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पशुओं के ब्याने के समय देखभाल और सावधानियाँ : Care and Precautions During Calving of Animals

पशुओं के ब्याने के समय देखभाल और सावधानियाँ : Care and Precautions During Calving of Animals, गाय और भैंस को गर्भावस्था के दौरान उनके खान-पान, बांधने की जगह, चरने के लिये ज्यादा दूर तक नहीं ले जाना, मिल्क पीरियड आदि पर विशेष ध्यान देना जरुरी होता है. पशुओं का गर्भ के अंतिम तीन महीनें और प्रसव काल जोखिम भरा होता है. क्योंकि गर्भित पशु के गर्भ का विकास 6 से 7 महीने के दौरान तेजी से होता है. इसलिए पशुपालकों को पशुओं के ब्याने के समय और उसके बाद की सावधानियों की जानकारी होना अति आवश्यक है ताकि संभावित जोखिमों को टाला जा सके.

गर्भावस्था के दौरान पशुओं की देखभाल कैसे करें?

1. 6 से 7 माह के गर्भित पशु को चरने के लिए ज्यादा दूर तक नहीं ले जाना चाहिए तथा उबड़ खाबड़ रास्तों पर नहीं घुमाना चाहिए.

2. यदि गर्भित पशु दूध दे रहा है तो गर्भावस्था के सातवें महीने के बाद दूध निकालना बंद कर देना चाहिए.

3. गर्भित पशु के उठने बैठने के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए.

4. पशु जहां बंधा हो उसके पीछे के हिस्से का फर्श आगे से कुछ ऊंचा होना चाहिए.

5. गर्भित पशु को पोषक आहार की आवश्यकता होती है जिससे ब्याने के समय दुग्ध ज्वर जैसे रोग न हो तथा दुग्ध उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े.

6. प्रतिदिन अग्रलिखित आहार की व्यवस्था होनी चाहिए – हरा चारा 25 से 30 किलो, सूखा चारा 5 किलो, खली 1 किलो, खनिज मिश्रण 50 ग्राम, नमक 30 ग्राम तथा गर्भित पशु को पीने के लिए 75 से 80 लीटर प्रतिदिन स्वच्छ व ताजा पानी उपलब्ध कराना चाहिए.
7. पशु के पहली बार गर्भित होने पर 6 से 7 माह के बाद उसे अन्य दूध देने वाले पशुओं के साथ बांधना चाहिए और शरीर पीठ और थन की मालिश करनी चाहिए.
8. ब्याने के 4 से 5 दिन पूर्व उसे अलग स्थान पर बांधना चाहिए. यह ध्यान रहे की स्थान स्वच्छ हवादार व रोशनी युक्त हो.

9. पशु के बैठने के लिए फर्श पर सूखा चारा डाल कर व्यवस्था बनानी चाहिए.

10. ब्याने के 1 से 2 दिन पहले से पशु पर लगातार नजर रखनी चाहिए.

Care and Precautions During Calving of Animals
Care and Precautions During Calving of Animals

ब्याने के समय पशु की देखभाल

1 . ब्याने के 1 दिन पहले गर्भित पशु के जनन अंगों से द्रव का स्राव होता है, पशु को बाधा पहुंचाए बिना हर 1 घंटे रात के दौरान भी अवलोकन करना चाहिए.

2. ब्याने के समय जनन अंगों से द्रव से भरा गुब्बारा सा निकलता है जो धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है और अंत में फट जाता है.

3. उसमें बच्चे के पैर का खुर का भाग दिखाई देता है अगले पैरों के घुटनों के बीच सिर दिखाई देता है.

4. धीरे धीरे अपने आप बच्चा बाहर आ जाता है, कभी-कभी गर्भित पशु अशक्त होता है तो बच्चों को बाहर आने में परेशानी होती है.

5. ऐसी स्थिति में कोई अनुभवी व्यक्ति बच्चे को बाहर खींचने में मदद कर सकता है.

6. बच्चे की ऊपर बताई गई स्थिति में कोई अंतर हो तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें.

7. ब्याने के 15 से 20 मिनट बाद दूध दुहना चाहिए एवं बच्चे को भी दूध पिलाना चाहिए जिससे बच्चे को अपने संपूर्ण जीवन में रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होगी तथा जेर निकलने में भी आसानी होगी.

8. प्रसव के उपरांत गाय या भैंस को दो से तीन बार काढ़ा (प्रति काढ़ा अलसी 200 ग्राम, अजवायन 100 ग्राम, सौंफ 100 ग्राम, सोंठ 50 ग्राम, 5 लीटर पानी में खूब पका कर उसमें 1 किलो गुड़ डालकर) पिलाएं यह स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम है.

ब्याने के बाद पशु की देखभाल

1 . बच्चा देने के बाद पशु को बहुत थकान होती है अतः आसानी से पचने वाला भोजन जैसे गर्म चावल, उबला हुआ बाजरा, तेल मिलाएं गेहूं, गुड़, सोया, अजवाइन, मेथी, अदरक देना चाहिए.

2. यह जेर गिरने में भी सहायता करता है पशु को ताजा हरा चारा व पानी उसकी इच्छा अनुसार देना चाहिए.

3. ब्याने के बाद जेर गिरने का इंतजार करना चाहिए, सामान्यता 10 से 12 घंटे में जेर गिर जाता हैं. जैसे ही जेल गिर जाए उसे उठाकर जमीन में गड्ढा करके गाड़ देना चाहिए.

4. यदि 24 घंटे तक जेर ना गिरे तो, पशु चिकित्सक से संपर्क करके निकलवाना चाहिए.

5. जेर गिरने के बाद यदि सर्दी का मौसम हो तो थोड़े गर्म पानी से और यदि गर्मी हो तो स्वच्छ पानी से पशु को स्नान कराना चाहिए.

6. ब्याने के बाद उसको कोई बीमारी हो तो तुरंत पशु चिकित्सक को बुलाना चाहिए.

7. जनने के बाद गाय या भैंस 45 से 60 दिन में गर्मी में आती है लेकिन वीर्यदान के लिए अगली बार गर्मी में आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए.

8. यदि इस समय अंतराल में पशु गर्मी में नहीं आता है तो पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

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