कबूतर संदेशवाहक पक्षी क्यों है : Why Pigeon is a Messenger Bird
कबूतर संदेशवाहक पक्षी क्यों है : Why Pigeon is a Messenger Bird, कहानियों ने, इतिहास के किताबों में और फिल्मों में हमने पढ़ा और देखा है कि कबूतरों को संदेशवाहक के रूप में उपयोग किया जाता है. कबूतर एक शांत स्वाभाव वाला पक्षी है. वैसे तो कबूतरों की बहुत सी प्रजाति होती है. कबूतर के अलग-अलग जगहों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रजाति दिखाई देतें हैं. कोलंबिडी कुल (गण कोलंबीफॉर्मीज़) की कई सौ प्रजातियों के पक्षियों में से एक छोटे आकार वाले पक्षियों को फाख्ता या कपोत और बड़े को कबूतर कहते हैं. इसका एक अपवाद सफ़ेद घरेलू कबूतर है, जिसे शांति कपोत कहते हैं. मगर उड़कर दूर-दूर तक सन्देश पहुँचाने वाले कबूतर एक खास प्रजाति के होते हैं. संदेशवाहक कबूतर को उनके मूल स्थान से अलग करके पिजड़े में बंद करके दूसरी जगह ले जाया जाता है. जब कबूतर के जरिये किसी जगह सन्देश भेजना होता है तो सन्देश की पुड़िया बनाकर कबूतर की पैर में बांधकर या गले में लटकाकर कबूतर को उड़ा दिया जाता है.

कबूतर ठंडे इलाकों और दूरदराज के द्वीपों को छोड़कर लगभग पूरी दुनिया में पाए जाते हैं. कबूतर पूरे विश्व में पाये जाने वाला पक्षी है. यह एक नियततापी, उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढँका रहता है. मुँह के स्थान पर इसकी छोटी नुकीली चोंच होती है. मुख दो चंचुओं से घिरा एवं जबड़ा दंतहीन होता है. इनके अगले पैर डैनोंया पंख में परिवर्तित हो गए हैं. पिछले पैर शल्कों से ढँके एवं उँगलियाँ नखरयुक्त होती हैं. इसमें तीन उँगलियाँ सामने की ओर तथा चौथी उँगली पीछे की ओर रहती है. यह जन्तु मनुष्य के सम्पर्क में रहना अधिक पसन्द करता है.
संदेशवाहक कबूतर का इतिहास
कबूतर किसी सन्देश या संकेत को बहुत ही आसानी से एक जगह से दुसरे जगह ले जाते है. कहा जाता है कि जब तक पूरी दुनिया में डाक विभाग स्थापित नहीं हुआ था तब तक राजा महराजा यहाँ तक अंग्रेज अधिकारी भी कबूतर का उपयोग एक स्थान से दुसरे स्थान तक पत्र और सन्देश पहुचाने के लिये उपयोग करते थे. अब सवाल उठता है कि कबूतर पत्र या चिट्ठी के प्राप्तकर्ता का पता कैसे खोज लेता था? क्या वह किसी दुसरे कबूतर से पता पूछता था? या सन्देश भेजने वाला कबूतर के कानों में किसी विशेष प्रकार का मन्त्र फूंकता था? तो आइये जानते हैं इस कबूतरों के मजेदार रहस्य के बारे में. भारत में पाये जाने वाले कबूतर प्रायः स्लेटी और सफ़ेद रंग के होते है. पुराने ज़माने में कबूतर को संदेशवाहक वाहक पक्षी के रूप में प्रयोग किया जाता था. अर्थात कबूतर एक स्थान से दुसरे स्थान तक पत्र और चिट्ठियाँ ले जाने का काम करती थी. कबूतरों को पालतू बनाये जाने का सबसे प्राचीन उल्लेख मिस्त्र के पांचवे राजवंश (लगभग 300 ईसा.पूर्व) में मिलता है. 1150 ई. में बगदाद के सुल्तान ने कबूतरों की डाक व्यवस्था शुरू किया था और चंगेज खां ने अपने विजय अभियानों के विस्तार के साथ ऐसी ही प्रणाली का उपयोग किया था. सन 1848 के क्रांति के दौरान यूरोप में संदेशवाहक के रूप में कबूतरों का व्यापक उपयोग हुआ था और 1849 में बर्लिन और ब्रुसेल्स के बीच टेलीग्राफ सेवा भंग होने के बाद कबूतरों की ही संदेशवाहक के रूप में प्रयुक्त किया गया था. 20 वी. शताब्दी में भी युद्धों के दौरान कबूतरों को आपात सन्देश लेजाने के लिये इस्तेमाल किया गया.
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क्या सभी कबूतर संदेशवाहक होते है?
कबूतर में इंसानों की तरह लैंडमार्क (भूमि चिन्ह) पहचानने की क्षमता होती है लेकिन फिर भी सभी कबूतर संदेशवाहक नहीं होते है. अधिकांशतः होमिंग पिजन या रॉक पिजन को संदेशवाहक कबूतर के रूप में प्रयुक्त किया जाता था. क्योंकि रॉक पिजन में रास्तों को समझने के लिये खास मैग्नेटोरिशेप्सन स्किल या दिमाग पायी जाती है. मैग्नेटोरिशेप्सन स्किल पक्षियों में पाया जाने वाला वह विशेष गुण होता है जिसके कारण कबूतरों को इस बात का अंदाजा लग जाता है कि वे पृथ्वी के किस मैग्नेटिक फील्ड में हैं. रॉक पिजन को संदेशवाहक के रूप में सबसे कुशल पक्षी के रूप में माना जाता है.
कबूतर की मजेदार रहस्य
कबूतरों में मजेदार रहस्य की बात यह है कि इतना जबदस्त स्किल होने के बाद भी कोई भी कबूतर किसी भी एड्रेस या पता को ढूंढने की क्षमता नहीं रखता. दरअसल कबूतर में एक और विशेष गुण होता है की वह अपने जन्म स्थान और आवास को नहीं भूलता है. इसलिए पालतू कबूतर को आप अपने आसपास के किसी भी इलाके या अन्य जगह में ले जाकर उसे पिंजड़े से स्वतन्त्र कर देने के बाद भी वह कबूतर वापस अपने आवास पर ही लौट आता है. वह अपने प्रथम पालक का पता कभी भी नहीं भूलता है. यही कारण है की राजा-महराजा अपने मित्र राजा-महराजाओं के पालतू कबूतर मंगवा लिया करते थे, ताकि समय आने पर कबूतर को सन्देश के साथ वापस भेजा जा सके. इससे समझ में आता है की सन्देश ले जाने वाले कबूतर सन्देश भेजने वाले का नहीं होता था बल्कि वह कबूतर सन्देश प्राप्तकर्ता का कबूतर होता था. इसलिए उड़कर सन्देश पहुँचाने वाले कबूतर हमारी हर मनचाही जगह तक सन्देश नहीं पंहुचा सकते है, वे केवल वहीँ तक सन्देश ले जा सकते हैं जहाँ उनका जन्म हुआ है.
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उदहारण :- आगरा के किसी कबूतर को दिल्ली ले जाकर छोड़ देने पर वह पुनः वापस आगरा ही जायेगा, न कि मुंबई. यदि हमें मुंबई सन्देश पहुँचाना होगा तो हमारे पास आगरा में मुंबई का कबूतर होना चाहिए. क्योंकि कबूतर को अपने घर या जन्म स्थान (आगरा) का पता रहता है, न कि दिल्ली, मुंबई, नागपुर, इलाहबाद का. इसलिए कबूतरों के द्वारा सन्देश भेजने में सन्देश पहुचने की गारंटी नहीं होती है. रास्ते में किसी पक्षी, मनुष्य या अन्य जानवरों के द्वारा कबूतर का शिकार भी किया जा सकता है. इसलिए सन्देश भेजने के लिये एक से अधिक कबूतर का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि उनमें से कम-से-कम एक कबूतर अपने गन्तब्य स्थान तक पहुँच जाये.

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