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गर्भावस्था और ब्याने के बाद पशुओं को क्या खिलाएं : What to Feed Animals after Pregnancy and Calving

गर्भावस्था और ब्याने के बाद पशुओं को क्या खिलाएं : What to Feed Animals after Pregnancy and Calving, पशुओं में प्राकृतिक समागम या कृत्रिम गर्भाधान के पश्चात् 21 दिन और 42 दिन में पशु दोबारा गर्मी या हीट नहीं आती है तो पशु के गाभिन हो जाने की पुष्टि हो जाती है. मगर कभी-कभी हार्मोन्स की कमी या किसी और अन्य कारण के वजह से पशु गाभिन नहीं होती है और दोबारा गर्मी या हीट में नहीं आती है. ऐसे में पशुपालक धोखे में रहता है कि पशु गाभिन हो गई है. जिससे पशुपालक को दूध उत्पादन के साथ-साथ पशुओं के पोषण और प्रबंधन में बहुत आर्थिक क्षति होती है. अतः पशुपालक बंधुओं के लिये महत्वपूर्ण हो जाता है कि अपने पशुओं के गर्भावस्था की अवश्य जाँच करवाएं, ताकि पशुओं के दूध उत्पादन, पोषण और प्रबंधन पर ब्यर्थ व्यय से बचा जा सके.

What to Feed Animals after Pregnancy and Calving
What to Feed Animals after Pregnancy and Calving

आज सभी पशुपालक बंधुओं के लिये अपने गाय, भैंस में गर्भ परीक्षण की पुष्टि हो जाने के बाद गाभिन जानवर की पोषण और प्रबन्धन से जुड़ी जानकारी दी जाएगी. प्रायः देखा जाता है कि पशुपालक बंधू गाय या भैंस के गाभिन हो जाने के पश्चात् पशु के आहार में कोई विशेष परिवर्तन नहीं करते हैं. जिससे गाभिन पशु धीरे-धीरे कमजोर होते जाता है. जिसका सीधा असर गर्भ में पल रहे बछड़े और ब्याने के बाद दूध उत्पादन पर पड़ता है. गर्भावस्था के दौरान पशुओं को दिए जाने आहार में अतिरिक्त पोषक तत्व जैसे – विटामिन्स, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम आदि कि बहुत आवश्यकता होती है. यदि गर्भावस्था के दौरान उपर्युक्त पोषक तत्वों को गाभिन पशु के आहार में सम्मिलित नहीं किया जाता है तो पशु गर्भ में पल रहे बछड़े को अपने शरीर में मौजूद विटामिन्स, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम आदि को गर्भ की वृद्धि में उपयोग कर देता है. जिसका प्रभाव पशु के ब्याने के बाद कमजोरी, दुग्ध ज्वर, किटोसिस, आंवर का नहीं गिरना, पशु में फुल या भाण दिखाई देना आदि जैसे ख़तरनाक बीमारी के रूप दिखाई देता है.

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गाभिन पशु की देखभाल और सावधानियाँ

गाभिन पशु की देखभाल (Pregnant Animal) अन्य पशुओं की अपेक्षा अधिक करनी पड़ती है. गाभिन होने के पश्चात् एक गाय 9 महीने 9 दिन या 280 दिन तथा भैंस 10 महीने 10 दिन या 310 दिन में बच्चा देती है. अतः पशुपालक पशु के प्राकृतिक समागम या कृत्रिम गर्भाधान की तिथि को रजिस्टर या डायरी में अवश्य नोट करें, पशु के सम्पूर्ण गतिविधि की पता करने में आसानी हो सके. पशु के गाभिन होने से लेकर ब्याने तक पशु के प्रति जिन सावधानियों की आवश्यकता होती है वे निम्न प्रकार हैं.

  • गाभिन पशु को शांत वातावरण में रखना चाहिए.
  • गर्भावस्था के दौरान पशु को केवल साधारण व्यायाम दिया जाना चाहिए. उसे ज्यादा दौड़ाना नहीं चाहिए, न हीं किसी अन्य जानवरों जैसे कुते आदि द्वारा उसे परेशान नहीं किया जाना चाहिए.
  • गाभिन पशु को नियमित रूप से अच्छे चारागाह में भेजना चाहिए.
  • पशु के ब्याने के अनुमानित तिथि से 2 माह पूर्व पशु का दूध दोहना बंद कर देना चाहिए एवं पशु को दिया जाने वाला आहार, दाना में वृद्धि कर देना चाहिए. यह वृद्धि पशु के दूध देते समय दिया जाने वाले आहार की आधी होनी चाहिए.
  • गाभिन पशु को दिया जाने वाला दाना पाचक और स्वादिष्ट होना चाहिए. पशु को भीगा हुआ चिपचिपा आहार, दाना नहीं देना चाहिए.
  • एक गाभिन गाय,भैंस को साधारण 30-35 किलोग्राम हरा चारा, 3-4 किलोग्राम सुखा चारा(भूंसा आदि) तथा 2-3 किलोग्राम दाना एवं 50 ग्राम नमक प्रतिदिन दिया जाना चाहिए.
  • यदि पशु को मुख्य रूप से सुखे चारे पर रखना है तो उसे 5-8 किलोग्राम भूंसा और 5-10 किलोग्राम हरा चारा दिया जाना चाहिए.
  • वर्षा ऋतु में लोबिया+मक्का का हरा चारा अथवा लोबिया+ज्वार की कुट्टी का मिश्रण देना उत्तम रहता है.
  • ब्याने के लगभग 6 सप्ताह पूर्व पशु की विशेष खिलाई-पिलाई आवश्यक होती है.
  • ब्याने के 15 दिन पूर्व उसे अन्य पशुओं से अलग कर देना चाहिए.
  • जिन पशुओं के ब्याने के पूर्व दूध उतर आता है उसे ब्याने से पहले नहीं दुहना चाहिए. इससे गाय, भैंस के ब्याने में विलम्ब होता है तथा ब्याते समय अधिक कष्ट होता है.
  • पशु को ब्याने के समय शांत वातावरण में साफ़ और बिछावन युक्त स्थान में रखना चाहिए.
  • पशु को मौसम परिवर्तन सर्दी, गर्मी और वर्षा से बचाना चाहिए.

ब्याने के बाद देखभाल

  • ब्याने के बाद बछड़े की नाल को काटकर उस पर टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए.
  • पशु को गुनगुने पानी से भीगे हुए कपडे से साफ कर देना चाहिए.
  • ब्याने के बाद बछड़े के नथुने तथा मुंह आदि को साफ करके कोलस्ट्राम पिलाना चाहिए.
  • पशु के ब्याने के 2-4 घंटे के अन्दर जेर (आंवर) स्वतः निकल जाती है या गिर जाति है. अतः पशु के ब्याने के बाद 8 घंटे तक जेर स्वतः नहीं गिरता है तो जेर को बाहर निकालना आवश्यक हो जाता है. अन्यथा गर्भाशय में संक्रमण का खतरा बना रहता है.
  • जेर के गिरने के बाद पशु जेर(आंवर) को न खाये इसका ध्यान रखें. जेर को किसी गहरे गड्ढे में गाड़ देना चाहिए.
  • पशुशाला या पशु के ब्याने वाले स्थान की फिनाइल के घोल से अच्छी तरह साफ करना चाहिए.
  • जो पशु अधिक दूध देने वाली हो उनमें खीस (कोलस्ट्राम) एक बार में नहीं निकालें, बल्कि थोड़ा-थोड़ा करके दिन में 3-4 बार निकालें. एक बार में सम्पूर्ण खीस निकालने से पशु को मिल्क फीवर (दुग्ध ज्वर) बीमारी होने की सम्भावना होती है.
  • हाल ही में ब्याये हुए पशु को गेंहूँ का दलिया, गुड़, सोंठ और अजवाइन आदि को मिलाकर, हल्का पकाकर खिलाना चाहिए.
  • पशु को पीने का गुनगुना पानी इच्छा अनुसार देना चाहिए.

गाभिन पशु के लिये अतिरिक्त आहार

  • गाभिन पशु के निर्वाह एवं उत्पादन आवश्यकता के ऊपर तथा भ्रूण के विकास हेतु (गाभिन होने के 5-6 माह बाद) 0.14 किलो पाचक प्रोटीन(D.C.P.), 0.7 किलोग्राम सम्पूर्ण पाचक तत्व (T.D.N.) 12 ग्राम कैल्शियम, 7 ग्राम फास्फोरस तथा 30 मिलीग्राम विटामिन A मिलाना चाहिए.
  • नोट:- यह आवश्यकता 1.5 किलोग्राम अच्छा पौष्टिक मिश्रण देने से पूरी हो जाती है एवं साथ में दाने के अंतर्गत 2% कैल्शियम कार्बोनेट और मिला दिया जाता है.
  • यदि इस अवधि में गाय, भैंस दूध दे रही हो तो उसका दूध दुहना बंद कर देना चाहिए.
  • गाभिन गाय, भैंस के ब्याने के एक या दो सप्ताह पूर्व चोकर तथा अलसी की खली देकर दाने की मात्रा बढ़ा देना चाहिए.
  • गाय, भैंस को गर्भकाल में अच्छा से अच्छा भोजन दिया जाना चाहिए ताकि वह ब्याने के समय अपने स्वास्थ्य को अच्छा रख सके.

गर्भवती पशु का मुख्य आहार

चारा – शारीरिक भार के अनुसार एवं सरलता से पचने वाला होना चाहिए.

दाना – 2-4 किलोग्राम प्रतिदिन तथा दुग्ध उत्पादन हेतु दाना इसके अतिरिक्त देना चाहिए.

मिनरल पाउडर – 30 ग्राम + नमक 50 ग्राम प्रतिदिन देवें.

नोट :- यदि गाभिन तथा दूध देने वाली गाय को हरा चारा उपलब्ध न हो तो बाजार में उपलब्ध विटामिन पाउडर अवश्य देना चाहिए.

ब्याने के बाद पशु का मुख्य आहार

  • ब्याने के बाद पशु को तत्काल कार्बोहाइड्रेट चारा खिलाना चाहिए.
  • ब्याने के बाद 2-3 दिन तक तैलीय खलियाँ बिल्कुल न दें.
  • दाने की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए जिससे एक या दो सप्ताह में मादा अपनी आवश्यकता अनुसार अधिक से अधिक दाना खा सके. बाद में गाय को निर्वाह एवं उत्पादन आवश्यकता के ऊपर लगभग 1/2 किलोग्राम सम्पूर्ण पाचक तत्व (T.D.N.) रोजाना और देना चाहिए.
  • ब्याने के बाद गर्भाशय की सफाई के लिये पशु को ओटी दी जा सकती है, न कि जौ का आंटा, अरहर की दाल.
  • पशु को संतुलित चारा अवश्य देवें.

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