पशुओं के थन में खून आने का ईलाज : Treatment of Bleeding in the Udder of Animals
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पशुओं के थन में खून आने का ईलाज : Treatment of Bleeding in the Udder of Animals, पशुओं में ब्याने के बाद अथवा दूध देते समय थन से दूध में खून या रक्त मिला हुआ दूध बाहर निकलता है. ऐसी स्थिति में पशुपालक के लिये दूध का खून मिला हुआ होना चिंता का विषय बन जाता है. पशु पालकों को बहुत बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, जब उन्हें अपनी गाय भैंस का दूध फेंकना पड़ता है. यदि गाय भैंस के दूध में खून का रिसाव हो रहा है तो वह दूध मनुष्य के उपयोग करने लायक नहीं रह जाता. पशु के थनों में खून आना पशुओं के अस्वस्थ होने की ओर संकेत करता है. ऐसे में पशुपालक को प्रभावित पशु का शीघ्र से शीघ्र उपचार कराना जरुरी होता है.

दूध में खून आने के कारण
1 . यदि पशु को थनैला या मैस्टाइटिस (Mastitis) रोग है यानी कि उसके थन या आयन में कोई संक्रमण (infection) हो गया है तो भी पशु के दूध में रक्त का रिसाव होने लगता है. इस स्थिति में पशु का थनैला रोग से ग्रसित होने की सम्भावना होती है.
2. पशुओं को बांधने की जगह गद्देदार नहीं होने अथवा मेट नहीं बिछाने पर पशु के उठने-बैठने पर पशुओं के आयन में चोट लगने के कारण भी दूध में खून आ सकता है.
3. कुछ गायों में ब्याने के समय इस्ट्रोजन हार्मोन स्त्राव अत्याधिक बढ़ जाता है. इस इस्ट्रोजन हार्मोन की अधिक मात्रा रक्त नलिकाओं की दीवार को कमजोर कर देती है और उनसे रक्त रिसने लगता है. जो कि दूध में हमें नजर आता है और दूध गुलाबी रंग का हो जाता है.|
4. कुछ घास या वानस्पतिक पौधे भी शरीर में इस्ट्रोजन हार्मोन बढ़ा देते हैं. जिसके कारण रक्त रिसने से दूध लाल रंग का दिखाई देता है.
5. कुछ पौधों एवं चारों में प्राकृतिक डाई या विषैले तत्व होते हैं इन पौधों या चारों को खाने से दूध का रंग लाल हो जाता है.
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दूध में खून आने का उपचार
1 . यदि आयन या थन में सूजन है और दूध के साथ छिछड़े भी आ रहे हैं तो एंटीबायोटिक इंजेक्शन जैसे – Inj. Ampicilin – 2.5 gm या Inj. Ciprofloxacin Inj. – 15 ml या Inj. Procaine Pencillin –20-40 Lacs का उपयोग कर सकते हैं. कैलशियम बोरोग्लूकोनेट – 450 ml नस में दे सकते है. इंजेक्शन विटामिन सी 10 ml इंटरमस्कुलर दे सकते हैं.
2. घरेलु उपचार – पूजा वाले कपूर की दो गोली एक केले के अंदर रखकर दिन में 2 बार 3 से 5 दिन तक खिलाने से भी दूध में खून आना ठीक हो जाता है.
3. 250 ग्राम हल्दी पाउडर को 1 लीटर गर्म दूध में घोलकर और उसमें 250 ग्राम संभालू की पत्तियों को पकाकर पशु को तीन-चार दिन देने से भी लाभ मिलता है.
4. फॉर्मलीन 2 ml जो कि किसी भी प्रयोगशाला से ले सकते हैं, उसे भी 1 लीटर दूध में डालकर पशु को दिन में 1 बार 3 दिन तक पिलाने से दूध में खून आना रुक जाता है.
5. इसके अलावा लेक्टोलेट एम (Lactolet – M) जो कि 20 गोली एक डिब्बी में आती है, इस आयुर्वेदिक औषधि का दूध में खून आने को रोकने पर बहुत अच्छा प्रभाव देखा गया है. एक एक गोली दिन में 5 बार 3-3 घंटे के अंतर से रोटी में रखकर 4 दिन खिलाने से दूध में खून आना, चाहे वह किसी भी कारण से हो, ठीक हो जाता है. लेक्टोलेट एम के साथ किसी अन्य दवा को देने की आवश्यकता नहीं पड़ती यह अकेला ही इस रोग को ठीक कर देता है.
6. पशुओं के अयन में संक्रमण की सम्भावना होने पर अयन में pendistrin मलहम या MummyCef मलहम का प्रयोग कर सकते है. इस प्रकार हम दूध में खून के रिसाव को रोककर स्वच्छ दूध प्राप्त कर सकते हैं.
7. पशुपालक द्वारा प्रभावित पशु का उपचार पशु चिकित्सक की देखरेख में कराने पर शीघ्र से शीघ्र आराम होने की सम्भावना होती है.
पशुपालक को होने वाले नुकसान
1 . दुधारू पशुओं के थन या दूध में खून आने पर पशुपालक को बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ता है. प्रभावित पशु का दूध अनुपयोगी हो जाता है. फलस्वरूप पशु का दूध को फेंक दिया जाता है.
2. पशुपालक को दूध की बिक्री से होने वाली आमदनी भी नहीं हो पाता.
3. पशु के चिकित्सा के ऊपर अत्यधिक खर्च उठाना पड़ता है. जिससे पशुपालक को आर्थिक नुकसान होता है.
4. दूध में खून आने वाले पशु के उपचार कराने के बाद भी, कुछ – कुछ पशुओं में पहले जैसा दूध देने की क्षमता नहीं रहती है. पशु का दूध उत्पादन घट जाता है.
5. कुछ पशुओं में उपचार कराने के बावजुद भी पशु की अयन ठोस हो जाता है. कई बार अयन अवरुद्ध हो जाता है और दूध निकलना बंद हो जाता है.
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