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बकरीपालन क्यों करें : Why do Goat Farming

बकरीपालन क्यों करें : Why do Goat Farming, छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में बकरीपालन का विशेष स्थान है. ग्रामीण परिवेश बकरी को ‘गरीब की गाय‘ कहा जाता है. क्योंकि बकरी से हमें दूध, मांस और चमड़ी प्राप्त होती है, जो ग्रामीणों के लिये आय का एक अच्छा साधन है. प्रदेश में लगभग 40.05 लाख बकरियों को 12 प्रतिशत परिवारों के द्वारा पालन किया जा रहा है. इन परिवारों में से 42 प्रतिशत परिवार सीमांत कृषक हैं और 24 प्रतिशत परिवार लघु कृषक वर्ग के हैं. बकरीपालन में कम लागत एवं कम देखरेख की जरूरत के कारण छोटे किसान इस व्यवस्था से जुड़े हुए है एवं उनकी आजीविका के लिये यह अतिरिक्त आय का साधन बना हुआ है.

Why do Goat Farming
Why do Goat Farming

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बकरीपालन की आवश्यकता क्यों?

छ.ग. प्रदेश के ग्रामो का शहरीकरण, जनसंख्या में वृद्धि एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के कारण बकरे-बकरी के मांस की मांग बढ़ती जा रही है. हर वर्ष बकरियों के जनसंख्या में वृद्धि के बावजूद बकरे-बकरी के मांस की मांग बाजार में बनी हुई है क्योंकि प्रति व्यक्ति रोजाना मांस खपत में वृद्धि हुई है. जिससे बकरे-बकरी की मांस का मूल्य दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. ऐसे में हमारे छ.ग. प्रदेश में बकरीपालन की अपार संभावनाएं व्यक्त की जा रही है. बस जरुरत है तो उचित मार्गदर्शन में बकरीपालन करने की. बकरी को ग्रामीण क्षेत्रो में उपलब्ध झाड़ियों, पेड़ों और वृक्षों के पत्तों को खिलाकर अच्छी तरह से पाली जा सकती है.

इसे विपरीत वातावरण में अच्छी तरह से पाला जा सकता है. जहाँ खेतों में अन्य फसल नहीं उगाई जा सकती, वहाँ खेती के साथ बकरीपालन एक अतिरिक्त आय के साधन के रूप में अपनाया जा सकता है. जहाँ जमीन अधिक उपजाऊ नहीं होती और नगदी फसलों की खेती नहीं की जा सकती है, क्योंकि बकरियों को सीमित चारागाह संसाधनों में भी आसानी से पाला जा सकता है और उपलब्ध सीमित चारा संसाधनों को उपभोग करके एक अच्छी पूंजी बन जाती है. इसे समय-समय पर बिक्रय कर अपने पारिवारिक जरुरत को पूरा किया जा सकता है. बकरी को बेचने में कभी भी, कहीं भी कोई परेशानी नहीं होती है. यह बकरी पालन करने वाले को प्राकृतिक आपदा के समय बीमा का काम करती है. जब सारी फसल नष्ट हो जाति है तब बकरी ही मुशीबत में पैसे के रूप में सहारा करती है. बकरे-बकरियों को धार्मिक रस्म तथा सामाजिक ऋण उतारने के लिये लोग प्रयोग में भी लाते है. आधुनिक समय में सरकार कृषि के विविधि-करण पर जोर दे रही है, जिसमें किसान फसल के साथ-साथ पशुपालन, कुक्कुटपालन, बकरीपालन आदि उद्यमों में से दो या दो से अधिक व्यवसाय करने में जोर दे रही है. क्योकि किसी उद्यम में किसान को हानि होती है तो दूसरा तीसरा उद्यम किसान को मदद करता है. इसके लिये बकरीपालन उत्तम विकल्प होता है, जिसे कृषि के उप उत्पादों पर भी पाला जा सकता है. बकरी कृषि के उप उत्पादों को भी अच्छी तरह उपयोग कर सकती है और उसे धन में परिवर्तित कर देती है. अधिक मांस की मांग तथा कम उत्पादन के कारण बकरे-बकरी की मांस हमारे घरेलु बाजार में सबसे महंगा है. इस कारण हमारा निर्यात न के बराबर है. इस वजह से बकरीपालन एक लाभकारी व्यवसाय बनता जा रहा है एवं बड़े पैमाने पर लोग इस क्षेत्र में पूंजी लगा रहें है.

बकरीपालन की विशेषताएं

  • बकरीपालन में शुरुवात का खर्च बहुत ही मामूली होता है जिसे आर्थिक रूप से कमजोर तबका के लोग भी वहन कर सकते हैं.
  • बकरी का आकर छोटा एवं शांत प्रवृत्ति की होने के कारण इसके आवास एवं प्रबंधन की समस्याये कम होती है. बकरियों में बीमारियाँ भी अन्य पशुओं की अपेक्षा कम होती है. जिसका निवारण टीकाकरण करके आसानी से रोका या कम किया जा सकता है.
  • बकरी एक मैत्री भाव वाला पशु है जो आदमी के साथ मजे से रहना पसंद करता है.
  • बकरी बहुजनन क्षमता वाला पशु है जो 10-12 माह में प्रजनन व जनन करने लगती है. इसका ब्यात कल पांच माह का होता है और 16-17 माह की उम्र में दूध देना शुरू कर देती है.
  • बकरी की एक ब्यात में एक बच्चे देना सामान्य बात है तथा दो से तीन बच्चे भी देती है.
  • सुखा प्रभावित क्षेत्रों बकरियों में अन्य पशुओं की अपेक्षा नुकसान कम होने की सम्भावनाये होती है.
  • बड़े पशु के नर मादा के मूल्य में भी काफी अंतर होता है लेकिन बकरी में ऐसा नहीं है नर मादा का मूल्य लगभग सामान्य रहता है.
  • बकरी कटीली झाड़ियाँ, खरपतवार, फसल अवशेष तथा कृषि के उप उत्पाद जो मनुष्य के लिये उपयुक्त नहीं पर अच्छी पर अच्छी तरह फलती फूलती रहती है.
  • उचित प्रबंधन से बकरी चारागाह को सुधारने तथा इसके रख-रखाव करने में बहुत सहायता करती है और झाड़ियों के अनुचित फैलाव के बिना पर्यावरण नुकसान पहुँचाने से रोकती है एवं एक जैविक नियंत्रण का काम करती है.
  • बकरे-बकरी के मांस सबसे महंगा बिकता है क्योंकि इसमें कोलेस्ट्राल कम होता है. मांस में कुल वसा की मात्रा 2-4 प्रतिशत तथा कुल फास्फोरस 10.65 मि.ग्रा./ग्राम पाई जाती है. बकरी के मांस में अच्छे वसा की मात्रा 70 प्रतिशत है, जो कि ह्रदय रोग और मोटापे से ग्रसित मनुष्यों के लिये लाभकारी है. बकरियां घासों का सेवन ज्यादा करती है, इस कारण उनमें अच्छे वसा की मात्रा ज्यादा होती है. यह उन लोगों के लिये अच्छा रहता है जो कम उर्जा वाला भोजन लेते है.
  • बकरी का दूध गाय-भैंस के दूध की अपेक्षा आसानी से पच जाता है. क्योकि इसके वसा के कण छोटे होते है. प्राकृतिक रूप से समंगिकृत होने के कारण यह भूख को बढ़ता है और पाचन शक्ति को सुधारता है. बकरी का दूध गाय, भैंस की दूध की तरह एलर्जी नहीं करता है. इसमें जीवाणु नाशक तथा फफूंद नाशक गुण पाये जाते हैं.
  • बकरी आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए रोजगार का सर्वोत्तम व्यवसाय है जिसमें कम पूंजी में अधिक लाभ और रोजगार मिलता है.इस व्यवसाय को शारीरिक रूप से कमजोर, वृद्ध एवं महिलाएं भी कर सकती है और अपना जीवन स्तर ऊँचा कर सकते है.
  • बकरी पालन में लघु ग्रामोद्योग की अपार संभावनाएं है, जिसमें बकरी के दूध, मांस, रेशे तथा खाल के मूल्य वर्धन करके अधिक लाभ कमाया जा सकता है.
  • बकरी को दूध के लिये चलता फिरता रेफ्रिजरेटर कहते है, क्योंकि इससे कभी भी कई बार दूध निकाल सकते है.
  • बकरी को चलता फिरता बैंक भी कहा जाता है, क्योंकि इसे कभी भी, कहीं भी बेचकर पैसे से कोई भी छोटा-मोटा काम चला सकते है.
  • बकरी में पूंजी को जल्दी दुगुना करने की क्षमता अधिक होती है.
  • बकरी बच्चों के कुपोषण को दूर करने में बहुत उपयोगी है क्योंकि बकरी का दूध परिवार में ही अधिकतर इस्तेमाल होता है.

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