पशुओं में टीकाकरण आवश्यक क्यों है : Why Vaccination is Necessary in Animals
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पशुओं में टीकाकरण आवश्यक क्यों है : Why Vaccination is Necessary in Animals, पशुओं में संक्रामक रोग जीवाणु, विषाणु, फफूंदी, प्रोटोजोवा तथा परजीवियों के कारण होते हैं. इन संक्रामक रोगों के प्रकोप से आर्थिक नुकसान को देखते हुए, पशुओं को संक्रामक बिमारियों से बचाना बहुत आवश्यक है. एक सफल डेयरी फार्मिंग के लिये पशु स्वास्थ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसलिए जानवरों की देखभाल करना और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि वे बीमारियों के खतरों से सुरक्षित हैं या नहीं टीकाकरण पशु स्वास्थ्य और पशु कल्याण दोनों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. टीकों का उपयोग पशुओं को कई प्रकार के रोगों से बचाने के लिए किया जाता है जो न केवल उत्पादन को प्रभावित करते हैं बल्कि किसानों को पशु प्रजनन को प्रभावित कर आर्थिक नुकसान भी पहुंचाते हैं. पशुधन को अच्छी तरह से प्रबंधित करने के लिए हमेशा समय-समय पर टीकाकरण करना आवश्यक है.

टीकों के प्रकार
टीकाकरण पशु रोग को रोकने, खाद्य उत्पादन की दक्षता बढ़ाने और लोगों को जूनोटिक और खाद्य जनित संक्रमणों के संचरण को रोकने के लिए एक प्रभावी तरीका है. वास्तव में वैक्सीन कुछ भी नहीं, वे रोग पैदा करने वाले रोगाणु हैं जिनकी बीमारी पैदा करने वाली शक्ति को विभिन्न तरीकों से नष्ट या कम कर दिया गया है पशुओं में संक्रामक रोगों के रोकथाम के लिये दो प्रकार के टीके उपयोग किये जाते है.
1 . मृत टीके – इस प्रकार के टीके में जीवाणुओं को मारकर टीका तैयार किया जाता है.
2. जीवित टीके – इस प्रकार के टीके में जीवाणु या विषाणु जीवित अवस्था में होते है, परंतु इनकी रोग निर्माण की क्षमता को नष्ट कर दिया जाता है.
टीका लगवाना आवश्यक क्यों है?
पशुओं में टीका लगवाने से उस रोग के प्रति शरीर में रोग प्रतिरोधक (प्रतिपिंड) क्षमता बनने लगता है, जो पशुओ के शरीर में संक्रामक रोगों का प्रवेश होने से बचाता है. पशुओ के शरीर में जब तक यह प्रतिपिंड पर्याप्त मात्र में उपलब्ध रहते है, तब तक उस पशु या प्राणी के शरीर में उस रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है. जब इन कम क्षमता के रोगाणुओं को जानबूझकर जानवरों के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है, तो वे बीमारी का कारण नहीं बन सकते क्योंकि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली इन कम विषाणु शक्ति वाले सूक्ष्म जीवों से लड़ने में सक्षम है और एंटीबॉडी बनाकर उन्हें भविष्य के लिए याद रखता है. जब कभी भविष्य में वही संक्रामक एजेंट प्राकृतिक रूप से जानवरों के शरीर पर हमला करता है तो यह पहले से बने एंटीबॉडी उन प्राकृतिक रोगाणुओं को पहचानने और मारने में सक्षम है. इस प्रकार पशु स्वास्थ्य को भविष्य में होन वाले रोगो से इन टीकों द्वारा बचाया जा सकता है. टीकों का उचित परिणाम प्राप्त करने के लिये टीके का रख-रखाव अच्छा होना आवश्यक है. जिस कम्पनी द्वारा टीके निर्माण किया जाता है उसके निर्देश टीके की बोतल पर लिखा होता है. प्रत्येक टीकाकरण करने वाले व्यक्ति को टीके के निर्देश का सक्ती से पालन करना अनिवार्य होता है.
पशुधन के रोग –
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टीकाकरण में सावधानियाँ
1 . पशुओं को समय समय पर टीके लगवाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. गाँव में सभी पशु को एक साथ टीके लगवाएं और जहाँ तक हो सके कोई भी पशु नहीं छूटे इसका ध्यान रखें.
2. पशुओं में टीकाकरण सुबह अथवा शाम के समय ठंडे वातावरण में करना चाहिए.
3. पशुपालक रोगी अथवा बीमार पशु को कभी भी टीके नहीं लगवाएं.
4. 6 माह के ऊपर गाभिन या गर्भित पशु का कभी भी टीकाकरण नहीं करवाएं, नहीं तो गाभिन पशु में गर्भपात की सम्भावना बनी रहती है.
5. जिन कंपनियों द्वारा टीके बनाये जाते है उन कंपनियों के निर्देशन का टीके के भण्डारण तथा उपयोग करने की पद्धति का पालन करना अत्यंत आवश्यक होता है.
6. प्रत्येक टीके की बोतल के ऊपर निर्माण तिथि (Mfg Date) तथा अंतिम तिथि (Expiry Date) अंकित रहती है. अंतिम तिथि (Expiry Date) समाप्त हो जाने वाले टीके का प्रयोग टीकाकरण में नहीं करना चाहिए.
7. टीकाकरण के लिये समस्त टीकों को निर्धारित तापक्रम पर (4 डिग्री सेंटीग्रेड) पर रखना चाहिए. ऐसा नहीं करने पर टीके ख़राब हो जाते है.
8. टीकों को धुप से बचाकर रखना चाहिए, धुप में टीके सीरिंज में नहीं भरना चाहिए.
9. टीके लगाते समय टीके बर्फ के बॉक्स (Ice-Box) में या थर्मस में ले जाना चाहिए. तथा छाँव में रखकर टीका को सीरिंज में भरना चाहिए.
10. सीरिंज और निडिल को अच्छी तरह से साफ़ अथवा निर्जन्तुक करना चाहिए. प्रत्येक टीके के बाद निडिल (सुई) को गरम पानी से धोना चाहिए. निर्जन्तुकीकरण के लिये स्पिरिट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
पशुओं में टीकाकरण के फायदे
1 . पशुओं में फैलने वाले विभिन्न प्रकार के बीमारी जैसे – गलघोटू(HS.), ब्लैक क्वार्टर (BQ.), ब्रुसेलोसिस आदि संक्रामक बिमारियों के प्रभावित ओने से पशुओं को बचाया जा सकता है.
2. बीमारी के संचरण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए झुंड प्रतिरक्षा (Herd Immunity) तैयार करना.
3. पशुओं को संक्रामक बिमारियों से रोकथाम करके सुरक्षित और कुशल खाद्य उत्पादन किया जा सकता है.
4. जानवरों और लोगों की उभरती बीमारियों पर नियंत्रण किया जा सकता है.
5. खाद्य जनित रोग के संचरण में कमी किया जा सकता है.
6. जेनेटिक या अनुवांशिक रोगों का नियंत्रण और इस प्रकार मानव जीवन पर खतरा या प्रभाव (जैसे रेबीज, इन्फ्लूएंजा, रिफ्ट वैली फीवर, ब्रुसेलोसिस आदि) कम हो जाते हैं.
7. एंटीबायोटिक दवाओं या अधिक महंगा विकल्प की आवश्यकता में कमी और चिकित्सा के ऊपर व्यय में कमी किया जा सकता है.
पशुधन में टीकाकरण की समय – सारणी
रोग का नाम | पहली खुराक में उम्र | बूस्टर खुराक | अगली खुराक |
खुरपका-मुंहपका रोग Foot and Mouth Disease (FMD) | 4 महीने और उससे अधिक | पहली खुराक के 1 महीने बाद | छह मासिक |
गलाघोंटू (Haemorrhagic Septicaemia) | 6 महीने और उससे अधिक | – | वार्षिक रूप से स्थानिक क्षेत्रों में. |
ब्रूसेल्लोसिस (Brucellosis) | 4-8 महीने की उम्र(केवल मादा बछड़े) | – | जीवन में एक बार |
Theileriosis | 3 महीने और उससे अधिक उम्र | – | जीवन में एक बार केवल क्रॉसब्रीड और विदेशी नस्ल के लिए आवश्यक है. |
ऐंथ्रेक्स टीका Anthrax | 4 महीने और उससे अधिक | – | वार्षिक रूप से स्थानिक क्षेत्रों में. |
IBR | 3 महीने और उससे अधिक | पहली खुराक के 1 महीने बाद | छह मासिक है) |
रेबीजRabies (केवल काटने के बाद) | संदिग्ध कुत्ते काटने के तुरंत बाद. | 4 वें दिन | पहली खुराक के बाद 7,14,28 और 90 (वैकल्पिक) दिन।. |
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