ठंड में पशुओं को हाइपोथर्मिया के ख़तरा से कैसे बचायें । Thand Me Pashuon Ko Hypothermia Ke Khatra Se Kaise Bachayen
ठंड में पशुओं को हाइपोथर्मिया के ख़तरा से कैसे बचायें । Thand Me Pashuon Ko Hypothermia Ke Khatra Se Kaise Bachayen, सर्दियों का मौसम आते ही जहां इंसान के लिए कई स्वास्थ्य समस्याएं लेकर आता है, वहीं यह गाय, भैंस के अलावा विशेष रूप से छोटे बछड़ों और बछियों के लिए भी बेहद खतरनाक हो सकता है।

जैसे ही ठण्ड का मौसम आता है इंसान अपने लिए ठंडी से निपटने का जुगाड़ कर लेता है। लेकिन अक्सर देखा जाता है पशुपालक पशुओं को सिर्फ पशु समझता है और उसके लिए ठण्ड से बचाने की उचित व्यवस्था नहीं करता है। यही कारण है पशुओं को ठंड के मौसम में गाय, भैंस और अन्य पालतू पशु, हाइपोथर्मिया जैसी गंभीर समस्याओं का शिकार हो जाता है।
हाइपोथर्मिया क्या है?
हाइपोथर्मिया ठण्ड में होने वाली एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर का तापमान सामान्य से काफी नीचे गिर जाता है और पशुओं के शरीर में रक्त संचरण और ऑक्सीजन की आपूर्ति सही नहीं होने के कारण पशु की मौत भी हो सकती है। कभी-कभी तापमान के गिर जाने के कारण पशुओं में आफरा (पेट फूलने) की स्थिति भी बन जाती है।
पशु चिकित्सा एक्सपर्ट के अनुसार सर्दियों में हाइपोथर्मिया से पशुओं को बचाने और इसके लक्षणों की पहचान के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी दिया गया है, ताकि पशुओं में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने पर पशु का उचित उपचार और प्रबंधन किया जा सके।
हाइपोथर्मिया के लक्षण
एक्सपर्ट ने बताया कि सर्दियों में गाय, भैंस और उनके छोटे बछड़ों और बछियों को देखभाल कि कमी से हाइपोथर्मिया का शिकार होना पड़ता है। इस कारण से पशु का तापमान 100 डिग्री फॉरेनहाइट से नीचे गिर जाता है और शरीर में ब्लड और ऑक्सीज़न कि सप्लाई नहीं होने के कारण पशु कि मौत भी हो जाती है।
हाइपोथर्मिया के लक्षण कि पहचान करना बहुत ही आसान है। इसमें पशु कि जीभ काली पड़ जाती है और पशु का तापमान तेजी से नीचे गिरने लगता है। इसके अलावा पशु कि आँखें ढल जाती है और उनकी चमक ख़त्म हो जाती है। हाइपोथर्मिया हो जाने पर पशु सुस्त और थका हुआ महसूस करता है।
हाइपोथर्मिया से बचाव
पशुधन एक्सपर्ट ने बताया कि ठण्ड से जानवरों का बचाव ही हाइपोथर्मिया के लिए सबसे कारगर उपाय है। इसके लिए शाम होने के साथ ही पशुओं को गर्म स्थान पर बांधें और पशुओं को बोरी या गर्म कपड़ों से ढँक देवें। पशुओं को उनके आराम के लिए बाड़े में पाल या सुखी घांस का बिछावन करना चाहिए।
इसके अलावा पशुओं को हरी सब्जियां, प्रोटीनयुक्त चारा और पोषण आहार देना चाहिए। इससे जानवरों की इम्युनिटी पावर मजबूत होती है और यह बिमारियों से शरीर की रक्षा करती है अर्थात रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।
गौशाला में हीटर की व्यवस्था
पशुओं के तापमान को सामान्य बनाये रखने के लिए हीटर का प्रबंध करना चाहिए। अत्यधिक ठण्ड को ध्यान रखते हुए सुरक्षित तरीके से पशुओं के बाड़े में हीटर की व्यवस्था करें ताकि पशुओं को ठण्ड और हाइपोथर्मिया से समय रहते बचाया जा सके पशुओं को दिन के समय बाहर धूप में रखें, ताकि उनके शरीर को प्राकृतिक गर्मी मिल सके।
बछड़ों और बछियों को उनके जन्म के बाद गर्माहट प्रदान करें। जानवरों को ठन्डे पानी की जगह उन्हें हल्का गर्म पानी पिलायें। सर्दियों के दौरान पशु चिकित्सक की मदद से पशुओं की नियमित स्वास्थ्य जाँच कराएं ताकि समय रहते पशुओं का उपचार हो सके।
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पशुओं में अफारा के कारण और उपचार
आफरा रोग क्या है?
आम तौर पर, पशुओं को भुसा, हरा चारा एवं सरसों की खली आदि चारे के रूप में दिया जाता है। वर्ष भर अच्छी गुणवत्ता वाले चारे की उपलब्धता निश्चित न होने के कारण पशुओं को कम गुणवत्ता वाला चारा खिलाया जाता है, जिससे पशुओं में अफारा की समस्या हो सकती है यदि समय पर उपचार नहीं किया गया तो इससे पशुओ की मृत्यु भी हो सकती है।
बीमारी होने के कारण
- पशुओ द्वारा नरम चारे का अत्यधिक सेवन।
- अधिक प्रोटीन की मात्रा वाली और किण्वित (बरसात से पहले की ) ज्वार, बाजरा, मटर और मक्का का हरा चारा या गन्ने की खोई खाने से इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती है।
- आहार नाल में बाधा, आंतों एवं जठर की सुजन, धनुस्तंभ, कीड़ों के संक्रमण या फिर शरीर में कैल्शियम की कमी के कारण भी अफारा रोग हो सकता है।
- कभी कभी कुछ जानवरों में आनुवंशिक कारणों से मुंह में लार की मात्रा कम पैदा होने लगती है जिससे भोजन का पाचन सही प्रकार नहीं हो पाता और अफारा की समस्या का कारण बनता है।
- तार, नाखून, लकड़ी, स्टील शीट, चमड़े, कपड़ा, प्लास्टिक या ऐसे गैर-पाचन वस्तु जैसे गैर-खाद्य पदार्थों के कारण भी अफारा की समस्या हो सकती है।
लक्षण
- पशु खाना पीना छोड़ देता है और सुस्त दिखाई देता है।
- पेट का बाईं ओर का हिस्सा फूल कर बढ़ जाता है, पशु बार-बार दांत पीसता एवं पीछे के पैरों को पटकता है या पेट को लात मारता है।
- पेट में गैस भरने से पशुओं को साँस लेने में तकलीफ होती है और शरीर में पानी में पानी का स्तर कम हो जाता है।
- सही समय पर उपचार न होने पर पशु की की मौत हो जाती है।
उपचार
- अफारा के प्राथमिक लक्षण दिखाई देने पर तत्काल पशु चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
- पशुओं को दिया जाने वाला चारा और पानी जिससे पेट में गैस बनती है, उसे तुरंत बंद करना चाहिए।
- पशुओं को इस तरह बांधना चाहिए कि उसके सामने वाले पैर ऊपर की ओर, और पीछे के पैर नीचे की ओर हो, ताकि फूली हुए आंत का दबाव फेफड़ों पर न पड़े।
- अधिक नरम चारा, प्रोटीन की अतिरिक्त मात्रा, ज्वार का किण्वित हरा चारा, बाजरा, मटर और मक्का, गन्ने का गुड़, बगैसा अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिए।
- कृमि के हमले से बचने के लिए, हर तीन महीनों के अंतराल के बाद पशुओं को डीवर्मिंग (कृमिमुक्त) दवा दें।
- हर दिन आहार के माध्यम से 50 ग्राम नमक का मिश्रण दे।
- बचा हुआ सड़ा भोजन, सब्जियां नहीं देना चाहिए।
- ज्वार, गेहूं, बाजरा और अनाज चारा अधिक मात्रा में न दें।
- तार, नाखून, लकड़ी, स्टील की शीट, चमड़े, कपड़ा, प्लास्टिक या कोई भी गैर-खाने योग्य वस्तुएं जानवरों के पेट में जाने से रोकें।
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