डिस्टोकिया या कष्ट प्रसव समस्या का हल : Solution to Dystocia or Labor Problems
डिस्टोकिया या कष्ट प्रसव समस्या का हल : Solution to Dystocia or Labor Problems, जब मादा पशुओं में गर्भधारण काल पूरा होने पर प्राकृतिक प्रसव क्रिया के द्वारा गर्भ से बछड़ा और गर्भ झिल्लियाँ गर्भाशय से बाहर की जाती है. इस बाहर आने की क्रिया में किसी भी प्रकार की कठिनाई या बाधा या असमर्थता या ब्याने में देरी होने पर, इस क्रिया में कष्ट प्रसव की आशंका होती है.

डिस्टोकिया या कष्ट प्रसव समस्या का हल : Solution to Dystocia or Labor Problems, जब मादा पशुओं में गर्भधारण काल पूरा होने पर प्राकृतिक प्रसव क्रिया के द्वारा गर्भ से बछड़ा और गर्भ झिल्लियाँ गर्भाशय से बाहर की जाती है. इस बाहर आने की क्रिया में किसी भी प्रकार की कठिनाई या बाधा या असमर्थता या ब्याने में देरी होने पर, इस क्रिया में कष्ट प्रसव की आशंका होती है. कष्ट प्रसव को और अन्य – बछड़े का अटकाना, बछड़े का असड़ना, अप्राकृतिक प्रसव, असामान्य प्रसव, के नाम से भी जाना जाता है. पशुपालक को मादा पशुओं के ब्याने के समय का विशेष ख्याल रखना चाहिए. पशुओं में प्रसव पीड़ा या लेबर पेन शुरुवाती में थोड़े समय के लिये और आधा से एक घंटा के लिये प्रसव पीड़ा होता है. धीरे धीरे कुछ समय के बाद प्रसव पीड़ा लम्बे समय के लिये और जल्दी जल्दी आने लगता है. प्रसव पीड़ा प्रारंभ होने के 1 घंटे बाद यदि पशु नहीं ब्याये या बछड़ा बाहर नहीं निकल पाये, तो पशुपालक को समझ लेना चाहिए कि पशु में डिस्टोकिया या कष्ट प्रसव की समस्या है. ऐसे स्थिति में पशुपालक क्षणिक भी देरी नहीं करते हुए पशुचिकित्सक या पेशेवर चिकित्सक को बुलाना चाहिए.
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कष्ट प्रसव या डिस्टोकिया के लक्षण – पशुओं के कष्ट प्रसव या डिस्टोकिया की समस्या को पशुओं में निम्न लक्षण दिखनें पर पहचाना जा सकता है.
1 . पशुओं में गर्भकाल पूरा हो जाने पर भी प्रसूति के लक्षण दिखाई नहीं देना.
2. पशु बेचैन होकर जमीं पर बैठ जाता है और बार बार जोर लगाता है.
3. योनी से कुछ लाल अथवा भूरे रंग का पानी बाहर आना अथवा गर्भ या बछड़े का पैर या सिर का भाग थोड़ा योनी मार्ग से बाहर आना.
4. गाय तथा भैस में पहला पानी का गुब्बारा दिखने के पश्चात् आधे से एक घंटे के भीतर बच्चा बाहर आ जाता है. अगर इसके समय में देर लगे या समय में वृद्धि हो तो वह कष्ट प्रसव की तरफ अंदेशा या इशारा करता है.
5. अगर योनी मार्ग मरण ऐठन हो गई हो तो ऐसी अवस्था में जानवर जोर लगाता है परंतु बाह्य जननांग द्वारा कुछ भी बाहर नहीं आता है. उपरोक्त स्थिति का ज्ञात होते ही पशुपालक पेशेवर चिकित्सक या पशुचिकित्सक को शीघ्र से शीघ्र बुलाएँ.
कष्ट प्रसव या डिस्टोकिया के कारण
डिस्टोकिया – पशुओं कष्ट प्रसव के कारणों को मुख्य दो भागों में विभाजित करके कष्ट प्रसव की समस्या की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
1 . मादा पशु या माता की ओर से निर्मित कारण
2. जन्म लेने वाले बछड़े की ओर से निर्मित कारण
1 . मादा पशु या माता की ओर से निर्मित कारण (Reasons of Female or Mother Animals of Dystocia) – मादा पशु में गर्भधारण काल पूरा होने पर प्रसूति क्रिया की शुरुआत होती है. अगर प्रसव के लिये लक्षण या क्रिया स्पष्ट दिखाई नही देता है तो उसमें कष्ट प्रसव की सम्भावना होती है. मादा या माता की ओर से कष्ट प्रसव के कारण निम्न्लिखित हो सकते हैं.
1 . श्रोणि गुहा – मादा पशु में कमर की हड्डियों की बनावट में खराबी होना अथवा श्रोणि गुहा की द्वार का छोटी होने पर भी कष्ट प्रसव हो सकती है.
2. शारीरिक कमजोरी – मादा पशु के अन्दर आवश्यक पोषक तत्वों की कमी या कमजोरी के कारण भी कष्ट प्रसव हो सकता है.
3. हार्मोन्स की कमी – पशु के शरीर के अन्दर आवश्यक हार्मोन्स की कमी हो जाना अथवा उसका स्त्रावन ( जैसे – एस्ट्रोजन, ओक्सीटोसिंन, रिलैक्सिन) का कम हो जाने पर यह समस्या दिखाई दे सकती है.
4. ग्रीवा का का मुह नहीं खुलना – एस्ट्रोजन, ओक्सीटोसिंन, रिलैक्सिन हार्मोन्स की कमी के कारण गर्भाशय ग्रीवा का मुख खुलना अथवा फैलाव करने में असमर्थता होने पर कष्ट प्रसव हो सकता है.
5. खनिज की कमी – गर्भाशय में मांसपेशियों की कमजोरी की वजह से उसकी खिंचाव शक्ति कम हो जाति है. जिसके कारण गर्भ की बाहर आने में परेशानी होती है. इसके लिये आवश्यक खनिज जैसे – कैल्शियम, फास्फोरस की कमी से गर्भाशय के मांसपेशियों में कमजोरी आती है.
6. योनी मार्ग में गांठ या ऐंठन होने पर – योनिमार्ग में गांठ या ऐंठन होने पर भी गर्भ का बच्चा फंस सकता है जिसके कारण कष्ट प्रसव हो सकता है.
7. मूत्राशय का योनी मार्ग पर आना – मूत्राशय का योनी मार्ग पर ऊपर या पृष्ठ भाग पर आ जाने स, योनी मार्ग का रास्ता पिचक जाने या बंद हो जाने पर यह समस्या हो सक्ती है.
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2. जन्म लेने वाले बछड़े की ओर से निर्मित कारण
जन्म लेने वाले बछड़े की ओर से निर्मित कारण – कभी – कभी बछड़े का अटक जाना या बच्चे का बाहर न निकलना, बछड़े के स्थिति/बछड़े के आसन के ऊपर भी निर्भर करता है.
1 . बछड़े का आकर – यदि मादा पशु कभी कभी बड़े आकर के सांड अथवा बड़े आकर के सांड के वीर्य द्वारा गर्भित होने पर बच्चा/बछड़ा भी बड़े आकार होता है. जिससे मादा पशुओं के द्वारा के ब्याते समय कष्ट प्रसव की समस्या उत्पन्न हो सकती है.
2. यमलन या युग्मनज – कभी – कभी मादा पशु के गर्भ में दो भ्रूण के बन जाने से मादा पशु जुड़वाँ बच्चों को जन्म देती है. जुड़वाँ बच्चो के जन्म देने पर भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है.
3. बछड़े की गर्भ में मृत्यु – गर्भ या बछड़े की गर्भाशय में मृत्यु होने पर भी कष्ट प्रसव हो सकता है.
4. बछड़े का असामान्य आसन – गर्भ में बछड़े की प्राकृतिक आसन में बदलाव अथवा पशु ब्याते समय बछड़े की असामान्य आसन की स्थिति होने पर पशु को कष्ट प्रसव हो सकता है. इसमें बछड़े का कोई भी अंग बाहरी अथवा अंतर्गत आघात से हिलने डुलने पर गर्भ का कोई भी भाग/अंग अपनी प्रारंभिक स्थान से हट जाता है. जैसे – सिर का मुड़ जाना, पैरों का घुटनों के अन्दर से मुड़ जाना, सिर और गर्दन का भाग सामने पैर के निचे झुकना, सामने के दोनों पैर गर्दन पर लपेट जाना आदि कारण से असामान्य आसन का निर्माण होता है.
प्राकृतिक प्रसूति क्रिया और कष्ट प्रसव – प्राकृतिक प्रसूति क्रिया दो चरणों में पूरी होती है. 1. अग्र गर्भ स्थिति, 2. पश्च गर्भ स्थिति.
1 . अग्र गर्भ स्थिति में कष्ट प्रसव – प्राकृतिक प्रसूति क्रिया में अग्र गर्भ स्थिति 80% जानवरों में दिखती है. जिसमें गर्भ के सामनें के दोनों पैर एक दुसरे को समान अंतर पर रखे हुए, घुटने पर गर्भ का सिर या थूथन का भाग रखे हुए स्थिति में प्रसूति क्रिया पूरी की जाति है. इस स्थिति में बछड़े का अगले पैर तथा सिर का भाग मादा गर्भाशय ग्रीवा के तरफ होता है, इसलिए इसे अग्र गर्भ स्थिति कहते है. अगर इस स्थिति में बछड़े के अगले पैरों में निचे की तरफ मुडाव दिखता है अथवा सिर का विपरीत दिशा में मुडाव दिखता है तो इसकी वजह से मादा पशु में कष्ट प्रसव हो सकता है. इस स्थिति में बछड़े की पैर, गर्दन तथा सिर की बाधाएँ दूर करके उसे सामान्य अग्र गर्भ स्थिति में लाकर प्राकृतिक प्रसूति क्रिया कराई जाति है.
2. पश्च गर्भ स्थिति में कष्ट प्रसव – इस स्थिति में बछड़े का पिछले दोनों पैर एक समान अंतर पर जुडी हुई स्थिति में गर्भाशय ग्रीवा से होकर योनी से बाहर किये जाते हैं और बछड़े को जन्म दिया जाता है. लेकिन उपरोक्त स्थिति में किसी भी प्रकार से दोष ( जैसे – पैर में मुडाव, बछड़े की श्रोणि हड्डी का बड़ा होना, दोनों पिछले पैर आपस में लपेटकर रहना) निर्माण होने पर पश्च गर्भ स्थिति में वह बछड़े की ओर से होने वाला कष्ट प्रसव कहलाता है. इस अवस्था में पैरो को सही दिशा में लाकर औए बछड़े की स्थिति को सामान्य बनाकर, बछड़े को बाहर निकाला जाता है.
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बछड़ो की असामान्य अवस्थाएं/स्थिति
1 . खड़ी गर्भ अवस्था – इस अवस्था में बछड़ा गर्भाशय ग्रीवा की अक्ष रेखा पर लम्बवत स्थित रहता है. ऐसे स्थिति में कष्ट प्रसव बहुत ही कष्टदायक या तकलीफपूर्ण होता है. इस अवस्था में बछड़े के पीठ का भाग गर्भाशय ग्रीवा की तरफ होता है अथवा चारो पैर गर्भाशय ग्रीवा के तरफ होता है. इस स्थिति में बछड़े को अन्दर धकेलकर सामान्य स्थिति में लाने की कोशिश की जाति है. लेकिन ज्यादातर ओसर गायों में इस स्थिति में आपरेशन की आवश्यकता होती है और बछड़े को बाहर निकाला जाता है.
2. अनुप्रस्थ उदरीय गर्भ स्थिति – इस स्थिति में बछड़ा गर्भाशय में अक्ष रेखा पर पेट के बल टेढ़ा पड़ा रहता है और बछड़े के पीठ का भाग मादा के पीठ की तरफ होता है. इस स्थिति में बछड़े को सामान्य स्थिति में लाकर प्रसव किया जाता है.
3. अनुप्रस्थ पृष्ठ गर्भ स्थिति – इस स्थिति में बछड़ा गर्भाशय की अक्ष रेखा पर अपने पीठ के बल पड़ा रहता है और चारों पैर आसमान के तरफ होते है. इस स्थिति में बछड़े को सीधा करके, सामान्य स्थिति में लाया जाता है और बाहर निकाला जाता है.
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