गाय भैंस में ऋतुकाल चक्र क्या है : What is the Oestrus Cycle in Cow Buffalo
गाय भैंस में ऋतुकाल चक्र क्या है : What is the Oestrus Cycle in Cow Buffalo, मादा पशुओं में यौवनारंभ के बाद डिम्ब निर्माण के उदेश्य से अग्र पियुषिका ग्रंथि में निर्मित प्रजनन हार्मोन्स के परिणाम होने पर, प्रजनन तंत्र के सभी अंगों में लय बद्ध क्रमिक लैंगिक बदलाव का, निश्चित समयान्तराल में शुरू होने की क्रिया को ऋतुकाल चक्र कहते हैं.

गाय भैंस में ऋतुकाल चक्र क्या है : What is the Oestrus Cycle in Cow Buffalo, मादा पशुओं में यौवनारंभ के बाद डिम्ब निर्माण के उदेश्य से अग्र पियुषिका ग्रंथि में निर्मित प्रजनन हार्मोन्स के परिणाम होने पर, प्रजनन तंत्र के सभी अंगों में लय बद्ध क्रमिक लैंगिक बदलाव का, निश्चित समयान्तराल में शुरू होने की क्रिया को ऋतुकाल चक्र कहते हैं. गाय और भैंसों में 18 से 22 दिन में ये ऋतुकाल चक्र पूरा होता है. यदि मादा पशु प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान के बाद गर्भधारण नही करती या गाभिन नहीं होती तो यह चक्र 21 दिन के बाद पुनः ऋतुकाल चक्र बार-बार आने लगती है. लेकिन पशुपालक ध्यान दें कभी – कभी हार्मोन्स की गड़बड़ी की वजह से, कुछ गाभिन पशुओं में गर्मी या मद के लक्षण दिखाई देती है. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पशु गाभिन नहीं होती है और प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान के बाद दोबारा गर्मी या मद में नहीं आती है. पशु कई महीनों तक बिना गाभिन हुए भी शांत रहती है. इस स्थिति में बड़े पशुपालक या डेयरी फार्म के मालिकों को बहुत ही आर्थिक क्षति की सम्भावना होती है. प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान के बाद यदि पशु के गर्भधारण के संदेहास्पद स्थिति में पशुपालक नजदीकी कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता या पशुचिकित्सक से मादा पशु की गर्भधारण जाँच या गर्भ परिक्षण करा लेना चाहिए.
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ऋतुकाल चक्र की स्टेज
पशुओं के गर्मी या मद की प्रक्रिया ऋतुकाल चक्र को निम्नलिखित दो स्टेज में समझ सकते है. प्रत्येक अवस्था का समय निश्चित होता है और एक निश्चित समय अन्तराल में ही ऋतुकाल चक्र की प्रक्रिया लगातार चलते रहती है.
1 . फोलिकुलर स्टेज – इस स्टेज या अवस्था में पशु की ऋतुचक्र की प्रक्रिया शुरुवात हो जाति है और मादा पशु गर्मी या मद के लक्षण दिखाती है. प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान इसी अवस्था में की जाति है. जिसे प्रजनन के पूर्व तैयारी भी कह सकते है. इस स्टेज को दो भाग 1. ऋतुअग्रकाल, 2. ऋतुकाल है.
2. ल्युटीनाइझिंग स्टेज – मादा पशुओं में यह अवस्था प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान के बाद अण्डाणु और शुक्राणु के निषेचन की प्रकिया को सूचित करता है. इस प्रक्रिया में गर्भाशय के अन्दर कई प्रकार के हार्मोन्स जैसे – ल्युटीनाइझिंग, प्रोजेस्ट्रोन का स्त्रावण होता है तथा ऋतुकाल चक्र इसी स्टेज पर पूरा होता है. इस अवस्था के दो भाग 1. ऋतुउपरांत काल, 2. ऋतु विश्रान्तकाल है.
1 . ऋतु अग्रकाल (Proestrus) – ऋतुकाल चक्र की शुरुवात इसी अवस्था से होती है. इसकी अवधि 2 से 3 दिन तक रहती है. डिम्ब निर्माण के उद्देश्य से प्रजनन तंत्र के तैयारियों का समय प्रोस्ट्रास या ऋतुअग्रकाल कहलाता है. इस अवस्था में अग्र पियुषिका ग्रंथि से F.S.H. हार्मोन्स का निर्माण होकर खून में घुलकर यह डिम्ब ग्रंथि के Cortex भाग में चला जाता है. जहाँ डिम्ब पुटक का निर्माण होता है. इसे F.S.H. हार्मोन्स परिपक्वता की ओर ले जाता है. प्राथमिक डिम्ब पुटक से परिपक्व डिम्ब पुटक का निर्माण का समय ऋतुअग्र काल में आता है. इस अवस्था में गर्भाशय में आतंरिक बदलाव आने लगता है. जैसे गर्भाशय मुख का विस्तृत हो जाना, योनी और अन्य अंगों में खून का संचार बढ़ने से योनी का लाल दिखाई देना, श्लेष्मा का स्त्राव प्रथमतः कम चिपचिपाहट होना आदि के लक्षण देखकर पशुपालक मादा पशुओं में गर्मी या मद के लक्षण का पता लगाया जा सकता है.
2. ऋतुकाल (estrus) – इस अवस्था में पशु मद के लक्षण दिखाता है. गाय में इस अवस्था का समय 24 घंटे औए भैंस में 36 घंटे का रहता है. इस अवस्था में गाय या भैंस सांड के प्रति आकर्षित हो जाति है और प्राकृतिक समागम के इच्छा का समय सूचित करती है. मादा पशु के प्रजनन तंत्र के अंगों में तेजी से अंतर्गत बदलाव आते है. ऋतुकाल को तीन चरणों में बांटा जा सकता है. 1. प्रथम चरण, 2. द्वितीय या मध्य चरण, 3. तृतीय या अंतिम चरण . इस दौरान मादा पशु मद या गर्मी के लक्षण दिखाता है.
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कृत्रिम गर्भाधान का उचित समय क्या है ?
मादा पशु के ऋतुकाल में आने पर प्रजनन तंत्र में आन्तरिक बदलाव आने लगता है. जिससे पशुओं में गर्मी या मद के लक्षण दिखाई देने लगती है तथा मादा पशु प्राकृतिक समागम या कृत्रिम गर्भाधान इच्छा को सूचित करती है. मादा पशुओं में गर्मी या मद के लक्षण दिखाई देने पर ऋतुकाल की मध्य चरण में प्राकृतिक समागम या कृत्रिम गर्भाधान करने पर मादा पशु में गाभिन होने की शत प्रतिशत सम्भावना होती है. अतः प्राकृतिक समागम या कृत्रिम गर्भाधान कराने का उपयुक्त समय ऋतुकाल की मध्य चरण ही होता है. चुकि गाय में ऋतुकाल 24 घंटे का होता है, अतः गाय में गर्मी के लक्षण की शुरुवात से 12 से 18 घंटे का समय मध्य चरण कहलाता है तथा भैस में ऋतुकाल 36 घंटे का होता है अतः भैंस में गर्मी के लक्षण की शुरुवात से 18 से 24 घंटे का समय मध्य चरण कहलाता है. इसलिए पशुपालक हमेंशा गाय या भैस के मध्य चरण की पहचान करके ही पशुओं का प्राकृतिक समागम या कृत्रिम गर्भाधान कराएँ.
गाय भैंस में मध्यचरण की पहचान कैसे करें?
गाय या भैंसों में ऋतुकाल चक्र शुरू होने के बाद मादा पशु में ऋतुकाल की मध्य चरण की पहचान निम्न लक्षणों के आधार पर किया जा सकता है.
1 . मादा पशु अत्यधिक उत्तेजित और बेचैन हो जाति है.
2. कभी – कभी अत्यधिक उत्तेजित होकर बंधी हुई रस्सी को तोड़कर सांड की तलाश में भाग जाति है.
3. मादा पशु की योनी में सुजन और चमकदार लाल दिखाई देती है.
4. मादा पशु के योनी से कांच या शीशे की तरह पारदर्शी स्त्राव जमींन तक लटकी हुई दिखाई देती है.
5. मादा पशु गाय या भैंस के ऊपर सांड के चढ़ने पर, गाय या भैस चुपचाप खड़ी रहती है.
6. या मादा पशु स्वयं नर या मादा जानवर के ऊपर चढ़ती है.
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गाय, भैंस में गर्मी या ऋतुकाल की पहचान कैसे करें – जब मादा पशु यौनारम्भ और लैंगिक परिपक्वता के दौरान अपने गर्भाशय के अन्दर गर्भ को पलने में सक्षम हो जाता है. तो पशु में गर्मी या मद के लक्षण दिखाई देतें है. पशुओं में गर्मी या मद की पहचान के कुछ मुख्य लक्षण निम्न है.
1 . गर्मी में आने वाले गाय या भैंस का उत्तेजित या बेचैन दिखाई देना.
2. खाना पीना कम कर देना और दूध उत्पादन कम हो जाना.
3. बार – बार रम्भाना और बार – बार पेशाब करना.
4. पूंछ को बार – बार ऊपर उठाना.
5. योनी से चिपचिपा स्त्राव बाहर आना या लटके हुए दिखाई देना.
6. योनी से निकलने वाली चिपचिपा स्त्राव/श्लेष्मा शुरुवात में पतला और बाद में गाढ़ा पारदर्शक दिखाई डेटा है. मध्य चरण के दौरान श्लेष्मा पारदर्शी और जमीन तक लटक जाना. यह लक्षण पशुओ में प्रमुख माना जाता है.
7. योनी की दोनों भगोष्टों में सुजन और चमकदार दिखाई देना.
8. दोनों भगोष्टों को खोलने पर योनी में लालिमा दिखाई देना.
9. गर्मी में आने वाले पशु स्वयं दुसरे पशु के ऊपर चढ़ना या सांड को अपने ऊपर चढ़ने देना, खड़े रहना.
10. गर्मी में आने पर सांड की तलाश में गाय -भैंस का इधर – उधर भागना.
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3. ऋतुउपरांतकाल (Metaestrus) – इस काल की अवधी 7 दिनों की होती है. इस काल में प्राकृतिक समागम या कृत्रिम गर्भाधान के पश्चात अण्डाणु और शिक्राणु का मिलन होता है. डिम्ब के सतह पर कार्पस लुटियम (C.L.) बन जाता है. कार्पस लुटियम (C.L.) से भ्रूण संरक्षण के लिये प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन्स निर्माण किया जाता है. यह हार्मोन्स मादा पशु के जनन पथ को शांत कर देता है. गर्भाशय की कोशिका सिथिल पड़ जाति है और गर्भाशय संकुचन बंद हो जाता है. इस अवस्था में अण्डाणु और शुक्राणु का मिलन होकर नई भ्रूण पेशी या भ्रूण का निर्माण किया जाता है. ऋतुउपरांत काल अवस्था में डिम्ब ग्रंथि से डिम्ब निकलकर डिम्ब वाहिनी में पहुँचता है तथा जिसके अम्पुला भाग में शुक्राणु द्वारा यह निषेचित होता है. निषेचित हो जाने पर ऋतुकाल चक्र यही पर खंडित हो जाता है और निषेचित नहीं होने पर ऋतुकाल चक्र की आखरी अवस्था ऋतुविश्रान्त काल यही पर शुरू हो जाति है.
4. ऋतुविश्रान्त काल (Diestrus) – यह ऋतुकाल चक्र की अंतिम अवस्था है जो 7 से 10 दिनों तक रहती है. डिम्ब ग्रंथि के सतह पर बना कार्पस लुटियम (C.L.)/प्रतिपिंड धीरे-धीरे नष्ट होकर 7 से 10 दिन के पश्चात् ऋतुकाल चक्र की पुनरावृत्ति होती है. जिससे सभी जननांग अपने पूर्व अवस्था में आ जाते है और लैंगिक विश्राम लेते है. तथा गर्भाशय ग्रीवा बंद रहती है.
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ऋतुकाल चक्र से जुड़ी कुछ अन्य जानकारी
1 . गाय एवं भैंसों में गर्मी के लक्षण शाम की अपेक्षा सुबह के घंटों में शुरू होता देखा गया है.
2. इसमें 60% से लेकर 70% पशु प्रातः काल के समय गर्मी में आते हुए देखे गये है.
3. इसलिए भैसों में कृत्रिम गर्भाधान दुसरे दिन सुबह तक कराना चाहिए.
4. भैसों में मौसमी प्रजनन या ऋतुकाल चक्र पाया जाता है. अर्थात भैंसे ठंडी के मौसम में अधिकतर गर्मी या मद में आती हैं.
5. भेड़ बकरियों में 24 घंटे का ऋतुकाल होता है. सूअर में 2 से 3 दिन तथा घोड़ी में 2 से 11 दिन का ऋतुकाल होता है.
पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव – वैसे तो साल भर पशु गर्मी में आते रहते हैं लेकिन पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव भी देखने में आता है. भैंसों में ऋतुओं का प्रभाव गायों की अपेक्षा बहुत अधिक पाया जाता है. भैसों में गर्मी या मद के लक्षण ठण्ड के दिनों में अधिक दिखाई डेटा है. गायों विरुद्ध भैंसों में त्रैमास मई-जून-जुलाई प्रजनन के हिसाब से सबसे खराब रहता है. जिसमें केवल 11.11% भैंसें गर्मीं में देखी गयी है. जनकी त्रैमास अक्टूबर -नवम्बर-दिसम्बर सर्वोतम पाया गया जिसमें 44.13% भैंसों को मद में रिकार्ड किया गया. पशु प्रबन्धन में सुधार करके तथा पशुपालन में आधुनिक वैज्ञानिक त्रिकोण को अपना कर पशुओं के प्रजनन पर ऋतुओं के कुप्रभाव को जिससे पशु पालकों को बहुत हानि होती है, काफी हद तक कम किया जा सकता हैं.
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