पशुओं में ईस्ट्रस साइकिल या ऋतुचक्र क्या है : Gaay Bhains Me Estrus Cycle Kya Hai
पशुओं में ईस्ट्रस साइकिल या ऋतुचक्र क्या है : Gaay Bhains Me Estrus Cycle Kya Hai, मादा पशु के वयस्क होने पर उसके प्रजनन तंत्र में नियमित परिवर्तन होते हैं. मादा पशु में यह परिवर्तन सामान्य शारीरिक क्रिया होती है तथा एक निश्चित रूप में होता है. मादा पशु में इन्ही परिवर्तनों को ऋतुचक्र कहा जाता है.
गाय या भैंसों में ऋतु चक्र की अवधि औसतन 21 दिनों की होती है. ऋतु चक्र के एक निश्चित चरण में मादा पशु, नर पशु से प्रजनन के लिए तैयार होती है. इसे ही पशुओं में गर्मीकाल या मदकाल कहा जाता है. मादा पशुओं में ऋतु चक्र को निम्न अवस्थाओं में बांटा गया है.
1 . ईस्ट्रस, 2. मेटा-ईस्ट्रस, 3. डाई ईस्ट्रस, 4. प्रो-ईस्ट्रस
- प्रोईस्ट्रस – मादा पशु में ऋतु चक्र के ख़त्म होने तथा दुबारा ऋतु चक्र के प्रारंभ होने के बीच के समय को प्रोईस्ट्रस कहा जाता है. इस अवस्था में मादा पशु के गर्भाशय से इस्ट्रोजन हार्मोन्स निकालता है, जिससे समस्त जननागों में रक्त संचरण बढ़ जाता है. इस समय मादा पशु में हल्के गर्मी के लक्षण दिखता है. नर पशु (सांड) इस अवस्था को पहचान लेता है और गाय की ओर आकर्षित होता है. मादा पशु की इस अवस्था में सांड गाय के पीछे-पीछे दौड़ता है परन्तु गाय खडी नहीं होती है.
- ईस्ट्रस – मादा पशु में यह समय गर्मी में रहने का वास्तविक समय होता है. इसी समय में मादा पशु नर पशु को प्राकृतिक समागम के लिए स्वीकार करती है. ऋतु चक्र के अन्य किसी भी अवस्था में मादा पशु नर पशु को स्वीकार नहीं करती है. इस अवस्था में मादा में व्यावहारिक और जननांगों में निम्नलिखित परिवर्तन देखे जा सकते है.
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मादा पशु में व्यावहारिक परिवर्तन
- गाय या भैंस अपने ऊपर सांड या दूसरी गायों को चढ़ने देती है.
- या गाय भी स्वयं दूसरी गायों के ऊपर चढ़ती है.
- पीछे-पीछे दौड़ने वाले सांडो के प्रति रूचि दर्शाती और खड़ी हो जाती है.
- गाय बेचैन हो जाती और कभी-कभी रस्सी तोड़कर भाग जाती है.
- गाय इधर-उधर देखती है और विशिष्ट आवाज में रंभाती है.
- बार-बार मूत्र विशर्जन करती है.
- गाय अन्य दिनों कि अपेक्षा खाना-पीना कम कर देती है.
- पूंछ के उपरी हिस्से को बाह्य योनी से हटाकर एक तरफ रखती है.
मादा जननागों में आंतरिक व बाह्य परिवर्तन
- गर्भाशय के अंदर अंडाशय में ग्राफीयन फालिकल तेजी से विकसित होता है और अंडाणु परिपक्व होने लगता है.
- योनी व ग्रीवा द्वारा श्लेष्मा का उत्पादन बढ़ जाता है.
- भग योनी सहित सम्पूर्ण मादा जननांग में लालिमा तथा चिकनापन बढ़ जाता है. मादा जननांग में यह परिवर्तन रक्त संचरण तथा श्लेष्मा के स्त्राव के बढ़ जाने के कारण होता है. इस स्थिति में मादा जननांगों का तापमान भी थोड़ा बढ़ जाता है.
- मादा पशु का गर्भाशय ग्रीवा शिथिल तथा फैला हुआ महसूस होता है.
- मादा के बाह्य योनी में सूजन, लालिमा तथा शिथिलता दिखाई देती है.
मादा के जननांगों में आंतरिक और बाह्य परिवर्तन तथा व्यावहारिक परिवर्तन इस्ट्रोजन हार्मोन्स स्त्राव के कारण होता है. गाय या भैंसों में गर्मी का समय 12-24 घंटे (औसतन 12-18 घंटे) का होता है. पशुओ की जननेन्द्रियों की, विशेषकर गर्भाशय की जाँच करने पर उसमें कुछ तनाव महसूस होने लगता है. कृत्रिम गर्भाधान के लिए एस अवस्था के मध्य का समय सर्वोत्तम होता है. यदि इस समय मादा पशु में कृत्रिम गर्भाधान किया जाये तो गाय शांत खड़ी रहती है. कृत्रिम गर्भाधान हमेशा इसी अवस्था में करनी चाहिए इसे ही ‘स्टैंडिंग हीट’ कहा जाता है.
मादा पशुओं में गर्भधारण
मादा पशु को गर्मी में आने के समय यदि पशु में कृत्रिम गर्भाधान या प्राकृतिक गर्भाधान किया जाये तो पशु गर्भधारण करती है. गर्भधारण हो जाने पर कार्पस ल्युटियम ज्यों का त्यों बना रहता है और डाई ईस्ट्रस जैसी दशा निरंतर पुरे गर्भकाल के रूप में चलती है.
ऋतु चक्र का रुक जाना या गर्मी पर न आना (एन-ईस्ट्रस)
एन-ईस्ट्रस एक असामान्य परिस्थिति है जिसमें मादा पशु प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान के पश्चात् भी पशु गाभिन नहीं होता है और पशु का ऋतु चक्र रुक जाता है. यह मादा पशुओं में एक प्रकार की ब्याधि है. एन-ईस्ट्रस की अवधि कारक तथ्य के ऊपर निर्भर करती है. आमतौर इस ब्याधि में अंडाशय निष्क्रिय हो जाते है.
ईस्ट्रस चक्र के प्रकार
गाय एक बहु ईस्ट्रस चक्रीय(Poilyestrous) समूह की पशु है, जिसमें ऋतु चक्र नियमित अन्तराल पर वर्ष भर चलता है. भैंस को मौसमी बहु-ईस्ट्रस चक्रीय (Seasonally Polyestrous) समूह वाली पशु है. भैंसे अनुकूल मौसम में (ठंड के समय) नियमित प्रजनन चक्र दर्शाती है.
ईस्ट्रस चक्र को प्रभावित करने वाले कारक
पशुओं का प्रबंधन – पशुओं का प्रबंधन व पोषण अच्छे स्तर पर नहीं होने से मादा पशुओं में यौनारम्भ होने में देरी होती है. पशु के भोजन में अचानक अत्यधिक कमी होने या पशुओं के आहार में कुछ महत्वपूर्ण खनिज पदार्थों के कमी होने पर प्रजनन चक्र अनियमित या समाप्त हो जाता है.
मौसम – गायों के प्रजनन चक्र पर मौसम का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि गाय बहु-ईस्ट्रस चक्रीय समूह के होते है. लेकिन अति विषम मौसम में अन्य तथ्यों के साथ मिल जाने पर चक्र के रूप में परिवर्तन आ सकता है.
जलवायु – गाय या भैंस का प्रजनन चक्र जलवायु के कुछ सीमा तक प्रभावित होता है. जलवायु में परिवर्तन से चक्र की लम्बाई या स्वरुप प्रभावित हो सकता है. पशुओं की शीतोष्ण नस्लें, समशीतोष्ण परिस्थितिओं में सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाती है.
नस्ल – प्रत्येक नस्ल के पशुओं के प्रजनन चक्र में कुछ अंतर होता है. यह तथ्य जब प्रतिकूल जलवायु, प्रबंधन आदि के साथ मिलता है तो पशुओ की प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है.
रोग या ब्याधि – बिभिन्न रोग या ब्याधि पशु के प्रजनन क्षमता को, पशु के रोग प्रतिरोधक क्षमता के ऊपर निर्भर करते हुए, प्रभावित करती हैं.
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ऋतु काल की अवधि
ऋतुकाल की विभिन्न दशाओं की औसत अवधि निम्न प्रकार होती हैं……
अवस्था | अवधि | औसत |
ईस्ट्रस | 12-24 घंटे | 18 घंटे |
मेटा-ईस्ट्रस | 4-5 दिन | 5 दिन |
डाई-ईस्ट्रस | 10-14 दिन | 12 दिन |
प्रो-ईस्ट्रस | 2-4 दिन | 3 दिन |
देशी गायों में विदेशी नस्ल अथवा संकर नस्लों की अपेक्षा गर्मी काल या ऋतु चक्र कम समय का होता है. नस्ल, प्रबंधन, वातावरण, आयु आदि गर्मी काल को प्रभावित करते हैं. लगभग 60% पशुओं में गर्मी काल रात्रि में प्रारंभ होता है.
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