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पशु शेड निर्माण के वैज्ञानिक तरीके : Scientific Method of Cattle Shed Construction

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पशु शेड निर्माण के वैज्ञानिक तरीके : Scientific Method of Cattle Shed Construction, पशु शेड या गौशाला निर्माण में अधिक आर्थिक लाभ के लिये वैज्ञानिक तरीके से गौशाला प्रबंधन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. पशुपालक गौशाला प्रबंधन के वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर पशुओं में अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है. पशुओं में अच्छा प्रबंधन व्यवस्था से डेयरी फार्म सफलता की ओर अग्रसर होती है.पशुपालक पशुओं के लिये पशुशाला का निर्माण करते समय दुधारू पशु, गर्भित पशु, अगर्भित पशु, छोटे बछड़ों को रखने की व्यवस्था और पशुओं की प्रजनन व्यवस्था के साथ-साथ पशुओं के लिये पैरा, दाना, कुट्टी, हरा चारा इत्यादि को रखने की उचित प्रबंधन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है.

Cattle Shed Build for Dairy Farms
Cattle Shed Build for Dairy Farms

पशुपालक ध्यान देवें की पशुओ को गर्मी, बरसात और ठण्ड से बचाने की उचित व्यवस्था करके ही पशुओं से अच्छा उत्पादन ले सकते है. पशुओं की उचित आवास व्यवस्था, पोषण और प्रबंधन नहीं करने करने पर पशुओं के उत्पादन क्षमता पर बहुत प्रभाव पड़ता है. पशुशाला या गौशाला के पशुओं की उचित पोषण और प्रबंधन व्यवस्था होने पर पशुपालक पशुओं की संक्रामक बीमारियाँ और मौसम का प्रतिकूल प्रभाव के कारण होने वाले रोगों के संक्रमण से पशुओं को बचाया जा सकता है. अतः गौशाला या पशुशेड निर्माण करते समय निम्नलिखित तथ्यों की ओर ध्यान आकर्षित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है.

पशुशेड निर्माण के लिये वातावरण का चयन

1 . पशुशाला या पशु शेड के निर्माण उचित स्थान वह होता है, जहाँ से बाजार या शहर निकट हो. ताकि पशु उत्पाद या डेयरी से निर्मित वस्तुएं आसानी से खपत हो सके. जहाँ से जरुरत पड़ने पर पशुओं के लिये पशुआहार, पशुचारा और आवश्यक दवाइयां आसानी से उपलब्ध हो सके.

2. पशुशाला बनाते समय ध्यान रखें कि मेन रोड या सड़क से पशुशाला की दुरी 100 से 150 मीटर होनी चाहिए. ताहि पशु उत्पाद या डेयरी उत्पाद को आसानी से परिवहन किया जा सके.

3. ध्यान रहे कि पशुशाला निर्माण वाली जगह पर बिजली की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. ताकि पशुओं ठण्ड या गर्मी के मौसम में अनुकूल वातावरण मिल सके.

4. बिजली की उचित व्यवस्था होने पर ट्यूबवेल या नलकूप द्वारा पशुओं के लिये पानी का उचित प्रबंध किया जा सकता है.

5. पानी की उचित व्यवस्था होने से पशुशाला के आस-पास की जमीन पर पशुओं के लिए हरा चारा उगाया जा सकता है. जिससे गर्मी के दिनों में भी पशुओं के लिए हरे चारे की उपलब्धता होने पर दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन बना रहे.

6. पशुपालक या डेयरी फार्म के मालिको को पशुशाला में काम करने के लिये श्रमिकों की बहुत आवश्यकता पड़ती है या कभी-कभी सही समय पर श्रमिकों की कमी के वजह से पशुशाला के पशुओ का उचित पोषण या प्रबंधन नहीं हो पाता है. जिससे पशुपालन और पशु उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है. इससे पशुपालक को पशुओं में दूध उत्पादन कम होने से बहुत अधिक आर्थिक हानि पहुँचता है.

7. पशुशाला की जमीन आसपास की जमीं से कुछ ऊँची पर होना चाहिए, जिससे मलमूत्र आसानी से बाहर निकल जाये तथा बरसात का पानी पशुशाला के अन्दर नहीं घुसें.

पशुशेड या पशुशाला की रचना

1 . पशुशेड निर्माण करते समय ध्यान रखें की सर्दी और लू के झोकों से पशुओं का बचाव हो सके और जहाँ तक संभव हो भवनों का मुख्य द्वार पूर्व की ओर होना चाहिए.

2. पशुशाला में पर्याप्त रोशनदान और खिड़कियाँ होनी चाहिए, ताकि पशुओं को पर्याप्त शुद्ध हवा मिल सके.

3. पशुशाला की बनावट उचित आकर्षक और सहूलियत भरी होनी चाहिए, जिससे पशुओं का पोषण और प्रबंधन व्यवस्था आसानी से हो सके.

4. पशुशाला के चरों ओर बड़े-बड़े वृक्ष लगाना चाहिए, जिससे गर्म और ठंडी हवा को रोका जा सके.

5. पशुशाला की लम्बाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होना चाहिए.

6. पशुशाला के चारो तरफ की जगह साफ और स्वच्छ होना चाहिए.

7. दो पंक्ति वाला पशुशाला में दोनों कोटना या नांद बाहर की तरफ होनी चाहिए.

7. पशुओं की संख्या यदि 15 तक है तो पशुओं को एक पंक्तिवाला पशुशाला में रख सकते है. यदि पशु संख्या 15 से अधिक है तो दो पंक्ति वाला पशु शाला का उपयोग कर सकते है.

पशुशाला की आतंरिक संरचना

1 . पशुशाला या शेड निर्माण में गाय के लिये 25-30 फीट और भैंस के लिये 35-40 फीट की जगह होनी चाहिए.

2. विभिन्न पशु वर्ग के लिये अलग-अलग और स्वतंत्र घर होना चाहिए. जैसे – दूध देने वाली गाय भैंस, गाभिन या गर्भित पशु, छोटे बछड़े, सांड आदि के लिये अलग-अलग जगह होनी चहिये.

3. पशुशाला की जमीं कठोर होनी चाहिए, परंतु चिकनी नहीं होनी चाहिए.

4. पशुशाला की फर्श मुत्रवाहक नाली की तरफ ढलान होनी चाहिए.

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1. खुली या हवादार पशुशाला

खुली या हवादार पशुशाला में 1/3 भाग ढंका हुआ होना चाहिए तथा 2/3 भाग खुला रहना चाहिए. ढकें हुए भाग में पशुओं की धुलाई, दूध निकालना, पशुओं को दाना देना आदि काम कर सकते है. खुले हुए भाग में चारे एवं पानी की व्यवस्था की जाती है और वहा पर पेड़ भी लगाना चाहिए. पशुशाला के ऐसे भाग को पेडाक कहते है.

खुली या हवादार पशुशाला
खुली या हवादार पशुशाला

खुली पशुशाला के लाभ

1 . पशु अपनी आवश्यकता के अनुसार चारा एवं पानी पी सकते है.

2. इस प्रकार के पशुशाला में पशुओं का व्यायाम होता है और प्रजनन क्षमता में वृद्धि होती है.

3. ऐसी पशुशाला में गर्मी में आये पशुओं को पहचानने में मदद मिलती है.

4. खुली पशुशाला में पशुओं की शारीरिक वृद्धि (Grouth) जल्दी होती है.

5. ऐसी पशुशाला की सफाई करने में आसानी होती है.

6. खुली पशुशाला में गर्मी के समय रात में पशुओं को खुली हवा मिलती है, जिससे पशुओं को गर्मी की समस्या नहीं होती.

7. पशुओं के रख-रखाव में आसानी होती है. ऐसी पशुशाला में पशुओं की रखने की क्षमता में 10-20% वृद्धि होती है या 10-20% अधिक पशु रख सकते है.

2 . एक पंक्तिवाला पशुशाला

1 . एक पंक्तिवाला पशुशाला में 15-20 पशु आसानी से रख सकते है.

2. ऐसी पशुशाला की चौड़ाई 18-20 फीट होती है.

3. पशुओं के लिये चारा रखने के लिये दिवार से 4 फीट की जगह छोड़ी जाति है.

4. पशु को खड़े होने के लिये 2.5-3.00 फीट चौड़ी और 5.50-6.00 फीट लम्बी जगह चाहिए होता है.

5. एक पंक्तिवाला पशुशाला में कोटना/नांद को चौड़ाई लगभग 2 फीट होनी चाहिए.

6. पशुओं के लिये मुत्रवाहक नाली, आने जाने के लिये तथा देखभाल के लिये पीछे से 4-5 फीट की जगह छोड़ी जानी चाहिए.

एक पंक्तिवाला पशुशाला
एक पंक्तिवाला पशुशाला

3. दोहरी पंक्तिवाला पशुशाला

इस प्रकार के पशुशाला में अधिकतम 100 पशुओं को रखा जा सकता है. इस प्रकार का पशुशाला का निर्माण दो प्रकार से बनाया जाता है 1. मुंह से मुंह बांधने की विधि, 2. पूंछ से पूंछ वाली विधि.

1 . मुंह से मुंह बांधने की विधि

1 . इस विधि में पशुओं को ऐसा बांधा जाता है कि दोनों पंक्तियों के पशुओं के मुंह आमने – सामने होता है.

2. इस पशुशाला की चौड़ाई अधिकतम 30-33 फीट की होती है तथा लम्बाई 40-45 फीट की होती है.

3. ऐसी पशुशाला में दोनों ओर पशुओं के लिये अलग-अलग मूत्र वाहक नाली, खड़े होने का स्थान तथा नांद या कोटना बनाई जाती है.

4. मुंह से मुंह विधि में पशुओ के मुंह के बीच का रास्ता दोनों ओर पशुओं को संयुक्त रूप से चारा डालने के लिये प्रयोग में लाया जाता है.

मुंह से मुंह बांधने विधि पशुशाला
मुंह से मुंह बांधने विधि पशुशाला

मुंह से मुंह बांधने वाली पशुशाला के लाभ

1 . दोनों ओर पशुओं को चारा डालने में सुविधा एवं कम समय लगता है.

2. भरपूर मात्रा में सूर्य का प्रकाश और हवा उपलब्ध होते है.

2. पूंछ से पूंछ वाली विधि

1 . इस प्रकार के पशुशाला निर्माण में पशुओं को दो पंक्ति में बांधा जाता है, लेकिन दोनों पंक्तियों के पशु का मुंह विपरीत दिशा में होती है और पशु का पूंछ आमने सामने होती है.

2. पूंछ से पूंछ विधि में दोनों ओर पशुओं के लिये मूत्र नाली का निर्माण करना होता है.

3. दोनों ओर के मूत्र नालियों के बीच में 1.5-2.00 फीट का खाली जगह छोड़ना पड़ता है.

4. इस विधि में पशुओं को चारा डालने में असुविधा होती है.

पूंछ से पूंछ विधि पशुशाला
पूंछ से पूंछ विधि पशुशाला

पूंछ से पूंछ वाली विधि पशुशाला के लाभ

1 . इस प्रकार के पशुशाला निर्माण करने पर सूर्य का प्रकाश और हवा पर्याप्त मात्रा में आती है.

2. इस विधि के पशुशाला में रोग फैलने का भय नहीं होता है.

दोहरे बाड़े की बनावट – दोहरे बाड़े की पूरी चौड़ाई 30 फीट तथा लम्बाई 40 फीट होती है. चारा डालने के लिये 3-4 फीट जगह की आवश्यकता होती है. पशुओं के लिये नांद 2.5-3.00 फीट होनी चाहिए. खड़े होने के लिये 5-6 फीट लम्बाई और 2.5-3.00 फीट चौड़ाई होनी चाहिए. मुत्रवाहक नाली 1.5-2.00 फीट होनी चाहिए. दूध निकालने के लिये 3.00 फीट की जगह होनी चाहिए. बड़े की कुल ऊंचाई 15 से 18 फीट होनी चाहिए.

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