कृषि और पशुपालनडेयरी फ़ार्मिंगपशु कल्याणपशुपोषण एवं प्रबंधनपालतू जानवरों की देखभालविश्व खबर

पशुओं में पोषक तत्वों का पाचन प्रक्रिया क्या है : What is the Process of Digestion of Nutrients in Animals

पशुधन से जुड़ी ख़बरें –

इन्हें भी पढ़ें :- दुधारू पशुओं को खली खिलाने के फायदे तथा सोयाबीन की खली से दूध उत्पादन कैसे बढ़ाएं?

इन्हें भी पढ़ें :- पशुशाला निर्माण के लिये स्थान का चयन ऐसे करें.

इन्हें भी पढ़ें :- नेपियर घास बाड़ी या बंजर जमीन पर कैसे उगायें?

इन्हें भी पढ़ें :- बरसीम चारे की खेती कैसे करें? बरसीम चारा खिलाकर पशुओं का उत्पादन कैसे बढ़ायें?

इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में क्लोन तकनीक से कैसे बछड़ा पैदा किया जाता है?

इन्हें भी पढ़ें :- वैज्ञानिकों ने साहीवाल गाय दूध पौष्टिक और सर्वोत्तम क्यों कहा?

इन्हें भी देखें :- बधियाकरण क्या है? पशु नस्ल सुधार में बधियाकरण का महत्व.

इन्हें भी देखें :- दूध दोहन की वैज्ञानिक विधि क्या है? दूध की दोहन करते समय कौन सी सावधानी बरतें?

इन्हें भी पढ़े :- मिल्किंग मशीन क्या है? इससे स्वच्छ दूध कैसे निकाला जाता है.

पशुओं में पोषक तत्वों का पाचन प्रक्रिया क्या है : What is the Process of Digestion of Nutrients in Animals, पशुओं द्वारा आहार ग्रहण करने के पश्चात् पाचन तंत्र प्रणाली के माध्यम से पशु का शरीर चारे में से आवश्यक पोषक तत्व जैसे वसा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज लवण एवं विटामिन आदि को अवशोषित करता है. इन पोषक तत्वों का पशु के सामान्य स्वास्थ्य, दूध उत्पादन, शारीरक वृद्धि, प्रजनन और शारीरिक संतुलन के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यक है. यदि पशु में पोषक तत्वों का पाचन और पाचन तंत्र सही रहता है तो पशु भी स्वस्थ और तंदरुस्त रहता है. पशुओं में पोषक तत्व और पाचन तंत्र सही नहीं रहने पर पशु के उत्पादन पर बहुत प्रभाव पड़ता है. पशुओं में पाचन तंत्र की समस्या या पोषक तत्व की कमी पशुओं को रोगी बनाने और अस्वस्थ पशु की ओर चिन्हांकित करता है.

What is the Process of Digestion of Nutrients in Animals
What is the Process of Digestion of Nutrients in Animals

पाचन – पशुओं द्वारा आहार ग्रहण करने के पश्चात् पाचन तंत्र प्रणाली के माध्यम से पशुओं का शरीर आवश्यक पोषक तत्वों का अवशोषण करके शरीर के कोशिकाओं के लिये उपयोग में लाया जाता है. पशुओं में आहार ग्रहण करके पोषक तत्वों का अवशोषण की प्रक्रिया पाचन कहलाता है. पशु द्वारा पाचन क्रिया के दौरान सर्वप्रथम आहार या भोजन को ग्रहण करके, पाचन, पोषक तत्वों का रक्त में अवशोषण तथा अनुपयोगी भोजन के हिस्से को बाहर गोबर या मल के रूप निकाल दिया जाता है.

पशुओं में पाचन तंत्र की विभिन्न प्रक्रिया

1 . खाद्य पदार्थ का बारीक़ कराना – पशुओं द्वारा मुंह में चारे को दांतों की सहायता से छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित किया जाता है और लार द्वारा उस भोजन को नरम मुलायम गोला बनाकर पेट में पहुँचाया जाता है. जिससे पशु को भोज्य पदार्थ की स्वादिष्ट होने का अहसास होता है. एक स्वस्थ पशु में लगभग 1 घंटे में 125 पौंड लार तैयार होता है.

2. जुगाली कराना – जुगाली करने वाले पशुओं में संयुक्त पेट पाया जाता है. पशु द्वारा सर्वप्रथम आहार ग्रहण करने पर पेट का पहला हिस्सा जिसे रुमेन कहा जाता है. रुमेन में गया हुआ खाद्य पदार्थ लार के साथ मिलकर वापस मुंह में आ जाता है. इस प्रक्रिया को पशुओं में जुगाली करना कहा जाता है. इस समय बहुत सा पानी या जलयुक्त चारे का हिस्सा पशु के पेट के दुसरे भाग रेटिकुलम में चला जाता है. इसके बाद बांकी बचा हुआ ठोस पदार्थ को छोटे-छोटे टुकड़ों में करने के लिये चबाया जाता है.

पशुधन के रोग –

इन्हें भी पढ़ें :- बकरीपालन और बकरियों में होने वाले मुख्य रोग.

इन्हें भी पढ़ें :- नवजात बछड़ों कोलायबैसीलोसिस रोग क्या है?

इन्हें भी पढ़ें :- मुर्गियों को रोंगों से कैसे करें बचाव?

इन्हें भी पढ़ें :- गाय, भैंस के जेर या आंवर फंसने पर कैसे करें उपचार?

इन्हें भी पढ़ें :- गाय और भैंसों में रिपीट ब्रीडिंग का उपचार.

इन्हें भी पढ़ें :- जुगाली करने वाले पशुओं के पेट में पाचन क्रिया

विभिन्न पोषक तत्वों का पाचन

1 . कार्बोहाइड्रेट का पाचन ( मुंह — लार — टायलिन — माल्टोज ) – कार्बोहाइड्रेट का पाचन मुंह से शुरू होता है, क्योंकि मुंह में चारा चबाते समय लार निकलती है जिसमे टायलिन नामक पदार्थ पाया जाता है. जो स्टार्च का पाचन और अवशोषण करने हेतु पाचन प्रक्रिया में मदद करता है. स्टार्च के ऊपर टायलिन पाचन की प्रक्रिया होकर माल्टोज बनता है. इनमें से कार्बोहाइड्रेट के कुछ भाग का अवशोषण रुमेन के दीवारों में होता है और बांकी बचे कार्बोहाइड्रेट का पाचन और अवशोषण छोटी आंत में होता है. छोटी आंत में स्टार्च का परिवर्तन माल्टोज में होता है. यह कार्य अमायलेज विकर द्वारा किया जाता है, यह अमायलेज विकर पैंक्रियाज से निकलता है. छोटी आंत से निकलने वाला इनवरटेज स्त्राव कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज नामक शर्करा में तोड़ देता है. इस सर्करा का अवशोषण छोटी आंत की कोशिकाएं करती है, फिर यह रक्त में मिलकर धमनी, शिराओं द्वारा शरीर और यकृत में भेजा जाता है.यकृत में यह शर्करा जमा होकर ग्लाइकोजन बनाता है.

2. सेल्युलोज का पाचन – जुगाली करने वाले पशुओं का पाचन तंत्र प्रणाली द्वारा किसी भी प्रकार के विकर द्वारा सेल्युलोज का पाचन नहीं होता है. लेकिन सेल्युलोज का पाचन पेट के तीन भाग ( रुमेन, रेटिकुलम, ओमैसम ) में उपस्थित जीवाणु द्वारा जैविक प्रक्रिया के तहत की जाति है. इस जैविक प्रक्रिया के द्वारा सेल्युलोज को तोड़कर एसिटिक एसिड, प्रोपिओनिक एसिड तथा व्यूटरिक एसिड का निर्माण किया जाता है. लगभग 1 औंस (मापने की इकाई) रुमेन के स्त्राव में करोड़ो की संख्या में जीवाणु उपस्थित रहते है. रुमेन में सेल्युलोज का पाचन होते समय CO2 और मीथेन नामक गैस पैदा होती है. रुमेन में लगभग 65% नाइट्रोजन, 25% हाइड्रोजन और 7% O2 होता है. रुमेन का pH मान 5.8 – 6.8 होता है.

3. प्रोटीन का पाचन – प्रोटीन का पाचन सर्वप्रथम पेट के भाग में उपस्थित पेप्सिन नामक विकर द्वारा किया जाता है. परंतु इसके द्वारा सम्पूर्ण का पाचन नही किया जाता है. पेप्सिन विकार प्रोटीन को तोड़ने में सहायता करता है, बांकी बची हुई शेष प्रोटीन का पाचन छोटी आंत में होता है. छोटी आंत से निकलने वाली स्त्राव ट्रिप्सिन उस अर्द्ध पचित प्रोटीन पर क्रिया करता है जिससे अमीनोअम्ल बनते है. जो आंत के कोशिकाओं द्वारा अवशोषित किये जाते है, उसके पश्चात् धमनी द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँच जाता है.

4. वसा का पाचन – इसका पाचन जब तक पाचन की प्रक्रिया छोटी आंत में नही पहुचता तब तक वसा का पाचन नहीं होता है. वसा का पाचन यकृत से निकलने वाली बाईल नामक स्त्राव वसा पर प्रक्रिया करके छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित कर देता है. इसके बाद पैंक्रियाज या अग्नाशय के स्त्राव में उपस्थित लाइपेज विकार जो कि यकृत के बाईल स्त्राव को उत्तेजित करता है. जिसके फलस्वरूप फैट या वसा का परिवर्तन फैटी अम्ल और ग्लिसेराल में होता है. फिर ये दोनों पदार्थ छोटी आंत की कोशिकाओं द्वारा अवशोषित होते है तथा शरीर में इनका जरुरत के अनुसार संचार होते हैं.

5. खनिज लवण, विटामिन एवं H2O पानी का पाचन – खनिज लवण का अवशोषण छोटी आंत द्वारा होता है. लेकिन पानी का अवशोषण छोटी आंत तथा बड़ी आंत दोनों में होता है. विटामिन का भी छोटी आंत में पाचन होता है.

इन्हें भी देखें :- खुरहा/खुरपका – मुंहपका रोग का ईलाज और लक्षण

इन्हें भी देखें :- लम्पी स्किन डिजीज बीमारी से पशु का कैसे करें बचाव?

प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

जाने :- लम्पी वायरस से ग्रसित पहला पशु छत्तीसगढ़ में कहाँ मिला?

किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर कृपया स्वयं सुधार लेंवें अथवा मुझे निचे दिए गये मेरे फेसबुक, टेलीग्राम अथवा व्हाट्स अप ग्रुप के लिंक के माध्यम से मुझे कमेन्ट सेक्शन मे जाकर कमेन्ट कर सकते है. ऐसे ही पशुधन, कृषि और अन्य खबरों की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर विजिट करते रहें. ताकि मै आप सब को पशुधन से जूडी बेहतर जानकारी देता रहूँ.

पशुधन खबर

इन्हें भी पढ़ें :- दुधारू पशुओं में किटोसिस बीमारी और उसके लक्षण

इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में रासायनिक विधि से गर्भ परीक्षण कैसे करें?

इन्हें भी पढ़ें :- पशुशेड निर्माण करने की वैज्ञानिक विधि

इन्हें भी पढ़ें :- बटेर पालन बिजनेस कैसे शुरू करें? जापानी बटेर पालन से कैसे लाखों कमायें?

इन्हें भी पढ़ें :- कड़कनाथ मुर्गीपालन करके लाखों कैसे कमायें?

इन्हें भी पढ़ें :- मछलीपालन व्यवसाय की सम्पूर्ण जानकारी.

इन्हें भी पढ़ें :- ब्रुसेलोसिस रोग क्या है? पशुओं में गर्भपात की रोकथाम के उपाय