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बकरियों में पीपीआर टीका क्यों लगाया जाता है । Bakriyon Me PPR Tika Kyon Lagaya Jata Hai

बकरियों में पीपीआर टीका क्यों लगाया जाता है । Bakriyon Me PPR Tika Kyon Lagaya Jata Hai, पीपीआर रोग भेड़-बकरियों में होने वाला रोग है जिनके संक्रमण से भेड़-बकरियों के नाक और मुंह में छाले या फोड़ें पड़ जाते हैं। यह रोग खुरपका-मुंहपका जैसे संक्रामक रोग की तरह ही है।

Bakriyon Me PPR Tika Kyon Lagaya Jata Hai
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छत्तीसगढ़ राज्य तथा भारत के विभिन्न राज्यों के भेड़-बकरी पालन करने वाले पशुपालकों के लिए अच्छी खबर है, अब पीपीआर रोग से उनकी भेड़ व बकरियां पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगी। यह एक अत्यंत घातक रोग है, जिसकी वजह से भेड़-बकरियों में नाक व मुंह में छाले हो जाते हैं। यह छाले फैलकर पाचन तंत्र तक फैल जाते हैं, और 5 से 7 दिन के दौरान इस रोग से ग्रसित भेड़ व बकरी की मौत का शिकार हो जाती है।

देश के सभी राज्य सरकार द्वारा पीपीआर कंट्रोल प्रोग्राम चलाकर इसका वैक्सिनेशन (टीकाकरण) किया जा रहा है। पीपीआर वैक्सीन के सफलतम परीक्षण के बाद गांव-गांव में पशुधन सहायक पहुंचकर यह वैक्सिनेशन कर रहे हैं।

मालूम हो कि पीपीआर रोग के कारण हर वर्ष हजारों की संख्या में भेड़ व बकरियां मौत का शिकार हो रही थीं। लेकिन अब इस पर काफी हद तक इनकी मौतों पर अंकुश लगेगा।

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पीपीआर क्या है?

  • पीपीआर (पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स), इसे बकरियों की महामारी या बकरी प्लेग भी कहा जाता है।
  • इस बीमारी से बकरियों और भेड़ में बुखार, मुंह में घाव, दस्त, निमोनिया और बकरियों की मौत तक हो जाती है।
  • पीपीआर एक वायरल बीमारी है, जो पैरामाइक्सोवायरस के परिवार से जुडी है एवं रोगों की संख्या (Morbidity) का कारण होती है।
  • कई अन्य घरेलू जानवर और जंगली जानवर भी इस बीमारी से संक्रमित होते हैं, लेकिन बकरी और भेड़ की प्रमुख बीमारी हैं।
  • पीपीआर बीमारी में मृत्यु दर आमतौर पर 50 से 80 प्रतिशत होती है, जो बहुत गंभीर मामलों में 100 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।

पीपीआर घातक रोग

  • भेड़-बकरियों में फैलने वाले मुंहपका और खुरपका अर्थात पीपीआर रोग की रोकथाम के लिए पशुधन सहायक पशुपालकों के घर-घर जाकर टीकाकरण कर रहे हैं।
  • टीकाकरण के बाद अचानक बीमार पड़ने के बाद भेड़-बकरियों की मौत पर काफी हद तक नियंत्रण होगा।
  • मालूम हो कि भेड़ व बकरियों में सर्दी व गर्मी में फैलने वाले पीपीआर रोग से ग्रसित होने के बाद एक ही दिन में जानवर के शरीर में खून का पानी बना देता है। इससे बीमार भेड़-बकरी के आंख, नाक और मुंह से पानी टपकने लगता है।
  • मुंह और नाक में छाले हो जाते है, जो कि फैलकर पाचन तंत्र को निष्क्रिय कर देते हैं। उपचार नहीं मिलने पर भेड़-बकरियों की जान चली जाती है।
  • छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिले के सरगुजा, अंबिकापुर, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, दंतेवाडा, जगदलपुर, नारायणपुर, कबीरधाम सहित अन्य पडोसी जिले में भेड़ व बकरी पालन पशुपालकों का मुख्य व्यवसाय है, यहां इनकी मॉडिलिटी अच्छी है।


घर-घर जाकर कर रहे वैक्सिनेशन

पीपीआर भेड़ व बकरियों में फैलने वाला घातक जानलेवा रोग है, इस रोग से ग्रसित होने के बाद 5 से 7 दिनों में भेड़-बकरियों की मौत हो जाती है। राज्य में पीपीआर कंट्रोल प्रोग्राम चलाया जा रहा है। जिसके तहत भेड़ व बकरियों की वैक्सिनेशन किया जा रहा है।

पशुधन सहायक (VAS, AVFO, अटेंडेंट, वेक्सीनेटर, PAIW, मैत्री, गौसेवक आदि पशुपालकों के घर-घर जाकर वैक्सिनेशन कर रहे हैं। पीपीआर वैक्सीन की इम्युनिटी 3 साल है।

लक्ष्य – पीपीआर कंट्रोल प्रोग्राम

  • सघन पीपीआर टीकाकरण के तहत प्रत्येक जिले वे पशुपालक , जो कि भेड़-बकरी पालन कर रहे हैं को लक्ष्यित किया गया है। पशु चिकित्सा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रत्येक जिले में भेड़-बकरी की कुल आबादी को पीपीआर टीकाकरण करना है। इनमें से 100 फीसदी भेड़-बकरियों का टीकाकरण करने का लक्ष्य है।
  • पीपीआर के टीके सभी पशु चिकित्सा केंद्रों पर भेजे गए हैं, वहीं से विभागीय कर्मचारी पशुपालकों के घर जाकर टीकाकरण कर रहे हैं।
  • पशुपालन विभाग अब तक प्रत्येक जिले में 60 प्रतिशत भेड़-बकरियों का टीकाकरण कर चुका है, शेष का टीकाकरण जारी है। टीकाकरण के बाद अचानक बीमार पड़ने के बाद भेड़-बकरियों की मौत पर काफी हद तक नियंत्रण होगा।
  • गांवों में पशुपालक भी टीकाकरण में सहयोग कर रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में टीकाकरण किया जा सके। मालूम हो कि राज्य में पीपीआर कंट्रोल प्रोग्राम के तहत यह वैक्सिनेशन किया जा रहा है।

पीपीआर रोग के लक्षण

  • पीपीआर संक्रमण होने के दो से सात दिन में इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
  • पीपीआर रोग से भेड़-बकरियों में बुखार, मुंह के छाले, दस्त और निमोनिया हो जाता है, जिससे कभी-कभी इनकी मृत्यु हो जाती है।
  • एक अध्ययन के अनुसार भारत में बकरी पालन क्षेत्र में पीपीआर रोग से सालाना साढ़े दस हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
  • पीपीआर रोग मुख्य रूप से कुपोषण और परजीवियों से पीड़ित मेमनों, भेड़ों और बकरियों में बहुत गंभीर साबित होता है।
  • इससे इनके मुंह से अत्यधिक दुर्गंध आना और होठों में सूजन आनी शुरू हो जाती है।
  • आंखें और नाक चिपचिपे या पुटीय स्राव से ढक जाते हैं, आंखें खोलने और सांस लेने में कठिनाई होती है।
  • कुछ जानवरों को दस्त और कभी-कभी खूनी दस्त होते हैं।
  • पीपीआर रोग से गर्भवती भेड़ और बकरियों में गर्भपात हो सकता है।
  • ज्यादातर मामलों में, बीमार भेड़ और बकरी संक्रमण के एक सप्ताह के भीतर मर जाते हैं।
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निदान

पीपीआर वायरस का मुख और नाक के स्त्रावों में उचित प्रयोगशाला की जांच से, बीमारी के लक्षण आने के पहले ही पता लगाया जा सकता है। अतः पीपीआर के लक्षण दिखने पर लार व नाक से निकलने वाले स्त्रावों को प्रयोगशाला में जांच के लिए भिजवाना चाहिए।

उपचार

  • पीपीआर को रोकने के लिए भेड़ और बकरियों का टीकाकरण ही एकमात्र प्रभावी तरीका है।
  • वायरल रोग होने के कारण पीपीआर का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है. हालांकि बैक्टीरिया और परजीवियों को नियंत्रित करने वाली दवाओं का उपयोग करके मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
  • टीकाकरण से पहले भेड़ और बकरियों को कृमिनाशक दवा देनी चाहिए।
  • सबसे पहले स्वस्थ बकरियों को बीमार भेड़ और बकरियों से अलग रखा जाना चाहिए ताकि रोग को नियंत्रित और फैलने से बचाया जा सके इसके बाद बीमार बकरियों का इलाज शुरू करना चाहिए।
  • फेफड़ों के द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए पशु चिकित्सक द्वारा निर्धारित ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक का प्रयोग किया जाता है।
  • आंख, नाक और मुंह के आसपास के घावों को दिन में दो बार रुई से साफ करना चाहिए।
  • इसके अलावा, मुंह के छालों को 5% बोरोग्लिसरीन से धोने से भेड़ और बकरियों को बहुत फायदा होता है।
  • बीमार बकरियों को पोषक, स्वच्छ, मुलायम, नम और स्वादिष्ट चारा खिलाना चाहिए। पीपीआर महामारी फैलने पर तुरंत ही नजदीकी सरकारी पशु-चिकित्सालय में सूचना देनी चाहिए।
  • मरी हुई भेड़ और बकरियों को जलाकर पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए, साथ ही बाड़ों और बर्तन को शुद्ध रखना बहुत जरूरी है।

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