पशुओं में गर्भाशय शोथ के कारण : Causes of Cervicitis in Animals
पशुओं में गर्भाशय शोथ के कारण : Causes of Cervicitis in Animals, गाय और भैंसों में गर्भाशय का शोथ या संक्रमण वास्तव में पशु घर की साफ़ सफाई में कमी के कारण अधिक होती है. इसके अलावा पशु में गर्भाशय की समस्या असामान्य प्रसव, गर्भपात, समय से पहले बच्चा देने, कठिन प्रसव या फिटोटोमी के समय, बच्चे की ज्यादा खींचतान करने से गाय के गर्भाशय में चोट लगने की आशंका होती है. अधिकतर पशुओं में जेर के रुक जाने से गर्भाशय ग्रीवा में सुजन हो जाती है. पशुओं के योनी में संक्रमण हो जाने से धीरे-धीरे गर्भाशय ग्रीवा तक संक्रमण पहुँच जाती है और गर्भाशय में शोथ हो जाता है. कभी-कभी कृत्रिम गर्भाधान के समय अधिक ताकत या जोर के साथ AI गन को गर्भाशय मुख में डालने से भी गर्भाशय ग्रीवा या मुख में सुजन या घाव होने की सम्भावना बनी रहती है. इसलिए कृत्रिम गर्भाधान करते समय वीर्य का सिंचन गर्भाशय मुख के अंत में ही करना चाहिए, वीर्य का सिंचन करने के लिये ए.आई. गन को गर्भाशय श्रृंग तक ले जाने में गर्भाशय श्रृंग में चोट लगने की सम्भावना होती है. अधिकांश मामले में गर्भाशय ग्रीवा घाव या सुजन ब्याने के समय ही होती है.

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गर्भाशय शोथ का लक्षण
1 . गर्भाशय के रोग का निदान के लिये योनी मार्ग में वजाइनल स्पैक्युलम को डालकर चौड़ी करके टार्च की सहायता से गर्भाशय ग्रीवा का परीक्षण करना चाहिए. क्योंकि गर्भाशय ग्रीवा के ऊपर टार्च से फोकस करने पर गर्भाशय की संक्रमण, सुजन स्पष्ट दिखाई देती है.
2. टार्च को गर्भाशय ग्रीवा में फोकस करने पर गर्भाशय ग्रीवा के सामने का ऑस का रंग गुलाबी लाल तथा सलवटों युक्त नज़र आती है और गर्भाशय ग्रीवा से म्यूकस मिली हुई हल्की मवाद बाहर निकलती नज़र आती है.
3. यदि गर्भाशय ग्रीवा में बहुत अधिक शोथ होता है तो गर्भाशय शोथ की सम्भावना बनी रहती है और गर्भाशय ग्रीवा अधिक मोटी हो जाती है तथा जगह-जगह से म्यूकस झिल्ली के टुकड़े उखड़ते रहते है.
4. यदि गर्भाशय ग्रीवा को बहुत अधिक चोट लगी है या संक्रमण बहुत अधिक है तो गर्भाशय ग्रीवा का मार्ग बंद सा हो जाता है और एक बैंड बन जाता है जिसे किंक कहते है.
5. इस स्थिति में कृत्रिम गर्भाधान करते समय ए.आई. गन अन्दर नहीं जाति है और अवरोध उत्पन्न होता है. ऐसी स्थिति में पशु को ब्याते समय कठिन प्रसव का सामना करना पड़ता है और बछड़े को खींचकर बाहर निकालना पड़ता है, जिससे गर्भाशय ग्रीवा के कुछ स्थानों पर फटने सम्भावना होती है.
गर्भाशय के रोग का भविष्य
1 . पशुओं में अधिकांशतः गर्भाशय ग्रीवा शोथ की समस्या सही उपचार होने पर ठीक हो जाता है.
2. यदि गर्भाशय ग्रीवा शोथ के साथ गर्भाशय शोथ व भाग शोथ भी हो तो यह स्थितियां जितनी जल्दी ठीक होंगी, गर्भाशय ग्रीवा का शोथ भी उतनी ही जल्दी ठीक हो जायेगा.
3. कभी-कभी शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण भी हल्का गर्भाशय ग्रीवा शोथ स्वतः ही जल्दी ठीक हो जाता है.
4. गंभीर गर्भाशय ग्रीवा शोथ में फाइब्रोसिस या किंक के कारण रास्ता बैंड हो जाये तो उपचार का अधिक असर नहीं पड़ता है और गर्भाशय ग्रीवा बंद ही रहता है. फिर अगले ब्यात में में बबंद गर्भाशय ग्रीवा के कारण कष्ट प्रशव की स्थिति बनती है.
5. गायों में अगर गर्भाशय ग्रीवा में फोल्ड बन जाता है और इन फोल्ड का प्रोलेप्स हो जाता है तो यह बहुत ही मुश्किल में ठीक हो पाता है और लटके रहते हैं तथा अगले ब्यात में और अधिक ढीला हो जाता है.
6. भैंसों में गर्भाशय ग्रीवा का आकार बेलनाकार होता है और ऐसे फोल्ड कम ही होते है. गर्भाशय ग्रीवा जनन अंग वह भाग है जो पशु के गर्मी या मद में आने के समय और पशु के ब्याने के समय खुलता है तथा बांकी समय पुर्णतः बंद होती है जिससे की गर्भाशय में होने वाले संक्रमण को रोका जाता है. लेकिन स्वयं गर्भाशय ग्रीवा में सुजन, चोट से रोगग्रस्त हो जाति है तो इसी कारण से गर्भाशय में संक्रमण हो जाता है और ऐसा प्रायः गायों में अधिक होता है.
गर्भाशय शोथ का उपचार
1 . पशुओं में अधिकाशतः गर्भाशय ग्रीवा के शोथ के साथ-साथ गर्भाशय शोथ और योनी शोथ भी जुड़े होते है. इसलिए गर्भाशय से संबंधित सभी भागों की जाँच करने के बाद उपचार करना चाहिए.
2. ऐसा बहुत कम होता है की अकेले गर्भाशय ग्रीवा का शोथ हो और अकेले उसका उपचार करना भी मुश्किल होता है. इसलिए गर्भाशय ग्रीवा के साथ आगे पीछे के भागों में भी संक्रमण होता है और सभी का एक साथ उपचार कराना चाहिए.
3. योनी और गर्भाशय में संक्रमण होने पर तथा इनका उपचार करने पर गर्भाशय ग्रीवा शोथ का स्वतः उपचार हो जाता है.
4. गर्भाशय शोथ के लिये प्रतिजैविक औषधि के साथ-साथ यदि आवश्यकता हो तो कारटिकोस्टेराइड भी देना होता है. गर्भाशय में प्रतिजैविक औषधि रखने के साथ-साथ इंट्रामस्कुलर, प्रतिजैविक औषधि अवश्य दें.
5. गर्भाशय ग्रीवा को चोट और सुजन से बचाने के लिये बच्चा देते समय, कष्ट प्रसव और कृत्रिम गर्भाधान के समय विशेष सावधानी रखें.
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