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दुनिया की सबसे छोटी गाय का क्या नाम है : Duniya Ki Sabse Chhoti Gaay Ka Kya Name Hai

दुनिया की सबसे छोटी गाय का क्या नाम है : Duniya Ki Sabse Chhoti Gaay Ka Kya Name Hai, यह धरती जैव विविधताओं से भरी हुई है. इस धरती पर असंख्य प्रजाति के जीवों का निवास है तथा प्रत्येक जीवधारी का अपना-अपना जीवन यापन का तरीका अलग-अलग होता है. प्रत्येक जीव इस धरती पर जन्म से मृत्यु तक अपनी-अपनी पारिस्थितिक तन्त्र के अनुसार जीवन यापन करते है.

Duniya Ki Sabse Chhoti Gaay Ka Kya Name Hai
Duniya Ki Sabse Chhoti Gaay Ka Kya Name Hai

आज हम आपको गाय के एक ऐसी नस्ल के बारे में जानकारी देने जा रहें है, जिसका कद सिर्फ ढाई फिट है और यह स्वर्ण दूध देने वाली दुनिया की सबसे छोटी गाय है. यह गाय किसी अन्य देश में नहीं पायी जाती है बल्कि यह हमारे भारत में ही पायी जाती है. गाय की इस नस्ल का नाम पुंगनूर है, जो की भारत आंध्रप्रदेश राज्य के चित्तूर जिले के पुंगनूर शहर में पाई जाती है. इसकी कद(ऊंचाई) छोटी होने के साथ-साथ गाय में बहुत सारी खूबियाँ भी है?

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पुंगनूर गाय की खूबियाँ

पुंगनूर गाय को दुनिया की सबसे छोटी गाय होने का गौरव भी प्राप्त है. दुनिया में कहीं भी और इससे छोटी गाय नहीं है. ख़ास बात यह है की पपी की तरह इस गाय को घर के भीतर भी रखा जा सकता है. कुल ढाई फीट कद काठी गाय की खासियत केवल इसकी छोटी कद ही नहीं, बल्कि इस गाय के दूध में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं. पुंगनूर गाय के दूध को स्वर्णयुक्त दूध के तौर पर जाना जाता है.

यह गाय भारत में आँध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के पुंगनूर शहर में पाई जाती है और इसी शहर के नाम पर इस गाय का नाम रखा गया है, जिसका की अपना एक प्राचीन इतिहास है. वर्तमान में इस गाय की कीमत लाखों में है और अब यह गाय उत्तर भारत और मध्य भारत के छिंदवाडा हिस्से में भी खरीदकर लाया जा रहा है.

गावों में भी खरीदने लगे पुंगनूर गाय

जानकारी के मुताबिक पांधुर्ना के कच्चीढाना गाँव में मैंगनीज खदान से जुड़े संजीव खंडेलवाल गाय और बैल का एक जोड़ा आंध्रप्रदेश के कुन्नूर जिले से खरीदकर लाये हैं. उन्होंने बताया की गाय और बैल का एक जोड़ा 2 लाख 80 हजार रूपये में ख़रीदा गया है. महाशिवरात्रि के दिन गाँव पहुचे गाय और बैल के जोड़े की ख़बर आसपास इलाके में लोगों की लगी, to लोग इसे देखने के लिए भारी संख्या में रोज पहुँच रहे हैं.

इसे पपी की तरह घर में भी पाल सकते हैं

पुंगनूर दुनिया की सबसे छोटी गाय की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे घर के भीतर ही पपी की तरह पाल सकते हैं. आमतौर पर आजकल घर में पपी पालने का चलन ज्यादा है, लेकिन इसके फ़ायदे कम और नुकसान ज्यादा होते हैं. पुंगनूर गाय घर में पालने से वास्तु शास्त्र के हिसाब से शुभ मानी जाती है और इसके कई फ़ायदे भी होते हैं. सनातन धर्म के अनुसार भी गाय में देवी देवताओं का वास होता है इसलिए घर में पालने के लिए पुंगनूर गाय को शुभ माना जाता है. इनका कद छोटा महज ढाई फिट होने की वजह से यह आसानी से घर के भीतर किचन से लेकर बेडरूम तक आसानी से कहीं भी एडजस्ट हो जाती है.

स्वर्णयुक्त दुधारू पुंगनूर गाय

पशुचिकित्सकों का मानना है कि “पुंगनूर गाय की हाईट ढाई फिट तक ही होती है. यह आँध्रप्रदेश के चित्तूर जिले की प्रजाति है, जो आब धीरे धीरे उत्तर भारत और मध्य भारत में भी लाई जा रही है. ख़ास बात यह है कि इसका दूध स्वर्णयुक्त होती है जो सेहत के लिये बेहद लाभकारी होती है. इसके साथ ही पुंगनूर गाय के दूध में 8% तक फाइट पाया जाता है, जबकि आमतौर पर यह दूसरी गायों में यह तीन से चार फीसदी होता है. इस गाय का मूत्र भी बिकता है, जिसे लोग एंटीबैक्टीरियल होने के कारण किसान अपने खेतों में कीटनाशक के रूप में उपयोग करते हैं.”

विलुप्त कगार में है पुंगनूर गाय की प्रजाति

बताया जा रहा है कि वर्तमान में पुंगनूर गाय की प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है. इसकी संख्या कम होने के कारण इसकी कीमत लाखों में है. पुंगनूर गाय का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है. यह गाय आँध्रप्रदेश प्रदेश के चित्तूर जिले के पुंगनूर शहर में पाई जाती है और इसी शहर के नाम पर इस गाय का नाम रखा गया है जिसका अपना प्राचीन इतिहास है. इस गाय की कीमत 1-10 लाख रूपये तक बताई जाती है.

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‘तिरुपति बालाजी मंदिर में लगता है पुंगनूर गाय का भोग’

कच्चीढाना गाँव में पुंगनूर गाय की देखभाल करने वाले अंगद ठाकुर ने बताया कि “महाशिवरात्रि के दिन ही इस गाय को गाँव में लाया गया है. तब से ही गाय अपनी देशी गायों के साथ रह रही है. इनको किसी तरीके से कोई परेशानी नहीं हो रही है. शुरुवात में पुंगनूर गाय करीब आधा लीटर ही दूध दे रही थी, लेकिन अब डेढ़ से 2 लीटर दूध प्रतिदिन दे रही है. जब पुंगनूर गाय खरीदने गए तो वहां के स्थानीय लोगों ने बताया की तिरुपति बालाजी मंदिर में इन्ही गायों के दूध का भोग लगाया जाता है. अभी ये धीरे-धीरे विलुप्त हो रही थी लेकिन अब इन्हें संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है.

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