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पशुपालन में ग्राम पंचायत की भूमिका : Role of Gram Panchayat in Animal Husbandry

पशुपालन में ग्राम पंचायत की भूमिका : Role of Gram Panchayat in Animal Husbandry, ग्राम पंचायतें वित्तीय संस्थान तक ग्रामीणों की पहुंच बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. वे पशुपालन विभाग, परिवारों के लिए अधिक सुलभ दुग्ध सहकारी समितियों और प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण संस्थानों का निर्माण कर सकती हैं. कभी-कभी परिवारों को स्थानीय दूध विक्रेताओं के चंगुल में फंसा पाया जाता है, जो उन्हें कम दर पर दूध बेचने के लिए मजबूर करते हैं. इसी तरह, संकट के समय, कुछ घरों अपने पशुओं को बेचने के लिए मजबूर हो जाते है. अक्सर, संकट और ऋणग्रस्तता के कारण, इन परिवारों में अच्छी सौदेबाजी की शक्ति नहीं होती और ये प्रचलित बाजार दर से कम कीमत पर दूध बेचते हैं. बैंकों और सहकारी समितियों से जुड़ाव इन परिवारों की स्थिति को मजबूत कर सकता है.

Role of Gram Panchayat in Animal Husbandry
Role of Gram Panchayat in Animal Husbandry

प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और जागरूकता निर्माण

जागरूकता की कमी पशु पालन से कम लाभ होने के कारणों में से एक है. लोगों में पशुओं के पोषण, रोग नियंत्रण, टिकाकरण, प्रजनन और सामान्य स्वास्थ्य देखभाल के बारे में अपर्याप्त जागरूकता और समझ है. पशुपालन प्रथाएं भी मिथकों और अंधविश्वासों से प्रभावित हैं. इससे कई बार आर्थिक नुकसान के साथ ही पशुओं के स्वास्थ्य और जीवन का भी नुकसान होता है. इसलिए, ग्राम पंचायत को जागरूकता सुनिश्चित करने की योजना बनाने के प्रयास करने चाहिए. ग्राम पंचायत के इच्छुक व्यक्तियों का प्रशिक्षण शुरू करने के लिए पशु पालन विभाग से संपर्क किया जा सकता है.

सुश्री आशा किरण, वार्ड सदस्य और ग्राम पंचायत में तैनात पशुपालन विभाग पदाधिकारी सहित 15 सदस्यों की एक स्थायी समिति का गठन किया गया था. सुश्री आशा किरण, और श्री किशन गोपाल को पशुपालन पर प्रशिक्षण के लिए भेजने के ग्राम पंचायत के प्रस्ताव की ग्राम सभा द्वारा मंजूरी व अनुशंसा की गई.

प्रशिक्षण के बाद गाँव में वापसी पर उन्होंने पशुपालन के विभिन्न पहलुओं पर ग्रामीणों की जागरूकता और क्षमता निर्माण का कार्यक्रम चलाया. बैठक के लिए सप्ताह में एक दिन तय किया गया था और परिवारों को इन बैठकों में भाग लेने (सभी बैठकों में एक ही सदस्य) के लिए सूचित किया गया, जिनमें पशुपालन विभाग के प्रतिनिधि भी नियमित रूप से भाग लेते हैं. प्रत्येक बैठक में चर्चा करने के बाद ग्राम पंचायत ने निर्णय लिया और पिछली बैठकों की कार्रवाई के अनुपालन की समीक्षा की.

समता और पहुंच सुनिश्चित करना

पशुपालन गतिविधियों को सफल बनाने के लिए, ग्राम पंचायत को अपनी सभी गतिविधियों में समता और पहुंच सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है.

  • ग्राम पंचायत को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके हस्तक्षेप से समाज के सभी वर्गो को लाभ हो. उदाहरण के लिए, ग्राम पंचायत को चरागाह विकास, पशुओं के लिए पेयजल की सुविधा, टीकाकरण और प्रशिक्षण आदि गतिविधियों को सभी के लिए समान रूप से सुलभ कराने के प्रयास करने चाहिए. घर के अधिक दूरी, या कोई भी अन्य सामाजिक या आर्थिक आयाम किसी भी परिवार के लिए वित्तीय संस्थानों, दुग्ध सहकारी संघों या पशुपालन विभाग से लाभ प्राप्त करने में बाधित न करें. ग्राम पंचायत को पशुपालन से संबंधित सभी फैसलों और गतिविधियों में सभी की पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए.
  • पशुओं से रोजमर्रा की रखरखाव की जिम्मेदारी अक्सर महिलाओं पर डाल दी जाती है.उन्हें बकरियों या अन्य जानवरों की देखभाल करनी होती है, जिसके लिए कुछ लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती है. लेंकिन निर्णय लेने, विपणन और प्रशिक्षण में महिलाओं को उपयुक्त भूमिका नहीं दी जाती है. इसलिए ग्राम पंचायत द्वारा गतिविधियों पर निर्णय लेने, पशुपालन पर हस्तक्षेप और प्रशिक्षण में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए.
  • पशुपालन पर ग्राम पंचायत का प्रयास अन्य सभी उपायों की तरह सभी जाति समूहों के लिए समावेशी होना चाहिए. यह पशुपालन हस्तक्षेपों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ जाति समूह विशेष प्रकार के पशुओं के पालन में शामिल हैं. इसलिए ग्राम पंचायत का डेयरी, मुर्गी पालन, मछली पालन और सूअर पालन जैसे पशुओं के विभिन्न प्रकारों पर एक साथ काम करना महत्वपूर्ण है.

महामारी के दौरान ग्राम पंचायत की भूमिका

संक्रामक रोग के बड़े पैमाने पर फैलने, बड़े पैमाने पर मृत्यु होने और प्राकृतिक आपदाओं जैसी महामारी के दौरान ग्राम पंचायतों को एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है. ऐसे समय में, ग्राम पंचायत को सुनिश्चित करना चाहिए –

  • संक्रमित/बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग किया जा रहा है.
  • मृत पशुओं के शवों के उचित निपटान के माध्यम से यह सुनिश्चित करें कि कुत्ते, कौवे आदि मृत पशुओं को खा न सकें। इससे रोग फ़ैल सकता है.
  • लोगों द्वारा मरे हुए पशुओं का उपभोग नहीं किया जाए.
  • सुनिश्चित करें कि मृत पशु के चारे और सुखी घास को जला दिया गया है.
  • कीड़े, मक्खियों, पिस्सुओं, घुनों और मच्छरों को नियंत्रित करें क्योंकि वे संक्रामक रोगों का प्रसार कर सकते हैं.
  • अगर पड़ोसी ग्राम पंचायतों में प्रकोप की सूचना मिलती है तो तत्काल निवारक टीकाकरण करें.
  • क्षेत्र में स्थानिक रोगों और इनकी रोकथाम के बारे में जानकारी का प्रसार.

स्थायी समिति

उपरोक्त गतिविधियों के लिए ग्राम पंचायत द्वारा पशुपालन/पशु सुधारक समिति पर एक स्थायी समिति का गठन किया जा सकता है. स्थायी समिति का ततं राज्य के पंचायती राज अधिनियम के अनुसार किया जा सकता है.

उदाहरणार्थ महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम, 1958 के अनुसार, ग्राम पंचायत एक पशु पालन/सुधार समिति गठित कर सकती है । समिति में सदस्यों की संख्या 12-24 तक हो सकती है. समिति में कम से कम तीन निर्वाचित सदस्यों के साथ-साथ सरकारी पदाधिकारी तथा ग्राम पंचायत के स्वयंसेवक समिति के सदस्य हो सकते हैं. समिति को विभिन्न कार्य सौंपे जा सकते है और समय-समय पर ग्राम पंचायत द्वारा इसके कार्यों की समीक्षा की जाएगी.

पशुपालन को लाभकारी कैसे बनाएं

उत्पादकता में वृद्धि से लाभप्रदता बढ़ जाती है. इसलिए, निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने की आवश्यकता है –

  • स्वस्थ शावक का जन्म
  • नवजात शावक का शीघ्र विकास
  • लगातार दो प्रजनन/शावक/मेमने का जन्म के बीच कम अंतराल
  • अधिकतम प्रजनन/शावक/मेमने का जन्म जीवनकाल
  • न्यूनतम विर्यारोपण के साथ गर्भाधान

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पशु स्वास्थ्य देखभाल

पशु स्वास्थ्य देखभाल पशुपालन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है. पशु के स्वास्थ्य पर अपर्याप्त ध्यान कम उत्पादकता, स्थायी विकलांगता और जानवर के जीवन की हानि के रूप में पशुपालन करने वाले परिवारों के लिए भारी नुकसान का कारण हो सकता है. इसलिए मनुष्यों की तरह पशुओं के लिए भी समय पर टीकाकरण और डीवर्मिग(कृमिनाशक)जैसे स्वास्थ्य देखभाल के उपाय करना महत्वपूर्ण है. इसके अलावा जब भी पशु बीमारी के लक्षण दिखाता है, तत्काल पशु चिकित्सक की सलाह लेना चाहिए.

संक्रामक रोग एवं आंतरिक रोग

संक्रामक रोगों के फैलने और आंतरिक/बाहिरी परजीवी पशुधन की मृत्यु के दो प्रमुख कारण होते हैं. संक्रामक रोग वर्ष के दौरान नियमित समय पर महामारी के रूप में होते हैं. टीकाकरण के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. अब लगभग सभी प्रमुख संक्रामक रोगों के लिए टीके उपलब्ध हैं.

परजीवी वर्ष भर रहने वाली समस्या है जिसे डीवर्मिग/कृमिनाशक से नियंत्रित किया जा सकता है. पशुओं के रक्त, आंतरिक अंगों (आँतों, जिगर, आमाशय और फेफड़ों) और त्वचा पर अनेक जीव, कीड़े और कृमि रहते हैं. ये परजीवी पशुओं की उत्पादकता को कम कर देते हैं. इसलिए हर पशु मालिक को पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार इन परजीवियों से अपने पशुधन की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए. बाहिरी परजीवियों (चिचड़ी, मक्खियों, पिस्सुओं, घुन और आंतरिक (गोल कृमि, हुक कृमि, और फ्लक्स) के लिए भी प्रभावी दवाएं उपलब्ध हैं.

जानवर में बीमारी की पहचान कैसे करें?

पशु बात नहीं कर सकते, लेकिन वे संवाद कर सकते हैं. देरी से उपचार आरंभ करने से उत्पादकता और जीवन की भी हानि हो सकती है, इसलिए उनके संवाद की पहचान करना बहुत महत्वपूर्ण है.

एक बीमार पशु में उपरोक्त लक्षणों में से एक या एक से अधिक दिखाई देता है तो,वह बीमार माना जा सकता है और पशु चिकित्सक की सलाह मांगी जा सकती है.

इन लक्षणों में से कुछ है:

स्वस्थ पशु के लक्षणबीमार पशु के लक्षण
गोल घूमता है, चुस्त लगता है, अच्छी तरह से खाता पीता है, जुगाली करता है और हमेशा साथी जानवरों के साथ रहने की कोशिश करता है. सिर उठा रहता है, कान खड़े और आगे की ओर रहते है.  त्वचा चमकती है, बाल चमकदार और रेशमी होते हैं. त्वचा को छूने पर कंपन होती है. त्वचा से मक्खियों को दूर भगाने के लिए लगातार पुंछ का प्रयोग करता है. अपने चारों पैरों पर खड़ा होता है, बिना किसी असुविधा के आसानी से खड़ा होता, चलता और बैठता है. गोबर में चिकनाइट और अर्ध-तरल निरंतरता रहती है. भेड़ और बकरियों के मलमूत्र छर्रेदार होते हैं. मूत्र हल्का पीला होता है. आँखें उज्ज्वल, थूथन ठंडी और नम रहती हैं. प्राकृतिक छिद्रों से कोई असामान्य और बदबूदार स्राव नहीं होता है. दुधारू पशु मात्रा और गुणवत्ता के लिहाज से सामान्य दूध का उत्पादन करते हैं. झुंड से दूरी बना लेता है. लगातार नीचे बैठता-उठता रहता है, हवा में पैर चलाता है, अपनी पूंछ उठाता है,अपने सिर को चरनी, दीवार या पेड़ पर दबाता है. ये पशुओं की परेशानी के संकेत है. 
लेट सकता है, अपने पैरों को फैला सकता है. अगर लेटा हो तो उठने की कोशिश नहीं करता है, जब खड़ा हो चलने की कोशिश नहीं करता है. ध्वनि कमजोर या कठोर हो जाती है. एक पैर को ऊपर उठाकर अपनी पीठ को झुकाकर या उस पर दबाव डाल कर खड़े हो सकते हैं. जुगाली या तो पूरी तरह से बंद हो जाती है या इसकी आवृत्ति कम हो जाती है. श्वसन त्वरित या धीमा हो जाता है. मलमूत्र (मल) सख्त या पानी जैसा हो सकता है.

टीकाकरण और डीवर्मिग/कृमिनाशक के बारे में ध्यान देने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

  • टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार निर्धारित रूप में प्रदान किया जाना चाहिए.
  • सभी जानवरों को टीकाकरण से कम से कम एक सप्ताह पूर्व कीटनाशकों का छिड़काव और डीवर्मिग/कृमिनाशक की दवा दी जानी चाहिए. यह जानवर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है.
  • सभी जानवरों को एक साथ (छोटे बड़े स्वस्थ या कमजोर) टीका लगाया जाना चाहिए.
  • टीके के नाम, बीमारी का नाम जिसके लिए इसका उपयोग किया गया हो, उत्पादन करने वाली फर्म, बैच नंबर, निर्माण और समाप्ति की तिथि सहित टीके के बारे में सभी जानकारी बनाए रखी जानी चाहिए.
  • टीकाकरण के बाद भूख, बुखार और दूध उत्पादन में कमी आम लक्षण हैं. या प्रभाव अस्थायी है और इनके लिए किसी इलाज की आवश्यकता नहीं होती है.
  • टीकाकरण के तुरन्त बाद पशु को तनाव में नहीं रखा जाना चाहिए. उन्हें ठीक के खिलाना और विश्राम करने देना चाहिए.
  • पशु को टीका लगाए जाने तक टीके को ठंडी श्रृंखला में बनाए रखा जाना चाहिए.

नियमित रूप से कृमि निवारक और समय पर टीकाकरण द्वारा, उत्पादकता घाटे के एक प्रमुख कारण से बचा जा सकता है. लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि जब भी पशु बीमारी के लक्षण दिखाता है पशुओं के स्वास्थ्य देखभाल के लिए समय पर कार्रवाई करने की जरूरत है. पशुपालन/पशुधन संबंधी स्थायी समिति बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान और पशुपालन विभाग के सहयोग से लोगों को जागरूक बनाने की योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

पशुओं के लिए टीकाकरण अनुसूची

रोगकिस जानवर को टीका लगाया जाना चाहिएटीका कब लगाया जाना चाहिए
रक्तस्रावी पूति (हैमरेजिक सेप्टिसीमिया) (एचएस)मवेशी, भैंस, भेड़ और बकरियां हर साल बरसात के मौसम से पहले
ब्लैक क्वार्टर्स (बीक्यू)मवेशी, भैंस, भेड़ और बकरियां हर साल बरसात के मौसम से पहले
बिसहरियामवेशी, भैंस, भेड़ और बकरियां केवल जब रोग उभरे
इंट्रोटोक्सेमियाभेड़ और बकरियांहर साल बरसात के मौसम से पहले
पीपीआर (पेटिस डेस पेस्टिस रुमिनन्ट्स) भेड़ और बकरियांबरसात के मौसम से पहले
खुर और मुँह के रोग (एफएमडी)मवेशी, भैंस, सुअर, भेड़ और बकरियां बछड़ों के लिए पहली खुराक 3 महीने की उम्र के बाद, 6 महीने के बाद समर्थक (बूस्टर) खुराकसंकर नस्ल के पशु को हर छह महीने पर, देशी वयस्क पशुओं को हर साल एक बार प्रतिरक्षित किया जाना चाहिए 
स्वाइन फीवरसुअरसाल में एक बार

हम पशुओं को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं?

  • सफाई और स्वच्छता बनाए रख कर
  • पर्याप्त हरा और सूखा चारा उपलब्ध करा कर
  • पूरक पोषण (यहाँ तक कि घर का बना) और खनिज पदार्थ प्रदान कर
  • स्वच्छ चारा उपलब्ध करा कर (दूषित और कवक से पीड़ित नहीं)
  • साफ़ और पीने योग्य पानी उपलब्ध करा कर
  • नियमित और समय पर डीवर्मिग/कृमिनाशक और टीकाकरण करने के द्वारा
  • पर्याप्त और समय पर चिकित्सा सहायता के द्वारा

दुधिया को एहसास हुआ स्वास्थ्य ही धन है

दुधिया ग्राम पंचायत के लोगों को इस बात का एहसास करने में अधिक समय की आवश्यकता नहीं पड़ी कि केवल स्वस्थ पशुओं से ही सफल और लाभदायक पशुपालन किया जा सकता है. इसके लिए बाड़े में स्वच्छता, पीने का सुरक्षित पानी और पशु की सफाई और स्वच्छता बनाए रखना अत्याधिक महत्वपूर्ण है. ग्राम सभा में यह संकल्प लिया गया कि गाँव में प्रत्येक पशु का समय पर टीकाकरण और नियमित रूप से डीवर्मिग/कृमिनाशक किया जाएगा. ग्राम पंचायत ने स्थायी समिति, दुधिया पशु पालन समिति से पशुओं की गणना करने और विभाग से टीकाकरण और स्वच्छ दवाओं के लिए एक मांग रखने के लिए कहा. इस तरह के एक छोटे से उपाय से, रुग्णता और पशुओं की मृत्यु से होने वाला घाटा काफी कम हो गया था. बेहतर पोषण ने भी काफी हद तक पशुओं की कम उत्पादकता की समस्याओं का समाधान किया.

पशुपालन और दुधिया ग्राम पंचायत की कहानी

आमतौर पर लोगों को लगता है की पशुधन एक निजी आर्थिक गतिविधि है इसलिए ग्राम पंचायत (ग्राम पंचायत) की इसमें कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं हो सकती. दुधिया ग्राम पंचायत के नव निर्वाचित सदस्यों के सामने यही सवाल था.

जनवरी 2009 में ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों के रूप में निर्वाचित होने के बाद सरपंच और नौ अन्य वार्ड सदस्य सरकारी पदाधिकारियों के साथ मिलकर ग्राम पंचायत के परिवारों के आर्थिक विकास के लिए योजना बना रहे थे. कृषि और पशुपालन पंचायत में परिवारों के प्राथमिक व्यवसाय हैं लेकिन गंभीर नुकसानों ने इस व्यवसाय को अलाभकारी बना दिया था. परिणामस्वरूप, कई परिवारों ने काम की तलाश में गाँव छोड़ दिया. पिछले वर्ष पंचायत के 20 परिवार काम की तलाश में स्थायी रूप से शहर पलायन कर गए. इस प्रकार पिछले पाँच वर्षो में कुल 143 परिवार गाँव से शहरों को चले गए थे. ऐसी स्थिति में परिवारों पर कर्ज का औसत बोझ बढ़ रहा था, खेत परती छोड़े जा रहे थे और जानवरों को बेचा जा रहा था.

ग्राम पंचायत के सदस्यों ने खुद को एक कठिन परिस्थिति में पाया. उन्होंने ब्लॉक पंचायत से सम्पर्क करने का फैसला किया और उनसे मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया. ब्लॉक पंचायत के अध्यक्ष ने समस्या को हल करने के लिए विभिन्न विभागों के अधिकारियों की एक बैठक बुलाई. इस बैठक में यह महसूस किया गया कि दुधिया ग्राम पंचायत को कृषि और पशुपालन दोनों पर काम करने की जरूरत है. ग्रामीणों के आर्थिक विकास के लिए उत्पादक खेतों की और उत्पादक खेतों के लिए पर्याप्त पशुधन की आवश्यकता थी. लेकिन दुधिया ग्राम पंचायत में अक्सर सूखा पड़ता था और हरे चारे की कमी सामान्य वर्षा वाले सालों में भी एक बड़ा मुद्दा था. तो प्रश्न यह था कि पशुपालन को लाभदायक कैसे बनाया जा सकता है और चारा, पशु आहार और पानी की उपलब्धता को किस तरह से सुनिश्चित किया जा सकता है?

इन समस्याओं का समाधान करने के लिए ग्राम पंचायत ने अगले सप्ताह ग्राम सभा की एक बैठक आयोजित की जिसमें एक अस्थायी समिति का गठन किया गया था. समिति में तेरह सदस्य शामिल किये गये. ग्राम पंचायत ने समिति से पशुपालन विभाग के कर्मचारियों की मदद से पंचायत में पशु-पालन व्यवसाय के विभिन्न मुद्दों और इस संबंध में आवश्यक प्रयास का आकलन से पता चला कि पशुपालन जो परिवारों की आय का मुख्य जरिया था, पिछले एक दशक में नष्ट चुका था. पशुओं के दूध का विपणन और पशु स्वास्थ्य देखभाल के लिए आवश्यक समर्थन संरचना धीरे-धीरे अप्रभावी होती जा रही थी. पशु चिकित्सा पर खर्च बढ़ गया था, जिसका पशु स्वास्थ्य देखभाल पर नकारात्मक असर पड़ा था. चारे की अनुपलब्धता के कारण सीमांत परिवार बकरी पालन करने लगे थे. काम की तलाश में लोगों के गाँव से पलायन करने की वजह से गाय और भैंसों की संख्या में भी काफी कमी आई थी.

ग्राम पंचायत की भूमिका

दुधिया गाँव में, इस परिदृश्य और पशुधन की स्थिति को ग्राम सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया. चर्चा के बाद ग्राम सभा ने निर्णय लिया कि ग्राम पंचायत को निम्नलिखित पहलुओं पर प्राथमिकता पर काम करना चाहिए :

  • चराई की भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराना और उनके कायाकल्प के प्रयास
  • सरकारी योजनाओं में पहुंच और समानता के मुद्दों को संबोधित करना
  • पोषण प्रबंधन (चारा, पूरक आहार, खनिज पदार्थ)
  • पशु स्वास्थ्य देखभाल (टीकाकरण सहित)
  • नस्ल सुधार, प्रजनन और उत्पादकता
  • बीमा और अन्य समर्थन सेवाएँ
  • स्वच्छता, सफाई और मवेशियों का दैनिक रखरखाव
  • पशु पालन समिति का सशक्तिकरण
  • योजना और अभिसरण
  • डेयरी को बढ़ावा देना
  • छोटे पशुओं, मुर्गी और सूअर पालन इत्यादि गतिविधियों को प्रोत्साहित करना

पशुपालन विभाग की ओर से समर्थन की मांग की और ग्राम पंचायत में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के साथ सहयोग किया तथा पाँच साल में पशुपालन का परिदृश्य बदल दिया. अब 2015 में औसतन 1200 लीटर से अधिक के दैनिक दुग्ध उत्पादन के साथ पशुपालन, परिवारों की औसत वार्षिक आय में लगभग 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान दे रहा. प्रत्येक ग्राम पंचायत इस तरह का परिवर्तन ला सकती है. लेकिन इसके लिए पशुपालन के मुख्य मुद्दों और समस्याओं को समझना और इन्हें संबोधित करने के लिए रणनीतियाँ और गतिविधियाँ बनाना आवश्यक हैं.

किस प्रकार एक ग्राम पंचायत द्वारा वैज्ञानिक और आर्थिक रूप से लाभप्रद पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए की जाने वाली रणनीतियों और गतिविधियों के बारे में हम आगे के लेखों में सीखेंगे. हम दुधिया ग्राम पंचायत द्वारा शुरू की गई गतिविधियों में से कुछ को जानेंगे.

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