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गाय दुनिया को तबाही से कैसे बचाएगी : Gaay Duniya Ko Tabahi Se Kaise Bachayegi

गाय दुनिया को तबाही से कैसे बचाएगी : Gaay Duniya Ko Tabahi Se Kaise Bachayegi , वैज्ञानिको ने एक ऐसी गाय के बछड़े को विकसित किया है, जो दुनिया को तबाही से बचाएगी। इस गाय की ऐसी क्या खासियत है इसमें इतनी बड़ी खूबी है।

Gaay Duniya Ko Tabahi Se Kaise Bachayegi
Gaay Duniya Ko Tabahi Se Kaise Bachayegi

वैज्ञानिकों का दावा है कि यह आईवीएफ तकनीक से जन्मा बछड़ा में ऐसा खूबी है जो कि यह दुनिया को तबाही से बचा सकता है। आईवीएफ तकनीक से जन्मा यह बछड़ा न तो गैस छोड़ता है और नहीं डकार लेता है। इस बछड़े का नाम हिल्डा (Hilda) रखा गया है।

दुनिया की तबाही को लेकर अलग-अलग भविष्यवाणियाँ की जाती रही है। कुछ लोगों का दावा है कि एलियंस धरती पर अटैक कर सकते है, तो कुछ लोग तीसरे विश्व युद्ध कि भविष्यवाणी करके लोगों को डराते हैं। लेकिन वैज्ञानिक वातवरण में फ़ैल रहे अलग-अलग गैसों के आलावा अन्य साइंटिफिक रीजन कि वजह से धरती कि तबाही कि बात करते है।

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इन वैज्ञानिकों की मानें तो जिस तरह से धरती पर जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उससे यहां पर सैकड़ों सालों बाद जीवन बेहद मुश्किल होगा। नासा से जुड़े वैज्ञानिक पर्यावरण की क्षति में गायों को भी जिम्मेदार मान रहे हैं।

असल में गायों की डकार से जहरीली मीथेन गैस निकल रही है, जिन्हे ग्रीन हॉउस गैस कहा जाता है। इसी गैस के कारण लगातार धरती गर्म हो रही है।

ऐसे में स्कॉटलैंड के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी गाय के बछड़े को विकसित किया है, जो दुनिया को तबाही से बचाने में सक्षम होगा। यह बछड़ा आम गायों से काम गैस छोड़ेगा और कम डकार भी लेगा। वैज्ञानिकों ने गाय के इस बछड़े का नाम हिल्डा (Hilda ) रखा है।

गाय का यह बछड़ा हिल्डा, झुण्ड की किसी भी अन्य गाय की तरह ही दिखती है, लेकिन उसके जीन को इस तरह से संशोधित किया गया है कि डकार लेने और स्वास रोकने पर हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रुक जाये।

ब्रिटेन के डेयरी के लिए इसे ‘बेहद महत्वपूर्ण’ क्षण बताया है, क्योंकि हिल्डा का जन्म आईवीएफ (IVF ) तकनीक से हुआ है, जिससे अधिक हरित प्रजाति के मवेशी पैदा हुए हैं, जो कम मीथेन उत्सर्जित करते हैं।

बता दें कि गायें बहुत कम गैस अधिक गैस उत्पन्न करती है तथा उनके डकार से उत्पन्न मीथेन, कार्बन डाईऑक्साइड कि तुलना में अधिक वायुमंडल को 28 गुना अधिक गर्म करती है।

चूँकि मवेशी विश्व के ग्रीनहॉउस गैस उत्सर्जन का लगभग 5 प्रतिशत उत्पन्न करते हैं, इसलिए शोधकर्ता उनके प्रभाव को कम करने के तरीके खोजने में लगे हुए थे। उसी खोज के तहत वैज्ञानिकों ने हिल्डा को विकसित किया है।

एक्सपर्ट बताते हैं कि आईवीऍफ़ के प्रयोग से हिल्डा का जन्म पारम्परिक प्रजनन तकनीकों की प्रयोग की तुलना में आठ महीने पहले हुआ है। हिल्डा डम्फ्रीज़ स्थित लैंगहिलझुण्ड का हिस्सा है, जिसका अध्ययन आधी सदी से भी अधिक समय से किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि हिल्डा कूल काउल परियोजना का भी हिस्सा है, जिसमें ऐसे मवेशियों का आनुवंशिक चयन किया जाता है, जो कममीथेन उत्सर्जित करते हैं। हिल्डा को पैदा करने के लिए उसकी मां से अंडे लिए गए और विशेष रूप से चयनित सांड या बैल के शुक्राणुओं से निषेचित किया गया है।

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इसके बाद भ्रूण का निर्माण प्रयोगशाला में किया गया तथा उसे हिल्डा के माँ कि शरीर में प्रतिस्थापित किया गया। इस महत्वकांशी प्रोजरेक्ट में शामिल स्कॉटलैंड रूरल कालेज (एसआरयुसी) के प्रोफेसर रिचर्ड ड्यूहुर्ट्स ने कहा…

‘डेयरी उत्पादों कि वैश्विक खपत में निरंतर वृद्धि के साथ स्थायित्व के लिए हिल्डा का जन्म संभवतः ब्रिटेन के डेयरी उद्योग के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण है। कूल काउल परियोजना से डेयरी प्रोजेक्ट तो बढ़ेगा ही, साथ ही साथ पर्यावरण में कम मीथेन छोड़ने वाली गायों कि आबादी भी बढ़ेगी।’

बता दें कि इस बछड़े को लैंगहिल हर्डमें विकसित किया गया, जिसकी स्थापना पहली बार 1970 के दशक के प्रारम्भ में हुई थी। यह दुनिया कि सबसे लम्बे समय से चल रही पशुधन आनुवंशिकी परियोजना है।

इस झुण्ड का उपयोग डेयरी उत्पादन से जुड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के अनेकों अध्ययन में किया गया है, जिनमें विभिन्न आहारों के प्रभाव तथा घास के मैदानों पर विभिन्न उर्वरकों के प्रभाव शामिल हैं।

परियोजना में एक अन्य साझेदार, पैरागॉन वेटनरी ग्रुप के रॉब सिमंस ने कहा कि डेयरी गायों की ‘मीथेन क्षमता’ में आनुवंशिक सुधार लाना इस क्षेत्र की स्थिरता में सुधार लाने के लिए ‘महत्वपूर्ण’ है।

मीथेन दक्षता में अनुवांशिक सुधार, भविष्य में पर्यावरण पर मीथेन उत्सर्जन के प्रभाव को नियंत्रित करते हुए, जनता को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए महत्वपूर्ण होगा।

दरअसल इस गाय को विकसित करने के महत्वपूर्ण वजह मीथेन का पर्यावरण में उत्सर्जन है। गायों के डकार और गैस से निकलने वाली मीथेन, कार्बन डाईऑक्साइड से भी ज्यादा हानिकारक है।

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