थनैला रोग के लिए होम्योपैथिक दवा क्या है । Thanaila Rog Ke Liye Homeopathic Dava Kya Hai
थनैला रोग के लिए होम्योपैथिक दवा क्या है। Thanaila Rog Ke Liye Homeopathic Dava Kya Hai, प्रत्येक डेयरी फार्मों के दुधारू पशुओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले कारकों में थनैला रोग पशुओं के उत्पादन क्षमता को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। यह रोग पशुपालकों में बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
यदि आपके पास डेयरी फार्म या दुधारू पशु है और आप थनैला रोग से परेशान हैं तो अब आपको चिंतित होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इस रोग में एलोपैथिक दवाओं असर या परिणाम संतुष्टिप्रद नहीं होता है ऐसे में आप होम्योपैथिक दवाओं की ओर रुख कर सकते हैं।
होम्योपैथी चिकित्सा से जुड़े कुछ पशुचिकित्सकों का मानना है कि होम्योपैथी में थनैला रोग का बेहद असरदार उपचार है। पशुओं में थनैला रोग के उपचार से सकारात्मक परिणाम मिला है।
एक्सपर्ट के मुताबिक थनैला रोग गाय, भैंस में होने वाले बेहद आम बीमारी बन चूका है। हालाकि यह आम रोग है लेकिन इसका उपचार, इतना आसान नहीं है। पशु का हालात तब बिगड़ जाता जब पशुपालक देशी दवाई और टोटके (फूंक-झाड़) के सहारे ईलाज कराने लगते हैं। जिससे पशु को सही समय पर उचित उपचार नहीं मिल पाता है।
पशुओं को समय पर उचित उपचार नहीं मिल पाने से थन हमेशा के लिए ख़राब हो जाते है या फिर पशु का थन अपनी पुरानी अवस्था में नहीं आ पाता है।
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थनैला रोग का होम्योपैथिक उपचार
टीटासूल मेस्टाइटिस किट (टीटासूल न० 1 + टीटासूल न० 2)
टीटासूल मेस्टाइटिस किट थनैला रोग के उपचार हेतु बेहतरीन व कारगर होम्योपैथिक पशु औषधि है, जो कि मादा पशुओं में थनैला रोग की सभी दशाओं के लिए अति उपयुक्त होम्योपैथिक दवाई है।
यह दूध के गुलाबी, दूध में खून के थक्के, दूध में पस के कारण पीलापन, दूध फटना, पानी सा दूध होना तथा अयन/बाख का पत्थर जैसा सख़्त होना और गाय और भैंस के थनों का आकार फनल के रूप में होने पर यह दवाई काफी प्रभावी है।
टीटासूल के एक पैकेट में टीटासूल नंबर -1 के 4 बोलस तथा टीटासूल नंबर-2 के 4 बोलस होते हैं। यह सुबह और शाम के वक़्त पैकेट पर दिए गए निर्देशों के अनुसार दिए जाते हैं या फिर पशु चिकित्सक जैसा निर्देशित करते है।
ये विशेष होम्योपैथिक पशु औषधि उत्पाद जानी मानी होम्योपैथिक वेटरनरी कंपनी गोयल वैट फार्मा प्रा० लि० द्वारा पशु पालकों के लिए बनाये गए है। यह कंपनी आई० एस० ओ० सर्टिफाइड हैं, तथा इसके उत्पाद डब्लु० एच० ओ० –जि० ऍम० पी० सर्टिफाइड फैक्ट्री मैं बनाये जाते हैं।
सभी फॉर्मूले पशु चिकित्सकों द्वारा जांचे व परखे गए हैं तथा पिछले 40 वर्ष से अधिक समय से पशु पालकों द्वारा उपयोग किये जा रहे है।
जल्दी व प्रभावी नतीजों के लिए कोशिश करने की होम्योपैथिक दवा पशु की जीभ से लग के ही जाये। होम्योपैथिक पशु औषधियों को अधिक मात्रा में न देवें, बार बार व कम समयांतराल पर दवा देने से अधिक प्रभावी नतीजें प्राप्त होते हैं। पिने के पानी में अथवा दवा के चूरे को साफ हाथों से पशु की जीभ पर भी रगड़ा जा सकता है।
तरीका 1 – गुड़ अथवा तसले में पीने के पानी में दवा या टेबलेट या बोलस को मिला कर पशु को स्वयं पिने दें।
तरीका 2 – रोटी या ब्रेड पर दवा या टेबलेट या बोलस को पीस कर डाल दें तथा पशु को हाथ से खिला दें।
तरीका 3 – थोड़े से पीने के पानी में दवा को घोल लें तथा एक ५ मिली की सीरिंज (बिना सुईं की ) से दवा को भर कर पशु के मुँह में अथवा नथुनों पर स्प्रै कर दें। ध्यान दें की पशु दवा को जीभ से चाट ले।
नोट – कृपया दवा को बोतल अथवा नाल से न दें।
होम्योपैथिक पशुचिकित्सा
टीटासूल न० 1
उत्पाद की प्रभावकारिता और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए, यह होम्योपैथिक पशु चिकित्सा दवा विशेष रूप से मवेशियों के लिए सबसे सुरक्षित और दुष्प्रभाव-मुक्त दवा देने के लिए तैयार की गई थी। यहां इस्तेमाल की जाने वाली होम्योपैथिक दवाओं के बारे में कुछ तथ्य दिए गए हैं।
एपिस मेलिफ़िका – थनों के लालिमा, सूजन, चुभन या खुजली के लक्षणों के लिए उपयोग किया जाता है।
ब्रायोनिया अल्बा – स्तनों के सूजन, दूध के प्रवाह में रुकावट के साथ, गायों में थन में दर्दनाक सूजन, गांठ, कड़ापन और स्तन की सूजन, दूध का कम या मंद स्राव आदि का इलाज इस दवा से किया जा सकता है।
पेट दर्द, तीव्र पीठ ऐंठन, कटिस्नायुशूल, पेट का दर्द, खांसी, ठंड के साथ बुखार, गैस संचय, सीने में जलन, अपच, सिरदर्द, दर्द और दर्द के साथ फ्लू, मोच, तनावग्रस्त स्नायुबंधन आदि में भी सहायक है।
कैमोमिला – कोमल, सूजे हुए और दर्दनाक थन के उपचार में उपयोगी।
इपेकाकुआन्हा (इपेकैक) – यह एक होम्योपैथिक उपचार है जिसका उपयोग मुख्य रूप से मतली, उल्टी, गहरी खांसी और पेट की खराबी के इलाज में किया जाता है, और यह नकसीर या शरीर के किसी भी हिस्से से रक्तस्राव के इलाज में भी सहायता करता है।
फाइटोलैक्का – पथरीले, कठोर और दर्दनाक थन के इलाज में उपयोगी, खासकर जब दमन अपरिहार्य हो, स्तन फोड़ा, फिस्टुला, दरारें, अल्सर, मवादयुक्त मवाद, संवेदनशील, पीड़ादायक, या फटे हुए निपल्स के साथ इचोरस थन।
अर्टिका यूरेन्स – यह एलर्जी प्रतिक्रियाओं, एनीमिया, मधुमक्खी के डंक, जलन, खुजली वाली त्वचा, फोड़े-फुंसियों और गठिया के लिए एक प्रमुख उपाय है। यह एग्लैक्टिया और लिथियासिस के लिए सबसे अच्छा उपाय है।
इस उपाय से श्लेष्मा सतहों से अत्यधिक स्राव, थन की अत्यधिक सूजन और अन्य संबंधित लक्षणों का इलाज किया जा सकता है।
नोट – होम्योपैथिक दवाओं के उपरोक्त सभी लक्षण वर्णन होम्योपैथी के अनुमोदित साहित्य से लिए गए हैं, जिसका अंतर्निहित आधार होम्योपैथिक फार्माकोपिया ऑफ इंडिया है।
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होम्योपैथिक पशुचिकित्सा
टीटासूल न० 2
उत्पाद की प्रभावकारिता और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए, यह होम्योपैथिक पशु चिकित्सा दवा विशेष रूप से मवेशियों के लिए सबसे सुरक्षित और दुष्प्रभाव-मुक्त दवा देने के लिए तैयार की गई थी। यहां इस्तेमाल की जाने वाली होम्योपैथिक दवाओं के बारे में कुछ तथ्य दिए गए हैं।
बेलाडोना – गर्म, लाल त्वचा, लाल, भरा हुआ चेहरा, ग्रंथियों में सूजन की प्रवृत्ति, थन में सूजन, थन का स्पर्श के प्रति संवेदनशील होना, थन का सख्त होना, थन पत्थर की तरह सख्त होना और अन्य संबंधित लक्षणों से जुड़ी शिकायतों का इलाज किया जा सकता है।
कैलकेरिया फ्लोरिका – कैल्क. फ़्लोर. इसका उपयोग मुख्य रूप से ऊतक की लोच बनाए रखने और कठोर हड्डी की वृद्धि को ठीक करने के लिए किया जाता है। यह अत्यधिक खिंची हुई मांसपेशियों और स्नायुबंधन के लिए भी संकेत दिया जाता है।
यह कठोर पथरीली ग्रंथियों, वैरिकाज़ और बढ़ी हुई नसों के लिए एक शक्तिशाली ऊतक उपचार है, और यहां तक कि हड्डियों के कुपोषण का भी इलाज करता है। अवधि में थन के दबने की धमकी का संकेत मिलता है।
कोनियम – पथरीले कठोर स्तनों और अंडकोषों की ग्रंथियों की सिकुड़न और कैंसर की प्रवृत्ति वाले जानवरों में, स्तन के घाव के इलाज के लिए उपाय, मासिक धर्म से पहले और उसके दौरान थन कठोर और दर्दनाक।
हेपर सल्फ – श्वसन तंत्र और त्वचा में संक्रमण होने पर आमतौर पर हेपर सल्फ का उपयोग किया जाता है। यह उन बीमारियों के लिए विशेष रूप से सहायक है जो गर्दन और कमर क्षेत्र में सूजन वाली ग्रंथियों के साथ होती हैं।
इसका उपयोग उन जानवरों में किया जा सकता है जो ठंड के साथ तेज बुखार से पीड़ित हैं, स्तनों में सूजन, छूने के प्रति असंवेदनशीलता, कैंसरग्रस्त स्तनों के किनारों पर चुभने वाली जलन, पुरानी पनीर जैसी गंध और अन्य संबंधित लक्षण।
सिलिकिया – साइनसाइटिस, सूजी हुई ग्रंथियां, आंखों की सूजन, त्वचा के दाग, हड्डी या जोड़ों के विकार, माइग्रेन और अन्य प्रकार के सिरदर्द, पीठ दर्द, दांत दर्द और बार-बार होने वाली सर्दी के लिए निर्धारित।
स्तन में सख्त गांठें, कीप की तरह अंदर की ओर खिंचा हुआ निपल, सूजे हुए थन, सूजे हुए, कठोर और स्पर्श के प्रति संवेदनशील थन, स्तनदाह आदि के मामले में इस उपाय से इलाज किया जा सकता है।
नोट – होम्योपैथिक दवाओं के उपरोक्त सभी लक्षण वर्णन होम्योपैथी के अनुमोदित साहित्य से लिए गए हैं, जिसका अंतर्निहित आधार होम्योपैथिक फार्माकोपिया ऑफ इंडिया है।
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