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पशुओं को कृमि की दवा देना जरुरी क्यों है : Why is it Important to give Deworming Medicine to Animals

पशुओं को कृमि की दवा देना जरुरी क्यों है : Why is it Important to give Deworming Medicine to Animals, पशुओं के पेट में कीड़े होना अर्थात कृमि पशुधन के लिए एक बहुत ही बड़ी समस्या होती है. पशुओं के शरीर में कृमि जैसे अन्य परजीवियों के संक्रमण से पशुपालक को बहुत भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. आज पशुओं में पेट के कीड़े या कृमि भारत देश जैसे अन्य उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले देश के लिये गंभीर समस्या बन गई है. पशुओं में कृमि या पेट के कीड़े का संक्रमण मिट्टी और घास से परजीवियों का संक्रमण होता है.

Why is it Important  to give Dewarming Medicine to Animals
Why is it Important to give Dewarming Medicine to Animals

पशुओं का डीवरमिंग (Deworming) अथवा पेट के कीड़े मारने की दवा अथवा कृमिनाशक दवाओं से पशुओं के पाचन तन्त्र पेट, आंत और यकृत में मौजूद कीड़े को नष्ट किया जाता है या हटा दिया जाता है. तथा पशुओं को रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनता है. कृमि की दवा पशुधन के विकास, दूध के उत्पादन, मांस और अंडे के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मांस उत्पादन के लिये पाले जाने वाले पशु जैसे – भेड़, बकरी, मुर्गीपालन, बतखपालन, बटेर पालन आदि के विकास और वजन बढानें के लिये कृमि की दवाई बहुत ही लाभदायक होता है. दूध देने वाले पशुओं जैसे – गाय, भैस, भेड़, बकरी इत्यादि में भी पेट के कृमि हो जाने पर पशु का दूध उत्पादन गिर जाता है या कम हो जाता है. दूध उत्पादन में कमी होने पर पशुपालक को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है जिससे पूरा पशुप्रबंधन पर असर पड़ता है. ऐसे में पशुओं को समय – समय पर कृमि की दवाई देना बहुत जरुरी होता है.

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अगर पशु परजीवी मुक्त होगा तो पशुपालन में अवश्य ही मुनाफे का सौदा होगा. क्योंकि यदि पशु के पेट में परजीवी होंगे तो परजीवी पशु के आहार के सम्पूर्ण पोषक तत्व को परजीवी खा जायेंगे. कुछ परजीवी कीड़े जैसे फीता क्रीमी, गोल कृमि पशु के पेट में रहकर पशु के सम्पूर्ण पोषक आहार को परजीवी ग्रहण कर लेते है. जिससे पशु कमजोर हो जाता है, और पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे – धीरे कम होने लगती है. धीरे धीरे पशु अन्य रोगों का शिकार हो जाता है. यदि पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाति है तो पशु को लगाये जाने वाले टीके का असर भी कमजोर हो जाता है. क्योकि रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाति है जिससे अंततः पशु धीरे धीरे क्षीण होने लगता है और अंत में मृत्यु को गले लगा लेती है.

पेट में कीड़े होने के लक्षण

1 .पशु सुस्त एवं कमजोर हो जाता है.

2. पशु का वजन कम हो जाता है.

3. पशु की हड्डियाँ दिखने लगती है.

4. पशु का पेट बड़ा हो जाता है.

5. चारा एवं दाना खाकर भी पशु की शारीरिक वृद्धि तथा उत्पादन कम हो जाता है.

6. पशु में दस्त होते है तथा कभी कभी दस्त में कीड़े भी दीखते है.

7. पशु मिट्टी खाता है.

8. पशु की चमक कम हो जाति है तथा बाल खुरदुरे दिखाई देते है.

9. पशु के शरीर में खून की कमी हो जाति है या पशु को एनीमिया रोग हो जाता है.

10. पशु का उत्पादन कम हो जाता है.

11. मादा पशु में गर्भ धारण में समस्या उत्पन्न हो जाति है.

12. युवा पशु आमतौर पर वयस्क पशु की तुलना में अंतरिक परजीवी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं.

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पशुओं की डीवारमिंग के फायदे

1 . दुधारू पशुओं को कृमि की दवा हर तीन महीने में खिलाना चाहिए. कृमि की दवा खिलाने से पशु के पेट में मौजूद कीड़े ख़त्म हो जाते हैं, जिससे पशु का पाचन तंत्र सही रहता है और दूध उत्पादन लगातार बना रहता है.

2. छोटे बछड़ों के पेट में कृमि की बहुत अधिक शिकायत होती है. कभी-कभी कृमि बछड़ों में गर्भ के अन्दर में ही हो जाता है और व्याने के तुरंत बाद बछड़ा को दस्त या गोबर करने में परेशानी या बछड़े के पेट में दर्द जैसी समस्या हो जाति है. ऐसे में बछड़ों को शारीरिक भार के अनुसार कृमि की दवा पिलाने पर आशातीत लाभ होता है.

3. गाय, भैंस, भेड़, बकरी, मुर्गियां आदि को कृमि के दवा पिलाने से पशु कृमि मुक्त हो जाता है. इससे पशुओं के शारीरिक भार में बढ़ोतरी होती है. इससे पशुओं में मांस और अंडे उत्पादन के लिये पशुपालन करने वाले पशुपालक को बहुत ही लाभ होता है.

4. पशु को कृमि की दवा देने से पशु का शरीर स्वस्थ और तंदरुस्त रहता है. इससे पशुओं में संक्रामक बीमारी का प्रकोप की संभावनाएं कम हो जाति है.

5. पशुओं को हर तीन महीने में कृमि की दवा खिलाते रहने से पशु गर्मी या मद में जल्दी आता है. पशु को कोई प्रजनन की समस्या नहीं रहती है. जिससे पशु जल्दी गर्भधारण कर लेती है.

6. पशुओं को कृमि या पेट के कीड़े मारने की दवा समय-समय पर देते रहने से पशु स्वस्थ रहता है, बीमार नही होता है. जिससे पशुपालक की चिकित्सा के ऊपर खर्च होने वाले पैसों की बचत होती है.

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पशुओं के पेट की सुरक्षा के उपाय

1 . पशुओं को हर तीन महीने एक बार कीड़े मारने की दवा अवश्य देनी चाहिए.

2. पशुपालक को नियमित रूप से गोबर की जाँच करते रहना चाहिए. यदि गोबर की जाँच में पशु केप पेट में कीड़े/कृमि होने की पुष्टि हो तो पशु पशुचिकित्सक से अवश्य सलाह लेनी चाहिए तथा कृमिनाशक की दवा करनी चाहिए.

3. पशुओं में टीकाकरण से पहले कृमिनाशक की दवा अवश्य देनी चाहिए. एक ही कृमिनाशक की दवा को बार-बार ना दें. नहीं तो दवा के प्रति क्रीमी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकते है.

4. साफ-सफाई का उचित ध्यान रखें.

5. गाभिन पशुओं को कृमिनाशक की दवा न दें यदि बहुत ही अवश्यक हो तो पशुचिकित्सक की सलाह पर कृमि की गोली देवें.

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प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

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