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गर्मी के मौसम में पशुओं का देखभाल कैसे करें । Summer Season Me Pashuon Ka Dekhbhal Kaise Kare

गर्मी के मौसम में पशुओं का देखभाल कैसे करें । Summer Season Me Pashuon Ka Dekhbhal Kaise Kare, गर्मियों में अत्याधिक तापमान के कारण पशुओं की प्रजनन क्षमता एवं दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है। भैसों के शरीर का रंग  काला होने के कारण उन्हें अधिक गर्मी लगती है। उत्तर भारत में मई से लेकर जुलाई तक भीषण गर्मी पड़ती है। वातावरण में तापमान 40 डिग्री सै. से लेकर 45 डिग्री सै. तक रहता है।

Summer Season Me Pashuon Ka Dekhbhal Kaise Kare
Summer Season Me Pashuon Ka Dekhbhal Kaise Kare

पशुओं में उच्च उत्पादन, कम तनाव व अधिक गर्भाधान के लिए 17-28 डिग्री सै. तापमान होना चाहिए। कई बार अधिक देर तक उच्च तापमान में रहने के कारण पशु के शरीर का तापमान 105 से 108 डिग्री फारनहाईट तक हो जाता है जो की सामान्य तापमान से काफी ज्यादा है। वैज्ञानिक भाषा में इसको हाइपरथर्मिया कहा जाता है। इससे पशु की श्वसन दर बढ़ जाती है तथा उचित समय पर चिकित्सा सुविधा न मिलने के कारण पशु के मरने की संभावना बढ़ जाती है।

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Summer Season Me Pashuon Ka Dekhbhal Kaise Kare

इसलिए गर्मियों में पशुओं को बाहर कड़कती धूप मेें ज्यादा देर नहीं रखना चाहिए। गर्मी में पशुओं को राहत पहुॅंचाने के उद्देश्य से कुछ ध्यान देने योग्य बातें निम्नलिखित है…..

  1. पशुओं का शेड खुला व हवादार होना चाहिए तथा शेड की छत ऊॅंची होनी चाहिए।
  2. पशुओं को हरे-भरे पेड़ के नीचे बांधना चाहिए।
  3. पशुओं के शेड की दिषा पूर्व से पष्चिम की तरफ होनी चाहिए।
  4. शेड में फव्वारा पद्धति का प्रयोग किया जा सकता है।
  5. पशुओं के पीने का पानी ठण्डा होना चाहिए। पीने के पानी की टंकी छायादार जगह पर होनी चाहिए।
  6. अगर शेड की छत टीन की बनी है तो उस पर पराली आदि डाल देनी चाहिए ताकि शेड के अंदर का तापमान कम रहे।
  7. गर्मियों में पशुओं को आहार सुबह जल्दी तथा शाम को या रात को देना चाहिए।
  8. पशु को संतुलित व पौष्टिक आहार देना चाहिए तथा आहार में खनिज मिश्रण अवष्य होना चाहिए।
  9. गर्मियों में भैंसे मद के दौरान ज्यादातर केवल तार देती है व बोलती नहीं है। इसलिए सुबह व शाम पशु को देखना चाहिए की पशु मद में है या नहीं।
  10. गर्मियों में हरे चारे की कमी रहती है। इसलिए इसकी उपलब्धता सुनिष्चित कर लेनी चाहिए तथा हरे चारे का संरक्षण कर ‘हे’ या ‘साइलेज’ का प्रयोग भी किया जा सकता है।
  11. गर्भ के अंतिम तिमाही में पशुओं को जोहड़ में नहीं ले जाना चाहिए।
  12. पशुओं के बाड़े में डेजर्ट कूलर का प्रयोग किया जा सकता है।
  13. विदेषी नस्ल व संकर प्रजाति की गायों में अत्याधिक तापमान के कारण दुग्ध उत्पादन में भारी कमी आ जाती है। इसलिए उन्हें उष्मीय तनाव से बचाना चाहिए तथा गर्मी से बचाने के लिए कूलर, फव्वारा इत्यादि का प्रयोग करना चाहिए।

उपरोक्त बताई गई बातों को ध्यान में रखते हुए पशुपालन किया जाए तो गर्मियों में भी पशुओं में प्रजनन क्षमता बनाये रख सकते हैं तथा उनसे उच्च उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

गर्मियों में पशुओं का आहार व पानी प्रबंधन :

  • पशुचारे में अम्ल घुलनशील रेशे की मात्रा 18-19 प्रतिशत से ज्यादा होनी चाहिए। इसके अलावा पशु आहार अवयव जैसे-यीष्ट (जो कि रेशा पचाने में सहायक है), फंगल कल्चर (उदा. ऐसपरजिलस ओराइजी और नाइसिन) जो उर्जा बढ़ाते है देना चाहिये।
  • चूंकि पशु का दाना ग्रहण करने की क्षमता घट जाती है, अत: पशु के खाद्य पदार्थ में वसा, ऊर्जा बढ़ाने का अच्छा स्त्रोत है, इसकी पूर्ति के लिए पशु को तेल युक्त खाद्य पदार्थ जैसे सरसों की खली, बिनौला, सोयाबीन की खली, या अलग से तेल या घी आदि पशु को खिलाना चाहिए। पशु आहार में वसा की मात्रा लगभग 3 प्रतिशत तक पशु को खिलाये गये शुष्क पदार्थों में होती है। इसके अलावा 3-4 प्रतिशत पशु को अलग से खिलानी चाहिए। कुल मिलाकर पशु को 7-8 प्रतिशत से अधिक वसा नहीं खिलानी चाहिए।
  • गर्मी के दिनों में पशु को दाने के रूप में प्रोटीन की मात्रा 18 प्रतिशत तक दुग्ध उत्पादन करने वाले पशु को खिलानी चाहिए। यह मात्रा अधिक होने पर अतिरिक्त प्रोटीन पशु के पसीने व मूत्र द्वारा बाहर निकल जाती है। पशु को कैल्शियम की पूर्ति के लिये लाईम स्टोन चूना पत्थर की मात्रा भी कैल्शियम के रूप में देना चाहिए। जिससे पशु का दुग्ध उत्पादन सामान्य रहता है।
  • पशुशाला में पानी का उचित प्रबंध होना चाहिए। तथा पशु को दूध दुहने के तुरंत बाद पानी पिलाना चाहिए। गर्मी के दिनों में अन्य दिनों की अपेक्षा पानी की मांग बढ़ जाती है। जो कि शरीर द्वारा निकलने वाले पसीने के कारण या ग्रंथियों द्वारा पानी के हास के कारण होता है। इसलिए पशु को आवश्यकतानुसार पानी पिलाना चाहिए।
  • पशुशाला में यदि पशुसंख्या अधिक हो तो पानी की कम से कम 2 जगह व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे पशु को पानी पीने में असुविधा न हो।
  • सामान्यत: पशु को 3-5 लीटर पानी की आवश्यकता प्रति घंटे होती है। इसे पूरा करने के लिये पशु को पर्याप्त मात्रा में पानी पिलाना चाहिए।
  • पानी व पानी की नांद सदैव साफ होना चाहिए। तथा पानी का तापमान 70-80 डिग्री फेरानाइट होना चाहिए, जिसको पशु अधिक पसंद करता है।
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गर्मी का गायभैंसों पर प्रभाव:

  • गर्मी के कारण पशु की चारा व दाना खाने की क्षमता घट जाती है।
  • पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता घटती है।
  • मादा पशु समय से गर्मी या ऋतुकाल में नहीं आती है।
  • गाय, भैंसों के दूध में वसा तथा प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • मादा पशु की गर्भधारण क्षमता घट जाती है।
  • मादा पशु बार-बार गर्मी में आती है।
  • मादा में भ्रूणीय मृत्यु दर बढ़ जाती है।
  • पशु का व्यवहार असामान्य हो जाता है।
  • नर पशु की प्रजनन क्षमता घट जाती है।
  • नर पशु से प्राप्त वीर्य में शुक्राणु मृत्यु दर अधिक पाई जाती है।
  • नर व मादा पशु की परिपक्वता अवधि बढ़ जाती है।
  • बच्चों की अल्प आयु में मृत्यु दर बढ़ जाती है।

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