लिये आवश्यक खनिज लवण होते हैं. आमतौर पर ये तत्व पशुओं के आहार से प्राप्त होते हैं. ये आवश्यक तत्व सभी प्रकार के आहार में होते हैं परंतु इनकी मात्रा कम अनुपात में पाया जाता है. सही मात्रा में पशुओं के आहार में खनिज तत्व देने से पशु स्वस्थ रहते हैं और उनकी शारीरिक वृद्धि सामान्य बनी रहती है तथा उत्पादन भी सामान्य रहता है. खनिज मिश्रण और नमक से इन तत्वों की पूर्ति की जा सकती है.

आवश्यक खनिज लवण

यहाँ पर खनिज लवण को दो भागों में विभाजित करके खनिज तत्वों के कार्य, फायदे, प्राप्ति के स्रोत और इनके अभाव से पशुओं में होने वाली बीमारियो की जानकारी प्राप्त करेंगे.

1 . प्रमुख खनिज लवण – प्रमुख खनिज लवण के अंतर्गत कैल्शियम(Ca), मैग्नीशियम(Mg), पोटेशियम(K), फास्फोरस(P), सोडियम(Na), सल्फ़र(S) को शामिल किया गया है.

2. विरल खनिज लवण – क्लोराइड(Cl), मैगनीज(Mn), तांबा(Cu), जिंक(Zn), आयरन(Fe), कोबाल्ट(Co), सेलेनियम(Se) आदि को शामिल किया गया है.

पशुओं में कैल्शियम, फास्फोरस मैग्नीशियम की भूमिका

पशुओं के लिये आवश्यक खनिज लवण पशु शरीर में विभिन्न तरीकों से कार्य करते है. कैल्शियम, फास्फोरस तथा मैग्नीशियम हड्डी एवं दांतों के निर्माण में सहायक होते है. कैल्शियम और फास्फोरस की आवश्यकता दूध उत्पादन एवं प्रारंभिक वृद्धि के समय अधिकतम होता है. कैल्शियम, फास्फोरस की कमी से बच्चो में रिकेट्स और वयस्कों में आस्टियोमलेशिया नामक बीमारी होता है. दुधारू पशुओं में ब्याने के बाद कैल्शियम की कमी से दुग्ध ज्वर या मिल्क फीवर की बीमारी हो जाती है. दुग्ध ज्वर की बीमारी अधिकतर अधिक दूध देने वाले गाय और भैंसों में होता है. यह पशु के ब्याने के 3-7 दिन में अधिक दूध स्त्रावण होने के कारण होता है. चूँकि दुधारू पशुओं में दूध के साथ कैल्शियम का स्त्रावण अधिक होता है जिसके कारण दूध देने वाले पशुओं के रक्त में कैल्शियम की कमी हो जाति है. दुग्ध ज्वर बीमारी से ग्रसित पशु का तापमान शुरुवात में सामान्य या सामान्य से कम हो जाता है. पशु की मांसपेशियां नियंत्रित नहीं हो पाता है, पशु कमजोर और पशु शिथिल हो जाता है. इस बीमारी के बचाव हेतु पशु के गाभिन होने के समय पशु के आहार में कैल्शियम की मात्रा देते रहने से इस दुग्ध ज्वर की समस्या से बचा जा सकता है.

फास्फोरस भी कैल्शियम के साथ हड्डियों और दांतों को मजबूत करने के लिये बहुत आवश्यक अवयव होता है. कोमल ऊतकों में फास्फोरस फास्फोप्रोटीन, फास्फोलिपिड, फास्फोक्रिएटीन, हैक्सोफस्फेंट आदि के रूप में होता है. फास्फेट बहुत से एन्जाइम का भी घटक होता है. फास्फोरस तथा कैल्शियम की आवश्यकता दुग्ध स्त्रावण तथा प्रारंभिक वृद्धि के समय अधिकतम तथा अनुत्पादक और प्रौढ़ पशुओं में न्यूनतम होती है. पशुओं के आहार में कैल्शियम तथा फास्फोरस का अनुपात 2:1 होना चाहिए. फास्फोरस की कमी के कारण पशुओं के भूख में कमीं हो जाती है जिसे पाइका (दुसित क्षुधा) कहते हैं. पाइका से ग्रसित पशु असामान्य पदार्थ जैसे चमड़ा, कूड़ा-करकट, पत्थर, कपड़ा आदि नहीं खाने वाली चीजों को खाने लगता है. इस बीमारी से ग्रसित रोगी पशु हड्डी चबाने में बहुंत रूचि होता है. यदि हड्डी संक्रमित होता है तो पशु की विषाक्तता होने से मृत्यु भी हो सकती है.

चारे या दाने में फास्फोरस की कमी के वजह से पशु के मदचक्र में गड़बड़ी भी हो सकती है जिसके कारण पशु मदचक्र में पूर्ण रूप से नहीं आता. इस कारण गर्भधारण काफी विलम्ब से होता है या नहीं भी होता है. कई बार लम्बे समय तक पशु के शरीर में फास्फोरस की कमी के वजह मादा पशु बाँझपन का शिकार हो जाति है. यदि फास्फोरस के साथ उर्जा, विटामिन A, प्रोटीन और जिंक की कमी होती है तो मादा पशु के बाँझ होने की स्थिति और अधिक प्रबल हो सकती है. यदि पशु गर्भधारण कर भी लेती है तो कैल्शियम, फास्फोरस और मैग्नीशियम की कमी के कारण, बच्चे की हड्डियाँ विकसित नहीं होने के कारण गर्भ टिक नहीं पाता है और कभी-कभी मादा पशु को गर्भपात जैसे समस्या का सामना करना पड़ता है.

शरीर में अन्य खनिजों की तरह आयरन(लौह) की भी बहुत आवश्यकता होती है. शरीर में उपस्थित लौह की लगभग 60 प्रतिशत मात्रा हिमोग्लोबिन में पायी जाति है. शरीर में लौह की कमी से कई प्रकार की बीमारियाँ जैसे – अल्परक्तता, एनिमियां, शारीरिक वृद्धि में गिरावट तथा अल्परक्तता से पशु की मृत्यु तक भी हो जाती है.

तांबा (कापर) हिमोग्लोबिन संश्लेषण में उत्प्रेरक का कार्य करता है तथा शरीर के सभी क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिये जरुरी, ताम्रहीनता के कारण नवजात मेमनों और बकरियों के बच्चों में तंत्रिका विकास रुक जाता है. लम्बी अवधि के ताम्रहीनता में ह्रदय की मांसपेशियों में तंतुमय ऊतको की मात्रा में वृद्धि के कारण हृदय की सामान्य क्रिया बाधित हो जाती है.

खनिज मिश्रण खिलाने के फायदे

पशुओं को उच्चगुणवत्ता तथा उचित मात्रा में खनिज मिश्रण खिलाने से कई प्रकार का फायदा होता है, इनमें से कुछ फायदे निम्नलिखित दर्शाया गया है-

1 . दुग्ध उत्पादन में वृद्धि.

2. नर और मादा पशुओं के प्रजनन क्षमता में सुधार और वृद्धि.

3. बछड़ों की शरीरिक विकास दर में सुधार और जल्दी वयस्क होना.

4. दो ब्यातों के बीच समयावधि में कमीं.

5. पशुआहार उपभोग और पाचन क्रिया में वृद्धि.

6. शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता का बेहतर होना.

7. स्वस्थ, सबल बछड़े-बछड़ीयों का जन्म होना.

8. पशुओं के सामान्य स्वास्थ्य में सुधार होना.

खनिज तत्वों के स्रोत और खिलाने की विधि

1 . फलीदार चारे जैसे – बरसीम, रिजका में कैल्शियम की काफ़ी मात्रा पायी जाति है.

2. चोकर, चांवल की भुंसी में फास्फोरस की मात्रा पायी जाती है.

3. पशु के आहार में 2 प्रतिशत खनिज मिश्रण और 1 प्रतिशत नमक देवें.

4. यदि पशु के दाना मिश्रण में खनिज मिश्रण नहीं मिलाया गया हो तो दुधारू गाय और भैंसों के आहार में 50-100 ग्राम खनिज मिश्रण प्रतिदिन मिलायें.

निष्कर्ष – जैसा की आपने उपरोक्त खनिज मिश्रण की आवश्यकता, कमी आदि के बारे में भलीभांति पढ़ चुके हैं. खनिज मिश्रण का पशु स्वास्थ्य और उत्पादन में खनिज तत्वों और लवणों का विशेष महत्व है. खनिजों का सामान्य दैहिक क्रिया संचालनों के साथ-साथ ये खनिज खाद्यों के पाचन और उपापचन के लिये आवश्यक है. शरीर में इनकी कमी पशुओं के उत्पादन पर कुप्रभाव, प्रजनन क्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी एवं अल्पता जन्य ब्याधियाँ उत्पन्न होती है. अतः पशुओं को पर्याप्त मात्रा में खनिज लवण मिश्रण अवश्य देना चाहिए जिससे कि पशुओं में उत्पादक, स्वास्थ्य, प्रजनन और पशु उत्पादों की गुणवत्ता बनी रहे.

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