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पशुओं में फूड प्वायजनिंग या विषाक्तता का ईलाज : Treatment of Food Poisoning in Animals

पशुओं में फूड प्वायजनिंग या विषाक्तता का ईलाज : Treatment of Food Poisoning in Animals, फ़ूड प्वायजनिंग या विषाक्त भोजन पशु और पक्षियों को प्रभावित करने वाले अपशिष्ट पदार्थ, कृषि में उपयोग होने वाले खरपतवार नाशक एवं यूरिया के खाने से, शादी पार्टी में बचे विषाक्त भोजन या शिरा को खाने से या मनुष्य द्वारा उपभोग किये जाने वाले अवांछनीय पदार्थ को खा लेने आदि कारणों से होता है. इनके दुष्प्रभावों से से उत्पन्न होने वाले विषाक्त प्रभावों की जानकारी, रोकथाम के उपाय तथा उपचार करना अन्यंत आवश्यक होता है. क्योकि यह विषाक्त पदार्थ पशु और पक्षियों की जनन वृद्धि खानपान और व्यवहार को प्रभावित करते है. कभी-कभी ये विषाक्त जनित पदार्थ गलती से पशु के खाना, दाना-पानी, चारा आदि में मिल जाते हैं. क्योकि यह बहुत ही घातक होता है और इससे पीड़ित जानवर कुछ ही समय में मर भी जाता है. कई बार फ़ूड प्वायजन पशुओं द्वारा विषाक्त वनस्पतियों के सेवन कर लेने से यह संकट पैदा होता है. जैसे कि ज्वार की छोटी पत्तियों की फसल पर सायनाइड नामक जहर होता है, जो कि वर्षा होने पर धुल जाता है. इसलिए ज्वार की छोटी फसलों पशुओं को कभी भी नहीं खिलाना चाहिए. इसे आम भाषा में ‘ज्वार की भौरी‘ बीमारी भी कहा जाता है.

शहरों में बहुत से पशु कूड़े-कचरे के ढेर में पड़े प्लास्टिक की थैली भी खा जाते है, चुकि पशु प्लास्टिक की थैली को पचा नहीं पाता है और प्लास्टिक की झिल्ली आंत में जाकर फंस जाती है. अंतत: प्लास्टिक के पेट में नहीं गल पाता है जो कि पशुओं के मौत का कारण भी बन जाता है. यदि पशु साधारण कागज या अख़बार खा लें तो पशु को नुकसान नहीं होता है क्योंकि कागज में सेल्युलोज होता है, वह पशु को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता है. जैसा की भूंसा पशु का भोजन होता है ठीक वैसे ही साधारण कागज उया अख़बार को रद्दी में न बेंचकर भूंसे के रूप में पशुओं को खिलाया जा सकता है. क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के समय लोगों ने पशु चारे की कमी के वजह से अख़बार और कागज को पशुओं को खिलाकर जिन्दा रखा था.

Treatment of Food Poisoning in Animals
Treatment of Food Poisoning in Animals

पशुओं विषाक्तता या फ़ूड प्वायजनिंग के स्रोत

पशुओं में विषाक्तता के मुख्य दो स्रोत हो सकते है जिसमें विषैले पेंड पौधे और पर्यावरण प्रदुषण. आमतौर पर देखा गया है की जिन पौधों को पशु चरने समय छोड़ देतें है, सुखा की स्थिति में पशु पुनः उस पौधे को चर लेते है जो कि पशु के लिये अत्यंत हानिकारक और घातक सिद्ध होता है. पशु चारे पर कटाई से पहले अनुचित और असंतुलित मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग पशु चारे के फसल में प्रयोग होने वाले रसायन से विषाक्तता उत्पन्न होने की सम्भावना होती है. इसके अलावा औषधियों का अनुचित और असंतुलित मात्रा में प्रयोग एवं औद्योगिक संस्थाओं द्वारा विषाक्त मलबे, दुधित वायु प्रदुषण से भी पशुओं में विषाक्तता उत्पन्न होने की सम्भावना उत्पन्न होती है. सभी विषाक्त तत्व सामान्य रूप से विषाक्तता उत्पन्न नहीं करते है. इन विषाक्त तत्वों को विभिन्न वर्गों में बांटा जा सकता है जैसे –

1 . उत्पत्ति के आधार पर – पेड़ पौधे द्वारा उत्पन्न होने वाले जीवाणु जनित, कवक जनित, कवक जनित, विभिन्न जीव जनित, विभिन्न निम्नवर्गीय जीवों के डंक व काटने से प्रभावित विष आदि.

2. विषाक्तता के आधार पर – सर्वाधिक विषाक्त, अत्यधिक विषाक्त, सामान्य रूप से विषाक्त, कम विषाक्त.

कभी-कभी पशुओं के बाह्य परजीवी जैसे किलनी, जूं, चिचड़ी, पेशवा आदि को मारने के लिए बाजार में उपलब्ध परजीवी नाशक दवाइयां जैसे – बुटोक्स जैसी अन्य कीटनाशक को पशुओं के शरीर में लगाया जाता है. लगाते समय सावधानी नहीं बरतने पर पर पशु शरीर को चाट लेते है, यदि ऐसी स्थिति में प्रभावित पशु के मुंह से झाग निकलता है, पशु नीचे गिर जाता है और पशु का शरीर अकड़ने लगता है तो ऐसी अवस्था में पशु को पशुचिकित्सक के सलाह अनुसार एट्रोपिन सल्फेट का इंजेक्शन लगवाएं.

विषाक्त तत्वों द्वारा उत्पन्न लक्षण के कारण

विषाक्त तत्वों द्वारा उत्पन्न होने वाले लक्षण के कई कारण जो मुख्यतः उनके द्वारा प्रभावित अंगों व उत्तकों के साथ-साथ उनके कार्य करने की प्रक्रिया पर निर्भर करते हैं जैसे-

1 . अम्ल क्षार, भारी धातु तत्व, सांप, बिच्छु व कीटों के डंक केवल क्षेत्रीय उत्तकों को प्रभावित करते हैं.

2. पौधे से उत्पन्न विषाक्त तत्व त्वचीय उत्तकों का क्षरण करते है.

3. स्टिकनींन, सायनाइड व हाइड्रोकार्बन केन्द्रीय नाड़ी तंत्र को प्रभावित करते हैं.

4. तांबा, सीसा, अरंडी आदि रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं.

5. अर्गट व थैलियम रक्त वाहिकाओं को नष्ट करते हैं.

6. क्लोरेट व नाईट्रस ऑक्साइड गैस रक्त के हीमोग्लोबिन से मेट हीमोग्लोबिन बनाते है.

7. वारफेरिन व डाईक्यूमेराल रक्त के जमाव को रोकते है.

8. आरसैनिक, आर्गेनोफास्फेट व भारी धातुएं आदि विभिन्न एंजाइम पर कार्य करती है.

9. ब्रेकन फर्न, बेंजीन आदि हड्डी के उत्तकों को प्रभावित करते हैं.

पशुओं में फ़ूड प्वायजनिंग या विषाक्तता की पहचान कैसे करें?

पशुओं में विषाक्तता की की पहचान उत्पन्न होने वाले रोगों के साथ-साथ मुख्यतः पशु के इतिहास पर निर्भर करता है. इसके अतिरिक्त परिस्थितियों, लक्षणों, रासायनिक परीक्षणों व मृत पशु के उत्तकों के परीक्षण व रासायनिक जाँच लाभदायक रहती है. पशुपालक से लक्षणों के प्रकार, लक्षण प्रारंभ होने का समय, कुल प्रभावित पशु की संख्या अथवा प्रकार, पशुओं को दिए गए आहार, दाना, चारा, पानी, उनके आवास, चारागाह व जल ग्रहण करने के स्थान के साथ-साथ दी गई औषधियां या उपचार की लेना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. विषाक्तता एक आपातकालीन स्थिति होती है जिसका यथा शीघ्र निदान व निराकरण करना अति आवश्यक होता है. इसके बचाव व निदान करने के लिये निम्नलिखित बिन्दुओं का ध्यान रखना होगा –

1 . पशु को जीवित अवस्था में बनायें रखने के लिये उचित प्राथमिक उपचार की व्यवस्था करनी चाहिए.

2. पशु के अति विशिष्ट पैरामीटर जैसे की शरीर का तापमान, श्वास गति, ह्रदय गति को सामान्य करने की कोशिश की जाये.

3. पशु के इतिहास, खानपान, भ्रमण तथा लक्षणों के देखते हुए विषाक्तता का संदेहात्मक निर्धारण किया जाये, जिसके आधार पर पशुओं का उपचार किया जा सके.

4. पशु के चारा, रक्त, मल, मूत्र आदि के नमूने प्रयोगशाला जाँच के लिये भेजने की यथासंभव व्यवस्था की जानी चाहिए.

5. प्रयोगशाला के परीक्षण परिणाम के आधार पर विषाक्तता का एक निश्चयात्मक निर्धारण किया जाये और उसी के आधार पर पशु का उपचार किया जाये.

Food Poison in Animals
Food Poison in Animals


अधिकांश पशुओं का उपचार प्रयोगशाला के आभाव के कारण संदेहात्मक निर्धारण के आधार पर किया जाता है. पशुओं में विषाक्तता उत्पन्न करने वाले पदार्थों की संख्या हजारों में है. प्रत्येक पदार्थ का पशु के शरीर में कुछ सकारात्मक स्थान होता है जहाँ पर पदार्थ रुक जाते हैं और अपनी संघता बनाते हैं. पशुओं में विषाक्तता के पाये जाने वाले लक्षण इसी संघता पर निर्भर करता है. विषाक्तता का उपचार प्रमुख लक्षणों के आधार पर तात्कालिक प्रभाव से प्रारंभ कर देना चाहिए. विषाक्तता से प्रभावित पशु का विशेष ध्यान रखते हुए उनके लक्षणों के कारक की पहचान की जाती है. यदि उसका कोई विशेष एंटीडोट है तो उसको देना अत्यंत प्रभावी होता है. रक्त व गुर्दे सहित विभिन्न अंगों में विष के प्रभाव को कम करने के लिये फ्लूड थैरेपी निरंतर किया जाना अति लाभदायक होता है.

पशुओं में विषाक्तता के उपचार का विभिन्न चरण निम्नवत हैं-

1 . विषाक्त तत्व के माध्यम जैसे – आहार, पानी व वातावरण को यथा शीघ्र बदलना.

2. शरीर में उपलब्ध विषाक्त तत्व के शोषण को रोकने के लिये साबुन, पानी इत्यादि से सफाई करना, बाल या ऊन का काटना, पेट में उपस्थित तत्वों को निकालना, उल्टी कराना, नली द्वारा पेट की धुलाई करना तथा सामान्य विषाक्त रोधी पदार्थ जैसे कि कैल्शियम ग्लूकोनेट, ग्लूकोस तथा थायोसल्फेट दिया जाना सम्मिलित है.

3. लक्षणों के आधार पर आर्गेनोफास्फेट व कार्बोनेट कम्पाउंड, विषाक्तता के लिये एट्रोपिन सल्फेट तथा आंकजींस, जैसी औषधियां प्रभावी होता है. अतः जैसे ही पशु के विष ग्रहण करने की जानकारी प्राप्त होती है तत्काल सबसे पहले प्रयास करें की विष को शरीर से निकालने या कम करने का प्रयास करें.

4. अगर यदि विष पशु त्वचा पर लगा है तो त्वचा को स्वच्छ पानी से अच्छी तरह से धुलाई करना चाहिए. पशु की धुलाई में साबुन या किसी अन्य डिटर्जेंट का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योकि हो सकता है साबुन की सहायता से विष का अवशोषण बढ़ जाये.

5. यदि विष या जहर पशु के पेट में पहुँच चूका है तो पेट की धुलाई करनी चाहिए या फिर उल्टी कराने का प्रयास करना चाहिए. पेट की धुलाई के लिये 9 ग्राम सादा नमक या मीठा सोडा 1 लीटर पानी में घोलकर एक नली की सहायता से पेट में डालें.

6. विषाक्त पशु को उल्टी कराने के लिये 1 से 3 चम्मच चाय, सादा नमक, हल्के गुनगुने पानी में पशु के जीभ के पिछले भाग पर डाल दें. यदि जहर अम्ल या क्षार है तो उल्टी कराने का प्रयास नहीं करना चाहिए, इसके लिए अधिक से अधिक पेट की धुलाई ही सर्वोत्तम उपाय है.

7. यदि विषाक्त पशु बेहोशी की स्थिति में है तो भी उल्टी कराने का प्रयास नहीं करना चाहिए , अन्यथा पशु को न्युमोनिया भी हो सकता है.

8. पेट की धुलाई करने के पश्चात् 10 ग्राम एकटीवेटेड चारकोल 5 ग्राम हल्का मैग्नीशियम ऑक्साइड और 5 ग्राम टैनिक अम्ल का मिश्रण बनाकर पशु को पिलाना चाहिए .

9. छोटे पशुओं को कच्चे अंडे की सफेदी पिलाना चाहिए और फिर एक कप कच्चा दूध पिलाना चाहिए.

10. यदि पेट की धुलाई संभव न हो तो जैसे चार पेट वाले बड़े पशुओं, गाय, भैंस में तो नमकीन परगेटिव जैसे की गुलाबी नमक 60 ग्राम खिलाना चाहिए.

11. लक्षणात्मक उपचार के अंतर्गत पशु के शरीर के तापमान को बनायें रखें यदि तापमान सामान्य से कम है तो पशु को कम्बल से ढंकना चाहिए आयर यदि तापमान अधिक है तो पशु को नहला देना चाहिए तथा पशु को दौरे पड़ रहें हों तो उनकी रोकथाम करें. उल्टी या दस्त होने से यदि शरीर में शुष्कता आई है तो नमक का पानी अंतःशिरा सूचि वेध विधि द्वारा दें.

12. अम्ल विषाक्तता विषाक्तता समाप्त करने के लिये मीठा सोडा का 1% घोल पिलायें और क्षार या अल्कली के लिये नीबू का पानी या पानी में सिरका (100 मिली. में 4 मिली.) का प्रयोग करें.

13. इन सबके अतिरिक्त पशु को पुर्णतः विश्राम करने दें.

14. दाना चारा और साफ पानी भरपूर मात्रा में दें.

15. यदि जहर या विष के बारे में कोई भी पूर्णतः जानकारी प्राप्त हो जाति है तो तुरंत उसी के अनुसार उपचार प्रारंभ करें.

16. यदि पशु मूर्छित हो जाता है तो स्थिति गंभीर है और तुरंत पशु को होश में लाने का प्रयास करें.

17. विषाक्तता एक अति गंभीर स्थिति होती है जिसमें पशु का निरंतर परीक्षण जरुरी होता है. इसमें छोटी सी छोटी लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है.

प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

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